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दालप्याज से ऊपर उठ

हेजीव, भरी जवानी में भी पपीहे की तरह दालदाल क्यों पुकार रहा है? ले, रेल नीर पी, कुछ अपने रोने को विराम दे. जमाखोरी कर गरीबों के पेट पर लात मारने वालों को मन से सलाम दे. एक गुप्त रहस्य सुन, दाल मिथ्या है, दाल भ्रम है. दाल घमंडी है, दाल बेशर्म है. ऐसी दाल न खाना सत्कर्म है. ऐसी दाल खाना नीच कर्म है. जो दाल खाते हैं वे नरक को जाते हैं. जो बिन दाल के रोटी खाते हैं वे अमरत्व पाते हैं. दाल खाने से बौडी में प्रोटीन बढ़ता है. दाल खाने से जोड़ों में दर्द होता है. जोड़ों में दर्द होने से जीव दिनरात रोता है. तब वह घर में घर वालों की गालियां सुनता है. न जाग पाता है न हौस्पिटल में चैन से सोता है. इसलिए दालदाल मत रट. रामराम रट. दाल से ज्यादा बलशाली राम हैं. दाल से बड़ा राम का नाम है. भवसागर पार हो जाएगा. वहां जा कर तू हरदम दाल ही दाल खाएगा. तब तू दाल के टोटे से शरीर में हुई हर कमी पर विजय पाएगा. झूमेगा, गाएगा.

रोटी के साथ दाल खाना पाप है. पाप से बचने के लिए घीया खा, पालक खा, करेले खा, केले खा, सरसों का साग खा, मेरे बनाए शुगरफ्री बिस्कुट खा. मेरे नूडल्स खा. अमरत्व पा. दाल को परे छोड़. योग कर. आगे बढ़. योग आटादाल से मुक्ति दिलाता है. योग, बिन दालप्याज जीना सिखाता है. अभाव पर भाव को विजय पाने दे. दाल, प्याज के प्रति अपना भाव बदल. सरकार के प्रति अपना भाव बदल. लोकतंत्र के प्रति अपना भाव बदल. जि गी के प्रति अपना भाव बदल. जीने का सब से बेहतर तरीका अभाव नहीं, भाव है. सोच ले, दाल का अस्तित्व ही नहीं. फिर जो है ही नहीं, उस का अभाव कैसा? राम ने जैसे रावण पर विजय पाई, तू वैसे ही जिंदगी की हर अति आवश्यक जरूरत पर विजय पा. मंगल पर कदम रखने के बाद भी कोई रोता है पगले?

पता नहीं, तू दाल के लिए इतना बावला क्यों हुआ जा रहा है? सब्र कर. धैर्य रख. सरकार के कहने पर विदेशी दाल का गौना हो गया है. वह तेरे घर दुलहन बन आने को पालकी में सवार है. बस, कहारों का इंतजार है. उस के स्वागत के लिए घर में दरी बिछा. रुदालियों को बुला. हे दाल के इंद्रजाल के मारे, इस बाजार में किसी की सदा एक सी कहां रही है? जो ऊपर चढ़ा है, वह एक दिन नीचे जरूर गिरा है. चाहे अपने कारनामों से या यारदोस्तों की मेहरबानी से. ऐसे में दाल के चढ़े रेट एक दिन जरूर नीचे आएंगे. तब हम सब मिल कर जश्न मनाएंगे. जीभर दाल खाएंगे. दाल में डट कर प्याज का तड़का लगाएंगे. दाल बंदरों को खिलाएंगे. दाल भैंसों को खिलाएंगे. इसे सबक सिखाएंगे. सब्र का फल मीठा होता है. बुरे वक्त में सरकार का साथ दे. जो बुरे वक्त में सरकार का साथ नहीं देता वह अदना होता है. अरे पगले, दाल में ऐसा क्या रखा है जो तू ने दाल न मिलने पर आसमान सिर पर उठा लिया. दाल के लिए रोना छोड़. माल के लिए रो. क्या रखा है दाल खाने में, क्या रखा है प्याज खाने में. आधी जिंदगी कट गई उल्लू बनने में, शेष जिंदगी काट उल्लू बनाने में. उल्लू बन, उल्लू बना, खुद भी हंस, औरों को भी हंसा.

दाल के सिवा और सबकुछ तो है तेरे पास. जवान बीवी है. उस से ज्यादा जवान प्रेमिका है. बिना लोन की कार है. अपने पद के अनुरूप लूटने को लोन पर चल रही सरकार है. सुन, इस संसार में सुखी कोई नहीं. सभी रो रहे हैं. क्या गृहस्थी, क्या संन्यासी, क्या धर्म, क्या जाति. कोई नाम को रो रहा है तो कोई दाम को. कोई सलाम को रो रहा है तो कोई इनाम को. कोई पुरस्कार पाने की जुगाड़ में है तो कोई पुरस्कार लौटाने की चिंघाड़ में. कोई कुरसी को रो रहा है तो कोई भात को. कोई घूंसे को रो रहा है तो कोई लात को. रोना ही हम सब की नियति है रे जीव, इसलिए चल, अपनी आंखें पोंछ और दाल के लिए रोना छोड़. रोने के लिए और भी कई आइटम हैं इस देश में दाल के सिवा. रोना है तो उन के लिए रो जो जबान को दिनरात धार दिए जा रहे हैं. खंजर से भी पैनी अपनी जबान किए जा रहे हैं. जिन के लिए जबान फूलों का गुलदस्ता नहीं, अचूक हथियार है. रोना है तो उन के लिए रो जो दिमाग से बीमार हैं. रोना है तो उन के लिए रो जो अपनेआप दो कदम तक नहीं चल सकते और दावा यह कि उन के कंधों पर ही इस देश का भार है. इसलिए, ये ले मेरा रूमाल, पों अपनी आंखों के आंसू. दाल से ऊपर उठ. प्याज से ऊपर उठ. फील कर दाल के बिना मिलने वाला परम सुख, फील कर प्याज के बिना मिलने वाला परम सुख. तू भी खुश, सरकार भी खुश. मेरी खुशी तो दोनों की खुशी में ही छिपी है.

नेपाल की चीन से नजदीकी भारत की अनदेखी

नेपाल के नए संविधान की वजह से भारत और नेपाल के सालों पुराने रिश्ते पर दोधारी तलवार लटक गई है. नए संविधान में मधेशी ही नहीं बल्कि भारत की भी अनदेखी की गई है. ऐसा कर के नेपाल ने खुद ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारी है और भारत की सुरक्षा के लिए भी संकट खड़ा कर दिया है. नेपाली माओवादी पार्टियों की चीन से नजदीकियां बढ़ाने और भारत को तवज्जुह नहीं देने की सोचीसमझी साजिश है. मधेशी आंदोलन की वजह से भारत से जरूरी चीजों का आना बंद होने के बाद नेपाल ने चीन के सामने हाथ फैलाने में जरा भी देरी नहीं लगाई. नेपाल ने चीन से मांग की है कि वह नेपाल से लगी सीमा को खोल दे, ताकि वह जरूरत की चीजों को खरीद सके. नेपाल की इस मांग पर चीन की बाछें खिल गईं लेकिन भारत के लिए राहत की बात यह है कि पिछले दिनों नेपाल में आए भयंकर भूकंप से नेपाल और चीन के बीच बनी 27 किलोमीटर लंबी सड़क पूरी तरह बरबाद हो गई, जिस से चीन को अपना ‘खेल’ खेलने का मौका नहीं मिल सका.

नया संविधान लागू होने के बाद 11 अक्तूबर को सीपीएन-यूएमएल के अध्यक्ष खड्ग प्रसाद शर्मा ओली नेपाल के नए प्रधानमंत्री चुन लिए गए. नेपाल के 38वें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ लेने के बाद ओली ने कहा कि वे नेपाल को हर तरह के संकट से उबारने की कोशिश करेंगे और नए संविधान को बेहतर तरीके से लागू करेंगे. ओली ने नेपाली कांगे्रस के अध्यक्ष सुशील कोइराला को हराया. इस के पहले संविधान सभा के निर्वाचन द्वारा प्रधानमंत्री की कुरसी पर बिठाए गए कोइराला ने 10 अक्तूबर को इस्तीफा दे कर दोबारा अपनी दावेदारी पेश की थी. स्पीकर सुभाष नेम्बांग ने प्रधानमंत्री चुनने के लिए चुनाव कराया, जिस में ओली को 388 वोट मिले और कोइराला को 249 वोट ही हासिल हुए. संविधान सभा के 597 सदस्यों में से 587 ने मतदान में हिस्सा लिया. बहुमत के लिए 299 वोटों की जरूरत थी. नेपाल में ओली की बातों को ‘ओली की गोली’ कहा जाता है. उन की छवि आक्रमक नेता की रही है और भारत विरोध की आग को वे अकसर हवा देते रहे हैं. फरवरी 1970 में कम्युनिस्ट पार्टी औफ नेपाल में शामिल होने वाले ओली माओवादी आंदोलन के दौरान 1973 से 1987 तक जेल में रहे. 4 फरवरी, 2014 को वे सीपीएन-यूएमएल के मुखिया बने. साल 1990 में लोकतंत्र बहाली के बाद 1994-95 में नेपाल के गृहमंत्री बने थे.

नेपाल मामलों के जानकार हेमंत राव कहते हैं कि ओली के प्रधानमंत्री बनने से भारत के लिए नया खतरा पैदा हो गया है क्योंकि ओली माओवादी हैं और प्रचंड की तरह वे भी भारत की अनदेखी कर चीन से रिश्ते बढ़ाएंगे. चीन नेपाल के कंधे पर बंदूक रख कर भारत को परेशान करने के मंसूबे आसानी से बना सकेगा. चीन के साथ नेपाल की 1,414.88 किलोमीटर सीमा लगती है. भारत के साथ 1850 किलोमीटर सीमा लगी हुई है. यह उत्तराखंड से ले कर बिहार, बंगाल और सिक्किम तक फैली हुई है. इतनी लंबी खुली सीमा होने की वजह से नेपाल की सुरक्षा से ही भारत की सुरक्षा जुड़ी हुई है.वहीं, नेपाल की भौगोलिक बनावट ऐसी है कि वह भारत की मदद के बगैर एक कदम भी नहीं चल सकता है. भारत और नेपाल के बीच 1750 किलोमीटर खुली सीमा है, जो बिहार और उत्तर प्रदेश से लगी हुई है. दोनों देशों के लोग आसानी से इ धरउधर आ-जा सकते हैं. नेपाल जाने के लिए भारत से ही हो कर जाया जा सकता है, इसलिए नेपाल की मजबूरी है कि वह भारत से बेहतर रिश्ता बना कर रखे.

मधेशी आंदोलन

भारत-नेपाल शांति और मैत्री समझौता साल 1950 में किया गया था. उस के बाद से नेपाल की माली हालत के बनाने और बढ़ाने में भारत का बहुत बड़ा हाथ है. साल 1988 में जब नेपाल ने चीन से बड़े पैमाने पर हथियारों की खरीद की तो भारत ने नाराजगी जताई और उस के बाद से दोनों के बीच दूरियां बढ़ने लगीं. साल 1991 में भारत और नेपाल के बीच व्यापार व माली सहयोग को ले कर नया समझौता हुआ. इस के बाद साल 1995 में नेपाल के तब के प्रधानमंत्री मनमोहन अधिकारी ने दिल्ली यात्रा के दौरान 1950 के समझौते पर नए सिरे से विचार करने की मांग उठाई थी.

साल 2008 में जब नेपाल में माओवादियों की सरकार बनी और प्रचंड प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने 1950 के समझौतों में बदलाव की आवाज बुलंद की. प्रचंड की सोच रही है कि इस 65 साल पुराने समझौते से भारत को ज्यादा और नेपाल को काफी कम फायदा हो रहा है. सरकार गंवाने के बाद भी प्रचंड ने लगातार भारत विरोध की सियासत जारी रखी है क्योंकि इस से जहां पहाड़ी नेपालियों का उन्हें पुरजोर समर्थन मिलता है वहीं चीन को भी खुश रखा जा सकता है. चीन को खुश करने के साथ नए प्रधानमंत्री के सामने भारत से तालमेल बना कर रखने और मधेशियों के आंदोलन को शांत करने की चुनौती है. मधेशी आंदोलन की आग में झुलसे नेपाल पर मरहम लगाने और मधेशियों के गुस्से पर पानी डालने के लिए ओली ने मधेशी नेता विजय कुमार गच्छधर को उपप्रधानमंत्री की कुरसी पर बिठा दिया है. दूसरी ओर देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की आग को हवा देने वाले कमल थापा को भी उपप्रधानमंत्री बना कर सत्ता संतुलन साधने की पूरी कोशिश की है. थापा के विश्व हिंदू परिषद के कद्दावर नेता अशोक सिंघल और भाजपा के सांसद योगी आदित्यनाथ से करीबी रिश्ते रहे हैं.

