दृश्य-1
4 मई, 2016. स्थान — नई दिल्ली स्थित लालू यादव का आवास. सुबह 10 बजे के करीब योगगुरु के विशेषण से नवाजे जाने वाले रामदेव अचानक लालू प्रसाद यादव के घर पहुंचते हैं और उन्हें 21 जून को फरीदाबाद में आयोजित करने जा रहे योग जलसे में आने का न्योता देते हैं. रामदेव को ले कर लालू के सुर बदलेबदले से नजर आते हैं. वे रामदेव, उन के योग और उन के प्रोडक्ट्स की जम कर तारीफ करते हैं. रामदेव इतने में लालू के और करीब पहुंच कर उन के गालों पर पतंजलि की गोल्ड क्रीम लगा डालते हैं. लालू कहते हैं कि रामदेव के प्रोडक्ट्स काफी बेहतरीन हैं और खास बात यह है कि रामदेव उस की शुद्धता की गारंटी भी देते हैं. रामदेव के प्रोडक्ट्स की कामयाबी की वजह से कई लोग उन्हें तिरछी नजरों से देखते हैं. रामदेव की वजह से कई लोगों की दुकानें बंद हो गई हैं. लालू ने यह भी माना कि रामदेव के बताए योगासन को करने से उन्हें काफी फायदा मिला था.
लालू और रामदेव के मिलन और एकदूसरे की तारीफ में कसीदे पढ़ने के बाद लोग तरहतरह के कयास लगा रहे हैं. आखिर रामदेव ने बगैर फूटी कौड़ी खर्च किए अपने प्रोडक्ट्स के लिए गांवों से ले कर नैशनल और इंटरनैशनल स्तर पर मशहूर लालू यादव को अपना ब्रैंड एंबैसेडर कैसे बना लिया? लालू भी रामदेव के सुर में सुर मिलाते हुए कहते हैं कि वे तो उन के लाइफटाइम ब्रैंड एंबैसेडर हैं.
दृश्य-2 (फ्लैशबैक)
14 अप्रैल, 2016. स्थान — पटना के वीरचंद पटेल पथ पर राष्ट्रीय जनता दल का दफ्तर. राजद सुप्रीमो लालू यादव अपने अंदाज में खुल कर बोले चले जा रहे हैं. एक के बाद एक बाबाओं की पोलपट्टी खोल रहे हैं. रामदेव, रविशंकर, आसाराम सहित तथाकथित धर्मगुरुओं पर निशाना साधते हुए वे कहते हैं कि मोहमाया को छोड़ने की दुहाई देने वाले बाबा और संत आज बिजनैसमैन बन गए हैं और करोड़ोंअरबों रुपए की इंडस्ट्री चला रहे हैं. रामदेव पर तंज कसते हुए वे कहते हैं कि खुद को संत और योगगुरु कहते हैं पर वे आज सब से बड़े उद्योगपति व पूंजीपति बन चुके हैं. धर्म, योग और जड़ीबूटियों की दुकान चलातेचलाते बाबा लोग आसानी से बड़े कारोबारी बन रहे हैं. रामदेव के बाद रविशंकर को आड़े हाथों लेते हुए उन्होंने कहा कि एक संत कहते हैं कि जो देश से प्यार नहीं करता है उसे देश छोड़ कर बाहर चले जाना चाहिए. लालू रविशंकर पर सवाल दागते हुए पूछते हैं कि वे किस आधार पर कह रहे हैं कि कुछ लोग देश से प्यार नहीं करते हैं? आखिर उन के देशप्रेम का मापदंड क्या है?
आसाराम का नाम ले कर वे हंसते हुए कहते हैं कि अब ऐसे लोग खुद को संत कहते हैं? लालू यादव बाबाओं और संतों की बखिया उधेड़ते हुए लोगों को ऐसे संतों से बचने की नसीहत देते हैं.
