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ये पति

मेरे पति अच्छे स्वभाव के हैं. शादी के बाद उन का तबादला अंडमाननिकोबार हो गया. इस दौरान मैं प्रैगनेंट हो गई और मुझे उल्टियां बहुत आती थीं. मेरे पति ही घर का सारा काम और साफसफाई करते थे. एक दिन उन के एक दोस्त अचानक आए और बोले, ‘‘यार, इतनी सेवा क्यों करते हो.’’

मेरे पति ने उत्तर दिया, ‘‘शालू जिस बच्चे को जन्म देने वाली है वह हम दोनों का है. जब बच्चे के लिए वह शरीर से इतना कष्ट उठा सकती है तो क्या मैं थोड़ी उस की सेवा भी नहीं कर सकता.’’ उन के इस निश्छल व निस्वार्थ प्रेम को देख कर मेरा हृदय गद्गद हो उठा.

शालिनी बाजपेयी, चंडीगढ़ (यू.टी.)

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मेरे पति बेहद हंसमुख और खुशमिजाज हैं. मुंबई में ही पलेबढ़े होने के कारण हिंदी भाषा से पूरी तरह अवगत नहीं हैं.  कई बार जब वे हिंदी बोलते हैं, गलत शब्दों के प्रयोग के कारण घर में हंसी के ठहाके गूंज उठते हैं जिस में वे स्वयं भी शामिल हो जाते हैं. एक बार मेरे छोटे भाई ने बातचीत के दौरान उन से कहा, ‘‘जीजाजी, आजकल आप काफी अच्छी हिंदी बोल लेते हैं, लगता है हमारी दीदी का प्रभाव है.’’

उन्होंने तपाक से उत्तर दिया, ‘‘अरे, हिंदी क्या, अब तो हम उर्दू भी बोल सकते हैं.’’

भाई ने अचंभे से पूछा, ‘‘उर्दू?’’

तो पतिदेव ने जवाब दिया, ‘‘तो फिर, आप क्या समझते हैं, हम ने उर्दू के कई इंतकाल दिए हैं.’’

यह सुनते ही सब के पेट में हंसतेहंसते बल पड़ गए. दरअसल, वे कहना चाहते थे कि उन्होंने उर्दू के कई इम्तिहान दिए हैं.

स्वाती वर्तक, मुंबई (महा.)

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मेरे पति अपनेआप को बहुत बड़ा कुक मानते थे. वे अकसर कहते थे, ‘‘उन को कम समय में स्वादिष्ठ खाना पकाने में महारत हासिल है.’’ उन की बड़बोलेपन की इस आदत से मैं परेशान रहती थी. एक शाम को घर में कुछ मेहमान आ गए. बस, फिर क्या था, पति महोदय ने किचन संभाल लिया और लगे अपने हुनर की फास्ट सर्विस दिखाने. जैसे ही मेहमानों को चाय सर्व की गई, उन का मुंह कसैला हो गया. दरअसल, पति महोदय को नमक को दाल वाले कुकर में डालना था और चीनी को चाय में. हड़बड़ी में उन से चीनी कुकर में डल गई और नमक चाय में. इस घटना के बाद उन की अपनी तारीफ करने की यह आदत छूट गई.

सुनंदा गुप्ता, बिलासपुर (हि.प्र.)

परफैक्ट हैल्थ मेला : स्वच्छ रहें स्वस्थ रहें

‘‘अस्वच्छ आदतें, स्वच्छता का अभाव, आसपास फैली गंदगी, कचरे का अनुचित निस्तारण और खुले में शौच जैसी समस्याएं देश में बीमारियों का ग्राफ तेजी से बढ़ाती हैं.’’ ऐसा मानना है इंडियन मैडिकल एसोसिएशन के उपाध्यक्ष व जानेमाने कार्डियोलौजिस्ट डा. के के अग्रवाल और गुड़गांव के मेदांता द मेडिसिटी के सीएमडी डा. नरेश त्रेहन का.

दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित परफैक्ट हैल्थ मेले में तमाम बड़ेबड़े डाक्टर लोगों को बता रहे थे कि अगर आप साफसफाई पर ध्यान देंगे, अपने आसपास के वातावरण को साफ रखेंगे तो पूरे राष्ट्र को स्वस्थ और रोगमुक्त बना सकते हैं. लगभग तमाम विशेषज्ञों ने माना कि अगर देश में ‘स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत’ के महत्त्व को समझ कर इसे अपनाया जाए तो बड़ी संख्या में लोग अस्पताल पहुंचने से बच सकते हैं. सिर्फ पानी और वातावरण संबंधी स्वच्छता का ध्यान रख लिया जाए तो 50 फीसदी बीमारियों से बचाव हो सकता है. 

हालांकि पूरे देश में सफाई की जिम्मेदारी ज्यादातर सरकारी एजेंसियों के पास है लेकिन अगर यह समझ लिया जाए कि सबकुछ सरकारी एजेंसियां ही करेंगी तो यह गलत होगा क्योंकि यह हर नागरिक का कर्तव्य होना चाहिए कि अपने आसपास के वातावरण की साफसफाई रखे. स्वच्छता को अपने जीवन में सामाजिक सरोकार से जोड़ना होगा. इस से बड़ी देश सेवा कुछ नहीं. स्वच्छ भारत अभियान को गंभीरता से अपनाकर राज्यों, शहरों, कसबों, गली, चौराहों आदि को साफ कर एक आदर्श प्रस्तुत करना होगा और एक रोगमुक्त भारत का निर्माण करना होगा. इस मेले में लोगों ने सेहत से जुड़े तमाम पहलुओं को जाना. आप भी जानिए इस हैल्थ मेले में स्वास्थ्य के लिहाज से क्या रहा खास.

तनाव बीमारी की जड़

कई तरह की मानसिक परेशानियों से उच्च रक्तचाप, मधुमेह, स्ट्रोक और दिल संबंधी बीमारियां होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. तनाव के कारण कई बार सिर में दर्द होने लगता है. सिरदर्द अकसर दोपहर बाद होता है जो मध्यम किस्म का होता है जिस से व्यक्ति को भारीपन का एहसास या दबाव का अनुभव होता है. जब गरदन, कंधे और सिर की मांसपेशियों में तनाव आ जाता है तो तनाव महसूस होने लगता है. अगर इस से निजात पाना चाहते हैं तो भोजन करना न भूलें, भरपूर नींद जरूर लें, तनाव व थकावट से बचें. रिलैक्सेशन थेरैपी जरूर सीख लें. इस के अलावा रोज सुबह सैर करें, व्यायाम करें और धूम्रपान बिलकुल न करें.

धूम्रपान से रहें सावधान

हृदय रोगी को धूम्रपान से दूर रहना चाहिए, खासकर भांग का सेवन तो बिलकुल नहीं करना चाहिए. इस से दिल की धड़कन और ब्लडप्रैशर तेजी से बढ़ सकता है. गांजा भी खतरनाक होता है. कई बार लोग हुक्के या सिगरेट में जो निकोटिन होता है उसे निकाल कर गांजा मिक्स कर सिगरेट में भर कर कश लगाते हैं जोकि खतरनाक है. अगर जिंदगी प्यारी है तो ऐसा कतई न करें.

हैल्थ मेले में आए मुकेश कुमार कहते हैं कि यहां आ कर उन्होंने बहुत सारी जानकारियां प्राप्त कीं. उन के कई ब्लड टैस्ट और ईसीजी यहां निशुल्क हो गए. डाक्टर से भी चैकअप करवा लिया. अगर हम यह सब टैस्ट बाहर से करवाते और डाक्टर को दिखाते तो शायद हजारों रुपए खर्च करने पड़ते. अब मैं हर वर्ष परिवार समेत यहां स्वास्थ्य जानकारी लेने आया करूंगा और जैसा कि डाक्टरों ने यहां बताया कि हर वर्ष जरूरी चैकअप हर किसी को कराना चाहिए ताकि आप तंदुरुस्त रहें, यह बात मैं दूसरों को भी बताऊंगा.

टैलीमैडिसिन से लाभ

हैल्थ मेले में लोगों ने अपनीअपनी समस्या लाइव टैलीमैडिसिन के जरिए सुलझाई और इस के लिए मेदांता द मेडिसिटी के डाक्टरों ने लोगों की समस्या सुनी और परामर्श भी दिया. मेदांता द मेडिसिटी के सीएमडी डा. नरेश त्रेहन ने बताया कि इस सेवा में भागीदार बनना खुशी की बात है. उन्होंने बताया कि वे मरीजों को निशुल्क सलाह, टैलीमैडिसिन की सुविधा और जन्मजात दिल की बीमारियों से पीडि़त गरीब मरीजों को कम कीमत पर सर्जरी की सुविधा देंगे. इस के अलावा लोगों ने सेहत से जुड़ी तमाम बीमारियों और उस का कहां किस अस्पताल में बेहतर इलाज संभव है व अपनेआप को कैसे रखें सेहतमंद आदि की जानकारी प्राप्त की.