भारत के प्रधानमंत्री ने नेपाल के प्रधानमंत्री को भारत आने का न्यौता दिया है, लेकिन उन से पहले कमल थापा ने भारत आ कर मोदी से मुलाकात की. मोदी और भारत के कई नेताओं से कमल के बेहतर रिश्ते होने की वजह से भारत के साथसाथ नेपाल की नई सरकार को भी भरोसा है कि कमल दोनों देशों के बीच पैदा हुई खटास को आसानी से दूर कर लेंगे. गच्छधर को परिवहन और थापा को विदेश मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया है.मधेशी पीपुल्स राइट्स फोरम के नेता गच्छधर ने प्रधानमंत्री के चुनाव में ओली का समर्थन किया था, जिस वजह से उन्हें उपप्रधानमंत्री पद का पुरस्कार मिला है. उन की इस दगाबाजी से मधेशियों के बाकी संगठनों के नेता खफा हैं. गच्छधर  की मधेशियों के बीच कोई खास पैठ नहीं होने की वजह से मधेशियों की नाराजगी कम होने की उम्मीद काफी कम है, जबकि गच्छधर दावा करते हैं कि वे मधेशियों की समस्याओं को सुलझाने और उन की मांगों को पूरा करने के मकसद से सरकार में शामिल हुए हैं. वहीं, कई मधेशी नेता ओली पर यह आरोप लगा रहे हैं कि उन्होंने मधेशियों के बीच फूट डालने व मधेशी आंदोलन को कमजोर करने के लिए गच्छधर को उपप्रधानमंत्री पद दिया और गच्छधर ओली के जाल में फंस गए हैं

मधेशी आंदोलन की वजह से नेपाल में जरूरी सामानों की भारी किल्लत से अलग ही परेशानी खड़ी हो गई है. नेपाल में रोजाना 18,430 बैरल पेट्रोल, डीजल, कैरोसिन तेल और जेट ईंधन की खपत होती है और नेपाल इस के लिए पूरी तरह से भारत पर निर्भर है. पटना में रैस्टोरेंट चलाने वाला नेपाली दिनेश गुरंग कहता है कि संविधान में नेपालियों को अधिकार नहीं दे कर संविधान बनाने वाली समिति ने ही ‘आ बैल मुझे मार’  का काम किया है. पहाड़ी नेपालियों और तराई में रहने वाले मधेशियों के टकराव की वजह से नेपाल की आम जनता को जरूरी सामानों की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है. भारत-नेपाल सीमा के कई रास्तों पर हजारों ट्रक पिछले कई दिनों से खड़े रहे और नेपाल में जाने का इंतजार करते रहे. इस मुसीबत से निकलने के लिए भारत से रास्ता निकालने के लिए बात करने के बजाय नेपाल ने चीन के सामने मदद के लिए हाथ फैला दिया. चीन तो इसी ताक में बैठा था. नेपाल ने तातोपानी और रासुवगधी सीमा चौकियों को खोल कर व्यापार शुरू करने का अनुरोध किया है. चीन ने नेपाल की इस मांग को गंभीरता से ले कर रास्ते को खोलने का भरोसा दिया है.

आयात-निर्यात का पेंच

चीन तुरंत नेपाल को मदद पहुंचाने में नाकाम साबित हो रहा है क्योंकि पिछले अप्रैल महीने में नेपाल में आए भयंकर भूकंप के बाद नेपाल और चीन से सटे कई रास्ते बंद हो गए थे. नेपाल के सिंधुपाल्चोक जिले और चीन के तातोपानी जिले को जोड़ने वाली करीब 27 किलोमीटर लंबी सड़क भूकंप की वजह से पूरी तरह से बरबाद हो गई है. इस से पहले नेपाल ने 4 अक्तूबर को भारत को धमकी और चेतावनी देने के अंदाज में कहा था कि अगर भारत पैट्रोलियम व बाकी जरूरी सामानों को नेपाल भेजने पर रोक लगाता है तो मजबूर हो कर चीन के साथ जाना पड़ेगा. और कुछ ही दिनों में नेपाल ने अपनी मंशा चीन के साथ जा कर जाहिर कर दी. नेपाल के राजदूत दीप कुमार उपाध्याय ने कहा कि नेपाल सरकार की किसी भी भूल से पैदा हुए भ्रम और नकारात्मक बातों को भुला कर भारत को सही दिशा में आगे बढ़ना चाहिए. इस से दोनों ही देशों को फायदा होगा. वहीं नेपाल में भारत के राजदूत रंजीत राय लगातार नेपाल सरकार से संपर्क साध कर जरूरी सामानों की आपूर्ति बहाल करने की दिशा में बात करते रहे.

भारत लगातार यह सफाई देता रहा कि उस ने नेपाल को जरूरी सामान सप्लाई करने पर रोक नहीं लगाई है, बल्कि नेपाल में हो रहे विरोध प्रदर्शन व मधेशियों के आंदोलन की वजह से सामान नेपाल नहीं जा पा रहा है. भारतीय कंपनियों और टांसपोर्टर अपनी सुरक्षा की  गारंटी मांग रहे हैं. नेपाल सरकार ने जब ट्रकों की सुरक्षा का भरोसा दिलाया तब 4 अक्तूबर की रात को कुछ भारतीय ट्रक नेपाल की सीमा में घुसने को राजी हुए.

गौरतलब है कि नेपाल का करीब 90 फीसदी कारोबार और आयात भारत से ही होता रहा है. इस के बाद भी चीन से व्यापार के लिए सीमा खोलने की गुहार लगा कर नेपाल ने भारत और मधेशियों को ठेंगा दिखा दिया है. नेपाल ने मधेशियों को यह साफ कर दिया है कि वह भारत से सामानों के आने का और ज्यादा इंतजार नहीं कर सकता है. और भारत के बगैर भी उस का काम चल सकता है. भारत की अनदेखी कर नेपाल यह भूल गया है कि नेपाल में जरूरी सामान पहुंचाने का इकलौता रास्ता सड़क है जो भारत की ओर से ही गुजरती है. संविधान के विरोध में मधेशियों के आंदोलन की वजह से सारा रास्ता ठप हो गया. फलस्वरूप नेपाल में रोजमर्रा की जरूरी चीजों की किल्लत बढ़ने लगी थी.

बिहार-नेपाल सीमा के ‘नो मैंस लैंड’ पर 24 सितंबर से मधेशी धरने पर बैठे हुए हैं और जहांतहां विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं. रक्सौल, गौर, बैरगैनिया, औरईया, सिकटा, मंगलवा, मटियरवा, भिस्वा, भैरहवा जिलों में मधेशियों के आंदोलन से जनजीवन पूरी तरह से ठप हो गया था. मधेशी नेपाल के नए संविधान में मधेशियों को वाजिब अधिकार की मांग कर रहे हैं. 26 साल पहले साल 1989 में व्यापार एवं परागमन संधि के नवीकरण के बाद भी भारत और नेपाल की सीमा पर कई दिनों तक तनाव के हालात बने रहे थे. नेपाल की आबादी 2 करोड़ 60 लाख है और उस के 69 फीसदी मधेशी (भारतीय मूल के नेपाली), जनजाति और अल्पसंख्यक हैं. संविधान बनाने में देश की 69 फीसदी आबादी की अनदेखी करना किसी भी तरीके से इंसाफ नहीं कहा जा सकता है. ऐसी हालत में विरोध और उपद्रव होना हैरानी की बात नहीं है. मधेशी चूंकि भारतीय मूल के ही हैं, इसलिए भारत उन की परेशानियों को ले कर ज्यादा समय तक खामोश भी नहीं रह सकता है. नए संविधान को ले कर भारत सरकार अपनी निराशा और चिंता जाहिर कर चुकी है. अपनी पिछली नेपाल यात्रा के दौरान नरेंद्र मोदी ने नेपाल के प्रधानमंत्री सुशील कोइराला से बातचीत के दौरान संविधान निर्माण में सभी की बराबर भागीदारी देने का अनुरोध किया था, उस के बाद भी नेपाल ने उन के अनुरोध को नकार दिया है. संविधान लागू होने के 2 दिन पहले भारत के विदेश सचिव एस जयशंकर नेपाल पहुंचे थे लेकिन उन्हें भी खास भाव नहीं दिया गया था.

रिटायर्ड आईएएस अफसर कमला प्रसाद कहते हैं कि नेपाल भारत को अपना बड़ा भाई मानते हुए एक ओर जहां उस से हर तरह की मदद पाने की जुगाड़ में लगा रहता है वहीं दूसरी ओर वह भारत पर चीन की धौंस जताने में जरा भी संकोच नहीं करता है. नेपाल एक दशक से भारत और चीन दोनों को खुश करने का खेल बड़ी ही चालाकी से खेल रहा है. जबकि भारत और चीन के बीच बफर स्टेट बने नेपाल की हालत पिछले 2 दशकों से सांपछछूंदर वाली रही है. नेपाल न भारत की अनदेखी कर सकता है न ही चीन की. उस की सब से बड़ी दिक्कत यह है कि उसे हमेशा यह खयाल रखना पड़ता है कि वह जानेअनजाने कोई ऐसा कदम न उठा ले जिस से दोनों में से किसी को तकलीफ हो. नेपाल के लिए सब से बड़ी परेशानी यह रही है कि भारत और चीन दोनों उसे अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं. अब देखना है कि ओली की गोली की तरह निकलने वाली बोली का भारत और चीन पर क्या नया असर होता है.

साहित्यकारों की जागरूकता

आमतौर पर साहित्य अकादमी जैसी सरकारी संस्थाओं से जुड़े साहित्यकारों के प्रति धारणा रहती है कि वे सरकारी नीतियों के समर्थक होते हैं पर जिस तरह एकएक कर के लगभग 50 साहित्यकारों ने साहित्य के नाम पर मिले पुरस्कारों को लौटाया है उस से यह संतोष होता है कि देश में विचारों की स्वतंत्रता की रक्षा करने वाले मौजूद हैं भारतीय जनता पार्टी की चुनावी विजय के साथ यह अंदेशा तो था ही कि धार्मिक प्रचारप्रसार के साथ आलोचना करने वालों का मुंह बंद किया जाएगा क्योंकि यह पार्टी केवल सरकार चलाने के लिए नहीं गठित हुई थी. भारतीय जनता पार्टी शुरू से ही शास्त्रीय हिंदू धर्म की पुनर्स्थापना करने का दावा करती रही है. उस का आदर्श वह रामराज्य है जिस में राजा चुना नहीं जाता था, पैदा होता था व जिस में राजा के तीरों की कम जबकि ब्राह्मणों, ऋषियों, मुनियों की ज्यादा चलती थी. रामायण व महाभारत यज्ञों के बखानों से ज्यादा भरे हैं बजाय सुशासन के, जिस का नारा दे कर 2014 का चुनाव जीता गया था.

स्पष्ट बात है कि 2014 की विजय को भारतीय जनता पार्टी अपनी धार्मिक विजय मानती है. धर्म को थोपने के लिए विधर्मी और अधर्मी दोनों को शत्रु मान सकती है. वह धर्म के खिलाफ ही नहीं बल्कि सामाजिक कुरीतियों, पाखंडों, अंधविश्वासों, चंदा जमा करने वालों के खिलाफ बोलने व मंदिरों के अतिक्रमणों तक की बात करने वालों को धर्मविरोधी मान सकती है. वह सोचती है कि उस के पास पोप के वे सब अधिकार हैं जिन को पोपों ने यूरोप में प्रोटैस्टैंट क्रांति से पहले लागू किया था और जनता को तो छोडि़ए राजाओं तक को अपनी उंगलियों पर नचाया था. यहां पोपशाही नहीं है पर उस जैसा माहौल बनाने की भरसक कोशिश की जा रही है. पाखंड विरोधियों, गोमांस, मंदिर निर्माण को ले कर मुंह बंद करने के जो प्रयास किए जा रहे हैं वे पोपशाही जैसी व्यवस्था की स्थापना के उद्देश्य से हैं.

साहित्यकारों का विरोध स्वाभाविक व आवश्यक है. वे जानते हैं और समझते हैं कि चंद लोगों के चलते आने वाला परिवर्तन देश को तालिबानी बना देगा. गांवगांव में धर्म के नाम पर ही नहीं, जाति के नाम पर भी लाइनें खिंच जाएंगी. इसलामी व ईसाई कट्टरता ने न केवल विधर्मियों के नरसंहार को समर्थन दिया, स्वधर्मियों को भी मारने में हिचकिचाहट नहीं दिखाई. समाज ने बड़ी कठिनाइयों से औरतों के बराबरी के अधिकारों, दलितों से भेदभाव में कमी, गरीबीअमीरी की खाई को कम किए जाने जैसे मुकाम हासिल किए हैं तो इसलिए कि साहित्य ने राजा व धर्म के गुणगान के स्थान पर फैली गंद को समाप्त करना पहला उद्देश्य माना. आज की सरकारें और उन से ज्यादा गलीगली फैले उन के अंधभक्त इस सुधार को समाप्त कर के न केवल विधर्मियों का बल्कि महिलाओं, स्वतंत्र विचारकों और किसी भी तरह की पोल खोलने वालों का भी मुंह तोड़ कर अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहते हैं. साहित्यकार कोई फौज तो तैयार नहीं कर सकते, वे अगर विरोध में पुरस्कार व सम्मान लौटा ही दें तो यह ही बेहद प्रशंसनीय है.

समाचार

राजस्थान में किसानों से सीखेंगे कृषि विभाग के लोग

जयपुर : किसानों को खेतीकिसानी की जानकारी देने वाले राजस्थान के कृषि अधिकारी व कर्मचारी अब प्रगतिशील व खेतों में काम कर के सफलता की बुलंदियां छूने वाले किसानों से एक कार्यशाला में खेतीबाड़ी की तालीम व जानकारी लेंगे.

‘राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति एवं सेंटर फार इंटर नेशनल ट्रेड इन एग्रीकल्चर एग्रो बेस्ड इंडस्ट्रीज’ (सिटा) द्वारा 16-17 अक्तूबर को आयोजित की गई 2 दिवसीय ‘कृषि पुनर्जागरण एवं कृषक संवाद संगोष्ठी’ के समापन के मौके पर राजस्थान के राज्य कृषि प्रबंध संस्थान के निदेशक डा. शीतल शर्मा ने यह जानकारी दी. उन्होंने कहा कि इस के लिए जल्दी ही कृषि विभाग द्वारा राज्य कृषि प्रबंध संस्थान में एक कार्यशाला आयोजित कराई जाएगी और इस में चुने हुए प्रगतिशील किसानों को बुलाया जाएगा. उन्होंने कहा कि नई व आधुनिक खेती में सब को एकदूसरे से सीखने की जरूरत है और ज्ञान से विज्ञान को जोड़ने की भी जरूरत है. अतिरिक्त उद्यान निदेशक शरद गोधा ने कहा कि राजस्थान के हर जिले में आज 25 से 50 किसान ऐसे हैं, जिन्होंने आधुनिक कृषि अपना कर अपना जीवन स्तर बदला है. उन्होंने कहा कि किसानों को बड़े आकार के फल और सब्जियां पैदा करने का रिकार्ड बनाने की बजाय बाजार व उपभोक्ताओं की जरूरत को ध्यान में रख कर सब्जियों का उत्पादन करना चाहिए.