दृश्य-3 (फ्लैशबैक)
22 जुलाई, 2009. स्थान — बिहार की मुख्यमंत्री रह चुकीं राबड़ी देवी का सरकारी आवास, पटना के सर्कुलर रोड का सरकारी बंगला नंबर 1. राजग की मदद से बिहार के मुख्यमंत्री रहे नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए लालू यादव कहते हैं कि सूर्यग्रहण के समय कुछ भी खानेपाने से पाप लगता है. पटना से 40 किलोमीटर दूर तरेगना के आर्यभट्ट साइंस सैंटर से सूर्यग्रहण के दौरन नीतीश कुमार ने सूर्यग्रहण का नजारा लेते हुए चाय और बिस्कुट खा लिया था. लालू कहते हैं कि नीतीश की हरकत की वजह से ही बिहार भयानक सुखाड़ की चपेट में आया. इसी तरह साल 2014 में लोकसभा चुनावप्रचार के लिए नरेंद्र मोदी बिहार पहुंचे तो भी लालू यादव ने कहा था कि नरेंद्र मोदी बिहार के लिए मनहूस हैं. उन के बिहार आने से ही राज्य सूखे की चपेट में आ गया है.
दिखने लगा है बदलाव
साल 2009 के लालू यादव और साल 2016 के लालू यादव में काफी बदलाव दिखने लगा है. कभी बाबाओं, ज्योतिषियों और तांत्रिकों से घिरे रहने वाले लालू यादव को अब शायद बाबाओं की असलियत समझ में आ गई है. यह बात किसी से छिपी नहीं कि साल 1996 में चारा घोटाले में फंसने के बाद वे खुद ‘सैटेलाइट बाबा’ के चक्कर में फंसे थे. उस ठग बाबा ने लालू का आशीर्वाद पा कर अपना धंधा तो चमका लिया पर उस ठग बाबा का आशीर्वाद लालू के काम नहीं आया. उन्हें चारा घोटाला के मामले में जेल जाना ही पड़ा था. कभी अपने दोनों हाथों की सभी उंगलियों में रंगबिरंगी अंगूठियां पहनने और गले में गंडेताबीज बांधने वाले लालू यादव क्या पोंगापंथ के मकड़जाल से सच में बाहर निकल चुके हैं या उस से बाहर निकलने की छटपटाहट शुरू हो चुकी है. जिन बाबाओं के खिलाफ देश का राष्ट्रपति और प्रधामंत्री तक बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाता है, वहां लालू का ठग बाबाओं की कलई खोलना तारीफ के काबिल है. लालू ने पोंगापंथ के दलदल में गले तक डूबे लोगों को हिम्मत दी है कि धर्म की दुकान चलाने वाले ठग बाबाओं को खुलेआम ठग कह सकें.
पोंगापंथी का बोलबाला
पोंगापंथी के मामले में हमारे देश के हर छोटेबड़े नेताओं की बोली दोमुंही ही रही है. अकसर सभाओंजलसों में गरीबों, दलितों, पिछड़ों को धर्म और पोंगापंथ से बचने की सलाह देने वाले नेता खुद ही उस के मकड़जाल में फंसे दिखाई देते हैं. दलितों और पिछड़ों की तरक्की का नारा लगाने वाले नीतीश, लालू और पासवान जैसे नेता भी मंदिरों, बाबाओं के चक्कर लगाने लगते हैं. सभी को अपने काम और जनता से ज्यादा भरोसा पत्थर की मूर्तियों पर है. कोई मंदिरमस्जिद में सिर झुकाता है तो कोई पंडितों को अपना हाथ दिखला कर ऐसी अंगूठी पहन लेता है कि मानो चुनाव में जीत पक्की हो गई हो. बाबाओं के चक्कर में नेता दिल्ली, राजस्थान, बनारस, हरिद्वार, देवघर तक के चक्कर काटने में लग जाते हैं. जनता के बीच घूमने के बजाय वे मंदिरों और पंडितों के बीच घूमने लगते हैं. लालू भी ऐसे नेताओं से अलग नहीं रहे हैं.
