भारत छोड़ कर दुनिया के लगभग सभी देशों के त्योहार न तो पूजापाठ को बढ़ावा देते हैं और न प्रदूषण को. फिर चाहे वह चीन का लाइट शो हो या यूरोपीय देशों में न्यू ईयर उत्सव व क्रिसमस सैलिब्रेशन. हर त्योहार मौजमस्ती से सराबोर होता है. पता नहीं हम कब बदलेंगे. रोजरोज की भागमभाग में जिम्मेदारियों को पूरा करतेकरते जीवन में उत्साह कहीं खो सा जाता है. ऐसे में त्योहार बहाना बनते हैं जिंदगी में खुशियां, उत्साह और उमंग लाने का. यों तो त्योहारों की मस्ती अगस्त में सावन के झूलों से ले कर राखी के साथ शुरू हो जाती है लेकिन मस्ती का पूरा रूप निखरता है दीवाली पर. दीवाली का मकसद भी जीवन में समरसता ला कर उसे उत्सव का रूप देना होता है. दीवाली बच्चों व बड़ों सब के लिए जश्न मनाने का बेहतरीन अवसर होता है. लेकिन नए कपड़ों, मिठाइयों, उपहार, घर की साजसजावट, पार्टी के बीच कुछ ऐसी चीजें होती हैं जिन्हें हम भूल जाते हैं. आइए, इस दीवाली पर कुछ ऐसा करें जिस से यह सब के लिए एक यादगार बन जाए.
जीवन में भरें रंग
हर आदमी पूरे साल अपने कामधाम में लगा रहता है. साल में कुछ मौके ही ऐसे आते हैं जब वह त्योहारों के बहाने एक जगह एकत्र हो कर हर्षोल्लास के साथ अपना समय व्यतीत करता है. उत्सवों के कारण ही दूरदराज शहरों में रहने वाले लोग अपने प्रियजनों, दोस्तों, नातेरिश्तेदारों से मिलने के लिए समय निकालते हैं. ऐसे में आपसी सुखदुख साझा करते हैं. इस से पूरे साल की थकान कम हो कर एक बार फिर से नई ऊर्जा, चेतना का संचार शरीर में होता है जिस से सालभर काम करने की ताकत मिलती है. दीवाली मिलन और एकता का संदेश देता है. दीवाली एक सामूहिक पर्व है. इस को व्यक्तिगत तौर पर न मना कर सामूहिक तौर पर मनाएं तो खुशियां दोगुनी हो सकती हैं. इस से आपसी प्यार, उल्लास और उमंग बढ़ती है.
परिवार के साथ मौजमस्ती
अगर आप पढ़ाई या नौकरी के सिलसिले में घर से दूर रहते हैं तो दीवाली वह बेहतरीन अवसर है अपनों के साथ मिल कर खुशियां बांटने का. तो फिर बिना देर किए अपना टिकट बुक कराइए और बना दीजिए इस दीवाली को यादगार दीवाली. एक बात और, जाने से पहले घर वालों, पड़ोसियों व दोस्तों के लिए उपहार ले जाना न भूलें. उपहार भले ही कीमती न हो लेकिन ऐसा अवश्य हो जो आप की भावनाओं को उन तक पहुंचाए. इन उपहारों में दीये, मिठाइयां, कपड़े या अपने हाथ से बना कोई उपहार या स्वीटडिश (जैसे चौकलेट) भी हो सकती है. ध्यान रहे आप उपहार सिर्फ त्योहार की रस्म अदायगी के लिए न दें. क्योंकि मन से दिए गए उपहार से अपनों के चेहरे पर आप को जो खुशी देखने को मिलेगी वह आप को दीवाली की असली खुशी व उमंग देगी.
दीवाली की पार्टी
इस दीवाली की पार्टी में अपने रिश्तेदारों के अलावा अपने पड़ोसियों को भी शामिल करें. भले ही वे किसी भी धर्म या जाति के हों क्योंकि अगर दीवाली खुशियों का त्योहार है तो खुशियां हर जगह होनी चाहिए. ऐसा नहीं होना चाहिए कि हमारे घर तो दीया जले, रोशनी हो, पार्टी हो और पासपड़ोस इस में शामिल न हो. इसलिए पार्टी में आने वाले हर मेहमान की सूची बना लें ताकि आप को आने वाले सदस्यों के अनुसार तैयारी करने में आसानी हो.