गोष्ठी के उद्घाटन में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उपमहानिदेशक प्रो. नरेंद्र सिंह राठौर ने कहा कि हमारे देश में खेती के लिहाज से आज भी दूसरे देशों की तुलना में कम जमीन है. उन्होंने कहा कि देश में दलहन के लिए उपलब्ध रकबे में से आधे हिस्से पर ही इस की खेती किए जाने से दालों के उत्पादन में कमी आई है. यदि पूरे रकबे में इस का उत्पादन होता तो दालों का संकट पैदा नहीं होता. उन्होंने किसानों से पैदावार की ट्रेडिंग का काम अपने हाथों में लेने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि ऐसा होने पर किसान खुदबखुद खुशहाल हो जाएंगे. प्रो. राठौर ने कहा कि केंद्र सरकार का खेती की ओर पूरा ध्यान है और 13वीं पंचवर्षीय योजना में कृषि विज्ञान केंद्रों की संख्या भी 642 से बढ़ कर 1200 होने जा रही है, जिस का फायदा भी किसानों को मिलेगा. राजस्थान के कृषि आयुक्त कुलदीप रांका ने किसानों से आधुनिक कृषि तकनीक और नवीन व मिश्रित फसलों को शामिल कर के सरकारी योजनाओं का अधिक से अधिक लाभ उठाने को कहा. उन्होंने कम पानी में होने वाली जैविक खेती पर बल देते हुए किसानों से क्लस्टर बना कर जैविक खेती का विस्तार करते हुए आगे बढ़ने की बात कही. राजस्थान पशुचिकित्सा एवं पशुविज्ञान विश्वविद्यालय बीकानेर के कुलपति प्रो. एके गहलोत ने कहा कि कृषि व पशुपालन में आज भी नवाचार अपनाने की गति धीमी है, इस में तेजी लाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि इस के लिए किसानों तक जानकारी पहुंचानी होगी और किसानों को उसे अपनाना होगा. उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर परिवर्तित जलवायु से कृषि क्षेत्र में भी चुनौतियां बढ़ी हैं, इन का तोड़ भी निकालना होगा.

इस अवसर पर सिटा के निदेशक भागवत धड़ाजी पवार ने कहा कि वर्तमान खेती इतनी खराब नहीं है, लेकिन हमें खेती में क्या करना है, क्या कर सकते हैं, नई दिशा क्या हो सकती है, निर्यातक कैसे बनें? वगैरह पहलुओं को मद्देनजर रखते हुए सही तकनीक से खेती करनी होगी, तभी हम आत्मनिर्भर बन सकेंगे. उन्होंने पौलीहाउस, ग्रीनहाउस और प्लास्टिक कल्चर की उपयोगिता से खेती में होने वाले लाभ पर भी प्रकाश डाला. गोष्ठी में दूरदर्शन केंद्र जयपुर के निदेशक रमेश शर्मा ने कहा कि आज खेती की जमीन किसी और की है और उस का लाभ कोई और ले रहा है. उन्होंने कहा कि जब कोई किसान खेती से दुखी हो कर आत्महत्या करता है तो लगता है कि एक कौम ने आत्महत्या कर ली है. यह दुखद है. राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति के निदेशक राजवीर सिंह ने उन्नत खेती पर जोर देते हुए इस में आने वाली समस्याओं पर विस्तार से अपने विचार जाहिर किए जबकि समिति के अध्यक्ष डा. राजेंद्र भाणावत ने किसानों की समस्याओं को सुना और समाधान की कोशिश की.

कृषक संवाद में जम्मू कश्मीर से आए मकबूल मोहम्मद रैना, हरियाणा के ईश्वर सिंह कुंडू, प्रिंस कंबोज, राजस्थान की राज दईयां, सुंडाराम वर्मा, भगवती देवी, जगदीश पारीक, मोटाराम शर्मा, गुरमेल सिंह धौंसी व जसवीर कौर सहित तमाम प्रगतिशील किसानों ने अपनी सफलताओं की जानकारी दी और वहां तक पहुंचने में आई कठिनाइयों के बारे में बताया.इस मौके पर देशभर से आए करीब 30 किसानों को सम्मानपत्र दे कर सम्मानित किया गया. गोष्ठी के समाप्न पर डा. महेंद्र मधुप ने सभी का शुक्रिया अदा किया.                       

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सभी किसानों को मिलेगा मुआवजा

लखनऊ : कुदरती कहर से फसल तबाह होने पर अब उत्तर प्रदेश सूबे के सभी किसान मुआवजे के हकदार होंगे, भले ही बैंक ने संबंधित किसान के ‘किसान क्रेडिट कार्ड’ पर बीमा की किस्त काटी हो या न काटी हो. ‘राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन’ के राष्ट्रीय संयोजक वीएम सिंह की याचिका पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह फैसला दिया?है. वीएम सिंह के मुताबिक पिछले साल रबी के दौरान भयंकर बारिश व ओलों से सूबे के 1 करोड़ 60 लाख किसानों की फसलें तबाह हुई थीं. इसी बीच 1153 किसानों की मौतें हुईं. इन में से कई किसानों ने खुदकुशी की तो तमाम किसानों की मौत फसल की तबाही के सदमे में हो गई. सिंह ने बताया कि ओलों व बरसात से सूबे के 73 जिलों में करीब 84 लाख हेक्टेयर यानी 2 लाख 13 हजार एकड़ रकबे में फसलों की बरबादी हुई. सूबे की सरकार ने तबाही में कुल मिला कर 7543 करोड़ 14 लाख रुपए के नुकसान का अंदाजा लगाया. इस पर सिंह ने तर्क दिया कि 1 एकड़ रकबे में अगर महज 10 हजार रुपए का भी नुकसान माना जाए, तो भी कम से कम 20 हजार करोड़ रुपए का नुकसान बैठेगा.   

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इजाफा

अनाज भंडारण कूवत बढ़ेगी

पटना : बिहार में अनाज भंडारण की कूवत बढ़ाने की कवायद शुरू की गई है. साल 2017 तक 20 लाख 75 हजार मीट्रिक टन अनाज भंडारण की कूवत बढ़ा लेने का लक्ष्य रखा गया?है. फिलहाल राज्य में 37 करोड़ रुपए खर्च कर के 143 गोदामों को बनाने का काम पूरा कर लिया गया है. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून व अंत्योदय योजना सहित अन्य कई योजनाओं के लाभ पाने वालों को समय पर अनाज मुहैया कराने के लिए अनाज भंडारण की कूवत बढ़ाने का काम चालू किया गया है. गोदामों को बनाने का काम पंचायत लेबल पर किया जाना है.

अनाज भंडारण की कूवत बढ़ाने के लिए पैक्सों और व्यापार मंडलों को 10 लाख, 75 हजार मीट्रिक टन कूवत के गोदाम बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है. वहीं दूसरी ओर राज्य भंडार निगम को 10 लाख मीट्रिक टन कूवत के गोदाम बनाने का काम सौंपा गया है. राज्य भंडार निगम से मिली जानकारी के मुताबिक अब तक 6.50 लाख मीट्रिक टन कूवत के गोदाम बनाने का काम अंतिम स्टेज में?है और चालू माली साल में 2 लाख मीट्रिक टन की कूवत वाले गोदाम बना लिए जाएंगे.पैक्स और व्यापार मंडल इन गोदामों में धान व गेहूं सहित सभी अनाज रख सकेंगे. इन गोदामों में किसान खाद भी रख सकेंगे.     

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हकीकत

गन्ने की मिठास चीनी से भी कम

चंडीगढ़ : लगता है कि इस बार गन्ने की मिठास चीनी से भी कम है. चीनी तो मीठी है, पर हरियाणा के गन्ने की मिठास कम होती जा रही है. पिछले साल की तुलना में इस बार गन्ने से कम मात्रा में चीनी निकली. यूरिया का ज्यादा इस्तेमाल इस की अहम वजह मानी जा रही है. प्राइवेट शुगर मिलें गन्ने से चीनी की कम रिकवरी को आधार बना कर इस बार समय से पहले उत्पादन करने को तैयार नहीं हैं. वहीं किसानों के भुगतान के लिए राज्य सरकार निजी शुगर मिलों को लोन दिलाने में मदद करती है, लेकिन सरकार से ज्यादा मदद की आस में मिलमालिकों के नखरे बढ़ रहे हैं. बाजार में इस बार चीनी के दाम काफी नीचे गिरे हैं. कच्चे तेल के दाम में गिरावट और ब्राजील समेत दूसरे चीनी उत्पादक देशों द्वारा एथेनोल बनाने के बजाय ज्यादा चीनी का उत्पादन इस का सब से बड़ा कारण रहा है. हरियाणा में चीनी मिलों की लागत ज्यादा आ रही है. लागत अधिक होने और चीनी की रिकवरी कम पड़ जाने से मिलें घाटे में जा रही हैं. इसे आधार बना कर वे किसानों का गन्ना खरीदने को तैयार नहीं हैं. कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ ने विधानसभा के मानसून सत्र में खुद इस बात को माना. उन्होंने कहा कि जमीन की स्थिति, मौसम और दूसरी भौगोलिक हालात के कारण गन्ने से चीनी की रिकवरी इस बार काफी कम हुई है. उत्तर प्रदेश में 9 फीसदी और महाराष्ट्र में 11 फीसदी चीनी की रिकवरी हुई है, वहीं हरियाणा में साढे़ 8 से 9 फीसदी तक रिकवरी हुई है.                          

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हालात

अरहर की दाल हुई बेकाबू किल्लत बरकरार

नई दिल्ली : त्योहार का सीजन आते ही दालों ने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए हैं. कभी साधारण तबके का आहार समझी जाने वाली अरहर की दाल अब आम लोगों के बस से बाहर की बात हो गई है. कहा जाता है कि पैसे वाले लोग ही महंगी दालें खा सकते हैं, पर ऐसा नहीं है. सच यही है कि महंगाई की मार से कोई भी अछूता नहीं बचा है. हैदराबाद में लोग दाल छोड़ कर अंडे खा रहे हैं. वहीं बिहार में गरीब लोग चावल और चटनी का जायका ले रहे हैं. वे कहते हैं कि पता नहीं क्यों दाल की आसमान छूती कीमतें चुनाव का मुद्दा नहीं बन पाईं. अरहर की दाल अब 200 रुपए प्रति किलोग्राम है. दिल्ली में इस से सस्ता तो चिकन है. चिकन 150-160 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से मिल रहा है. सड़क के किनारे खाने की दुकान लगाने वाली एक औरत ने बताया कि जब दाल 140 रुपए प्रति किलोग्राम थी, तो वह 1 प्लेट दालचावल का 40 रुपए लेती थी. अब दाल की कीमत बढ़ गई है, तो वह 1 प्लेट दालचावल का दाम 50 रुपए लेती है. दिल्ली में अरहर या तूर की दाल की कीमत खुदरा बाजार में 200 रुपए प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई है. वहीं दिल्ली के बाहर दूसरी दालें भी सस्ती नहीं हैं.

डब्बाबंद तूर की दाल 180 से 200 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बिक रही है. धुली मसूर की कीमत 130 और 180 रुपए प्रति किलोग्राम के बीच है. इसी तरह मूंग व उड़द की दालें भी 140 ये 150 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बिक रही हैं. मार्च में बेमौसम बरसात के कारण इस साल दाल की कीमतों में बेइंतहा इजाफा हुआ है. कुछ लोगों का कहना है कि कीमतें अभी और भी बढ़ेंगी.          

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नसीहत

पढ़ाई के साथ सब्जियां उगाएं

पटना : शहर में एक ऐसा कालेज है, जहां के स्टूडेंट पढ़ाई के साथसाथ कालेज कैंपस की खाली पड़ी जमीन पर सब्जियां और फल उगाते हैं. खेती से कालेज को आमदनी होती?है और साथ ही कैंपस में हरियाली भी रहती है. पटना वूमेंस कालेज की छात्राएं कैंपस में खेती कर के राज्य और देश के बाकी कालेजों के लिए मिसाल पेश कर रही?हैं. कैंपस में कालेज के स्टाफ और छात्राएं मिल कर खेती का काम करते हैं. फल और सब्जियों को मार्केट रेट से काफी कम कीमत पर बेचा जाता है. कालेज के हास्टल में रहने वाली छात्राओं को इस से काफी फायदा मिल जाता?है. उन्हें हास्टल में भी कम कीमत पर फलसब्जियां मिल जाती हैं.                   

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फरमान

धान का पैसा दे सरकार

पटना : बिहार के किसानों को तय समय पर धान का पैसा नहीं मिलने से नाराज और हताश किसान आखिरकार अदालत का दरवाजा खटखटा रहे?हैं. इस मामले पर दर्जन भर से ज्यादा रिट याचिकाओं की सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि राज्य और केंद्र सरकार हर हाल में किसानों को पैसा दें. इस के साथ ही धानखरीद की तय की गई तारीख तक खरीदे गए धान का उठाव भी किया जाए. अदालत ने कहा है कि जिन किसानों ने निर्धारित समय से पहले पैक्स समेत खरीद केंद्रों पर अपना धान दे कर उस की रसीद ले ली है, उन किसानों को धान का पैसा फौरन देना होगा. गौरतलब है कि पैक्स किसानों का धान लेने के बाद भी भुगतान करने में आनाकानी कर रहे?हैं. इस से किसानों की मालीहालत खराब हो रही?है और?बैंकों और महाजनों से लिया गया कर्ज चुकाने में दिक्कत हो रही?है. इस साल 91 लाख मीट्रिक टन धान उत्पादन का लक्ष्य रखा गया था और 30 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद का भी लक्ष्य तय किया गया था. धान की खरीद में देरी होने और कई तरह के पेंच होने की वजह से कई किसान बैंकों और महाजनों का कर्ज चुकाने और अपने परिवार का पेट पालने के लिए बिचौलियों को अपना धान बेचने के लिए मजबूर हुए थे. उम्मीद है कि अदालत के फरमान के बाद किसानों को अपना पैसा मिल जाएगा.     