  

सीपीआर की ट्रेनिंग

अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु हार्ट अटैक से हो जाती है और यदि मरने के 10 मिनट के अंदर कम से कम अगले 10 मिनट तक 10×10=100 प्रति मिनट की गति से उस की छाती में प्रैशर दिया जाए या यों कहा जाए कि सीपीआर फार्मूले के तहत अपनी छाती पीटने के बजाय मरे हुए व्यक्ति की छाती पीटने से शायद उस की जिंदगी बचाई जा सकती है.

डा. के के अग्रवाल ने बताया कि अमेरिका में 25 साल से कम उम्र के 2 हजार से अधिक लोग हर साल अचानक हृदय संबंधी बीमारी से मौत के शिकार हो जाते हैं. भारत में यह आंकड़ा 8-10 के बीच होने का अनुमान है. 3 वर्ष से 13 वर्ष के बीच अचानक मौत की वजह जन्मजात हृदयरोग होता है. सीपीआर की ट्रेनिंग हर किसी को लेनी चाहिए. शिक्षकों और स्कूली बच्चों को कार्डिएक फर्स्ट एड के बारे में जानना जरूरी है जिस से अचानक बच्चे की हृदय संबंधी कारणों से मौत से उसे बचाया जा सके. बच्चों की सीपीआर ट्रेनिंग वयस्कों की सीपीआर ट्रेनिंग से थोड़ी अलग होती है. क्योंकि बड़ों की तुलना में बच्चों के सीने को हलके से दबाया जाता है. इस के लिए यह ध्यान रहे कि दबाने पर सीना डेढ़ से 2 इंच ऊपरनीचे हो.

सांस की समस्या अस्थमा नहीं

आमतौर पर सांस संबंधी समस्या की वजह से अस्थमा नहीं होता. मोटापा और एनीमिया दोनों की वजह से एग्जर्शनल ब्रैथलेसनैस हो सकती है. इस के अलावा अनियंत्रित रक्तचाप, डायस्टौलिक हार्ट का डिसफंक्शन और हार्ट बीट के बढ़ जाने से भी सांस संबंधी समस्या हो सकती है. अगर 40 की उम्र के बाद जिंदगी में पहली बार किसी भी तरह की सांस संबंधी समस्या हुई तो जब तक कुछ और साबित न हो जाए, उसे हृदय संबंधी समस्या ही मानना चाहिए. दरअसल, हृदय के आराम करने के फंक्शन का असंतुलित हो जाना आज एक नई महामारी के रूप में फैल रहा है. इस में हृदय की धमनियों में किसी भी तरह का ब्लौकेज नहीं होता मगर हृदय को पर्याप्त आराम नहीं मिल पाता.

हृदय के डायस्टौलिक फंक्शन के बारे में टिश्यू डौप्लर इकोकार्डियोग्राफी परीक्षण से पता लगाया जा सकता है. साधारण ईको से इस की डायग्नौसिस नहीं हो पाती क्योंकि इस से आमतौर पर हृदय के सिस्टौलिक फंक्शन का पता लगता है.

देसी टीवी पर विदेशी सीरियलों की नकल

कुछ अरसा पहले चीन ने अपने मुल्क में टैलीविजन पर प्रसारित होने वाले कई विदेशी शोज को प्राइम टाइम से बाहर कर दिया था. इस के पीछे चीन का मकसद देसी मनोरंजन और वहां के उद्योग को बढ़ावा देना था. भले ही इस फैसले के पीछे चीन का तानाशाही रवैया दिखता हो लेकिन उस की अपने देश की संस्कृति और मनोरंजन उद्योग की तरक्की के प्रति यह चिंता नाजायज नहीं कही जा सकती. वहीं, भारत में ठीक इस का उलटा हो रहा है. एक तो पहले से ही भारत में विदेशी मीडिया समूहों का वर्चस्व है, ऊपर से टीवी पर दिखाए जाने वाले ज्यादातर देसी सीरियल्स अमेरिकी शोज की भोंडी नकल या कहें देसी संस्करण बन कर रह गए हैं.

हमारे यहां प्रसारित होने वाले तकरीबन सभी रिऐलिटी शोज किसी न किसी विदेशी चैनल के शो की नकल होते हैं, खासतौर से अमेरिकी व ब्रिटिश शोज के, चाहे वह कौन बनेगा करोड़पति (हू वांट्स टू बी मिलेनियर) हो, कौमेडी नाइट विद कपिल (दी कुमार्स) हो, बिग बौस (बिग ब्रदर) हो, या फिर इंडियन आइडल (अमेरिकन आइडल), इंडियाज गौट टैलेंट (अमेरिकाज गौट टैलेंट), मास्टर शेफ (मास्टर शेफ आस्ट्रेलिया), इस जंगल से मुझे बचाओ (आई एम अ सैलिब्रिटी…गेट मी आउट औफ हिअर) या खतरों के खिलाड़ी (फिअर फैक्टर) हों. इन में से ज्यादातर शोज कौपीराइट ले कर बनाए गए हैं और कुछ वहां के शोज की मूल अवधारणा चुरा कर निर्मित किए गए हैं.

असलनकल साथसाथ

मजेदार बात यह है कि कई बार एक ही शो के देसी और विदेशी संस्करण एकसाथ टीवी के प्राइम टाइम पर देखे जा सकते हैं. उदाहरण के तौर पर एएक्सएन चैनल पर जब फियर फैक्टर आता था तो लगभग उसी दौरान कलर्स पर खतरों के खिलाड़ी का प्रदर्शन होता. ऐसा इसलिए चूंकि कई विदेशी चैनल भारत में टैलीकास्ट होने लगे हैं. बहरहाल, अमेरिकी कार्यक्रम को भारत में दिखाना कोई जुर्म नहीं है. समस्या है तो उन के कंटैंट को ले कर. दरअसल, भारत में प्रसारित होने वाले शोज के असल संस्करण अमेरिका और इंगलैंड के कल्चर के हिसाब से बने हैं. लिहाजा, उन में वहां के समाज की उन्मुक्तता, न्युडिटी, गालीगलौज और विचारधारा आना स्वाभाविक है. लेकिन जब इन के भारतीय संस्करण बनाए जाते हैं तो मामूली फेरबदल के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जाती है.

रिश्तों में छिछोरपन

इन दिनों भारी टीआरपी बटोर रहे कौमेडी शो कौमेडी नाइट विद कपिल को बतौर उदाहरण ही देखते हैं. ब्रिटिश कौमिक शो ‘दी कुमार्स’ का प्लौट उड़ा कर बनाए गए इस शो में स्टैंड अप कौमेडियन कपिल शर्मा हास्य के नाम पर डबल मीनिंग चुटकुले, अश्लील इशारे और फुजूल किरदारों को पेश करते हैं. जैसा कि मूल शो में एक बुजुर्ग महिला किरदार को काफी ठरकी और बड़बोला किस्म का दिखाया गया है. उसी तर्ज पर कपिल ने भी अपने शो में एक नशेड़ी दादी का किरदार चस्पां कर दिया. दादी के किरदार में अली असगर की बेहद सस्ती और अश्लील हरकतें देख कर अच्छाखासा दर्शक शर्मिंदा हो जाए.

शायद तभी ‘तारक मेहता का उलटा चश्मा’ में जेठा भाई की प्रमुख भूमिका कर रहे दिलीप जोशी सवाल उठाते हैं कि किस घर में दादी इतनी दारू पी कर ऐसी छिछोरी हरकतें करती है जैसा कि इस शो में दिखाया जा रहा है. ऐसे ही शोज आने वाली पीढ़ी को पारिवारिक रिश्तों के प्रति गंभीर होने नहीं देते. चोरी के इन टीवी संस्करणों के साइड इफैक्ट अपने अश्लील और विवादास्पद कंटैंट के चलते कई बार प्राइम टाइम से बेदखल हुए शो ‘बिग बौस’ में भी बेशर्मी से उघड़ कर सामने आते हैं.

अमेरिकी रिऐलिटी शो ‘बिग ब्रदर’ पर आधारित ‘बिग बौस’ में जानबूझ कर उस तरह की फिल्मी और सामाजिक हस्तियां शामिल की जाती हैं जो किसी न किसी तरह विवादास्पद रही हों. कोई फूहड़ और बड़बोली आइटम डांसर तो कोई गे फैशन डिजाइनर तो कोई रईस बिगड़ा नवाबजादा इस शो में जरूर शामिल होता है. पूरे सीजन इस शो में टास्क के नाम पर एकदूसरे को मांबहन की बीपनुमा गालियां देना, स्विमिंग पूल पर जिस्म उघाड़ कर मसाजबाजी और चुगलखोरियां ही दिखाई जाती हैं. इतना ही नहीं, हर बार 2 लोगों के बीच फर्जी प्रेमप्रसंग क्रिएट किया जाता है और फिर चोरीछिपे कैमरे में उन की कामक्रिया की खबरें भी उड़ाई व कथित तौर पर दिखाई भी जाती हैं. टीआरपी की भूख में मनोरंजन के नाम पर वे तमाम सीमाएं लांघी जाती हैं जो देशी दर्शकों के जेहन पर निगेटिव इंपैक्ट डालती हैं.