पार्टी की थीम
दीवाली की फैमिली पार्टी में ज्यादातर लोग ट्रैडिशनल थीम रखते हैं. आप चाहें तो इस में एक ट्विस्ट दे सकते हैं. जैसे आप मेहमानों को भिन्नभिन्न प्रदेशों की वेशभूषा पहन कर आने को कह सकते हैं. इस से पार्टी में शामिल बच्चों को भी देश की विभिन्न कला व संस्कृति की जानकारी मिलेगी और पार्टी का मजा दोगुना हो जाएगा.
सजावट हो कुछ ऐसी
दीवाली की पार्टी का जिक्र आते ही सब की आंखों के आगे दीपों की जगमगाहट, रंगोली, रंगबिरंगे बंदनवार, कंदील का नजारा सामने आ जाता है. और हर कोई चाहता है कि उन के घर की सजावट पारंपरिक होने के साथसाथ कुछ अलग हट कर हो लेकिन साथ ही वह बजट गड़बड़ाने से भी डरता है. ऐसे में कम खर्चे में रचनात्मक तरीके से घर को सजा कर घर की शोभा बढ़ाई जा सकती है.
रंगबिरंगी रंगोली
रंगोली के बिना दीवाली की सजावट अधूरी लगती है. आजकल बाजार में रेडीमेड रंगोली भी मिलती है लेकिन आप चाहें तो पारंपरिक रंगोली को फूलपत्तियों व सूखे रंगों से सजा सकते हैं जो रंगोली को पारंपरिकता के साथ आधुनिक झलक भी देगा और पार्टी में आने वाले लोग आप की रचनात्मकता की तारीफ किए बिना नहीं रह पाएंगे.
डिजाइनर बंदनवार
पहले घरों के मुख्यद्वार को फूलों, आम के पत्तों से बने तोरण से सजाया जाता था. आप भी इस दीवाली पर चाहें तो इस परंपरा को दोहरा सकती हैं. इस के अलावा घर पर सुंदर बंदनवार स्वयं भी बना सकती हैं जो बजट में होने के साथ आकर्षक भी लगेंगे. बंदनवार बनाने के लिए आप अपनी पुरानी सिल्क की साड़ी के जरी बौर्डर का प्रयोग कर सकती हैं. बौर्डर के पीछे बुकरम लगाएं व बौर्डर को स्टोन, मिरर व घुंघरुओं से सजाएं. अपने हाथ से बना यह बंदनवार डिजाइनर होने के साथ पारंपरिक लुक भी देगा.
रोशनी की जगमगाहट
दीयों के साथ आप मोमबत्ती को इस तरह सजाएं कि आप की पार्टी के डैकोरेशन को अलग लुक मिले. आप बाजार में मिलने वाले मोमबत्ती के स्टैंड को घर में मौजूद कांच के रंगीन ग्लास में रखें. इस से नया लुक मिलेगा. आप चाहें तो इन ग्लासेज को एक आईने के सामने समूह में सजा कर रख सकते हैं. साथ ही एक आकर्षक बाउल में पानी भर कर उस में कुछ ताजे फूल डालें व बीच में फ्लोटिंग कैंडिल्स रखें. यह आप की पार्टी के डैकोरेशन को खास बना देगा.
संगीत व डांस
दीवाली की पार्टी हो और संगीत न हो यह भला कैसे हो सकता है. आप पार्टी में आने वाले हर सदस्य की पसंद को ध्यान में रखते हुए संगीत व डांस नंबर्स का चुनाव करें. साथ ही घर में पार्टी के स्थान पर कुछ जगह खाली रखें ताकि वहां अगर किसी का गीतसंगीत पर थिरकने का मन करे तो वह थिरक सके व म्यूजिकल चेयर जैसे गेम्स भी खेले जा सकें.
प्लास्टिक को करें बायबाय
याद कीजिए वह समय जब घर की साजसजावट के लिए रंगीन कागज व हैंडमेड पेपर की बनी कंदील घरआंगन की शोभा बढ़ाती थी. इस दीवाली भी कोशिश कीजिए कि प्लास्टिक के बजाय पेपर से बने सजावटी सामान का प्रयोग करें क्योंकि प्लास्टिक का सामान न गलने की वजह से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है.