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तरक्की

मुरगीपालन में नया कदम

नई दिल्ली : भारत के देहाती इलाकों में मुरगीपालन पारंपरिक काम रहा है. यह काम आमतौर पर काफी लोग करते हैं, लेकिन इस काम से वे ज्यादा मुनाफा नहीं ले पाते. क्योंकि उन लोगों को नईनई तकनीको के बारे में जानकारी नहीं होती?है. मुरगीपालन को बढ़ावा देने की दिशा में नई तकनीक इजाद की है ‘तेलंगाना स्टेट यूनिवर्सिटी फोर वैटेरिनटी, एनिमल एवं फिशनरी साइंस हैदराबाद’ ने. इस तकनीक से 1 साल के अंदर 1 मुरगी 150 अंडे देती है. इसतकनीक के तहत मुरगी का वजन 18 हफ्तों में डेढ़ किलोग्राम हो जाता?है और 5 से 6 महीने में मुरगी दोबारा अंडे देने के लिए तैयार हो जाती है. इस मुरगी के अंडे ब्राउन कलर के होते?हैं, जो दूसरे अंडों के मुकाबले ज्यादा पौष्टिक होते हैं. ठ्ठ

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खोज

खून बढ़ाएगी आलू की नई किस्म

पटना : केंद्रीय आलू अनुसंधान केंद्र ने आलू की एक नई किस्म को विकसित किया है. इस का ऊपरी हिस्सा नीला और भीतरी हिस्सा लाल रंग का?है. इसे खाने से शरीर में खून की कमी दूर होगी. खास बात यह है कि इस नई किस्म के आलू के पौधों को कीटों से?भी कोई खतरा नहीं होगा और साधारण आलू के मुकाबले उत्पादन भी ज्यादा होगा. इस किस्म का शुरुआती प्रयोग कामयाब रहा?है और जल्द ही नई किस्म को नाम भी दिया जाएगा. अगले 2 सालों में किसानों को इस नई किस्म का बीज मिलने लगेगा. आलू का उत्पादन करने वाले किसानों को कीमत भी ज्यादा मिलेगी. बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, पंजाब और छत्तीसगढ़ वगैरह राज्यों में आलू की नई किस्म के उत्पादन के लिए सही वातावरण है. इस आलू में विटामिन ए और सी भरपूर मात्रा में हैं और इसे खाने से मोटापा भी नहीं बढ़ेगा. इस में फैट की मात्रा कफी कम?है. इस में फाइबर की मात्रा ज्यादा है, जिस से यह पचने में आसान है. आलू की बाकी किस्मों के मुकाबले यह ज्यादा समय तक सुरक्षित रह सकता?है. इस आलू को गाजर, मूली, खीरा, टमाटर व चुकंदर वगैरह की तरह सलाद के रूप में भी खाया जा सकता?है. केंद्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र की पटना शाखा के डायरेक्टर वीरपाल सिंह ने बताया कि इस आलू की फसल कम से कम 70 और अधिक से अधिक 90 दिनों के भीतर तैयार हो जाएगी. इस आलू की प्रति हेक्टेयर 400-500 क्विंटल तक पैदावार मिल सकेगी और इस में झुलसा रोग होने का खतरा भी काफी कम होगा.

गौरतलब है कि बिहार में सालाना 70 लाख टन आलू की पैदावार होती है. मुख्य रूप से पटना, नालंदा, वैशाली, सिवान, छपरा, समस्तीपुर, बेगूसराय, गोपालगंज, पूर्णियां, कटिहार, भागलपुर, मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण और पश्चिमी चंपारण में आलू का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता?है.                       ठ

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तकनीक

मिट्टी की जांच अब होगी जीपीएस से

लखनऊ : भारत के तमाम किसान खेतीबारी में अभी भी पुराने तरीके ही आजमाने की कोशिश करते हैं. ज्यादातर किसानों का मानना है कि पुराने तरीके तो सीखे हुए हैं, लेकिन नए तो सीखने पडे़ंगे. सीखने के लिए वक्त चाहिए, जो उन के पास नहीं है. जितने दिन सीखेंगे, उतने दिनों में तो पूरी खेती हो जाएगी. पुराने समय में भले ही मिट्टी की जांच हाथ में ले कर की जाती थी, पर अब ऐसा नहीं है. सूत्रों के मुताबिक, अब जीपीएस सिस्टम से मिट्टी की जांच की जाएगी. मिट्टी नमूनों की जांच के लिए जमीन भी जीपीएस सिस्टम से तय की जाएगी. जांच के आधार पर जो आंकड़े आएंगे, उन की भी डिजिटल मैपिंग की जाएगी. केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अफसरों ने यह हिदायत उत्तर भारत के राज्यों से आए कृषि विभाग के अधिकारियों को एक बैठक में दी. इस बैठक में सामने आया कि ज्यादा से ज्यादाकैमिकल खाद के इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरता कम हो रही है. उत्तर भारत में उत्तर प्रदेश सब से बड़ा राज्य है. यहां की मिट्टी में भी उर्वरता में काफी कमी आई है, जो कि चिंता की बात?है. बैठक में सभी राज्यों को निर्देश दिया गया कि 5 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय मृदा यानी मिट्टी दिवस बड़े पैमाने पर मनाया जाए, ताकि किसानों में मिट्टी को ले कर जागरूकता आए.

बैठक में कृषि विभाग के अफसरों से कहा गया कि मिट्टी जांच का जो विश्लेषण हो, उस की पूरी जानकारी किसानों को जरूर दी जाए. मिटटी के नमूनों की जांच के आधार पर ही जरूरत के अनुसार खाद का इस्तेमाल करने के लिए किसानों को बताया जाए. कैमिकल खाद के कम से कम इस्तेमाल और जैविक खाद के ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल पर जोर दिया जाए.     

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मुहिम

बाढ़ का गाद बेच किसान बनेंगे मालामाल

पटना : बिहार की कोसी नदी की बालू से टाइल्स, क्राकरी के सामान और ईंट बनाने की योजना बनाई गई?है. साल 2008 में कोसी नदी में आई भयंकर बाढ़ के बाद बाढ़ प्रभावित इलाकों में काफी बालू और गाद जमा हो गया?है. कोसी ने जिन इलाकों में बाढ़ का कहर मचाया था, उन इलाकों में करीब 20 फुट तक बालू और गाद जमा हो गया है, जिसे हटाना सरकार के लिए मुसीबत बनी हुई है. कृषि उत्पादन आयुक्त विजय प्रकाश ने बताया कि वेस्ट को वेल्थ बनाने के लिए कोसी की जमी बालू और गाद की जांच का काम शुरू किया गया?है. इस के रासायनिक और भूगर्भीय गुणों के साथ ही इस के औद्योगिक कामों में इस्तेमाल की संभावनाओं की पड़ताल भी की जा रही?है. खेतों में जमा बालू को बेच कर किसानों को काफी मुनाफा भी हो सकेगा. आईसीएआर (पटना), सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट (नई दिल्ली) और सेंट्रल ग्लास एंड सेरेमिक रिसर्च इंस्टीट्यूट (कोलकाता) बालू की स्टडी का काम कर रही?हैं. अगले 2 महीने में रिपोर्ट आने के बाद बालू और गाद से टाइल्स वगैरह बनाने के लिए इंडस्ट्री मालिकों से बाकायदा बातचीत की जाएगी.

सेंट्रल ग्लास एंड सेरेमिक रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक पीके मुखोपाध्याय ने बताया कि शुरुआती रिपोर्ट के मुताबिक कोसी की बालू और गाद से टाइल्स और क्राकरी वगैरह के बनाने का काम किया जा सकता?है. इस में लागत भी कम आने की उम्मीद है. अंतिम रिपोर्ट आने के बाद अगर बालू व गाद का इस्तेमाल हो सकेगा, तो जिन किसानों के खेतों में बालू और गाद जमा?हैं, उन किसानों को भी खासा मुनाफा हो सकेगा.               

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तालीम

पढे़लिखे ही पाएंगे बिक्री का लाइसेंस

नई दिल्ली : उर्वरक बिक्री करने का लाइसेंस कृषि की पढ़ाई करने वालों को ही मिल सकेगा. केंद्र सरकार ने इस संदर्भ में एक गजट नोटिफिकेशन जारी किया?है. हालांकि जिन लोगों के पास पहले से लाइसेंस है, उन्हें अभी कोई समस्या नहीं होगी. कृषि जानकारों का कहना?है कि सरकार के इस फैसले से कृषि के क्षेत्र में दूरगामी नतीजे होंगे. अब तक कृषि उर्वरक, कीटनाशक बेचने का लाइसेंस कोई भी व्यक्ति आसानी से ले सकता था, जिस के कारण घटिया उर्वरक, बीज, कीटनाशक वगैरह उन के द्वारा किसानों तक पहुंचते थे. किसानों को किस खेत में कितना खाद बीज इस्तेमाल करना है इस की जानकारी भी ये लोग नहीं दे सकते?थे. इसलिए सरकार का यह फैसला किसानों के हित में होगा. साथ ही कृषि पढ़ने वालों को रोजगार का साधन भी मिलेगा. सरकार के इस फैसले के तहत जिन्होंने कृषि विज्ञान में स्नातक किया हो या किसी मान्यता प्राप्त संस्थान से कृषि क्षेत्र का कोई कोर्स किया हो. उन्हें ही इस का फायदा मिल सकेगा.      

             

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सुविधा

एससीएसटी को मुफ्त चूजे

पटना : बिहार के एससी और एसटी वर्ग के लोगों की माली हालत में सुधार के साथ उन के स्वास्थ्य को दुरुस्त रखने के लिए एक ही तीर से 2 शिकार करने की योजना बनाई गई?है. इस के तहत एससी और एसटी वर्ग के गरीब लोगों को मुफ्त में 25-25 चूजे दिए जाएंगे. सरकार को यकीन है कि इस से एससीएसटी के गरीब लोग मुरगीपालन कर के अपनी आमदनी बढ़ाएंगे और साथ में मुरगी के अंडों को खा कर अपने स्वास्थ्य को भी दुरुस्त रख सकेंगे. मुरगीपालन कर के हर परिवार को हर महीने 3 हजार रुपए तक की आमदनी हो सकेगी. 63 हजार एससीएसटी परिवारों के बीच 15 लाख, 75 हजार चूजे बांटने का लक्ष्य रखा गया?है. 1 चूजे को 1 महीने तक मदर यूनिट में रख कर वैक्सीन कराने के लिए 35 रुपए दिए जाएंगे. इस योजना पर राज्य सरकार 6 करोड़ रुपए खर्च करेगी. लो इनपुट वेराइटी की मुरगी बाकी वेराइटी के मुकाबले ज्यादा अंडे देती है. इस वेराइटी की मुरगी हर साल 150 से 175 अंडे देती?है. सब से खास बात यह?है कि इस वेराइटी की मुरगी के रखरखाव पर ज्यादा खर्च भी नहीं आता है. इस किस्म की मुरगी को घर के आसपास ही खाने के लिए अनाज और कीड़ेमकोड़े मिल जाते?हैं, इसलिए उसे खिलाने के लिए अलग से कोई इंतजाम नहीं करना पड़ता है. अगर अलग से कुछ खाने को दिया जाए तो इस किस्म की मुरगी और मुरगा का वजन काफी बढ़ जाता है. एक मुरगा 2-3 किलोग्राम तक का हो सकता?है और ऐसे मुरगे की कीमत 300 से 400 रुपए तक आसानी से मिल जाती?है. वहीं 1 अंडे के 7 से 10 रुपए तक मिल जाते?हैं.                    

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वापसी

मैगी अब नए रंगरूप में

मुंबई : बस 2 मिनट में बनने वाली बेहद लोकप्रिय मैगी बच्चों को आज भी याद है. मैगी का नाम सुनते ही उन के मुंह में पानी आ जाता है. बच्चों की चहेती बन चुकी नैस्ले की मैगी फिर से बाजार में जल्दी ही दिखने लगेगी मैगी के नमूने की जांच को मुंबई हाईकोर्ट ने सही ठहराया है. कंपनी का कहना है कि वह दोबारा बाजार में मैगी उतारेगी. बता दें कि नैस्ले कंपनी की मैगी में लैड की मात्रा ज्यादा पाई गई थी. इस के बाद कंपनी ने बाजार से मैगी के पैकेट वापस मंगा लिए थे और उन को जला दिया गया था. इस से इस कंपनी को करोड़ों रुपए की चपत लगी थी. इधर बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि की आटे से बनी मैगी बाजार में जल्दी ही देखने को मिलेगी. अब देखना यह है कि बच्चों को कौन सी मैगी भाती है. अरबों रुपए का कारोबार करने वाले बाबा रामदेव बडे़बडे़ रिटेल स्टोरों के साथ तालमेल बनाने पर जुटे हैं. बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि ने अपनी चीजों को बेचने के लिए फ्यूचर ग्रुप से एक करार किया है.           

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मुहिम

बिहार में दूध उत्पादन में लंबी छलांग

पटना : बिहार सरकार का दावा है कि पिछले 7 सालों में राज्य में दूध उत्पादन में 4 गुना इजाफा हुआ है. दुग्ध संघों और सहकारी समितियों की कोशिशों की वजह से यह मुमकिन हो सका है. पटना, मगध और तिरहुत समेत सभी 38 जिलों के दुग्ध संघों ने बेहतर नतीजे दिए हैं. साल 2008 में जहां 4 लाख, 17 हजार किलोग्राम दूध उत्पादन होता था, वह आज बढ़ कर 16 लाख, 90 हजार किलोग्राम हो चुका है. इस के अलावा हजारों किलोग्राम दूध दुग्ध उत्पादक अपने घरों के लिए भी रख रह हैं. बिहार स्टेट मिल्क कोआपरेटिव फेडरेशन लिमिटेड सहित बाकी सहकारी समितियों के मुताबिक नई तकनीक और रिसर्च का फायदा मिल्क इंडस्ट्री को मिला?है. राष्ट्रीय डेरी विकास के द्वारा चलाए जा रहे ट्रेनिंग प्रोग्राम से दूध उत्पादकों को काफी मदद मिली है. बिहार स्टेट मिल्क कोआपरेटिव फेडरेशन लिमिटेड के एमडी आदेश तितरमारे ने बताया कि डेरी विकास की योजनाओं से किसानों और दूध उत्पादकों को फायदा मिल रहा है. पशुपालन से ले कर पशुओं को पौष्टिक चारे और संतुलित आहार देने तक की ट्रेनिंग पशुपालकों को दी गई है और किसानों ने उस पर अमल भी किया है.

राज्य के बड़े दुग्ध उत्पादन संघ वैशाल पाटलीपुत्र दुग्ध उत्पादन संघ ने साल 2011-12 में 210.15 लाख किलोग्राम, साल 2012-13 में 224.85 लाख किलोग्राम, साल 2013-14 में 282.09 लाख किलोग्राम और साल 2014-15 में 318.15 लाख किलोग्राम दूध का उत्पादन किया.        