सट्टेबाजी का प्रचार

हमारे देश में जुआ अपराध को बढ़ावा देने वाला कितना जानलेवा खेल है, सब जानते हैं. पुलिस भी जहांतहां छापे मार कर जुआ खेलने वालों को पकड़ती रहती है. लेकिन जब यही जुआ किसी रिऐलिटी शो की आड़ में खेला जाता है तो लोग भूल जाते हैं कि हमारे समाज में किस तरह की मानसिकता पैदा होगी. अमेरिकन शो ‘डील या नो डील’, ‘हू वांट्स टू बी मिलेनियर’ की तर्ज पर बने ‘डील या नो डील’, ‘कौन बनेगा करोड़पति’, ‘जीतो छप्पर फाड़ के’, ‘सवाल दस करोड़ का’ और ‘क्या आप पांचवीं पास से तेज हैं’ जैसे झटपट पैसा जिताने वाले शो जुआ नहीं तो और क्या हैं.

गैर सामाजिक

‘स्टार वर्ल्ड’ पर एक सीरियल आता था, नाम था ‘वाइफ स्वैप’. लगता था इस शो की भारत में नकल नहीं की जा सकती, न इस पर आधारित कोई भारतीय संस्करण बन सकता है. यकीन नहीं होता था कि भारत में कोई महिला इस तरह के शो के लिए तैयार हो जाएगी, किसी अपरिचित के घर में 8 दिन बिताने को. सिर्फ बिताने को ही नहीं, उस के घर की सारी जिम्मेदारी लेने को. लेकिन एक चैनल पर ‘मां एक्सचेंज’ प्रोग्राम बना. यहां की महिलाएं भी तैयार हो गईं, घर की अदलाबदली को. इस में महशूर मौडलअभिनेत्री पूजा बेदी एक मध्यवर्गीय कौमेडियन के घर 8 दिनों के लिए शिफ्ट हुई थीं, शो का प्लौट वही था. महिला को 4 दिन उस घर के कायदेकानून के अनुसार रहना पड़ता है और बाकी के 4 दिन वह उस घर के सदस्यों के लिए अपने नियम बनाती है, जिस का पालन उन्हें हर हाल में करना होता है.

भारतीय समाज में नामुमकिन बात को इस शो में सिर्फ इसलिए दिखाया जा सका क्योंकि यह विदेशी शो की नकल मात्र था, वरना यहां कोई ऐसे कार्यक्रम की कल्पना भी नहीं कर सकता.

मासूमों से छिनता बचपन

इसी तरह छोटे बच्चों, किशोरों और युवाओं को सिंगिंग, ऐक्ंिटग टैलेंट पर बेस्ड रिऐलिटी शो के नाम पर न सिर्फ उन से 18-18 घंटे काम करवा कर बाल मजदूरी करवाई जाती है, बल्कि उन से उन का बचपन, शिक्षा, दोस्ती और कीमती समय भी छीना जाता है. यहां भी अमेरिकी शो ‘अमेरिकन आइडल’, ‘डांस विद सैलिब्रिटी’, ‘अमेरिकाज गौट टैलेंट’ और ‘एक्स फैक्टर’ की तर्ज पर ‘इंडियन आइडल’, ‘झलक दिखला जा’, ‘इंडियाज गौट टैलेंट’ और ‘एंटरटेनमैंट के लिए कुछ भी करेगा’ जैसे देसी संस्करण काम कर रहे हैं. प्रतिभाओं को नुमाइशी सामान बना कर उन से डांस और गायन प्रतियोगिताएं करवाई जाती हैं. मोबाइल से मैसेज का बड़ा बाजार अंधाधुंध कमाई करता है. जीतने वाले को प्रायोजक की तरफ से बड़े इनाम की घोषणा की जाती है और हर प्रतियोगी से उस के घर की दुखभरी कहानी सुनवा कर एसएमएस की भीख मंगवाई जाती है.

गुमनामी का अंधेरा

एक सर्वे के मुताबिक ऐसे ही रिऐलिटी शो की बदौलत सिर्फ मुंबई में 1 लाख से ज्यादा गायक स्ट्रगल कर रहे हैं और किसी को कोई मुकाम हासिल नहीं हो रहा. चैनल वाले प्रायोजकों के साथ मिल कर जनता का पैसा अंटी कर झोली भरभर कमाई करते हैं और इन प्रतिभाओं के हाथ सिवा नाकामयाबी के कुछ नहीं आता. वरना अब तक न जाने कितने इंडियन आइडल बन चुके हैं, कहां हैं वे सब? अमेरिकी तर्ज पर रिऐलिटी शो से शायद ही कोई सुपर सिंगर बना हो. ऊपर से इस तरह के विदेशी शो की देखादेखी किशोर और युवा अपनी पढ़ाईलिखाई छोड़ कर इन रिऐलिटी शोज के पीछे भागने से भी गुरेज नहीं करते.

जानलेवा तमाशा

ऐडवैंचर का शौक दुनिया में हर जगह है लेकिन खतरों के साथ खेलने का ऐडवैंचर अमेरिका जैसे मुल्कों में ज्यादा ही लोकप्रिय है. वहां सुरक्षा को ले कर जागरूकता भी ज्यादा है, इसीलिए वहां ‘फियर फैक्टर’ काफी हिट शो माना जाता है. हालांकि इस में ऐडवैंचर के नाम पर छिपकली और केकड़ों को पकड़ना, कई बार उन्हें खाना, कीचड़ में लोटना और हवा में कूदफांद करना ही शामिल होता है. लेकिन इस का भी देसी संस्करण ‘खतरों के खिलाड़ी’ के नाम से बनाया गया. पहले इस शोको अक्षय कुमार होस्ट करते थे. ताजा सीजन निर्देशक रोहित शेट्टी ने होस्ट किया था. असफल और गुमनाम फिल्मी कलाकारों की लंबी फौज यहां भी ऊटपटांग स्टंटबाजी करती है.

रचनात्मकता का अभाव

ये तो महज उदाहरण हैं. इंडियन टैलीविजन ऐसे ही सैकड़ों शोज से पटा है, जो न सिर्फ हमारे समाज को बहका रहे हैं बल्कि युवाओं को बरगला भी रहे हैं. हमारे यहां के ज्यादातर टीवी मालिक विदेशी हैं. लिहाजा, भारतीय मूल्यों पर आधारित शो बनाने की इन से उम्मीद नहीं की जा सकती. लेकिन जो बना सकते हैं वे भी नहीं बना रहे. अगर हम गुणवत्ता वाले कार्यक्रमों के लिए विदेशी शोज के मुहताज हैं तो हम जरूर वैचारिक दिवालिएपन से जूझ रहे हैं. हम भूल जाते हैं कि झटपट कमाई के उद्देश्य से बनाए गए ये फूहड़ और चोरी के शोज भविष्य की एक ऐसी पीढ़ी तैयार कर देंगे जो ओरिजिनल आइडिया न तो सोच पाएगी और न ही कुछ रचनात्मक सृजित कर पाएगी. फिर आखिर में टीवी पर सिर्फ विदेशी शोज ही टैलीकास्ट होंगे.

क्या हम मनोरंजन के बड़े और सार्थक माध्यम टैलीविजन को पाश्चात्य देशों की मुट्ठी में देना चाहते हैं? कम से कम दूसरे मुल्क तो यही चाहते हैं कि यहां घुसपैठ कर के वे मनमुताबिक मनोरंजन बेचें. जवाब खोजना जरूरी है वरना इस तरह हम वैचारिक तौर पर न अमेरिकी होंगे और न भारतीय. क्या हम सासबहू और साजिश से भरे शोज, विदेशी शोज के भारतीयकरण और फूहड़ हास्य ही बनाने लायक रह गए हैं?

मजबूरी की मार से पिसता सैक्स बाजार

सैक्स, सैक्स, सैक्स और सैक्स. महिलाएं देह का धंधा कर रही हैं तो पुरुष सैक्स की अपनी भूख मिटा रहे या अपना शौक पूरा कर रहे हैं. यह सब उत्तर प्रदेश के जिला बस्ती की एक बस्ती में लगभग खुलेआम हो रहा है. बस्ती रेलवे स्टेशन से बाहर निकलते ही सड़क के एक किनारे कुछ घर बने हैं. वहीं चाय और पान की कुछ दुकानों को भी देखा जा सकता है. पतलीपतली गलियों के बीच से होते अंदर जाने पर सैक्स का बाजार दिखता है. यहां छोटेछोटे कमरों में सैक्स का कारोबार करने वाली महिलाएं रहती हैं. इन कमरों का किराया 50 रुपए रोज के हिसाब से देना होता है. सुविधा के नाम पर इन कमरों में कोई इंतजाम नहीं है. कमरे में टूटी चारपाई के पास ही खाना बनाने का सामान रखा होता है. कमरे में गैस का छोटा चूल्हा और 5 किलो वाला गैस सिलेंडर रखा होता है. यहीं इन लोगों को अपना खाना बनाना होता है. 