दावाप्रतिदावा
लालू यादव की ही बात करें तो वे हमेशा ही पोंगापंथी के जाल में उलझे रहे हैं. खुद को पिछड़ों और दलितों को आवाज देने का दावा करने वाले लालू यादव भी चुनाव में जीत के लिए जनता से ज्यादा मंदिर और मजार पर यकीन करते रहे हैं. लेकिन पिछले 2-3 सालों के दौरान वे कई मौकों पर खुद को बदलने का दावा भी करते रहे हैं. वहीं दूसरी ओर, वे खुद ही अपने इस दावे की धज्जियां भी उड़ाते रहे हैं. पिछले बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान
27 सितंबर, 2015 को अपने बेटे तेजस्वी यादव के चुनाव क्षेत्र राघोपुर में जब वे प्रचार करने पहुंचे तो अपने पुराने रंग में रंगे दिखाई पड़े. अपनी यादव जाति को पटाने के लिए उन्होंने कहा कि भाजपा वाले हमारे भगवान श्रीकृष्ण को गाली देते हैं. वे तो जेल में पैदा हुए थे तो कौन सा खराब काम सीखे? कृष्ण ने कंस का वध किया था, उसी तरह से वे (लालू यादव) भी भाजपारूपी कंस का राजनीतिक वध करेंगे.
उतारचढ़ाव
चारा घोटाला में फंसने और उस के बाद उस मामले में आरोप साबित होने के बाद से लालू यादव अपने जीवन की सब से बड़ी सियासी और कानूनी मुश्किलों से जूझते रहे हैं. इस से बचने के लिए वे कई बाबाओं और तांत्रिकों के दरवाजे खटखटाते रहे, पर कोई कामयाबी नहीं मिली. फिलहाल तो चारा घोटाले के एक ही मामले में फैसला आया है, 5 मामलों में फैसला आना बाकी है. केस नंबर- आरसी38ए 1996 (दुमका ट्रेजरी) 3 करोड़ 97 लाख रुपए का घोटाला, आरसी-47ए/1996 (डोरंडा ट्रेजरी) 184 करोड़ रुपए का घोटाला, आरसी-64ए/1996 (देवदार ट्रेजरी) 97 लाख रुपए का घोटाला, आरसी-68ए /1996 (चाईबासा ट्रेजरी) 32 करोड़ रुपए का घोटाला और आरसी-63ए/1996 (भागलपुर ट्रेजरी) के घोटाला मामलों के फैसले आने अभी बाकी हैं. चारा घोटाले में दोषी ठहराए जाने की वजह से लालू यादव साल 2024 तक चुनाव नहीं लड़ सकते हैं. लालू के एक करीबी नेता बताते हैं कि चारा घोटाले में फंसने से ले कर साल 2005 में सत्ता गंवाने के बाद तक लालू ने काफी उतारचढ़ाव के दिन देखे. जेल से बचने और अपनी सरकार बचाने के चक्कर में वे कई बाबाओं की चिरौरी में लगे रहे.
इमेज तोड़ने की कोशिश
बाबाओं ने उन्हें यकीन दिलाया था कि लालू यादव का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा और साल 2010 में उन्हें दोबारा सत्ता हासिल हो जाएगी. इस बहाने बाबाओें ने लालू को खूब ठगा था. जब साल 2010 में उन्हें सत्ता नहीं मिली तो उस के बाद से ही लालू का बाबाओं पर से भरोसा उठने लगा था. पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने नीतीश से तालमेल कर डायरैक्ट तो नहीं, पर इनडायरैक्ट तो सत्ता पर कब्जा जमा लिया है. लालू की इस कामयाबी में बाबाओं की ताबीज नहीं, बल्कि उन की सियासी सूझबूझ ही काम आई. 1974 के जेपी आंदोलन की उपज लालू यादव समाजवादी धारा और सामाजिक न्याय के अगुआ नेता रहे हैं. तमाम खूबियों के साथ लालू यादव की बड़ी कमजोरी उन की पोंगापंथी सोच रही है. हर मसले को वे ज्यादातर पोंगापंथ के चश्मे से ही देखते रहे हैं. अपने विरोधियों पर हमला करने के दौरान वे पोंगापंथ से सनी बयानबाजी ही करते रहे हैं.