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बेबसी

सूखे से लाखों किसान परेशान

जयपुर : राजस्थान भी सूखे की मार झेल रहा है. राजस्थान के मुख्यमंत्री रह चुके अशोक गहलोत ने कहा कि प्रदेश और देश में आज भयंकर अकाल व सूखे जैसे हालात हैं. लाखों किसानों के सामने जीवन का संकट खड़ा हो गया है, जिसे सरकार को गंभीरता से लेना चाहिए. उन्होंने कहा कि मनरेगा के कारण सरकारों पर से अकालसूखे से निबटने का दबाव कम तो हुआ है, फिर भी इसे गंभीरता से लिया जाना जरूरी?है. अशोक गहलोत ने माना कि जब से संप्रग सरकार ने कानून बना कर मनरेगा लागू किया है, तब से सरकारों पर से दबाव कम हुआ है, लेकिन फिर भी समय पर राहत कार्य नहीं किए जा रहे हैं. पीने के पानी का भी सही इंतजाम नहीं है. उन्होंने जोर दे कर कहा कि राज्य सरकार ने ओले गिरने और बेमौसम बारिश के समय जिस लापरवाही का प्रदर्शन किया, उस से सबक लेते हुए उसे समय रहते तुरंत सूखे से जुडे़ राहत कार्य शुरूकरने चाहिए.              

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हालात

एक करोड़ टन दाल के आयात की जरूरत

नई दिल्ली : काफी अरसे से मचा दाल का हाहाकार किसी से छिपा नहीं है. इस मामले ने आम आदमी का चावलरोटी तो फीका किया ही है, साथ ही सरकार की हालत भी खस्ता कर दी है. अब आलम यह है कि घरघर की दाल की दिक्कत दूर करने के लिए सरकार को 1 करोड़ टन दाल का आयात करना पड़ेगा. कमजोर मानसून के कारण इस साल दाल का उत्पादन महज 170 लाख टन रहने का अंदाजा है. बीते साल में दाल का उत्पादन 172 लाख टन था, तब इतना हाहाकार मचा तो उत्पादन और कम होने पर क्या नजारा होगा, इस का अंदाजा लगाया जा सकता है. औद्योगिक संगठन एसोचैम के एक अध्ययन में इस बात का खुलासा किया गया है. इसी अध्ययन के मुताबिक इस साल दाल की मांग में और इजाफा होने से 1 करोड़ टन दाल आयात करनी पड़ेगी. एसोचैम का अंदाजा है कि वैश्विक स्तर पर दाल की आसानी से आपूर्ति न होने के कारण इस साल दाल की मांग व आपूर्ति के अंतर को पाटना मुश्किल होगा. दाल के दामों में लगातार इजाफे से इस का असर महंगाई पर भी नजर आएगा. खरीफ की फसल दाल के उत्पादन में पूरे भारत में महाराष्ट्र सूबा पहले नंबर पर है. महाराष्ट्र के बाद कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश सूबों में सब से ज्यादा दाल पैदा की जाती है. खरीफ में दाल के उत्पादन में इन पांचों सूबों की हिस्सेदारी 70 फीसदी है, मगर इन सभी सूबों में इस बार मौसम ने कहर बरपाया है, लिहाजा पैदावार गड़बड़ाना लाजिम है.

बहरहाल, हालात आसानी से काबू में आने वाले नहीं हैं. बड़े पैमाने पर दाल के आयात से आयात बिल पर बोझ बढ़ेगा, इस के अलावा आयातित दाल को देश के सभी हिस्सों में पहुंचाना भी सरल नहीं है.         

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मुहिम

किसान आंदोलन : रेल हुई बेपटरी

चंडीगढ़ : बरबाद हुई फसल का सही मुआवजा न मिलने के विरोध में उतरे किसानों ने रेल रोको आंदोलन चलाया. इस से पंजाब में रेल यातायात ठप रहा.  उधर, किसानों के आंदोलन व धरने को कमजोर करने के लिए मुख्य रास्तों और गंवई इलाके के कच्चे रास्तों पर नाकाबंदी कर दी गई. बठिंडा पुलिस ने अब तक 3 सौ से ज्यादा किसानों को पकड़ा है. वहीं रामपुरा में पुलिस और रेलवे ट्रैक जाम कर रहे किसानों के बीच टकराव होतेहोते टला. इसी तरह अमृतसर के गांव मुछल में बासमती धान की वाजिब कीमत की मांग को ले कर किसान अपनी बात पर डटे रहे. अमृतसर स्टेशन पर न तो कोई रेलगाड़ी पहुंची और न ही वहां से कोई ट्रेन चली. सभी रेलगाडि़यों को ब्यास स्टेशन सेपहले ही रोक दिया गया. कृषि मंत्री तोता सिंह से इस्तीफे की मांग की गई. किसानों की मांग है कि कपास फसल की बरबादी का मुआवजा 40 हजार रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से दिया जाए, किसानों का कहना है कि आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवार को माली मदद दी जाए और ऐसे परिवारों के 1-1 सदस्य को नौकरी भी दी जाए.

मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने रेल रोको आंदोलन कर रहे किसानों से संघर्ष का रास्ता छोड़ने की अपील की. इस वजह से मुसाफिरों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. मुख्यमंत्री ने कहा कि वे किसानों की जायज मांगों को मानने के लिए हमेशा तैयार रहे हैं. किसानों के आंदोलन का असर भारतपाकिस्तान के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस पर भी पड़ा. साथ ही, किसानआंदोलन की गाज सरकारी अफसरों पर भी गिरी. प्रदेश सरकार ने पुलिस महकमे में भारी फेरबदल करते हुए 3 एसएसपी समेत 21 आईपीएस और 6 पीपीएस अधिकारियों का तबादला कर दिया. सरकार का मानना है कि किसानों में उपजे गुस्से के बारे में सरकारी मुलाजिम पूरीपूरी और सही सही जानकारी नहीं जुटा सके, इसी वजह से किसान रेल रोको आंदोलन कर रहे हैं. देखते हैं कि सरकार झुकती है या किसान यों ही इस आंदोलन को खत्म करते हैं.    

               

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सख्ती

दाल की जमाखोरी पर लगाम

लखनऊ : यह सारी दुनिया का दस्तूर है और हमारे देश का तो है ही कि जैसे ही किसी चीज की किल्लत हुई तो उसे आननफानन में मार्केट से गायब कर दिया जाता?है. आजकल दाल बाजार से गायब है, पर न जाने कितने कारोबारियों ने उसेअपने गुप्त गोदामों में छिपा कर रखा होगा. इस जमाखोरी का अंदाजा तो लगाया जा सकता?है, पर पता लगाना आसान नहीं है. इसी सिलसिले में मुख्य सचिव आलोक रंजन ने कहा कि दाल की जमाखोरी व कालाबाजारी रोकने के लिए सरकार जल्द ही कानून लागू करेगी. इस मामले में जल्दी से जल्दी कैबिनेट से प्रस्ताव मंजूर कराया जाएगा. मुख्य सचिव ने बताया कि सूबे में दाल पर स्टाक लिमिट कानून तो लागू है, मगर यह ज्यादा खुल कर नहीं बनाया गया. दाल आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे में भी नहीं आती, लिहाजा इस पर इस अधिनियम की धारा 3/7 के तहत भी कार्यवाही नहीं की जा सकती. अब कैबिनेट में लाए जाने वाले प्रस्ताव में इस कमी को भी दूर कर के जमाखोरी व कालाबाजारी रोकने का सख्त कानून बना कर लागू किया जाएगा.

सवाल सिर्फ दाल की जमाखोरी का नहीं?है. भारत में कभी चीनी गायब हो जाती?है, तो कभी आटे के लाले पड़ जाते हैं. कभी प्याज लापता हो जाता?है, तो कभी आलू तलाशने से भी नहीं मिलता. यानी हर किस्म की जरूरी चीजों की जमाखोरी बंद करना लाजिम है.   

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पेशकश

सोनालिका ने पेश की एडवांस्ड ट्रैक्टर सीरीज

कुल्लू : देश में तीसरी सब से बड़ी ट्रैक्टर बनाने वाली कंपनी सोनालिका इंटरनेशनल ट्रैक्टर्स लिमिटेड ने कूल्लू, हिमाचल प्रदेश के दशहरा मेले में नए एडवांस्ड गार्डन ट्रैक 26 और आरएक्स 30 बागबान सुपर ट्रैक्टर पेश किए. इन ट्रैक्टरों को फलों के बागानों (सेब, अंगूर, पपीता और अनार) व कतारबद्ध फसलें जैसे कपास, गन्ना और मूंगफली की खेती की विशेष जरूरतों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है. गार्डन ट्रैक 26 और आरएक्स 30 बागबान सुपर ट्रैक्टर तकनीकी रूप से बेहद उन्नत हैं और इन में 26 एचपी और 30 एचपी का बेहद दमदार इंजन लगा है. इस के साथ ही इन में पावर स्टीयरिंग हाइड्रोलिक सिस्टम विद आटोमैटिक डैप्थ एंड ड्राफ्ट कंट्रोल (एडीडीसी) है, जो काम को बहुत आसान बना देता है. ईंधन की खपत के लिहाज से बेहद किफायती ये ट्रैक्टर आसानी से लंबे समय तक लगातार काम कर सकते हैं. ये ट्रैक्टर आकार में छोटे डिजाइन किए गए हैं. इन का टर्निंग रेडियस यानी मोड़ने में लगने वाली जगह भी बहुत कम है और ये 4 व्हील ड्राइव में आते हैं, जो ट्रैक्टर को बेहतर पकड़ व ताकत प्रदान करते हैं. इन का हर एक कलपुर्जा हैवी ड्यूटी बनाया गया है, ताकि ट्रैक्टर को लंबी उम्र मिले.

सोनालिका इंटरनेशनल ट्रैक्टर्स लिमिटेड के सहायक उपाध्यक्ष (सेल्स) विवेक गोयल ने बताया, ‘हमारे नए एडवांस्ड गार्डन ट्रैक 26 और आरएक्स 30 बागबान सुपर ट्रैक्टर बागबानी करने वाले किसानों के लिए बहुत फायदेमंद साबित होंगे. इन दोनों ही ट्रैक्टरों को आज की मांग को ध्यान में रखते हुए विकसित किया गया है और ये अंतर खेती, स्प्रेइंग, रोटावेटर, ट्राली और दूसरे कामों के लिए बिलकुल सही हैं. हमारी एडवांस्ड सीरीज के ये ट्रैक्टर हमारे ग्राहकों की जरूरतों को पूरा करने की हमारी प्रतिबद्धता को पुख्ता करते हैं. हम अपने ट्रैक्टरों में लगातार सुधार करते रहते हैं और क्वालिटी पर करीब से नजर रखते हैं.’                                                           ठ्ठ

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धांधली

ब्लैक में बिक रहा सेना का दूध 

मनाली : बेईमान किस्म के लोगों के लिए दुनिया में कोई दायरा नहीं बना. जहां भी जिस हद तक मुमकिन होता है, बेईमान लोग चोरीचकारी कर लेते हैं. ऐसा ही नजारा हिमाचल प्रदेश के मनाली में भी सामने आया, सेना के लिए भेजा जाने वाला दूध वहां के बाजार में ब्लैक में बेचा जा रहा है. मनाली की एसडीएम ज्योति राणा ने छापेमारी कर के एक दुकान से करीब 50 लीटर दूध की की थैलियां बरामद कीं. उन पैकेटों पर ‘डिफेंस सर्विस ओनली’ छपा था. पैकेटों पर दाम भी दर्ज नहीं थे. दुकानदार के मुताबिक सेना के लोग उसे 40 रुपए प्रति लीटर की दर से दूध बेच जाते हैं, जिसे वह 60 रुपए प्रति लीटर की दर से बेचता है. मनाल के पचलान में सेना के ट्रांजिट कैंप, सीमा सड़क संगठन और लेहलद्दाख से सटे इलाकों में तैनात जवानों के लिए खानेपीने की चीजें इसी रास्ते से जाती हैं, ऐसे में ये चोरी हैरानी वाली बात नहीं है. 

हैरत

मटन से महंगी दाल

झूलघाट (पिथौरागढ़) : जब भारत में अरहर की दाल के दाम 200 रुपए प्रति किलोग्राम का दायरा लांघ गए थे, तो तमाम लोग कहने लगे थे कि इस से बेहतर तो 150 रुपए प्रति किलोग्राम के आसपास मिलने वाल चिकन ही है. और अब नेपाल में अरहर की दाल 400 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बिक रही है यानी मटन से महंगी बिक रही है. पश्चिमी नेपाल के बैतड़ी जिला मुख्यालय से सटे देहमाणू बाजार में इन दिनों खामोशी छाई हुई है. भारत की ओर से की गई नाकेबंदी के बाद महंगाई चरम पर पहुंच गई है. पैट्रोल व डीजल की दिक्कत की वजह से धनगढ़ी मंडी से सामान नहीं आ पा रहा है. जरूरी चीजों की सप्लाई न होने से अरहर की दाल 400 रुपए (नेपाली मुद्रा) प्रति किलोग्राम की दर से बिक रही है. बहुत महंगी होने की वजह से व्यापारियों ने अरहर की दाल मंगाना कम कर दिया है. नेपाल में स्थानीय लोबिया, गहत, राजमा, सोयाबीन व भट्ट की दाल के दाम भी बेहद बढ़ गए हैं. पिछले साल के मुकाबले स्थानीय दालों की कीमतें 30 फीसदी तक बढ़ गई हैं. नेपाल के डडेलधुरा, बैतड़ी व दार्चुला बाजारों में जरूरी चीजों की बेहद कमी हो गई है.    

राहत

सूखे की वजह से अभी वसूली नहीं

लखनऊ : उत्तर प्रदेश सरकार ने सूबे में सूखे का आलम देख कर मुख्य देयकों यानी लगान की वसूली 31 मार्च, 2016 तक रोकने का फैसला किया है. मुख्य सचिव आलोक रंजन ने किसानों के साथ किसी भी तरह की सख्त कार्यवाही न करने का आदेश दिया है. फिलहाल न तो कोई आरसी जारी की जाएगी न ही किसी मुद्दे पर किसानों को गिरफ्तार कर के जेल भेजा जाएगा. वसूली संबंधी मामलों में फिलहाल राहत देने के साथसाथ मुख्य सचिव ने 15 लाख किसानों को फसलबीमा की रकम का जल्दी से जल्दी भुगतान कराने को कहा?है. मुख्य सचिव आलोक रंजन ने इस बार के सूखे पर विभागीय अफसरों के साथ हालात पर गौर किया. इस के अलावा उन्होंने मंडलायुक्तों व कलेक्टरों से बात कर के सूखे के लिहाज से की जा रही कार्यवाही की भी जानकारी ली. जांचपड़ताल में सूबे के 31 जिले ऐसे पाए गए हैं, जहां 50 फीसदी से भी कम बरसात हुई?है. सरकार द्वारा किसानों का खयाल रखा जाना काबिलेतारीफ?है.                                                            

– मधुप सहाय, भानु प्रकाश, अक्षय कुलश्रेष्ठ, बीरेंद्र बरियार और मनोहर कुमार जोशी

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सवाल किसानों के

सवाल : मैं अनार का छोटा सा बाग लगाना चाहती हूं. कृपया इस बारे में जानकारी दें?