कमरे में बाथरूम का कोई प्रबंध नहीं है. ऐसे में पास के बाथरूम तक इन को जाना होता है. कस्टमर के साथ सैक्स क्रिया करने के लिए ये महिलाएं दूसरे कमरों में जाती हैं. इस का भी किराया इन को ही देना पड़ता है. कस्टमर से होने वाली कमाई में दलाल का अपना हिस्सा भी होता है. पूरे कारोबार के संचालन में दलालों की भूमिका सब से अहम होती है. ये ही इन को पुलिस और दूसरे लोगों से बचाते भी हैं. यह जगह पुरानी बस्ती थाने से केवल 30 मीटर की दूरी पर ही बसी है. देह बाजार का असर बस्ती शहर में लगे होर्डिंग्स पर भी देखा जा सकता है जहां कंडोम के बहुत ही कामोत्तेजक होर्डिंग्स लगे दिखाई देते हैं.

इन कमरों में औरतें केवल रहती हैं. जब कोई ग्राहक आता है तो ये सड़क के किनारे बने कमरों में चली जाती हैं. कमरे का किराया भी 50 रुपए रोज का है. दूर से छोटा सा दिखने वाला बस्ती शहर का यह महल्ला अंदरअंदर काफी बड़ा है. यहां करीब 500 सैक्सवर्कर रहती हैं. इन में से 100 के करीब औरतें स्थायीरूप से यहां रहती हैं. सैक्सवर्कर अपने पास आने वाले ग्राहक को ‘कस्टमर’ बोलती हैं. यहां रहने वाली हर सैक्सवर्कर का दिन सुबह 9 बजे से शुरू हो जाता है. सैक्स बाजार की सब से खास बात यह है कि यहां दिन में भी देह का धंधा होता है. यहां रेलवे स्टेशन करीब होने के कारण बाहरी कस्टमर काफी आते हैं. कुछ स्थायी ग्राहक भी हैं. यहां की कुछ औरतें 4-5 का ग्रुप बना कर ढाबों पर भी देहधंधे के लिए जाती हैं. इन की कीमत 150 रुपए से शुरू हो कर 5 हजार रुपए तक होती है. 

खाने, पहनने की शौकीन

सैक्स कारोबार से जुड़ी ये औरतें खाने की शौकीन होती हैं. ज्यादातर औरतें बंगाल की होती हैं. इस कारण ये मीट, मछली और अंडा खाने का शौक रखती हैं. चावल ज्यादा खाती हैं क्योंकि इसे बनाने में समय कम लगता है. कुछ औरतें जो उम्रदराज हो जाती हैं, वे शराब पीने का शौक भी पाल लेती हैं. उम्र बढ़ने पर ये औरतें या तो दूसरी औरतों की दलाली करने लगती हैं या फिर कोई दुकान खोल लेती हैं. खाने के अलावा इन का सब से बड़ा खर्च अच्छी ड्रैस पहनने में होता है. ये मौडर्न स्टाइल के कपडे़ पहनती हैं. इन की ड्रैस रंगबिरंगी होती है. ड्रैस कुछ इस तरह की होती है जिस के अंदर से इन के अंग दिखते रहें. ग्राहक यही देख कर इन के रेट तय करता है. बाहरी और अनजान लोगों से ये किसी तरह से संपर्क नहीं करतीं. अपने बारे में बात करना और फोटो खिंचवाना इन को पसंद नहीं है.

सुबह से ही सैक्सवर्कर सजधज कर सड़क के किनारे खड़ी हो जाती हैं. मेकअप ही इन की सब से खास बात होती है. कई औरतें तो मेकअप करने में इतनी माहिर हैं कि मेकअप के बाद इन की उम्र का पता ही नहीं चलता. पहले जहां औरतें लिपेपुते चेहरे ले कर खड़ी होती थीं, वहीं अब ये औरतें बहुत ही अच्छी किस्म का मेकअप करने लगी हैं. मेकअप करने में ये अच्छी से अच्छी ब्यूटीशियन को मात दे सकती हैं. मेकअप में ये प्राइमर, बेस लूजपाउडर, आईलाइनर, मस्कारा, काजल, ब्लशर, लिपस्टिक और ग्लौस का प्रयोग करती हैं. ब्लीच और फेस मसाज का प्रयोग कर के ये अपने चेहरे को जवां रखने का काम करती हैं. ये हाथ, पांव और दूसरी जगहों के अनचाहे बालों को हटाने के लिए रेजर, हेयर रिमूवर क्रीम और वैक्स का प्रयोग करती हैं. 

यहां रहने वाली रानी कहती है, ‘‘हमें कीमत देते समय कस्टमर यही सब देखता है. मेकअप के जरिए हम अपने को खूबसूरत तो दिखाते ही हैं, उम्र कम भी दिखती है. हम अपनेआप कैसे भी रहें पर कस्टमर के लिए तो हमें अच्छे से रहना ही होता है.’’ यहां की महिलाएं कहती हैं, ‘‘पुलिस से हमें कोई परेशानी नहीं होती. हमारी परेशानी यह है कि हमें किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिलता. चाहे राशनकार्ड की बात हो या दूसरी किसी योजना की. हमारे बच्चों को भी स्कूल में वजीफा मिले तो वे भी पढ़लिख कर सम्मानजनक काम कर सकते हैं,’’

एक अन्य सैक्सवर्कर रेखा कहती है, ‘‘हमारी कमाई के हिसाब से खर्चे ज्यादा होते हैं. ऐसे में कई बार हमें अपने मेकअप और ड्रैस के खर्चों में कटौती करनी पड़ती है. महंगाई बढ़ने से ये खर्चे बढ़ गए हैं. राशनकार्ड बनता तो हमें भी सस्ते में खाने का सामान मिल जाता.’’

बहरहाल, इस हकीकत से इनकार नहीं किया जा सकता कि ये महिलाएं गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी से बचने के लिए ही जिस्मफरोशी का धंधा कर रही हैं लेकिन उन के इस धंधे को जायज या कानूनसम्मत करार नहीं दिया जा सकता. वहीं, सरकार व प्रशासन दोनों की जिम्मेदारी है कि वे समाज से ऐसी घिनौनी गंदगी को तुरंत दूर करें, इस के लिए चाहे उन्हें कैसे भी कदम उठाने पड़ें.

पुलिसिया शोषण का हथियार है देह व्यापार कानून

भारत में देह कारोबार को अनैतिक माना जाता है. देह कारोबार की रोकथाम के लिए देह व्यापार निवारण अधिनियम 1956 की धाराओं के तहत मुकदमा कायम होता है. देह व्यापार अधिनियम की 3/4/5/6/7 धाराओं के तहत मुकदमा कायम होता है. ऐक्ट की धारा 2 (च) के अनुसार, वाणिज्यिक प्रायोजनों यानी पैसों के लिए व्यक्तियों का लैंगिक शोषण या दुरुपयोग और अभिव्यक्ति करने वाले को वेश्या कहा जाता है. धारा 3 के तहत ऐसी वेश्याओं को पहली बार में कम से कम 2 साल की कैद और 10 हजार रुपए तक का जुर्माना हो सकता है. दूसरी बार पकडे़ जाने पर 3 साल से 7 साल तक की सश्रम सजा और 2 लाख रुपए तक का जुर्माना हो सकता है. जिस जगह वेश्यावृत्ति हो रही है वहां के मालिक को भी सजा का प्रावधान है. पहली बार पकडे़ जाने पर 2 साल और दूसरी बार पकडे़ जाने पर 5 साल की सजा का प्रावधान है.

धारा 5 में वेश्यावृत्ति कराने के लिए किसी व्यक्ति को प्रेरित करने वाले के लिए दंड का कानून है. अधिनियम की धारा 4 के तहत वेश्यावृत्ति की कमाई पर निर्भर रहने वाले भी सजा के हकदार होते हैं. उन को 2 साल की कैद और 1 हजार रुपए का जुर्माना हो सकता है. दूसरी बार पकडे़ जाने पर कम से कम 10 साल की सजा मिलेगी. इसी कानून की धारा 4 कहती है कि वेश्यावृत्ति से कमाए पैसों से अपनी आजीविका चलाने वाले के लिए भी सजा तय की गई है. अनैतिक देह व्यापार नियंत्रण अधिनियम की धारा-2 (ए) के अनुसार वेश्यालय का अर्थ किसी भी मकान, कमरे, वाहन और स्थान या उस के किसी भाग से है जो यौन शोषण या दुरुपयोग के उद्देश्य से किसी दूसरे व्यक्ति के लाभ के लिए प्रयोग किया गया हो.

इतने कठोर कानून के बाद भी भारत में देह व्यापार को पूरी तरह से अवैध भी नहीं माना गया है. विडंबना यह है कि इस धंधे को अवैध व्यापार के अंतर्गत माना जाता है. इस तरह की दोहरी नीति के चलते ही इस कारोबार से जुडे़ लोग समयसमय पर पुलिसिया उत्पीड़न का शिकार होते रहते हैं. भारत में देह व्यापार कानून के तहत मनमरजी से देहसंबंध बनाने की छूट है. शर्त यह है कि यह काम किसी नाबालिग के साथ नहीं किया जाए. किसी बालिग औरत के साथ भी बिना उस की मरजी के होने वाला देहधंधा अवैध और कानून को तोड़ना माना जाता है. कमाई के लिए इस का उपयोग नहीं होना चाहिए.