पिछले 14 अप्रैल को भीमराव अंबेडकर की 125वीं जयंती के मौके पर आयोजित समारोह में लालू यादव पोंगापंथ और बाबाओं के मकड़जाल को तोड़ने की कोशिश में नजर आए. रविशंकर, रामदेव, आसाराम समेत सभी बाबाओं को ठग और धर्म के दुकानदार करार दे कर लालू ने अपनी ही इमेज को तोड़ने की पुरजोर कोशिश की है. जेपी आंदोलन में उन के साथ रहे प्रदीप यादव कहते हैं कि लालू की सोच, समझ और सियासत में बदलाव का असर दलित, पिछड़ी और अल्पसंख्यक राजनीति पर पड़ेगा. दलितों और अल्संख्यकों को पोंगापंथ के दलदल से बाहर निकाले बगैर उन की तरक्की मुमकिन नहीं है. जब उन का नेता पोंगापथ के जाल से बाहर निकल चुका है तो जाहिर है कि अब लालू अपने वोटरों को भी इस से बाहर निकालने की कवायद में लगेंगे.
समाजसेवी किरण कुमारी कहती हैं कि लालू यादव का अंधविश्वास के मकड़जाल से बाहर निकलना पिछड़े और दलितों के हित में है. अब तक उन का वोटर देखता था कि दूसरों को पोंगापंथ से बाहर निकलने की दुहाई देने वाला खुद ही पोंगापंथ में सिर तक डूबा हुआ है. लालू का वोटर उन की कथनी और करनी के फर्क को देखता रहा है. अब जब लालू पोंगापंथ के कीचड़ से खुद बाहर निकल चुके हैं तो साफ है कि वे चाहेंगे कि उन का वोटर भी इस से बाहर निकल कर तरक्की की नई इबारत लिखे.
नीतीश को पीएम बनाना चाहते हैं लालू
‘‘नीतीश कुमार अगर भारत के प्रधानमंत्री बनते हैं तो यह बिहार के लिए गर्व की बात होगी.’’ लालू ने कहा है कि अगर साल 2019 के लोकसभा चुनाव में नीतीश को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया तो वे उन का साथ देंगे. इस के पहले नीतीश के गैरसंघवाद के नारे को भी लालू यादव समर्थन दे चुके हैं. नीतीश को प्रधानमंत्री का दावेदार बता कर लालू ने नीतीश से मनमुटाव की सारी अटकलों को खारिज कर दिया है. लालू कहते हैं कि नीतीश के कामकाज की तारीफ से विपक्ष के पेट में दर्द होने लगा है और नीतीश के जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद तो भाजपा का कलेजा फटने लगा है. भाजपा को डर सताने लगा है कि कहीं नीतीश प्रधानमंत्री बन कर उस की सारी साजिशों को नाकाम न कर दें. गौरतलब है कि नीतीश के गैरसंघवाद के नारे का समर्थन कांग्रेस भी कर चुकी है. वहीं दूसरी ओर, अजित सिंह के राष्ट्रीय लोकदल और बाबूलाल मरांडी के झारखंड विकास मोरचा ने जदयू में विलय का ऐलान भी कर दिया है. इस के अलावा जदयू का दावा है कि उत्तर प्रदेश के कई छोटे दल नीतीश का साथ देने को तैयार हैं.