इको फ्रैंडली पटाखे
इस दीवाली आप निश्चय कीजिए कि इको फ्रैंडली पटाखे ही छोड़ेंगे. ये पटाखे न केवल कम वायु प्रदूषण फैलाते हैं वरन इन से ध्वनि प्रदूषण भी कम होता है. आप को जान कर हैरानी होगी कि दीवाली पर छोड़े जाने वाले अधिकांश पटाखों से 100 डेसिबल (ध्वनि नापने की इकाई) की आवाज आती है जबकि 50 डेसिबल से तेज आवाज मनुष्य के लिए खतरनाक होती है क्योंकि पटाखों की अचानक तेज आवाज व्यक्ति को बहरा भी कर सकती है. और तो और, इस कारण हृदय के मरीजों को दिल का दौरा पड़ने की संभावना भी रहती है.
त्योहारों पर न चढ़ाएं धर्म का रंग
त्योहार मौजमस्ती, हंसीखुशी और एकदूसरे से मिलनेमिलाने के लिए होता है. धर्म का प्रचार करने वाले ने त्योहारों की ताकत को समझते हुए इस को अपने प्रचार का जरिया बना लिया. धर्म ने त्योहारों पर आस्था और धर्म का ऐसा रंग चढ़ाया कि त्योहार अलगअलग जातिधर्म के समूह में बंट गए. इस का असर यह हुआ कि त्योहार मनाने वाले लोग मौजमस्ती कम और तनाव में ज्यादा जीने लगे. कोई भी त्योहार आता है, उस से पहले ही समाज में तनाव फैल जाता है. इस तनाव और समाज में फैले हुए खतरे से बचने के लिए लोगों ने एकसाथ त्योहार मनाना ही बंद सा कर दिया. अब जाति और धर्म में बंटे लोग अपने छोटेछोटे समूहों में त्योहार मना लेते हैं. इस से एकसाथ जुट कर त्योहार मनाने का रिवाज खत्म सा हो गया है. जरूरत इस बात की है कि सभी त्योहार सब मना सकें. ऐसा माहौल हो जहां हर कोई मौजमस्ती से त्योहार मना सके. आजकल पूरी दुनिया में इस बात का प्रयास हो रहा है. होली को अलगअलग रंगों में पूरी दुनिया में मनाया जा रहा है. कहीं फूलों से होली खेली जाती है तो कहीं खुशबूदार कीचड़ से. कुछ लोग आइस यानी बर्फ से होली खेलते हैं तो कुछ टमाटर से होली खेलते हैं. होली के रंग और तौरतरीके अलग हो सकते हैं. इन में शामिल होने और मौजमस्ती करने का जज्बा कम नहीं होता. जरूरत इस बात की होती है कि त्योहारों पर चढे़ आस्था और अंधविश्वास को दूर कर उस में लाइफस्टाइल का रंग भरें. त्योहारों में आस्था की छुट्टी कर के जीवन के रंगों को भरा जाए. आस्था का रंग त्योहार को कुछ लोगों के बीच समेट देता है. आस्था और रूढि़वादी सोच कई बार इन त्योहारों में रंग को फीका कर देती है. जैसे होली में शराब पीकर हुल्लड़बाजी करने से तमाम दुर्घटनाएं हो जाती हैं. दीवाली में जुआ खेलने की परंपरा बुराई की याद दिलाती है.
दीवाली के उत्सव में रंग में भंग मिलाने का काम कई बार पाखंड वाले रीतिरिवाज करते हैं. दीवाली में भी पार्टी का मतलब जुआ और नशा हो गया है. जुआ खेलना और जुए में जीत हासिल करना इस त्योहार का सब से पुराना पाखंड हो गया है. नए जमाने में इस के अलगअलग रूप होने लगे हैं. हालात इतने बिगड़ गए हैं कि अब तो कुछ महिलाएं भी किटी पार्टी में जुआ खेलती हैं. जुआ खेलने वाले लोगों को जब इस के लिए मना किया जाता है तो वे धर्मग्रंथों का हवाला दे कर तर्क देते हैं कि यह तो धर्मग्रंथों में लिखा है. यह सच बात है कि धर्मग्रंथों में जुए के महत्त्व को लिखा गया है. धर्मग्रंथों में जो लिखा है वह सच नहीं है. सब से पहले तो इस बात को समझ लेने में ही भलाई है. धर्मग्रंथों में ऐसे तमाम किस्सेकहानियां लिखी गई हैं जो अंधविश्वास को बढ़ावा देती हैं. जुआ खेलने के समय अंधविश्वास यह है कि जो आज जीतेगा उस के पास सालभर लक्ष्मी यानी पैसा आता रहेगा.