वेश्यावृत्ति की तरफदारी करने वाले लोग इस को कानूनी शक्ल देने की मांग करते हैं. वाराणसी में गुडि़या संस्था के संचालक अजीत सिंह कहते हैं कि देहधंधे में औरतों की होने वाली कमाई का बड़ा हिस्सा दलाल और पुलिस ले जाती है. अगर इस धंधे को कुछ पाबंदियों के साथ कानूनी शक्ल दे दी जाए तो सैक्स वर्कर शोषण से बच सकती हैं. इस के साथ ही साथ, समाज को भी अपना नजरिया बदलने की जरूरतहै.

हम इन की काउंसलिंग भी कराते हैं

‘‘देहधंधा इन औरतों की रोजीरोटी है. इसे ये मजबूरी से करें या शौक से, इस से बाहर निकलना मुश्किल है. अगर ये निकलना भी चाहें तो इन की सोच और सामाजिक हालात इन को बाहर की दुनिया के साथ खडे़ नहीं होने देना चाहते.’’ यह मानना है बस्ती की सैक्सवर्करों के लिए काम करने वाली हुदा परवीन का. बीए तक की पढ़ाई कर चुकीं हुदा परवीन ने 5 साल पहले इन महिलाओं की परेशानियों को देखा. उसी समय उस ने इन की बेहतरी के लिए काम करने का पक्का इरादा बना लिया. इस में उन के पति ने पूरा सहयोग और सुरक्षा दी.

हुदा कहती हैं, ‘‘शुरुआत में तो ये लोग हमें अपने घरों में नहीं आने देती थीं. जब कभी कोई बीमार होती तो हम उस की मदद करते. धीरेधीरे हमारे और इन के बीच बेहतर रिश्ता बन गया. अब ये हमारे साथ अपनी सेहत की जांच कराने के लिए अस्पताल आतीजाती हैं.’’ हुदा अब ग्रामीण विकास सेवा समिति संगठन के साथ काम करती हैं. अब उन्होंने अपने साथ काम करने वाली कुछ और औरतों को भी तैयार कर लिया है जो सैक्सवर्कर के साथ रहती हैं. मूलरूप से हुदा इन औरतों की एचआईवी जांच हर 6 महीने में कराती हैं. यौन रोगों से बचाव के लिए इन को कंडोम देती हैं. किसी तरह की परेशानी होने पर अस्पताल ले जाती हैं.

हुदा कहती हैं, ‘‘ये हमारे पास केवल अस्पताल जाने के समय ही आती हैं. हम इन की काउंसलिंग भी कराते हैं. जो औरतें गर्भवती होती हैं या जिन के छोटे बच्चे होते हैं, उन को हम बच्चों के टीकाकरण और गर्भ के दौरान लगने वाले टीकों की जानकारी देते हैं. इन को अस्पताल तक ले जाते हैं. हमारी प्राथमिकता यह रहती है कि इन को पूरी मात्रा में कंडोम मिल जाएं.’’

लड़कियों की चिंता शहर में रहें कहां

कविता जब नईनई दिल्ली आई तो शुरू के दिनों में अपनी एक सहेली नीना के साथ होस्टल में बतौर गेस्ट रही पर इसी के साथ उस ने अपने लिए एक घर ढूंढ़ना भी शुरू कर दिया. वह किसी को जानती तो थी नहीं और न ही उस की सहेली के पास अपनी नौकरी के चलते इतना समय था कि वह उस के साथ घर ढूंढ़े. इसलिए नीना ने इस सिलसिले में एक प्रौपर्टी डीलर से बात की और उसे अपना बजट बताते हुए किस तरह का घर उसे चाहिए, यह भी बता दिया.

नीना छोटे शहर से आई थी और उस ने दिल्ली में आएदिन लड़कियों के साथ होने वाले हादसों के बारे में काफी सुन रखा था इसलिए जब प्रौपर्टी डीलर के साथ उसी की गाड़ी में घर देखने जाने की बात आई तो उस का मन तमाम शंकाओं से भर उठा. जैसेतैसे हिम्मत कर वह प्रौपर्टी डीलर की गाड़ी में बैठ कर घर देखने गई, उसे घर, जगह पसंद आ गई लेकिन यह जान कर हैरानी हुई कि मकान मालिक 3 महीने का किराया एडवांस मांग रहा है, साथ ही डीलर को भी 1 महीने के किराए के बराबर की रकम देनी पड़ेगी. खैर, इस के अलावा उस के पास कोई चारा नहीं था.

दिल्ली या देश के प्रमुख महानगरों में आने वाली हर नई युवती या युवक को इसी तरह का अनुभव होता है. नए शहर में नए लोगों के बीच तालमेल बैठाने के साथसाथ एक अच्छा कमरा ढूंढ़ना भी बहुत जरूरी हो जाता है. लड़कों के मुकाबले लड़कियों के लिए एक ढंग का कमरा ढूंढ़ना तो और भी मुश्किल काम है.

दिल्ली में 6 साल से रह रही कविता का कहना है कि यहां का एक प्रौपर्टी डीलर मेरा जानकार है और उसे यह भी पता है कि मुझे किस तरह का मकान चाहिए और किस तरह की जगह व लोगों के बीच चाहिए, फिर भी उस ने ऐसी गंदी जगह में ले जा कर गाड़ी रोकी जहां उस की गाड़ी भी बड़ी मुश्किल से पहुंच पाई. इस के बाद भी वह मुझ से बोला कि मैडम, थोड़ा समझौता तो आप को करना ही पड़ेगा.

कविता बताती है कि दिल्ली के अधिकांश प्रौपर्टी डीलरों की मकान मालिकों के साथ सांठगांठ होती है जो किराएदारों का साथ देने के बजाय मकान मालिकों का साथ देते हैं. इन लोगों का आपस में एक गुट है.

बचें धोखाधड़ी से

सपना की कहानी कुछ अलग है. वह बताती हैं, ‘‘मैं ने एक प्रौपर्टी डीलर के सहयोग से कमरा लिया था इसलिए कोई खास परेशानी नहीं हुई. कमरा दिलाते समय प्रौपर्टी डीलर ने यह भी कहा था कि यदि आप को कोई परेशानी हो तो आप मुझ से कह सकती हैं. बाद में मकान मालिक के साथ मेरी कुछ कहासुनी हो गई और जब मैं ने डीलर से संपर्क करना चाहा तो न तो उस का फोन मिला न ही वह कभी औफिस में मिला.’’ सपना आगे कहती है कि एक बार इन प्रौपर्टी डीलरों को कमीशन का पैसा मिल जाए तो उस के बाद ये किसी को याद नहीं रखते.

सपना की बातों से तो यही लगता है कि प्रौपर्टी डीलर के जरिए घर लेना किसी दुकानदार से कोई चीज खरीदने के समान है. एक बार आप खरीदा हुआ सामान ले कर उस की दुकान से निकल गए और रास्ते में या घर जा कर आप को पता चला कि चीज में कुछ कमी है, जाहिर है आप उस चीज को बदलने के लिए दुकान पर जाएंगे तो वह दुकानदार आप को पहचानेगा ही नहीं.

ठीक इसी तरह का धंधा लगभग सभी प्रौपर्टी डीलर करते हैं. एक बार इन के हाथ में पैसा आ जाए फिर न तो इन का फोन मिलता है न ही ये खुद मिलते हैं. इसलिए जरूरी है कि मकान लेते समय इन से सारी बात साफ कर ली जाए. अब साक्षी के मामले को ही देखिए. वह जब यहां आई तो सिर्फ 10 हजार रुपए अपने साथ लाई थी. उस की नौकरी लग चुकी थी. उस ने सोचा कि कुछ दिनों तक किसी गेस्ट हाउस में रह लेगी और इस बीच अपने लिए कोई रहने का भी ठिकाना ढूंढ़ ही लेगी.

साक्षी बताती हैं, ‘‘मुझे इस शहर के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी. न ही मेरी जानपहचान का यहां कोई रहता था इसलिए मैं ने 3 प्रौपर्टी डीलरों से बात की. पहले डीलर ने जो घर दिखाया वह मुझे अच्छा नहीं लगा. दूसरे डीलर के साथ घर देखने जाने के लिए मैं उस के औफिस पहुंची. वह मुझ से बातें करने लगा. बातें करतेकरते उस ने अटपटा सा मजाक किया. मुझे उस का व्यवहार बड़ा अजीब लगा. मैं ने उसे बुरी तरह डांटा और वहां से चली आई. तीसरे डीलर ने जो घर दिखाया वह मुझे अच्छा लगा, मैं ने वहां रहना शुरू कर दिया.’’

वह आगे बताती है, ‘‘1 महीने तक तो मुझे वहां कोई परेशानी नहीं हुई पर दूसरे महीने में मकान मालिक ने तंग करना शुरू कर दिया. इस बीच मुझे यह भी पता चला कि मुझ से पहले इसी घर में उस प्रौपर्टी डीलर ने 3 अलगअलग लड़कियों को एकएक कर के ठहराया था जिन में से कोई 15 दिन तो कोई 1 महीने रह कर चली गई.’’ रितिका और शिवांगी को बतौर पेइंग गेस्ट मकान लेने में इस तरह की कोई परेशानी नहीं हुई क्योंकि उन्होंने घर अपने रिश्तेदारों के माध्यम से लिए थे.