-शीला, फतेहपुर, उत्तर प्रदेश

जवाब : अनार के पौधे ज्यादा सर्दी नहीं झेल पाते. इस की बागबानी के लिए अच्छे जल निकास वाली मिट्टी बेहतर रहती?है. इस की खास किस्में हैं. गणेश, अलांदी, धोलका, कनधारी व मस्कट. अनार को बसंत के मौसम या बारिश के मौसम में लगाना अच्छा रहता है. पौधों को 3 से 5 मीटर के फासले पर लगाना सही रहता?है और विस्तार से जानकारी के लिए आप अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क कर सकती हैं.

सवाल : मैं बड़े पैमाने पर बैगन की खेती करना चाहता हूं. कृपया इस की अच्छी किस्मों की जानकारी दें. कीड़ों व बीमारियों से बचाव के बारे में भी बताएं?

-पप्पू श्रीवास्तव, जबलपुर, मध्य प्रदेश

जवाब : बैगन की लंबे फल वाली उन्नतशील किस्में हैं: पंजाब सदाबहार, पंजाब बरसाती, पूसा परपल लांग व पंत सम्राट. बैगन की गोल फल वाली उन्नतशील किस्में हैं: पंत ऋतुराज, अरुणा व राजनगर जाइंट. बैगन की संकर किस्में?हैं: पूसा संकर 5, 8 व नवकिरण. बैगन की बोआई का समय जूनजुलाई, दिसंबरजनवरी व मार्चअप्रैल?है. बैगन को तनाबेधक व फलबेधक कीटों से बहुत नुकसान पहुंचता है. तनाबेधक कीटों द्वारा प्रभावित तनों को?ऊपर से सूंड़ी सहित तोड़ कर नष्ट कर देना चाहिए. यह काम हफ्ते में 1 बार जरूर करें. खेत में फेरोमोन ट्रेप लगा कर नर कीटों को पकड़ कर अंडों की तादाद में कमी लाई जा सकती?है. इस के अलावा कार्बोसिल्फान 25 ईसी की 2 मिलीलीटर मात्रा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करें. हरा फुदका (जैसिड) की रोकथाम के लिए बैगन के पौध की जड़ को कानफिडोर नामक दवा की 1 मिलीलीटर मात्रा को 1 लीटर पानी में मिला कर बनाए गए घोल में 1 घंटे तक डुबोने के बाद क्यारी में लगाएं. बैगन की खेती के बारे में और ज्यादा जानकारी हासिल करने के लिए आप अपने इलाके के कृषि विज्ञान केंद्र जा कर बात कर सकते?हैं.

सवाल : मैं अपने किचन गार्डन में मशरूम उगाना चाहती हूं. क्या यह मुमकिन है? कृपया पूरी जानकारी दें?

-संतोष कुमारी, मुंबई, महाराष्ट्र

जवाब : संतोष कुमारीजी मशरूम की खेती खुले खेत में नहीं की जा सकती. इस के लिए भूसे का मिक्चर तैयार कर के उस पर बंद कमरे या ग्रीन हाउस में मशरूम उगाया जाता?है. इस के लिए आप अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र में जा कर प्रशिक्षण प्राप्त करें. मशरूम के बीज यानी स्पान भी आप को कृषि विज्ञान केंद्र के जरीए ही हासिल हो सकते?हैं. आप को मशरूम की खेती का शौक तो है, मगर इसे करना उतना आसान नहीं?है.       

एसडब्ल्यूआई विधि से गेहूं की उन्नत खेती

घटते कुदरती संसाधनों और बढ़ती कृषि लागतों के कारण नए ढंग से खेती करना समय की मांग है. खेती की दुनिया में रोजाना लाभकारी नवाचार हो रहे हैं. जरूरत है तो बस उन्हें अपनाने की. ऐसे ही गेहूं की खेती का एक नया तरीका है सिस्टम आफ व्हीट इंटेंसीफिकेशन (एसडब्ल्यूआई), जो कि श्री विधि से गेहूं के खेती के नाम से जाना जाता है. 1990 में इसे यूएसए में अपनाया गया था. आज देश के कुछ हिस्सों में इस विधि से खेती कर के भारी मुनाफा कमाया जा रहा है. उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की तरफ से फार्म सेक्टर प्रमोशन फंड के तहत इस तरह के नवाचार को अपनाने पर वित्तीय सहायता भी दी जा रही है. जरूरत है तो बस इसे अपनाने की.

क्या है एसडब्ल्यूआई विधि : सिस्टम आफ राइस इंटेंसीफिकेशन (श्री पद्धति) के आधार पर ही सिस्टम आफ इंटेंसीफिकेशन (एसडब्ल्यूआई) विधि से गेहूं की खेती की जाती है. इस में कार्बनिक खादों के ज्यादा इस्तेमाल पर जोर दिया जाता है. इस के अलावा लाइन से सही दूरी पर गेहूं की बोआई की जाती है, ताकि पौधों को बेहतर तरीके से प्रकाश व पोषक तत्त्व मिल सकें और हर पौधा स्वस्थ हो सके. इस के अलावा इस विधि में मैकेनिकल तरीकों से खरपतवार निकाले जाते हैं और बेहतर सिंचाई व्यवस्था पर जोर दिया जाता है. इस विधि से एक ओर जहां पैदावार बढ़ती  है, वहीं दूसरी ओर खेती की लागत भी घटती है.

बोआई का समय : गेहूं की समय से बोआई करना बहुत ही अहम है. जैसेजैसे गेहूं की बोआई में देरी होती है, पैदावार घटने लगती है. देर से पकने वाली प्रजातियों की बोआई भी समय से कर देनी चाहिए. गेहूं की बोआई का सही समय नवंबर से मध्य दिसंबर तक है.

प्रजाति : स्थानीय जलवायु और मौजूद बीजों के आधार पर रोगरोधी प्रजातियों को अपनाना चाहिए.

बीजशोधन व बीजउपचार : इस विधि यानी एसडब्ल्यूआई से गेहूं की खेती में बीजशोधन व बीजउपचार बहुत जरूरी हैं. बीजशोधन व बीजउपचार निम्न प्रकार से करते हैं:

*      सब से पहले मिट्टी के बरतन में 20 लीटर कुनकुना पानी लिया जाता है. इस पानी में 10 किलोग्राम बीज डालने चाहिए. बेकार व हलके बीज पानी में तैरने लगेंगे. तैरते हुए बीजों को हटा देना चाहिए. उस के बाद 4 लीटर देशी गाय का पेशाब, 3 किलोग्राम वर्मीकंपोस्ट व 2 किलोग्राम गुड़ को ले कर आपस में खूब अच्छी तरह से मिलाएं. तैयार मिश्रण 1 एकड़ खेत के हिसाब से है.

*      तैयार मिश्रण को 6-8 घंटे के लिए अलग रखें. इस के बाद जूट के बोरे में मिश्रण रख कर हलका पानी छिड़कें. फिर 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बावस्टीन फफूंदीनाशी या 2-3 ग्राम प्रति किलोग्राम ट्राइकोडर्मा जैविक फफूंदीनाशी, 7.5 ग्राम प्रति किलोग्राम पीएसबी कल्चर, 6 ग्राम प्रति किलोग्राम एजेटोबैक्टर की परत बीजों पर अच्छी तरह से चढ़ाएं.

*      इस के बाद रात भर (करीब 10-12 घंटे) इन शोधित बीजों को किसी नमीयुक्त जूट के बोरे में अंकुरण के लिए रखें. अंकुरण के बाद बीज बोआई के लिए तैयार हो जाते हैं.

बीज दर : बोआई में प्रति एकड़ 10 किलोग्राम बीजों का इस्तेमाल करें.

खेत की तैयारी : मिट्टी को भुरभुरा बनाने के लिए 3-4 बार तकरीबन 6-8 इंच गहरी जुताई करें. यदि खेत ऊपरनीचे है, तो उसे समतल जरूर करें. बेहतर होगा कि सिंचाई के लिए पानी का सही इंतजाम कर के खेत को छोटेछोटे टुकड़ों में बांटें.

खाद व उर्वरक : खाद व उर्वरक मिट्टी की जांच के आधार पर ही ठीक होते हैं. मोटेतौर पर इस विधि से गेहूं की बोआई करने पर 20 क्विंटल प्रति एकड़ खूब सड़ी हुई कंपोस्ट खाद या 4 क्विंटल प्रति एकड़ वर्मी कंपोस्ट को खेत में अच्छी तरह से मिलाना चाहिए. खेत की तैयारी के समय 30 किलोग्राम प्रति एकड़ डीएपी व 15 किलोग्राम प्रति एकड़ पोटाश प्रयोग में लाना चाहिए. उत्तर भारत में अमूमन जिंक व सल्फर की कमी पाई जाती है, लिहाजा यदि जिंक की कमी हो तो 10 किलोग्राम प्रति एकड़ जिंक सल्फेट अवश्य दें.

बोआई : बोआई के लिए खेत में पर्याप्त नमी होना जरूरी है. यदि खेत में नमी नहीं है, तो बोआई से पहले हलकी सिंचाई करें. एक मार्कर व रस्सी के सहारे लाइन से लाइन और पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर रखते हुए निशान लगा लेने चाहिए. इस के बाद निशानों पर ही 3-4 सेंटीमीटर गहराई पर 2 बीजों की बोआई कर देनी चाहिए. यदि खेत की उर्वराशक्ति कमजोर है, तो 3 बीजों की बोआई कर सकते हैं. देरी से बोआई की दशा में लाइन से लाइन व पौधे से पौधे की दूरी थोड़ी घटाई जा सकती है.

सिंचाई : इस विधि में परंपरागत गेहूं की खेती से लगभग दोगुनी सिंचाई करनी चाहिए, मगर हर बार हलकी सिंचाई करना ज्यादा मुफीद है. पहली सिंचाई 15-20 दिनों पर यानी ताजमूल अवस्था पर बहुत जरूरी है. वैसे ताजमूल अवस्था, गांठ बनने की अंतिम अवस्था व दुग्धावस्था पर सिंचाई करना लाभकारी होता है.

कुछ और ध्यान देने वाली बातें

गेहूं की परंपरागत खेती के तरीके से कुछ अलग होने के कारण इस विधि में निम्न बातें जरूर ध्यान में रखी जानी चाहिए:

*      निराईगुड़ाई व खरपतवार की रोकथाम : मशीनी निराईगुड़ाई करना जरूरी है. इस के लिए सूखे में चलने वाले वीडर का इस्तेमाल करना चाहिए. इस से निराईगुड़ाई और खरपतवार निकालने के काम एकसाथ हो जाएंगे. निराईगुड़ाई व खरपतवार निकालने के काम पहली, दूसरी व तीसरी सिंचाई के 2-3 दिनों बाद करने चाहिए.

*      यूरिया की टापड्रेसिंग : यूरिया की पहली टाड्रेसिंग पहली सिंचाई के दूसरे दिन 25 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से करें. दूसरी टापड्रेसिंग तीसरी निराईगुड़ाई के ठीक पहले (लगभग 40 दिनों के आसपास) 13.5 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से करें.

*      मिलने वाली इमदाद : नवीनतम तरीकों से खेती करने के लिए देश भर में विभिन्न योजनाओं के तहत कई तरह की सरकारी मदद का इंतजाम है, जोकि अलगअलग राज्यों में अलगअलग हो सकती है. मगर राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की तरफ से फार्म सेक्टर प्रमोशन फंड के तहत इस तरह के नवाचार को अपनाने पर माली मदद व सहूलियतें भी दी जा रही हैं, जो कि सभी राज्यों में लागू हैं. इस बारे में राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के लखनऊ स्थित रीजनल कार्यालय के असिस्टेंट जनरल मैनेजर व पीआरओ नवीन कुमार राय ने बताया, ‘कृषि में नवाचार को अपनाने के लिए हमारा बैंक ‘फार्म सेक्टर प्रमोशन फंड’ के तहत आर्थिक सहायता मुहैया कराता है. यही फंड पहले फार्मर टेक्नोलाजी ट्रांसफर फंड (एफटीटीएफ) के नाम से जाना जाता था. ‘फंड सीधे किसानों को नहीं दिया जाता. इस के लिए किसान भाइयों को संगठित हो कर किसी सरकारी या गैर सरकारी संस्थान (एनजीओ) जैसे कृषि विज्ञान केंद्र वगैरह से जुड़ना होगा. ’

सरसों उगाएं तिलहन में मजबूत बनें

सरसों व राई को मस्टर्ड व रेपसीड के नामों से भी जाना जाता है. सरसों भारत में सोयाबीन व मूंगफली के बाद उगाई जाने वाली खास तिलहनी फसल है. भारत में तोरिया व सरसों का कुल रकबा 65 लाख हेक्टेयर और उत्पादन 77 लाख टन है व उत्पादकता करीब 1200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है. बीज की मात्रा, बीजोपचार व बोआई : बोआई के लिए 4 किलोग्राम (1000 दानों का वजन 3 ग्राम हो) या 5-6 किलोग्राम (1000 दानों का वजन 4-5 ग्राम हो) बीज प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचित व असिंचित दोनों हालात में रखते हैं. बीजों को 2 ग्राम मैंकोजेब या 3 ग्राम थीरम से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करने के बाद सफेद रोली से बचाने के लिए एपरान 35 एसडी की 6 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर के बोआई करें. पेंटेड बग की रोकथाम के लिए एमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यूएस की 5 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजों को उपचारित कर के बोआई करें. जैविक उर्वरक के रूप में एजोटोवैक्टर 200 ग्राम पीएसवी व माइकोराइजन की 200 ग्राम मात्रा से प्रति 10 किलोग्राम बीज की दर से बीजों को उपचारित कर के बोआई करनी चाहिए.

