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अमित साहनी की लिस्ट

इस फिल्म को देखने के बाद यह तो पक्का हो गया कि आज के युवा शादी के मामले में कन्फ्यूज्ड रहते हैं. अपने लिए वे फेसबुक, इंटरनैट और मैट्रिमोनियल साइटों में जीवनसाथी की तलाश तो करते हैं लेकिन सही फैसला नहीं ले पाते.

‘अमित साहनी की लिस्ट’ लाइफ पार्टनर की तलाश कर रहे एक ऐसे युवक पर बनी फिल्म है जिस ने एक लंबी लिस्ट अपने लैपटौप में सेव कर रखी है कि उस की होने वाली पत्नी में क्याक्या खासीयतें होनी चाहिए. उस के प्यार का अपना एक अलग मैजरमैंट है. इसी लिस्ट से मेल न खाने से कई लड़कियां उसे छोड़ कर चली जाती हैं और वह हर वक्त कन्फ्यूज्ड रहता है.

फिल्म की कहानी अमित साहनी (वीरदास) के मुंह से कहलवाई गई है. वह एक इन्वैस्टमैंट बैंकर है. उसे एक परफैक्ट लड़की की तलाश है, जिस में वे सारी खूबियां हों जो उस की बनाई लिस्ट में हैं. एक दिन अमित की मुलाकात देविका (आनंदिता नायर) से होती है. उस से मिल कर अमित को लगता है कि देविका में वे सब खूबियां हैं जो उस की लिस्ट में शामिल हैं. लेकिन कुछ दिनों बाद देविका को अमित में वे खूबियां दिखाई नहीं देतीं जो उस की खुद की लिस्ट में थीं. वह अमित से बे्रकअप कर लेती है. फिल्म के क्लाइमैक्स का पहले से ही पता चल जाता है. निर्देशक अजय भुयान ने इस हलकीफुलकी फिल्म में बीचबीच में हंसी की फुलझडि़यां छोड़ी हैं. फिल्म का गीतसंगीत पक्ष कमजोर है. छायांकन ठीक है.

हम्प्टी शर्मा की दुलहनिया

फिल्म में नायकनायिका का खुल कर रोमांस हो तो दर्शकों को अच्छा लगता है. इसीलिए युवा जोडि़यों को ले कर बनी रोमांटिक फिल्में खूब चलती हैं. ‘दिल वाले दुलहनिया ले जाएंगे’ में परदे पर काजोल और शाहरुख खान का रोमांस दर्शकों को इतना भाया कि फिल्म सुपरडुपर हिट हो गई.

आज भी कई फिल्मों में ‘दिल वाले दुलहनिया ले जाएंगे’ के रोमांटिक सींस को बारबार दोहराया जाता है. फिल्म ‘हम्प्टी शर्मा की दुलहनिया’ भी एक रोमांटिक फिल्म है जो ‘दिल वाले दुलहनिया ले जाएंगे’ से प्रेरित है. इस लव स्टोरी में कोई संदेश तो नहीं है, फिर भी बहुत से युवा और किशोर इस के साथ खुद को रिलेट करने लगते हैं. निर्देशक शशांक खेतान ने बौलीवुड के बहुचर्चित प्यार के फार्मूले को युवा पीढ़ी के लिए मनोरंजक तरीके से इस्तेमाल किया है.

फिल्म की कहानी अंबाला शहर की रहने वाली एक बोल्ड युवती काव्या (आलिया भट्ट) की है. वह अपनी शादी पर 5 लाख रुपए का लहंगा पहनना चाहती है. लहंगा खरीदने के लिए वह अकेली ही दिल्ली आती है, जहां उसे अपनी सहेली की शादी भी अटैंड करनी है. दिल्ली में उस की मुलाकात राकेश उर्फ हम्प्टी शर्मा (वरुण धवन) से होती है. हालांकि काव्या हम्प्टी को बता देती है कि उस की शादी एक एनआरआई लड़के अंगद (सिद्धार्थ शुक्ला) से होने वाली है. फिर भी दोनों में प्यार हो जाता है.

दिल्ली में कुछ द न रह कर काव्या अंबाला लौट जाती है. हम्प्टी शर्मा भी अपने 2 दोस्तों शोंटी (गौरव पांडेय) और पोपलू (साहिल वैद) के साथ अंबाला पहुंच जाता है. वह काव्या के पिता (आशुतोष राणा) के सामने काव्या के साथ प्यार का इजहार करता है परंतु वे इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं हैं.

आखिरकार, वे हम्प्टी शर्मा को 5 दिन का समय देते हैं कि वह एक भी ऐसी वजह बता दे जिस से वे काव्या की शादी अंगद से न करें. इन 5 दिनों के दौरान काव्या के घर रहते हुए हम्प्टी शर्मा और काव्या में संबंध और भी प्रगाढ़ हो जाते हैं. अंतत: हम्प्टी काव्या के पिता को इंप्रैस कर ही लेता है और वे काव्या का हाथ उस के हाथ में दे देते हैं. फिल्म की इस कहानी में आप को पूर्व में बनी प्रेम कहानियों वाली फिल्मों के बहुत से सीन देखने को मिल जाएंगे. फिर भी फिल्म का प्रस्तुतीकरण ऐसा है कि दर्शक बोरियत महसूस नहीं करते.