किसी अन्य शहर से आई नई युवतियों को कोशिश करनी चाहिए कि अगर वे किसी प्रौपर्टी डीलर के पास जाएं तो अकेली न जाएं, किसी सहेली या जानकार को अपने साथ ले कर ही जाएं. नए शहर में अनजान लोगों पर विश्वास कर के उन के साथ कहीं भी चल पड़ना खतरे से खाली नहीं है. डीलर को पहले ही बता दें कि कम आबादी वाली जगह में आप को घर नहीं चाहिए. किसी को यह न महसूस होने दें कि आप इस शहर में नई हैं.

किसी के कहने में या उस की चिकनीचुपड़ी बातों में न आएं. मकान मालिक व प्रौपर्टी डीलर से साफसाफ बात करें. मौखिक रूप से हुई बातचीत पर कतई विश्वास न करें. अच्छा होगा कि आप रेंट एग्रीमैंट बना लें, जिस में बिजली व पानी के बिल के बारे में साफसाफ लिखा हो. इस से आप को काफी फायदा मिलेगा

सूक्तियां

पिता

बूढ़े होते हुए पिता के लिए बेटी से बढ़ कर कोई व्यक्ति प्यारा नहीं होता. बेटों में उच्छृंखलता होती है, और वे मधुर स्नेह को नहीं जानते.

मधुर

मधुर स्वभाव रखने वाले सब से ज्यादा खुश उस समय होते हैं, जब दूसरों को वे अपनी खुशियों में शामिल कर लेते हैं.

जिंदगी

जिंदगी कितनी ही छोटी हो, वक्त की बरबादी से वह और भी छोटी बना दी जाती है.

निर्धनता

निर्धनता मनुष्य की बुद्धि को भ्रष्ट कर देती है और अत्यंत दुखदायी कोड़े के समान दुख देती है.

पतिपत्नी

अधिकांश पुरुष स्त्रियों में वह खोजते हैं, जिस का स्वयं उन के चरित्र में अभाव होता है.

झूठ

जिस की स्मरणशक्ति अच्छी नहीं है, उसे झूठ बोलने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए.

प्रशंसा

अयोग्य मनुष्यों की प्रशंसा छिपे हुए व्यंग्य के समान होती है.

वाइफ फ्लू

हमें इतना डर स्वाइन फ्लू, बर्ड फ्लू और इबोला से नहीं लगता जितना आजकल वाइफ फ्लू से लगता है, लेकिन हमें बचपन से ही सिखाया गया है, मुसीबत से परेशान नहीं होना चाहिए, बल्कि उस के भी मजे लेने चाहिए. वाइफ फ्लू के बारे में भी हम ने महसूस किया है कि बाकी फ्लू तो देरसवेर ठीक हो जाते हैं, लेकिन वाइफ फ्लू का कोई तोड़ नहीं है. इस मामले में हमारा पहला अनुभव ही काफी रोमांचक रहा है. हां, तो हुआ यों कि कुंआरेपन में हमें मूंछें रखने का शौक था, लेकिन सुहागरात को वाइफ ने पहला वार मूंछों पर ही किया और साफसाफ शब्दों में कह दिया कि देखो जी, मूंछें रखना अब भूल जाओ, आज के बाद चेहरे पर मूंछें नहीं होनी चाहिए, समझे न.

हम ने इसे कोरी धमकी समझा और दिनभर दोस्तों के बीच मूंछें ऊंची किए घूमते रहे, लेकिन अगली सुबह सो कर उठने के बाद आईने में मूंछविहीन चेहरा देख कर हम सहम गए और समझ गए कि यह ‘समझे न’ की ही करामात है. हम समझ गए कि वाइफ जो कहती है, उसे कर के भी दिखा देती है, इसलिए इसी में भलाई है कि अब बाकी की जिंदगी श्रीमतीजी का चरणदास बन कर गुजारी जाए. अगली सुबह हम अभी आधे घंटे और सोने के मूड में थे, तभी शादी के पहले की झंकार वाली आवाज की जगह एक गरजती आवाज आई, ‘देखो जी, बहुत आराम हो गया, चलो उठो, नल में पानी आ गया है, पहले पानी भरो, इस के बाद सब्जी लेन भी जाना है.’

फिर थोड़े प्यार से बोली, ‘देखो जी, सब से पहले चाय बना लाओ, साथ ही पीएंगे.’

गरम हवाओं के बाद ठंडी सी फुहार ने हमें राहत पहुंचाई और हम दौड़ते हुए रसोई की तरफ भागे. अब हमारे लिए यह शोध का विषय हो गया कि आखिर वाइफ फ्लू होता क्या है? यह आता क्यों है? इस के लक्षण क्या हैं और इस के वायरस कहां से फैलते हैं? गहन शोध करने पर हम ने पाया कि वाइफ फ्लू को सहन करना पति की सहनशक्ति पर निर्भर करता है.

  1. वाइफ फ्लू से पीडि़त पति के निम्न लक्षण होते हैं :
  2. वाइफ फ्लू की चपेट में आया पति हमेशा डरा सा रहता है.
  3. पति की बोलने की शक्ति क्षीण होती जाती है, परंतु श्रवण शक्ति बढ़ जाती है.
  4. वाइफ फ्लू से पीडि़त पति ज्यादा से ज्यादा समय घर से बाहर गुजारने लगते हैं.
  5. जिंदगी में बद से बदतर स्थितियों में भी जीने का जज्बा रखते हैं.
  6. वाइफ फ्लू से पीडि़त पतियों में काम करने की आदत सी पड़ जाती है और उन्हें थकान महसूस नहीं होती है.
  7. कोल्हू के बैल की तरह काम करते हुए वे वाइफ से प्रशंसा पाने के भूखे रहते हैं.
  8. ऐसे पतियों को वैसे तो गुस्सा कम आता है, लेकिन ये मन ही मन कुढ़ते रहते हैं.

वाइफ फ्लू के वायरस के बारे में शोध करने पर कुछ मजेदार बातें सामने आई हैं :

  1. इस फ्लू के वायरस शादीब्याह की जगहों पर बहुतायत से पाए जाते हैं.
  2. कुंआरे लड़कों पर एकदम अटैक करते हैं.
  3. ये वायरस पहले मीठे सपने दिखाते हैं, फिर सपने को साकार करने की ललक जगाते हैं, इस के बाद जिंदगी को रोगी बना देते हैं.
  4. इस वायरस को फैलाने में दुलहन की बहन और सहेलियां मुख्य भूमिका निभाती हैं और भाभियां हवा देती हैं.
  5. ये वायरस आंखों से अंधा बना देते हैं. और अच्छाबुरा सोचने की शक्ति खत्म कर देते हैं.

इस शोध के बाद जब हम ने अपनी स्थिति के बारे में सोचा तब पाया कि हमारी शादी के समय भी जब हमारी भाभी ने हमें इशारे से एक कमसिन, नाजुक सी लड़की को दिखाते हुए, हमारे अरमान जगाए थे, तब हम हवा में ऐसे उछले थे कि सीधे उसी के पास जा कर गिरे थे. लेकिन हम ने अपने दोस्तों को वाइफ फ्लू से जूझते देखा था, इसलिए दूरियां बनाने की कोशिश करने लगे, तब उस ने बड़ी नजाकत के साथ कहा, ‘तुम तो मुझ से ऐसे डर रहे हो जैसे मैं कोई चुड़ैल हूं. अरे भौंरा भी मुहब्बत में अपनेआप को कुरबान कर देता है, तो फिर तुम तो इंसान हो, हमारी मुहब्बत की कीमत समझो.’

जिस अंदाज में उस ने ये बातें कही थीं, हम अपना आपा खो बैठे थे और फिर तो हम भंवरे की तरह उस के आगेपीछे घूमने लगे. बस, इस के बाद वह हमारे वायरस लगने से खुश हो गई और गाने लगी, ‘बहारो फूल बरसाओ, मेरे पति को वाइफ फ्लू होने वाला है…’

खैर, जनाब जैसा कि हम ने पहले भी जिक्र किया है कि इस के वायरस सीधे अटैक करते हैं और बचने का कोई मौका नहीं देते हैं तो हमारी शादी तो होनी थी, सो हो गई, और इस के बाद हम वाइफ फ्लू में जकड़ते गए.

हम ने महसूस किया है कि इस वायरस की चपेट में आने पर कुछ उपाय करते रहना चाहिए, जोकि पेनकिलर का काम करेंगे और वायरस का दर्द कम हो जाएगा, फिर पति लोग धीरेधीरे इस के आदी हो जाएंगे.