बरानी इलाकों में 15 सितंबर से 15 अक्तूबर व सिंचित इलाकों में 15-20 अक्तूबर तक सरसों की बोआई कर देने से उपज अच्छी होती है. बोआई में लाइन से लाइन की दूरी 30-45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेंटीमीटर और गहराई 5 सेंटीमीटर रखनी चाहिए. असिंचित क्षेत्रों में बीज की गहराई नमी के मुताबिक रखनी चाहिए.

खाद व उर्वरक : सरसों में रासायनिक खाद, जैविक खाद व जैविक उर्वरक एकसाथ मिला कर देने चाहिए. सिंचित दशा में 8-10 टन व असिंचित दशा में 4-5 टन अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद के साथ हलकी मिट्टी में 2.5-3.0 किलोग्राम ववेरियावे्रसियाना (प्रयोग करने से 15-20 दिन पहले सड़े गोबर में मिला कर नमी वाले स्थान में बोरे से ढक कर रखें) को बोआई से पहले इस्तेमाल करने से दीमक व भूमिगत कीटों को काफी हद तक काबू किया जा सकता है.

अगर मिट्टी में जस्ते की मात्रा 0.6 पीपीएम से कम है, तो अंतिम  जुताई के समय करीब 20 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें. जहां तक संतुलित उवर्रकों की बात है, तो मिट्टी की जांच के मुताबिक उन का इस्तेमाल करना चाहिए. मिट्टी की जांच न होने की दशा में सिंचित क्षेत्रों में 80-100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 45-50 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश, 20 किलोग्राम सल्फर व 2 किलोग्राम बोरान और बरानी क्षेत्रों  में 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस, 20 किलोग्राम पोटाश व 20 किलोग्राम सल्फर व 200 किलोग्राम जिप्सम प्रति हेक्टेयर की दर से स्तेमाल करना चाहिए. 5 टन केंचुआ खाद या 10 टन सड़ी हुई गोबर की खाद और 75 फीसदी संतुलित उर्वरकों को प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल से करने 5-10 फीसदी पैदावार में इजाफा होता है. बरानी क्षेत्रों में उर्वरकों की पूरी मात्रा बोआई के समय देनी चाहिए. फास्फोरस को सिंगल सुपर फास्फेट से देने पर सल्फर भी मिल जाता है. यदि डीएपी का प्रयोग किया गया हो तो बोआई से पहले 200 किलोग्राम जिप्सम प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए. सिंचित दशा में नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बोआई के समय नाई या चोंगा द्वारा बीज से 2-3 सेंटीमीटर नीचे देना फायदेमंद होता है. नाइट्रोजन की बाकी मात्रा पहली सिंचाई की (बोआई के 25-30 दिनों बाद) टाप ड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिए. फूल आने की अवस्था में थायोयूरिया के 0.1 फीसदी घोल का छिड़काव करने से उपज में इजाफा होता है.

विरलीकरण : सरसों में बोआई के करीब 15-20 दिनों के अंदर घने व कमजोर पौधों को निकाल कर पौधों से पौधों की दूरी 15-20 सेंटीमीटर कर देनी चाहिए. सही तौर पर 2.5-3.0 लाख पौधे प्रति हेक्टेयर में या 25-30 पौधे प्रति वर्गमीटर में होने से अच्छी उपज मिलती है. सरसों की खेती के साथ मधुमक्खीपालन काफी फायदेमंद होता है.

खरपतवारों की रोकथाम : पौधों की संख्या ज्यादा होने की दशा में बोआई के करीब 15-20 दिनों बाद विरलीकरण के साथसाथ खरपतवारों को भी निराई कर के खेत से निकाल देना चाहिए. करीब 45-60 दिनों तक खेत खरपतवारों से मुक्त होना चाहिए. रासायनिक खरपतवारनाशी फ्लूक्लोरेलिन की 1.25 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई से पहले जमीन में मिला दें या 0.7 किलोग्राम मात्रा बोआई के बाद प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें. सूखी बोआई की स्थिति में बोआई के बाद फ्लूक्लोरेलिन का छिड़काव कर के सिंचाई करनी चाहिए. बोआई के करीब 20-25 दिनों बाद आइसोप्रोट्यूरान की 0.75 किलोग्राम मात्रा का घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर सकते हैं.

सिंचाई : पहली सिंचाई बोआई के 30-40 दिनों बाद फूल आने से पहले और दूसरी सिंचाई बोआई के 70-80 दिनों बाद फलियां बनने के वक्त करें. बलुई दोमट मिट्टी में 12 मीटर की दूरी पर नोजल लगा कर फुहारा सेट 7 घंटे चला कर 2 बार सिंचाई करने पर सामान्य विधि के बराबर उपज मिलने के साथसाथ 40 फीसदी पानी की बचत की जा सकती है. बरानी क्षेत्रों में धान के पुआल से 2 टन प्रति हेक्टेयर की दर से माचिंग करने से पानी की बचत के साथसाथ 30-40 फीसदी उपज बढ़ जाती है.

सहफसली खेती

सरसों की कुछ प्रजातियां जैसे पीआर 43, आरएच 30, वरदान, आरएच 781, लाहा 101, पूसा बोल्ड व संजुक्ता वगैरह सहफसली खेती के लिए अच्छी हैं. सरसों के खास सहफसली इस प्रकार हैं : गेहूं व सरसों (9:1), चना व सरसों (3:1), आलू व सरसों (3:1), गन्ना व सरसों (1:1).

कटाईमड़ाई

सरसों की फसल फरवरीमार्च तक पक जाती है. आमतौर पर जब पत्तियां झड़ने लगें और फलियां पीली पड़ने लगें, तब फसल की कटाई व मड़ाई कर के 3-4 दिन सुखा कर 8 फीसदी नमी रहने पर भंडारण करते हैं.

सर्दियों के फूलों के पौधे उगा कर सुंदर बनाएं घरआंगन

सर्दी के मौसम के एक साला फूलों के पौधों में ऐसे पौधे शामिल हैं, जो कि अपना पूरा जीवन (बीज बोने व अंकुरण से ले कर फूल आने और उन के खत्म होने तक) 1 साल या 1 मौसम में ही पूरा कर लेते हैं. इन में ज्यादातर पौधे ऐसे होते हैं, जोकि अपना जीवन 3 से 6 महीने में ही पूरा कर लेते हैं.  ऐसे 1 साल वाले फूलों के पौधों को बहुत ही आसानी से कम मेहनत से पैदा किया जा सकता है. ये पौधे देखने में काफी आकर्षक होते हैं. इन की खेती बगीचे को सजा देती है. किसान भाई इन की नर्सरी तैयार कर के और खेती कर के बीज उत्पादन में भी अच्छा लाभ कमा सकते हैं.

इन तमाम सालाना फूलों के पौधों को कई मकसद पूरे करने के लिए पैदा किया जाता है. इन्हें गमलों में लगाने, क्यारियों में लगाने, लटकाने वाली टोकरियों में लगाने, सड़कों के किनारे लगाने व चट्टान उद्यान में लगाने में इस्तेमाल किया जाता है.

बोआई का समय : इन पौधों की बढ़ोतरी और फूलने के लिए कम तापमान की जरूरत होती है, लिहाजा इन के बीजों को अगस्तसितंबर के दौरान नर्सरी में बोया जाता है. अक्तूबरनवंबर के बीच इन पौधों को स्थायी स्थानों पर लगा दिया जाता?है.

नर्सरी के लिए जगह का चुनाव : पूरी तरह खुली और भरपूर हवा व रोशनी वाली जगह नर्सरी बनाने के लिए अच्छी रहती है. इन फूलों की नर्सरी के लिए बलुई दोमट मिट्टी वाली जमीन बेहतर होती है.

क्यारियों की तैयारी : नर्सरी के अंदर 4-6 इंच उठी हुई क्यारियां बनाई जाती हैं, ताकि फालतू पानी बाहर निकल सके और नर्सरी के छोटेछोटे पौधे खराब न हो सकें. क्यारियों की लंबाई 3 मीटर और चौड़ाई 1 मीटर रखते हैं, ताकि सिंचाई और निराईगुड़ाई आसानी से की जा सके. क्यारियों की गहरी जुताई कर के उन में सड़ी गोबर की खाद मिला कर मिट्टी समतल कर लेनी चाहिए.

बोआई का तरीका : कुछ पौधों के बीजों को सीधे स्थायी क्यारियों में भी बोया जा सकता है, जैसे गेंदा व कोसमोस वगैरह. नर्सरी बेड में बीजों को बोते समय खास ध्यान दिया जाता है. ऐसे बीज जो ज्यादा बारीक होते हैं (जैसे पिटूनिया व पोपी), उन्हें बालू या राख में मिला कर बोना चाहिए ताकि उन्हें समान दूरी पर गिराया जा सके.

नर्सरी बेड में बीजों को हमेशा लाइन बना  कर बोना चाहिए. बोने के बाद बीजों को बारीक छनी हुई खाद और बालू के मिश्रण की हलकी तह से ढक देना चाहिए. उस के बाद क्यारियों के ऊपर घास व पत्तियां डाल देनी  चाहिए, जिस से बीज खराब न हो सकें और नमी को ज्यादा समय तक कायम रखा जा सके. क्यारियों को रोजाना हजारे से सींचना चाहिए. जब बीज उग आएं तो घास व पत्तियों को हटा कर अलग कर दें और फालतू पौधों को भी निकाल दें. पौधे ज्यादा घने होने की हालत में कवक रोग पैदा हो जाते हैं, नतीजतन पौधों का विकास रुक जाता है या कभीकभी पौधे मर भी जाते हैं.

खरपतवारों की रोकथाम : नर्सरी में समयसमय पर निराईगुड़ाई कर के खरपतवार निकालते रहना चाहिए. पौधों को अधिक मजबूत बनाने के लिए जब वे छोटे होते हैं, तो उन्हें दूसरी क्यारियों में लगा देते हैं.

पौध लगाना : पौधों को लगाने से पहले स्थायी क्यारियों को गोबर की खाद वगैरह डाल कर ठीक तरह से तैयार कर लेना चाहिए. उस के बाद पौधों को उन की ऊंचाई के आधार पर लगाना चाहिए. पहले लंबे पौधों को, फिर मध्यम पौधों को और बाद में छोटे पौधों को लगाना चाहिए.

देखभाल : पौधे लगाने के तुरंत बाद पानी देना चाहिए. सर्दियों में सिंचाई का अंतर 4-7 दिन रखा जाता है. समयसमय पर खुरपी की मदद से निराईगुड़ाई कर के खरपतवार निकालते रहना चाहिए. ज्यादा फूल उत्पादन के लिए पौधों को तरल खाद देना जरूरी होता है.

पौधों के फूल जैसेजैसे मुरझाते जाएं वैसेवैसे उन को पौधों से काट कर अलग करते रहना चाहिए. इस प्रकार से फूल अधिक तादाद में पैदा किए जा सकते हैं.

बीमारियां : 1 वर्षीय पौधों में बहुत सी बीमारियां लग जाती हैं जैसे कि लीफ स्पोट, मिल्ड्यू बिल्ट व बर्निंग वगैरह. इन से बचाव के लिए डायथेन एम 45 या कापर आक्सीक्लोराइड वगैरह दवाओं का छिड़काव करते रहना चाहिए.

कीड़े : केटरपिलर, लारवे, मोथ सा फ्लाई वगैरह कीड़ों के इलाज के लिए कीटनाशी दवाओं जैसे कारबोरिल 2 ग्राम या इंडोसल्फान 35 ईसी 1.5 ग्राम का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर स्प्रे करें.

बीजों को जमा करना : बीज लेने के लिए आकार, रंग व सेहत को ध्यान में रख कर फूलों को चुन लेते हैं.

1 वर्षीय फूलों की खेती कर के हमारे किसान भाई सब्जी की फसल की तरह कम समय में अपने खेतों से ज्यादा आमदनी हासिल कर सकते हैं.     

– डा. अनंत कुमार (कृषि विज्ञान केंद्र, मुरादनगर, गाजियाबाद), डा. वीरेंद्र पाल (कृषि विज्ञान केंद्र, हस्तिनापुर, मेरठ)

पौलीटनल तकनीक से सब्जीपौध उगाना

भारत की जलवाय व वातावरण अलगअलग होने से यहां पूरे साल हर किस्म की सब्जियों का उत्पादन होता रहता है. घरेलू व अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में स्वस्थ सब्जियों की बढ़ती मांग से भारत में हमेशा भरपूर सब्जी उत्पादन की जरूरत बनी रहती है. यही वजह है कि पिछले 10-12 सालों में सब्जियों के रकबे व उत्पादन में काफी तरक्की हुई है. इस समय देश में सब्जियों का रकबा करीब 9.42 मिलियन हेक्टेयर व उत्पादन करीब 162.38 मिलियन टन है. भारत में सब्जियों की औसत उत्पादकता 17.78 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर है, जिस में इजाफे की तमाम उम्मीदें हैं. अगर किसान समय पर उन्नतशील प्रजाति, हाईब्रिड बीज व प्रजातियों की अगेती व पछेती बोआई का ध्यान रख कर समयानुसार बोआई, रोपाई व सिंचाई पर ध्यान दें, तो सब्जी की उत्पादकता को 2 गुना तक बढ़ाया जा सकता है. देश में सब्जियों की व्यावसायिक खेती कर के उत्पादन को बढ़ावा देने की कड़ी में स्वस्थ पौध तैयार करना बहुत खास विषय?है, जिस पर आमतौर पर किसान कम ध्यान देते?हैं. इसी वजह से किसानों को कम आमदनी का सामना करना पड़ता है. पौलीटनल तकनीक से सब्जीपौध उगाने का खास महत्त्व?है. इस तकनीक से पौध तैयार करने में सब्जी के बीजों का जमाव सौ फीसदी होता है और पौधों की बढ़वार सही तरीके से होती है. इस के अलावा कीटों व बीमारियों का असर भी कम होता है.