फिल्म की कहानी स्वयं निर्देशक शशांक खेतान ने ही लिखी है. बतौर निर्देशक यह उस की पहली फिल्म है और उस ने फिल्म पर अपनी पकड़ बनाए रखी है. फिल्म में लगभग सभी प्रमुख किरदारों को शराब और बीयर पीते दिखाया गया है मानो शराब कोई अच्छी चीज हो. नायिका आलिया भट्ट तो कईकई बोतलें बीयर पी कर डकार भी नहीं लेती है. यह दिखा कर निर्देशक ने युवाओं को बिगाड़ने का ही काम किया है.

वरुण धवन और आलिया भट्ट की कैमिस्ट्री खूब जमी है. आलिया भट्ट में अब आत्मविश्वास लौट आया है. अपनी फिल्म ‘हाईवे’ में अच्छा अभिनय करने के बाद उस के अभिनय में काफी निखार आया है. उस ने इस फिल्म में कुछ बोल्ड सीन भी दिए हैं. वरुण धवन फिल्म निर्देशक डेविड धवन का बेटा है. उस ने अपनी प्रतिभा पिछली फिल्म ‘मैं तेरा हीरो’ में ही दिखा दी थी. उस के अभिनय में गोविंदा की झलक देखने को मिलती है. इस फिल्म में एक खिलंदड़ लड़के की भूमिका में वह जंचा है. डांस और ऐक्शन दृश्यों में वह जंचता है. आशुतोष राणा काफी अरसे बाद परदे पर नजर आया है. लेकिन उस के चेहरे पर एक सख्त पिता का वह खौफ नजर नहीं आया जो ‘दिल वाले दुलहनिया ले जाएंगे’ में पिता अमरीश पुरी के चेहरे पर नजर आया था. गौरव पांडेय और साहिल वैद ने कौमेडी करने की कोशिश की है.

फिल्म का गीतसंगीत युवाओं को अच्छा लगने वाला है. 2-3 गीत पहले ही लोकप्रिय हो चुके हैं. फिल्म का छायांकन अच्छा है.

किक

सलमान खान की यह किक स्कूटर या बाइक की नहीं है, यह किक सलमान खान की है. तभी तो उस ने फिल्म में ‘किक’ शब्द का प्रयोग कई बार किया है. बौलीवुड में एक सलमान खान ही ऐसा ऐक्टर है जो अपनी बेशर्मी, बेहूदगियों से भी अपने फैंस को इंप्रैस कर लेता है.

उस के फैंस उस की हर बेहूदगी को ऐंजौय करते हैं. ‘किक’ में उस ने बड़े प्यार से किक मारी है और उस के फैंस हैं कि किक खा कर भी उस पर वारीवारी जा रहे हैं. फिल्म के अंत में सलमान खान कहता दिखाई देता है कि मेरे बारे में मत सोचो. जिंदगी की सब से बड़ी किक इसी में है.

‘किक’ 2009 में इसी शीर्षक से बनी तेलुगु फिल्म की रीमेक है. इस फिल्म में सलमान ने सीरियस हो कर ऐक्ंिटग नहीं की है. उसे गरीब बच्चों के इलाज के लिए खजाना लूटते दिखाया गया है. इसीलिए उसे तालियां मिली हैं.

जिस फिल्म में सलमान खान हो उस फिल्म की कहानी क्या है और उस में कौनकौन से कलाकार हैं, इस पर ज्यादा जोर लगाने की जरूरत नहीं पड़ती. सलमान खान ही काफी है. उस का ऐक्टिंग का अपना स्टाइल है. ‘किक’ में उस ने ‘दबंग’,‘बौडीगार्ड’ और ‘एक था टाइगर’ वाली स्टाइल को बरकरार रखा है. इसीलिए यह फिल्म सलमान के फैंस को तो किक देती है लेकिन बाकियों को जोर से किक मारती है.

फिल्म की कहानी पोलैंड की एक टे्रन में डाक्टर शाइना (जैकलीन फर्नांडीस) और भारत से पोलैंड गए इंस्पैक्टर हिमांशु त्यागी (रणदीप हुड्डा) की बातचीत से शुरू होती है. शाइना उसे एक दिलचस्प आदमी देवी लाल सिंह (सलमान खान) के बारे में बताती है. शाइना की मुलाकात देवी लाल सिंह से होती है. वह मनमौजी किस्म का आदमी है और जिंदगी में रोमांच चाहता है. शाइना को उस से प्यार हो जाता है. एक दिन अचानक वह गायब हो जाता है. इस बीच शाइना की जिंदगी में हिमांशु त्यागी आ जाता है. हिमांशु को डेविल नाम के आदमी की तलाश है.