पैसा मेहनत से आता है जुआ खेलने से नहीं. जुए में जीत के चक्कर में तमाम लोग अपना काफी पैसा हार जाते हैं. इस के बाद एक बार फिर से वे अपने भाग्य को कोसते हुए नशा करने लगते हैं. आज के समय में जुआ खेलना शान समझा जाता है. देखा जाए तो जुआ खेलना शान की नहीं शर्म की बात होती है. महाभारत का जुआ इस बात का प्रमाण है कि जुआ किस हद तक विनाशकारी हो सकता है. दीवाली के एक सप्ताह पहले से जुआ खेलना शुरू हो जाता है और एक सप्ताह बाद तक जुआ चलता रहता है. अब तो समूचा परिवार इस खेल को खेलता है. नएनए कपल्स भी दूसरों की देखादेखी इस में फं सते जाते हैं. त्योहार हमें अवसर देते हैं कि हम अपने जीवन को किस तरह से खुशियों से भरें. हमें खुशियों से सराबोर होना चाहिए. स्थानीयस्तर पर ऐसे तमाम आयोजन त्योहारों में होते हैं जहां आस्था के नाम पर भीड़ का जमावड़ा हो जाता है. कई बार ऐसी जगहों पर भगदड़ मचने से सैकड़ों की मौत हो जाती है.
गणेश पूजा, दुर्गा पूजा ऐसे तमाम मौके होते हैं जिन में नाव पर चढ़ कर मूर्तियों को नदी के बीच ले जाया जाता है. इस में कई शहरों में नदी में नाव के डूबने की घटनाएं घट जाती हैं. त्योहारों में आस्था के ऐसे रंग खूब देखने को मिलते हैं. एक धर्म त्योहार मना रहा है उसी बीच दूसरे धर्म के लोग आ गए तो टकराव शुरू हो जाता है जिस से मारपीट, भगदड़ मच जाती है. ये घटनाएं पूरे विश्व में होती हैं. शैतान को पत्थर मारने के दौरान मक्का में कई बार भगदड़ मचती है जिस में तमाम निर्दोष लोग जान गंवा बैठते हैं. धीरेधीरे पूरी दुनिया में यह चलन शुरू हो रहा है जिस में त्योहारों में लोग आस्था की घुट्टी दे कर खूब मजे करते हैं. जो लोग धार्मिक आस्था और रूढि़वादी ताकतों से ज्यादा घिरे हैं वे ही त्योहार में आस्था का रंग तलाश करते हैं. धर्म की दुकान चलाने वालों के लिए ऐसे त्योहार बहुत मुफीद होते हैं. वे त्योहार को धर्म के आडंबर से जोड़ कर रखते हैं. इस से वे अपना लाभ हासिल करते हैं. ऐसे में जरूरी है कि त्योहार में आस्था को घुट्टी दे कर अपने जीवन में खुशियों के रंग भरे जाएं.
पूजा नहीं उत्सव मनाएं
दीवाली में त्योहार के पहले से बाद तक एक के बाद एक पूजा का दौर चलता है. पूजा और उत्सव में फर्क होता है. पूजा निजी मामला होता है जबकि उत्सव में सामूहिकता का मिश्रण होता है. पूजा खुद के लिए होती है. इस में अपने खुद के कल्याण का भाव निहित होता है. उत्सव में मिलजुल कर खुशी मनाने की बात होती है. उत्सव में जब पूजा को जोड़ा जाता है तो यह कई दूसरे धर्मों को अलगथलग कर देता है. उत्सव में जरूरी है कि सादगी के साथ दोस्तों के साथ मनाया जाए. पूजा का नाम आते ही उस के साथ तमाम तरह के रीतिरिवाज जुड़ जाते हैं. कमाई करने वालों ने पूजा को विशुद्ध रूप से कारोबारी शक्ल दे दी है. दीवाली पूजा के लिए सोनेचांदी का सिक्का खरीदना जरूरी होता है, जिस से इस दिन बाजार से ये सिक्के पूरी तरह से गायब हो जाते हैं. कई बार दीवाली के मौसम में मिलावटी सिक्के बाजार में आ जाते हैं. लोग हड़बड़ी में उस को खरीद लेते हैं. महंगी मिठाई, फल और फूल के साथसाथ हर साल नई मूर्तियां खरीदनी होती हैं. बाद में इन मूर्तियों को नदी में प्रवाहित किया जाता है. नदी में जा कर ये मूर्तियां पूरी तरह से पानी को दूषित कर देती हैं. अदालत के फैसले के बाद भी मूर्तियों का नदियों में विसर्जन जारी है. दीवाली पूजा के नाम पर लोग अपनी हैसियत के लिहाज से लंबाचौड़ा खर्च करते हैं. इस से बचने की जरूरत होती है. धर्म के कारोबारियों ने दीवाली जैसे त्योहारों में भी धर्म और पाखंड को घुसाने का काम किया है. जबकि इन की कोई जरूरत नहीं थी. दीवाली में लक्ष्मी यानी धन के आगमन के लिए पूजापाठ, हवनयज्ञ और मंत्रसिद्धि जैसे पाखंड किए जाते हैं. पूजा के लिए शुभ मुहूर्त की गणना का काम पंडेपुजारी करते हैं. पाखंड के नाम पर होने वाले ऐसे खर्चों से बचने की जरूरत होती है.