वाइफ फ्लू से बचने के उपाय

  1. वाइफ फ्लू से पीडि़त पति को अपनी श्रीमतीजी की तारीफ करते रहना चाहिए जिस से कि वायरस को अटैक करने का मौका कम मिल पाए.
  2. पति को श्रीमतीजी की हां में हां मिलानी चाहिए, जो कि ऐंटीबायोटिक्स की डोज का काम करता है, इस में कमी होने पर वायरस को मजबूत होने का मौका मिल जाता है.
  3. जब श्रीमतीजी की सहेलियां या मायके के लोग आएं तब भागदौड़ कर घर के काम करने चाहिए, जब वे लोग पति की तारीफ करें तब कुछ दिन तक वाइफ फ्लू कंट्रोल में रहता है.
  4. जब श्रीमतीजी मेकअप कर के बाजार जाएं तब एक कंधे पर झोला और दूसरे कंधे पर बच्चों को लादने में देरी नहीं करनी चाहिए इस में देरी होने पर श्रीमतीजी के क्रोध के साथ ही वायरस सक्रिय होने लगते हैं.
  5. जब वाइफ किसी सामान को पसंद कर रही हो व मोलभाव कर रही हो, तब बीच में टांग नहीं अड़ानी चाहिए.
  6. श्रीमतीजी के साथ बाजार जाते समय भरपूर पैसे रखने चाहिए और खर्च करने में कंजूसी नहीं दिखानी चाहिए.
  7. पीडि़त पति को अपने बचाव के लिए सुबह से शाम तक अपनी पत्नी के नाम का जाप करते रहना चाहिए.
  8. यदि दिन अच्छा नहीं हो तो औफिस से छुट्टी ले कर श्रीमतीजी की सेवा में दिन गुजार देना चाहिए.

वाइफ फ्लू पर हमारा शोध चरम पर था, तभी श्रीमतीजी की आवाज से हम फिर सहम गए.

‘‘चलो, जल्दी उठो, बहुत आलसी हो गए हो. आज इतवार है, इस का मतलब यह नहीं कि बिस्तर पर पड़े रहोगे.’’

घर के काम करते हुए, कपड़े सूखने डालने और उठाने के लिए हम बारबार छत पर जाते थे. वहां हमारी मुलाकात पड़ोस की मिसेज पिल्लई से हो जाया करती थी. एक दिन उन्होंने प्यार से कहा, ‘मिस्टर निरंजन, तुम बहुत हिम्मतवाला, तुम इतने दिनों से वाइफ फ्लू से बीमार होने के बाद भी कैसे दौड़दौड़ के काम करता. सच में अपुन को तुम्हारे जैसा हसबैंड मांगता…’

मिसेज पिल्लई की सहानुभूतिभरी बातों से हम गद्गद हो गए और बोले, ‘‘आप कोई चिंता नहीं करने का, जब आप बोलेगा, हम हाजिर होगा.’’

अब मिसेज पिल्लई का प्यार हमारे लिए ऐंटीबायोटिक की डोज हो गया था, जो हमें वाइफ फ्लू से निबटने की ताकत दे रहा था और हमारा अधिकतर समय छत पर गुजरने लगा.

एक दिन मिसेज पिल्लई की कामवाली रमिया बाई ने हमारी मुलाकातों वाली बात श्रीमतीजी को बता दी. हमारी श्रीमतीजी की मिसेज पिल्लई से नहीं पटती थी, अब हमारी और मिसेज पिल्लई की मुलाकात ने आग में घी का काम किया. बस, उसी दिन उन्होंने रमिया बाई को हमारी जासूसी और घर के काम के लिए रख लिया और हमें घरेलू कामों से आजाद किया. उस दिन के बाद से हमारा वाइफ फ्लू तो ठीक हो गया, लेकिन उस ने मिस्टर पिल्लई को जकड़ लिया.

महायोग : छठी किस्त

‘‘जी, कहिए न डाक्टर साहब,’’ कामिनी ने कहा तो पर उस के भीतर कुछ उथलपुथल होने लगी.

‘‘समझ में नहीं आ रहा है कि आप से कैसे कहूं, बात यह है कि औपरेशन के दौरान यशेंदुजी की दाहिनी टांग काट देनी पड़ी थी. मिसेज कामिनी, आप को ही संभालना है सबकुछ.’’

कामिनी को एकाएक चक्कर आने लगे और वह धम्म से सोफे पर बैठ गई. कामिनी के कंधे पर हाथ रख कर उन्होंने कहा, ‘‘प्लीज, आप जरा संभलें, देखिए, मांजी आ रही हैं.’’

कामिनी तो मानो कुछ सुन ही नहीं पा रही थी. उस का मस्तिष्क घूम रहा था. उसे समझ नहीं आ रहा था, आखिर हो क्या रहा है. उस की आंखों से अश्रुधारा प्रवाहित होने लगी और वह महसूस करने लगी मानो स्वयं अपंग हो गई है. उसे अपने सामने यश का एक टांगविहीन शरीर दृष्टिगोचर होने लगा. डाक्टर तब तक कामिनी को सांत्वना दे ही रहे थे कि धीरेधीरे डग भरती हुई मांजी वापस आ गईं.

‘‘फिक्र मत कर बहू. मैं देख कर आई हूं यश को. जल्दी ही वह ठीक हो कर घर आ जाएगा,’’ मांजी ने कामिनी को सांत्वना देने का प्रयास किया. वे यश को लेटे हुए देख कर आई थीं और पुत्रमुख देख कर उन्हें थोड़ी तसल्ली सी हुई थी.

क्या बताती कामिनी उन्हें? वह कुछ भी बताने या कहनेसुनने की स्थिति में नहीं थी. सो, टुकुरटुकुर सास का मुंह देखती रही. मांजी स्वयं ही बोलीं, ‘‘कामिनी बेटा, ड्राइवर को फोन कर दो. आ कर मुझे ले जाए. घर जा कर देखती हूं, दिया का क्या हाल है? फिर आती हूं,’’ उन के कंपकंपाते शरीर को देख कर कामिनी ने अपने आंसू पोंछ डाले.

मां के जाने के बाद कामिनी अकेली रह गई. कैसे पूरी परिस्थिति का सामना कर पाएगी वह? मांजी के साथ ही दिया, दीप, स्वदीप सब को संभालना…कैसे…?

‘‘मैडम, कौफी,’’ कामिनी ने देखा कि एक वार्ड बौय कौफी ले कर खड़ा था.

‘‘नहीं, मैं ने कौफी नहीं मंगवाई.’’

‘‘मैं ने मंगवाई है, मिसेज कामिनी, थोड़ा सा खाली हुआ तो सोचा कौफी पी ली जाए,’’ डा. जोशी उस के पास तब तक आ चुके थे.

‘‘डाक्टर साहब, मुझे जरूरत नहीं है, थैंक्स,’’ कामिनी ने संकोच से कहा और अपनी आंखों के आंसू पोंछ डाले.

‘‘कोई बात नहीं. बहुत से काम कभी बिना जरूरत के भी करने पड़ते हैं,’’ डाक्टर ने वातावरण सहज बनाने का प्रयास किया.

कामिनी ने बिना किसी नानुकुर के कौफी का मग हाथ में तो पकड़ लिया.

‘‘देखिए मिसेज कामिनी, स्वस्थ तो आप को रहना ही पड़ेगा. इस समय स्थिति ऐसी है कि अगर आप स्वस्थ नहीं रह पाईं तो आप का पूरा परिवार अस्तव्यस्त हो जाएगा. मैं अभी देख कर आ रहा हूं और यशेंदुजी की स्थिति से लगता है उन्हें एकाध घंटे में होश आ जाना चाहिए. आप उन से मिल कर घर चली जाइए. हम आप को इन्फौर्म करते रहेंगे. उन्हें आईसीयू से प्राइवेट रूम में शिफ्ट करना है. उन की टांग का फिर औपरेशन करना होगा और लगभग 2-3 महीने बाद उन की आर्टिफिशियल टांग लगेगी. लेकिन इस बीच उन की पूरी सारसंभाल की जरूरत है. इस सब के लिए आप को मजबूत होना ही होगा. यू हैव टू बी ब्रेव, मिसेज कामिनी,’’ डा. जोशी सोफे से उठ खड़े हुए.

‘‘कामिनी मुंहबाए उन्हें जाते हुए देखती रही.

लगभग 2 घंटे बाद यश को होश आया. नर्स ने आ कर बताया. डाक्टर की स्वीकृति से कामिनी पति को देखने अंदर गई. यश उसे देख कर हलका सा मुसकराए, टूटेफूटे शब्दों में बोले, ‘‘मैं ठीक हो जाऊंगा कामिनी, चिंता मत करो.’’

कामिनी आंसुओं को संभालती हुई यश के बैड के पास पड़ी कुरसी पर बैठ गई और उस का हाथ अपने हाथ में ले कर सहलाने लगी. यश अभी गफलत में थे. कभी आंखें खुलतीं, कभी बंद होतीं. आंखें खुलने पर कामिनी को देख कर मुसकराहट उन क मुख पर फैल जाती, फिर तुरंत ही आंखें मुंद जातीं. दवाओं का बहुत गहरा प्रभाव था यश पर. कामिनी ने सोचा, अभी यहां उस का कोई काम नहीं है. घर भी देख आए जरा. तभी एक काली बिल्ली कामिनी का रास्ता काट गई. कामिनी का दिल धकधक करने लगा. क्षणभर को तो वह ठिठक गई क्योंकि मांजी साथ होतीं तो कलेश खड़ा कर देतीं.

