भारत की जलवाय व वातावरण अलगअलग होने से यहां पूरे साल हर किस्म की सब्जियों का उत्पादन होता रहता है. घरेलू व अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में स्वस्थ सब्जियों की बढ़ती मांग से भारत में हमेशा भरपूर सब्जी उत्पादन की जरूरत बनी रहती है. यही वजह है कि पिछले 10-12 सालों में सब्जियों के रकबे व उत्पादन में काफी तरक्की हुई है. इस समय देश में सब्जियों का रकबा करीब 9.42 मिलियन हेक्टेयर व उत्पादन करीब 162.38 मिलियन टन है. भारत में सब्जियों की औसत उत्पादकता 17.78 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर है, जिस में इजाफे की तमाम उम्मीदें हैं. अगर किसान समय पर उन्नतशील प्रजाति, हाईब्रिड बीज व प्रजातियों की अगेती व पछेती बोआई का ध्यान रख कर समयानुसार बोआई, रोपाई व सिंचाई पर ध्यान दें, तो सब्जी की उत्पादकता को 2 गुना तक बढ़ाया जा सकता है. देश में सब्जियों की व्यावसायिक खेती कर के उत्पादन को बढ़ावा देने की कड़ी में स्वस्थ पौध तैयार करना बहुत खास विषय?है, जिस पर आमतौर पर किसान कम ध्यान देते?हैं. इसी वजह से किसानों को कम आमदनी का सामना करना पड़ता है. पौलीटनल तकनीक से सब्जीपौध उगाने का खास महत्त्व?है. इस तकनीक से पौध तैयार करने में सब्जी के बीजों का जमाव सौ फीसदी होता है और पौधों की बढ़वार सही तरीके से होती है. इस के अलावा कीटों व बीमारियों का असर भी कम होता है.

इस तकनीक की खासीयत है कि विपरीत मौसम जैसे कि ज्यादा बारिश, गरमी व ठंड में भी पौध तैयार करने में सफलता मिल जाती है. पौलीटनल तकनीक से सब्जीपौध तैयार करने पर पौधों में कठोरीकरण के लिए सहायता मिलती है और ऐसे पौधों की रोपाई करने पर उन की मृत्यु दर न के बराबर होती है. सर्वे के मुताबिक इस तकनीक से पौधशाला में सब्जीपौध का औसतन नुकसान 25-30 फीसदी है. साधारण तरीके में यह नुकसान अकसर 60-70 फीसदी तक हो जाता?है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तमाम सब्जी उत्पादकों के मुताबिक अभी भी 75-80 फीसदी किसान सब्जियों की पौध खुले मौसम व माहौल में उगाते हैं, सब्जी की पौध खुले मौसम व माहौल में उगाने से बीजों का जमाव कम होता?है, जमाव के बाद पौधों की बढ़वार में कमी होती?है और कीटों व बीमारियों का हमला ज्यादा होता है.

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