इस तकनीक की खासीयत है कि विपरीत मौसम जैसे कि ज्यादा बारिश, गरमी व ठंड में भी पौध तैयार करने में सफलता मिल जाती है. पौलीटनल तकनीक से सब्जीपौध तैयार करने पर पौधों में कठोरीकरण के लिए सहायता मिलती है और ऐसे पौधों की रोपाई करने पर उन की मृत्यु दर न के बराबर होती है. सर्वे के मुताबिक इस तकनीक से पौधशाला में सब्जीपौध का औसतन नुकसान 25-30 फीसदी है. साधारण तरीके में यह नुकसान अकसर 60-70 फीसदी तक हो जाता?है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तमाम सब्जी उत्पादकों के मुताबिक अभी भी 75-80 फीसदी किसान सब्जियों की पौध खुले मौसम व माहौल में उगाते हैं, सब्जी की पौध खुले मौसम व माहौल में उगाने से बीजों का जमाव कम होता?है, जमाव के बाद पौधों की बढ़वार में कमी होती?है और कीटों व बीमारियों का हमला ज्यादा होता है.

पौलीटनल तकनीक क्या है : इस तकनीक से विपरीत मौसम (ज्यादा बारिश, गरमी या सर्दी) में सब्जीपौध तैयार की जाती?है. यह तकनीक टिकाऊ, सस्ती, कारगर व व्यावसायिक है. सब्जीपौध तैयार कर के बेचना आमदनी के लिहाज से अच्छा जरीया है.

पौलीटनल तकनीक की विधि : पौलीटनल बनाने के लिए 2 सूत की लोहे की सरिया या बांस को लेते?हैं, जिन की लंबाई 6 फुट या बेड के मुताबिक होती है. 1 मीटर चौड़े बीज बोने के बेड के दोनों तरफ 6-8 इंच गहराई में लोहे की सरिया या बांस को जमीन के अंदर गाड़ देते?हैं. इस प्रकार सुरंग बन जाती?है. इसी प्रकार हर 4 मीटर की दूरी पर लोहे की सरिया या बांस गाड़ दें, इस के अंदर फूलगोभी, पत्तागोभी, मिर्च, बैगन, टमाटर, शिमला मिर्च, खीरा, लौकी, करेला व तुरई वगैरह की बोआई करने के लिए 1 मीटर चौड़ा बेड (लंबाई जरूरत के मुताबिक) बना लें. 1 हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिए 10-12 मीटर लंबाई व 1 मीटर चौड़ाई के 4 बेड काफी हैं.

पौलीटनल में सब्जियों के बीजों की बोआई : पौलीटनल में सब्जियों के बीजों की बोआई करने के लिए बेड की गुड़ाई कर के मिट्टी को भुरभुरी व नमीयुक्त बना लें. 1 मीटर चौड़े व 10 मीटर लंबे पौलीटनल में करीब 1.5 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद अच्छी तरह मिट्टी में मिला दें, फिर बेड की सिंचाई करें. इसी क्रम में 4-5 दिनों बाद बेड की गुड़ाई कर के लाइन में बोआई कर देते?हैं. बोआई के लिए 2-3 सेंटीमीटर गहरी लाइन बनाते?हैं, जिसे बाद में मिट्टी से ढक देते हैं. लाइन से लाइन की दूरी करीब 2-3 इंच रखते हैं. अगर नमी कम लगे तो फुहारे से हलकी सिंचाई करें.

पौलीटनल में पौलीथीन का इस्तेमाल : इस के लिए 4 मीटर चौड़े पौलीथीन को जरूरत के मुताबिक लंबाई में खरीद लेते हैं. ध्यान रखें कि पौलीथीन 200 माईक्रोन का ही हो. बोआई के बाद पौलीटनल को रात के वक्त पौलीथीन से ढक देते हैं. यदि दिन का तापमान 25-28 डिगरी सेंटीग्रेड से ज्यादा हो तो दिन में पौलीथीन को हटा देना चाहिए. इस तरीके से 25-28 दिनों में सब्जी की पौध तैयार हो जाती?है.

पौलीटनल में कद्दूवर्गीय सब्जियों की पौध तैयार करना : कद्दूवगीय फसलों जैसे खीरा, करेला, लौकी व तुरई वगैरह की पौध तैयार करने के लिए 5 इंच लंबा व 4 इंच चौड़ा काला पौलीथीन बैग या पानी पीने वाला प्लास्टिक का गिलास लेते?हैं. काले पौलीथीन बैग या प्लास्टिक के गिलास में आधा भाग मिट्टी व आधा भाग सड़ी गोबर की खाद का मिश्रण भरते हैं. इस मिश्रण में फफूंदीनाशक वैविस्टीन या थीरम या कार्बंडाजिम मिला देते?हैं. इस के बाद पौलीथीन बैग या गिलास को तैयार पौलीटनल में रख कर बोआई करते हैं. 1 हेक्टेयर रकबे में करीब 8-10 हजार पौधों की जरूरत होती है.

जनवरी महीने में काफी सर्दी होती है, लिहाजा उस दौरान कद्दूवर्गीय सब्जियों की पौध तैयार करने के लिए पौलीटनल में रखे पौलीथीन में बीजों की बोआई करते?हैं और 15-20 फरवरी तक या मौसम व वातावरण सही न होने तक सफेद पौलीथीन से ढक देते हैं. नमी कम हो तो पौलीथीन बैग में हलकी सिंचाई कर देते हैं. फरवरी महीने के अंतिम पखवाड़े में रोपाई के लिए सही वातावरण व मौसम रहता?है. इस प्रकार से मार्च के अंतिम हफ्ते तक उत्पादन मिलना शुरू हो जाता?है. इस दौरान सब्जी उत्पादन होने से इन सब्जियों से किसानों को उन के उत्पाद का वाजिब दाम लाभकारी आमदनी के रूप में मिल जाता है.

पौलीटनल में कीटों व बीमारियों की रोकथाम

* बीज जमाव के बाद पौधों में आर्द्रगलन बीमारी का खतरा होता?है. इस बीमारी के लक्षण दिखाई देते ही 1 ग्राम कार्बंडाजिम व 1 ग्राम मैंकोजेब का 2 लीटर पानी में घोल बना कर पौधों व उन की जड़ों के नजदीक छिड़काव करें.

* पौध रोपाई से पहले कीटनाशक एमिडाक्लोरप्रिड (0.2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करना चाहिए. इस से वायरस फैलाने वाले सूक्ष्म कीटों से बचाव होता है. नर्सरी अवस्था में पौधों पर नीम तेल का 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए. इस से पौधे महफूज रहते हैं.

* नर्सरी अवस्था में फफूंदीनाशक कापर आक्सीक्लोराइड का 02 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से पौधों पर छिड़काव करने से भी बेहतर नतीजे पाए गए हैं.

पोषण

* सब्जियों की बोआई के 15 दिनों के बाद नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश की 2 ग्राम मात्रा का प्रति लीटर पानी में?घोल बना कर छिड़काव करने से पौधों की बढ़वार व विकास में मदद मिलती है.

* सब्जियों के बीजों की बोआई के 18 दिनों के बाद सूक्ष्म तत्त्वों (कंपाउंड सूक्ष्म तत्त्व) की 4 ग्राम मात्रा का प्रति लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करने से अच्छे नतीजे मिलते हैं.

* प्याज के पौध तैयार करते समय पत्तियों में पीलापन आने की रोकथाम के लिए 2 ग्राम यूरिया का प्रति लीटर पानी में घोल बना कर 7 दिनों के अंतराल पर 2-3 बार छिड़काव करने से काफी फायदा होता है. इस से पौधों की बढ़वार में मदद मिलती है. 

गुलाबजामुन मीठा और रसीला

अगर आप को रसीली और गरम मिठाई खाने का शौक है तो आप के लिए गुलाबजामुन से बेहतर कोई दूसरी मिठाई नहीं हो सकती है. गुलाबजामुन पंजाबी स्वीट डिश मानी जाती है. चाशनी में डूबा गुलाबजामुन गरमगरम खाने में ही मजा देता है. कोई भी दावत गुलाबजामुन के बिना अधूरी मानी जाती है. अगर आप गरम और ठंडा स्वाद एकसाथ लेना चाहते हैं, तो गुलाबजामुन और वनीला आइसक्रीम को मिला कर खाया जा सकता है.

कैसे बनता है गुलाबजामुन

लखनऊ के गणेश स्वीटहाउस के मालिक मोहित गुप्ता ने बताया, ‘गुलाबजामुन बनाने के लिए खोया, मैदा, चीनी, बेकिंगपाउडर और इलायचीपाउडर का इस्तेमाल किया जाता है. सब से पहले खोए को कद्दूकस कर लें. उस में मैदा, बेकिंगपाउडर और इलायचीपाउडर मिलाएं. इस मिश्रण में थोड़ा कुनकुना दूध डालते हुए आटे की तरह गूंध लें. जब यह खूब चिकना हो जाए तो मनचाहे गोल या लंबे आकार में इसे लोइयों की तरह तैयार कर लें. यह ध्यान रखें कि लोई फटे नहीं. फटी लोई तलने पर उस में दरार बन जाती है. तैयार लोइयों को कपड़े से ढक कर रखें. ‘कड़ाही में जरूरत के मुताबिक तेल डाल कर तैयार लोइयों को तल लें. जब ये ब्राउन कलर की हो जाएं, तो इन को बाहर निकाल लें और साफ कागज पर रख दें. इस के बाद चीनी और पानी बराबर मात्रा में मिला कर चाशनी बनाएं. चाशनी में कुटी इलायची, गुलाबजल और केसर डालने के बाद तले गुलाबजामुन डालें. जब गुलाबजामुनों के अंदर तक रस घुल जाए, तो उन को निकाल कर गरमगरम खाएं व सभी को खिलाएं.’

लुभाता स्वाद

गोपालगंज बिहार की रहने वाली सुप्रिया पांडेय मुंबई में एक्टिंग की दुनिया में नाम कमा रही हैं. वे कहती हैं, ‘मुझे तो गुलाबजामुन वनीला आइक्रीम या फिर ठंडीठंडी मलाई के साथ खाने में मजा देता है. गुलाबजामुन का खयाल आते ही मेरे मुंह में पानी भर जाता है. इसे गरमगरम खाने का मजा अलग ही होता है. मुझे तो हर दावत गुलाबजामुन के बिना अधूरी लगती है.’ दिल्ली, मुंबई व कोलकाता जैसे बड़े शहरों में छोलेभटूरे या राजमाचावल के बाद गरमगरम गुलाबजामुन का स्वाद लेने वाले भी कम नहीं हैं. गुलाबजामुन 350 रुपए प्रति किलोग्राम से ले कर 500 रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से छोटीबड़ी दुकानों में बिकता है. वैसे गुलाबजामुन पीस के हिसाब से भी मिलता है. 10 रुपए से 20 रुपए प्रति पीस की दर से गुलाबजामुन का स्वाद लिया जा सकता है. आजकल सड़क किनारे खाने की दुकानों के साथ छोटे आकार के गुलाब जामुन 10 रुपए में 2 पीस की दर से भी मिल जाते हैं. इस तरह हर हैसियत के लोग बिना किसी परेशानी के इस का जायका ले सकते हैं. गुलाबजामुन में भरपूर कैलोरी होती है, इसलिए इसे खाते वक्त अपनी सेहत का खयाल रखना जरूरी है.

गेहूं के बीज की कुछ खास किस्में

कुदरत 8 विश्वनाथ

प्रगतिशील किसान प्रकाश सिंह रघुवंशी द्वारा विकसित की गई गेहूं कुदरत 8 विश्वनाथ बौनी किस्म की नई प्रजाति है. इस प्रजाति के पौधों की ऊंचाई करीब 90 सेंटीमीटर व बाली की लंबाई करीब 20 सेंटीमीटर (9 इंच) की होती है. इस का दाना मोटा व चमकदार होता है. फसल पकने का समय 110 दिन है और इस की पैदावार 25-30 क्विंटल प्रति एकड़ है.

कुदरत 8 विश्वनाथ में मौसम में घटतेबढ़ते तापमान को सहने की कूवत है. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, गुजरात व महाराष्ट्र राज्यों के हजारों किसानों ने इस किस्म को परीक्षण के लिए अपने यहां लगाया, जिस से उन्हें जबरदस्त सफलता प्राप्त हुई और वे इस बीज के मुरीद हो गए.

कुदरत विश्वनाथ

कुदरत विश्वनाथ भी एक खास विकसित प्रजाति है. इस प्रजाति की शुरु नवंबर से ले कर 10 जनवरी तक पछेती बोआई कर के भी किसान ज्यादा पैदावार ले सकते?हैं. पिछले साल तेज बारिश, ओलों व तेज हवाओं के प्रकोप में भी यह किस्म खेतों में खड़ी रही थी,क्योंकि इस का तना मोटा व मजबूत होता?है. इस में लंबेचौड़े पत्ते व 9-10 इंच लंबी बालियां होती हैं.प्रकाश सिंह रघुवंशी का कहना?है कि उन्होंने अब तक कृषि क्षेत्र में बीजों की तकरीबन 300 प्रजातियां विकसित की हैं, जिन में गेहूं, धान, अरहर, मूंग व सब्जियों वगैरह की अनेक ऐसी किस्में हैं, जिन का फायदा किसान उठा रहे?हैं. जन कल्याणी मूंग इन की खास विकसित प्रजाति?है. 2 बार राष्ट्रपति से सम्मानित होने वाले प्रकाश सिंह रघुवंशी किसानों के हित में कुछ न कुछ करते रहते हैं. प्रकाश सिंह रघुवंशी ने अभी हाल ही में ‘फार्म एन फूड’ को बताया कि वे पूरे भारत में जगहजगह स्वदेशी बीज बैंक की स्थापना कर रहे हैं और देश के अलगअलग इलाकों में जा कर देशी बीजों से खेती करने के लिए किसानों को मुफ्त में बीज के सैंपल दे रहे?हैं व उन्हें जैविक तरीके से खेती करने के लिए बढ़ावा दे रहे हैं. उन का मकसद यही?है कि किसान देशी बीजों का उत्पादन करें व दूसरे किसानों को भी बीज उत्पादन करना सिखाएं.

कोई भी किसान या संस्था उन के इस बीज बैंक अभियान के तहत जुड़ना चाहे या बीज मंगाना चाहे तो प्रकाश सिंह रघुवंशी के मोबाइल नंबर 09839253974 व 09415643838 पर संपर्क कर सकते हैं. उन के पते पर भी संपर्क कर सकते हैं. उन का पता है : कुदरत कृषि शोध संस्था, टडि़या, जाक्खिनी, जिला वाराणसी, उत्तर प्रदेश, पिन 221305.   

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