आटो रिकशा में बैठ कर वह फिर अपने अतीत में खोने लगी. उस के पिता ने श्राद्ध के दिनों में गौना करवाया था. नए विचारों के पिता इन सब अंधविश्वासों में कहीं से भी फंसना नहीं चाहते थे. उन के नातेरिश्तेदारों, मित्रों ने उन्हें बहुत रोकाटोका. पर वे मानो हिमालय की भांति अडिग रहे. सोने पर सुहागा यह रहा कि कामिनी के नाना स्वयं इन्हीं विचारों के थे. कामिनी ने अपने पिता के घर में जो सहजता व सरलता का जीवन जीया था, जो रिश्तों के जुड़ाव देखे थे, जिस शालीनता के साथ स्वतंत्रता की अनुभूति की थी और जिन संबंधों की समीपता के आंतरिक एहसास के उजाले में वह बचपन से युवा हुई थी, उन से ही उस के व्यक्तित्व का विकास हुआ था.

दिया ने शायद कामिनी को अंदर से ही देख लिया था. वह दौड़ कर बरामदे में आ गई, ‘‘मां, पापा कैसे हैं अब?’’ वह बहुत घबराई हुई थी.

कामिनी ने दिया को अपने से चिपटा लिया, ‘‘अच्छे हैं बेटा, ही इज बैटर. अच्छा, भाइयों को फोन किया या नहीं?’’

‘‘जी मां, दोनों भाई रात को पहुंच जाएंगे. मां, मैं पापा से मिलना चाहती हूं,’’ बिना रुके दिया बोले जा रही थी.

‘‘हां, पापा होश में आ गए हैं. तुम मिल आना पापा से,’’ कामिनी बोली.

घर में बने मंदिर से पंडितों की जोरदार आवाजें आ रही थीं. कोई पाठ कर रहे थे शायद. मां भी जरूर वहीं बैठी होंगी. कितनेकितने भय बैठा कर रखता है आदमी अपने भीतर. बीमारी का भय, लुटने का भय, चोरी का भय, दुर्घटना का भय, चरित्र खो जाने का भय…बस हम केवल भय ही ओढ़तेबिछाते रहते हैं जीवनभर. क्यों? इस समय पाठ करते हुए स्वर उसे बेचैन कर रहे थे. मांजी की हिदायत उस ने बरामदे में माली से ही सुन ली थी. ‘‘मेमसाब, माताजी ने बोला है आप के आते ही सब से पहले आप को मंदिर में भेज दूं. कुछ…क्या बोलते हैं उसे…कुछ संकल्प करवाना है आप से.’’

परंतु कामिनी ने मानो कुछ सुना ही नहीं था. वह अपने मन के हाहाकार को छिपा कर अपने कमरे में जा कर सीधे बाथरूम में घुस कर शावर के नीचे पहुंच गई थी. सिर को शावर के नीचे कर के कामिनी ने अपनी आंखें बंद कर ली थीं. उसे तो यह संकल्प लेना था कि अपने टूटते हुए घर की चूलें कैसे कसेगी? उस की दृष्टि में दिया, स्वदीप, दीप व मांजी के चेहरे पानी में उथलपुथल से होने लगे. मानो उस की आंखें कोई गहरा समंदर हों और ये सब खिलौने से बन कर उस समंदर की लहरों के बीच फंस गए हों. कैसे बचाएगी उन्हें गलने से? न जाने कितनी देर वह उसी स्थिति में शौवर के नीचे खड़ी रही थी.

जीवन में बाधाएं तो आती ही हैं. जीवन कभी सपाट, सरपट, चिकनी सड़क सा नहीं होता. उस में बड़ी ऊबड़खाबड़ जमीन, नीचीऊंची सतह, कंकड़पत्थर और यहां तक कि छोटीबड़ी पहाडि़यां और बड़े पर्वत भी होते हैं जिन्हें मनुष्य को बड़े संयम और तदबीर से पार करना होता है. ये सब प्रत्येक के जीवन में आते हैं, इन से ही मनुष्य अनुभव बटोरता है, सीखता है. आगे बढ़ने के लिए नए मार्गों की खोज करता है. यदि नए मार्ग ढूंढ़ने के स्थान पर वह एक स्थान पर बैठा सबकुछ पाने की प्रतीक्षा करता रहे तो एक क्या, कई जन्मों तक उसी स्थिति में बैठा रहने पर भी उसे कुछ नहीं मिलता. लेकिन यहां तो कहानी ही अलग थी. यश के परिवार में बात कुछ इस प्रकार बन गई है कि ‘आ बैल मुझे मार.’ अरे, जब आप किसी के बारे में कुछ अधिक जानते नहीं, उसे पहचानते नहीं तो केवल जन्मपत्री के मेल से कैसे अपने जिगर के टुकड़े को किसी को सौंप सकते हैं? यह बात नहीं है कि पहचान होने से रिश्तों में कड़वाहट पैदा नहीं होती परंतु बुद्धिमत्ता तो इसी में है न, कि सही ढंग से जांचपड़ताल कर के बच्ची को सुरक्षित हाथों में सौंपा जाए, न कि अनाड़ी लोगों के द्वारा बनाए गए ग्रहों के मिलाप को ही सर्वोपरि मान लिया जाए.

कामिनी के जीवन का मार्ग और भी कठिन होता जा रहा था. अब उसे किसी न किसी प्रकार अपने हिसाब से जीना होगा. दिया का विवाह तो बहुत बड़ी त्रुटि हो ही चुकी थी. भारतीय समाज, मान्यताओं व परंपराओं के अनुसार, मांजी की यह बात उस के मस्तिष्क में नहीं उतरती थी कि वह दिया को अपने हाल पर छोड़ दे. मां थी आखिर… कुछ तो निर्णय लेना ही होगा. यश पिता हैं, उन्होंने कदम उठाना चाहा तो परिस्थिति गड़बड़ा गई. इसी उलझन में उलझ कर यश इस स्थिति में पहुंच गए और सारा बोझ कामिनी के कंधों पर आ गया. कामिनी पसोपेश में आ गई थी पति की अवस्था और बिटिया के बारे में सोच कर.दीप और स्वदीप उसी दिन पहुंच गए थे और जिद कर के वे दोनों रात में ही अस्पताल पहुंच गए थे. रात भर करवटें बदलते हुए कामिनी कभी पति और कभी बेटी के बारे में सोचती रही. उस के समक्ष कितने ही घुमावदार, टेढ़ेमेढ़े रास्ते थे और किस समय, कैसे, कब, उन पर चलना था, वह नहीं जानती थी.

जैसेतैसे रात बीती. पौ फटी. उस ने दिया की ओर देखा. मासूम दिया उस के पास सोई थी. रात में बहुत देर तक वह पापा के पास रही थी, दीप उसे घर छोड़ गया तब उस ने बड़ी कठिनाई से कामिनी के जिद करने पर दोचार कौर मुंह में डाल लिए और सोने का बहाना कर के बिना कपड़े बदले ही मां के पलंग पर लेट गई थी. आंसुओं की लकीरें उस के गालों पर निशान बना गई थीं. मांजी को भी बड़ी मुश्किल से मना कर लाई थी कामिनी. दो कौर पानी के सहारे गले में उतार कर वे अपने कमरे में कैद हो गई थीं. दिया ने उन की नौकरानी को विशेष हिदायत दी थी उन की दवाओं आदि के बारे में. वैसे भी वह नौकरानी उन के कमरे में ही सोती थी, इसलिए सब जानती थी. घर में जैसे एक सूनापन पसर गया था. बदन टूट रहा था फिर भी कामिनी बिस्तर पर लेट नहीं पाई.

घर के महाराज और नौकर को बता कर बिना मां व दिया से कुछ कहेसुने, कामिनी घर से निकल आई थी.   

– क्रमश:

नाम तुम्हारा

पास रहो या रहो दूर
नाम तुम्हारा माथे का सिंदूर
भरी है मांग तुम्हारे नाम से
मुझे नहीं चाहत जहान से

प्यार तुम्हारा है ऐसा भरपूर
नाम तुम्हारा माथे का सिंदूर
कोई हंसेकुढ़े मुझे परवा नहीं
तुम हो मेरे, दूसरे की चाह नहीं

लगता सारा जग सुंदर रसचूर
नाम तुम्हारा माथे का सिंदूर.

– महावीर सिंघल

दूर कहीं चली जाऊं

मन करता है दूर कहीं चली जाऊं
यहां से दूर, कहीं बहुत दूर
इतनी दूर जहां न छू पाए दुखदर्द
आघात-प्रतिघात

यहां तो है बस दर्द ही दर्द
घुटन, पीड़ा और संत्रास
कितनी ही कोशिश कर लो
हारना ही है अपनों से

तो कभी अपने आप से
हारना अच्छा नहीं लगता
कामना है जीतने की
तभी तो जाना है दूर कहीं

जहां न कोई जान पाए
न पहचान पाए
न पहुंचा पाए ठेस
न दुखा पाए मन.

– सुधा शुक्ला

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