मिटाएं धार्मिक दूरियां
दीवाली जैसे त्योहारों को हंसीखुशी से मनाने की जरूरत होती है. परिवार और दोस्तों के साथ मिल कर स्वादिष्ठ पकवानों, मिठाइयों, पटाखों, फुलझड़ी और रोशनी का आनंद लेने की जरूरत होती है. धर्म की दुकानदारी करने वाले कुछ स्वार्थी लोगों ने होली की तरह दीवाली में भी धर्म और पाखंड को बुरी तरह से घुसा दिया है जिस से दूसरे धर्म के लोग इस में शामिल होने से बचने लगे हैं. कुछ समय से समाज का सामाजिक और धार्मिक ढांचा काफी प्रभावित हुआ है. समाज में एकसाथ रहने के बाद भी हमारे बीच भेदभाव और दूरी बढ़ गई है. आज कोई उत्सव आता है तो पूरा प्रशासन उसे ठीकठाक ने निबटाने में लग जाता है. इस की सब से बड़ी वजह यह है कि हम ने उत्सवों को पाखंड में बांट कर उन को मजहबी बना दिया है. हमें लगता है कि दूसरा हमारे धर्म और उत्सव को खराब कर सकता है. इस वजह से समाज में लगातार दूरी बढ़ती जा रही है.
धर्म का प्रचारप्रसार करने वाले सभी वर्ग के लोग दावा करते हैं कि धर्म शांति का पाठ पढ़ाता है. सब को एकसाथ मिल कर रहने की सलाह देता है. सही बात यह है कि धर्म अशांति फैलाने की सब से बड़ी जड़ है. हमारे समाज में होने वाले ज्यादातर झगडे़ धर्म की वजह से ही होते हैं. धर्म की वजह से ही बारबार समाज में टकराव की नौबत आती है. त्योहारों को संकीर्ण धार्मिक मान्यताओं के दायरे से बाहर करने की जरूरत है. दीवाली मनाने के पीछे की जो भी धार्मिक कथाएं सुनाई जाती हैं सभी में ऐसे पाखंड को बढ़ाने वाली बातें होती हैं. त्योहार को ले कर कोई न कोई मान्यता गढ़ दी जाती है. त्योहार को जब हम धर्म से जोड़ देते हैं तो समाज के सभी वर्गों का एकसाथ आना मुश्किल हो जाता है. हर धर्म ने अपने अलगअलग त्योहार बना लिए हैं. ऐसे में एकजुट हो कर त्योहार मनाए ही नहीं जा सकते. ऐसे में समाज हमेशा अलगअलग खांचों में बंटा रहेगा. इस का लाभ हर धर्म के कट्टरपंथियों को होता है और इस का खमियाजा पूरे समाज को उठाना पड़ता है. जरूरत इस बात की है कि त्योहार किसी का भी हो उस में पाखंड के रंग भरने के बजाय मिलजुल कर मनाने का काम किया जाए. इस से समाज को एकजुट किया जा सकेगा. धार्मिक दूरी नहीं होगी तो त्योहारों में निकलने वाले जुलूस और झांकियों के वक्त एकदूसरे का विरोध कम होगा. समाज में शांति और अमनचैन बना रहेगा.
जरूरत इस बात की है कि हम अपने अंदर के अंधकार को खत्म करें. घरपरिवार, समाज में प्रेम और खुशियों की फुलझड़ी चलाएं. तभी सही माने में त्योहार का मजा लिया जा सकता है. समाज में धर्म का अंधकार दूर करने के लिए जरूरी है कि हम जीवन में खुशियों के रंग भरें, पाखंड के नहीं. तभी हमारा त्योहार मनाना सार्थक साबित होगा. इसी से हमारे जीवन में फैले दुख और अंधकार को भी दूर करने में मदद मिल सकेगी. -साथ में ललिता गोयल