दरअसल, डेविल सलमान खान ही है जो गरीब बच्चों के इलाज के लिए पैसे जुटाने के लिए बड़ीबड़ी चोरियां करता है. हिमांशु शाइना को डेविल के बारे में बताता है. वह शिवम (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) जैसे खतरनाक विलेन का खात्मा करता है. शाइना नहीं जानती कि पोलैंड में अपनी याददाश्त खत्म होने का इलाज कराने आया देवी सिंह ही डेविल है. डेविल बैंक रौबरी का प्लान बनाता है. हिमांशु उस के पीछे पड़ जाता है. दोनों के बीच चोरसिपाही का खेल चलता है. लेकिन डेविल पकड़ में नहीं आ पाता. अंत में रहस्य खुलता है कि देवी लाल सिंह उर्फ डेविल एक पुलिस अफसर है जो एक मिशन पर था.

फिल्म का कैनवास बड़ा है. फिल्म की स्टारकास्ट इसे भव्य बनाती है. फिल्म के ऐक्शन सीन जबरदस्त हैं. सलमान खान का पोलैंड में 40वीं मंजिल से छलांग लगाना दर्शकों को रोमांचित करता है, साथ ही साइकिल को धकेल कर रेलगाड़ी के आगे से पटरियां पार करना भी हैरतअंगेज है. ये सभी स्टंट सलमान ने खुद ही किए हैं.

निर्देशक साजिद नाडियावाला ने काफी मेहनत की है. लेकिन वह फिल्म को पूरी तरह मनोरंजक नहीं बना पाया है. फर्स्ट हाफ में तो ऊलजलूल कौमेडी है. बीच का हिस्सा थम सा गया लगता है. सैकेंड हाफ में फिल्म गति पकड़ती है. इस भाग में पोलैंड में फिल्माए गए स्टंट सीन अच्छे बन पड़े हैं. फिल्म का क्लाइमैक्स लंबा खींचा गया है. फिल्म के संवाद अच्छे हैं.

सलमान खान ने ‘कृष’ के रितिक रोशन की नकल कर लगभग वैसा ही मास्क चेहरे पर पहना है. जैकलीन फर्नांडीस ने खुद को ग्लैमरस दिखाने में कसर नहीं छोड़ी. नवाजुद्दीन सिद्दीकी का कुटिल हंसी हंसना नाटकीय लगता है. रणदीप हुड्डा ने अपने किरदार को बखूबी निभाया है.

फिल्म का गीतसंगीत अच्छा है. 2 गाने पहले ही हिट हो चुके हैं. एक गाना ‘हैंग ओवर’ सलमान ने खुद गाया है. एक आइटम सौंग नरगिस फाखरी पर फिल्माया गया है. फिल्म की फोटोग्राफी अच्छी है. दिल्ली और पोलैंड की लोकेशनों पर शूटिंग की गई है. विदेश में पुलिस से बच कर भागते हुए सलमान ने ‘धूम-3’ के आमिर खान की स्टाइल की नकल की है

पाठकों की समस्याएं

मैं  एक लड़के से बेहद प्यार करती हूं. लेकिन उस से अपने मन की बात कहने से डरती हूं क्योंकि वह दिखने में बहुत स्मार्ट है जबकि मैं उतनी स्मार्ट नहीं हूं. कालेज की सभी लड़कियां उसे पसंद करती हैं. मुझे डर है कि अपनी भावनाओं का इजहार करने से कहीं वह मुझ से दोस्ती भी न तोड़ दे. मैं ऐसा क्या करूं कि वह मुझे पसंद करने लगे?

यह आप के मन की हीनभावना और आप में आत्मविश्वास की कमी है, इसलिए आप अपने मन की बात उस लड़के से कहने में हिचक रही हैं और खुद को कमतर समझ रही हैं. बिना डरे अपने मन की बात उस लड़के से कहिए. अगर वह आप का दोस्त है तो आप की भावनाओं की कद्र करेगा और अपनी भावनाएं भी आप के सामने प्रकट करेगा. वह आप को पसंद करने लगे इस के लिए अपने भीतर आत्मविश्वास जगाइए. अपने व्यक्तित्व में अपने पहनावे व चालढाल से बदलाव लाइए. सैल्फ गू्रमिंग कीजिए और दोस्ती टूटने के डर से मन की बात मन में न रखिए. वैसे भी आप को पसंद करता है तभी आप का दोस्त है. यह अलग बात है कि वह आप को उस नजर से देखता है या नहीं, जिस नजर से आप उसे देखती हैं, यह उस से बात करने पर ही पता चलेगा.

मैं 34 वर्षीय विवाहित पुरुष हूं. मेरी समस्या यह है कि पिछले डेढ़ साल से सैक्स करने की मेरी बिलकुल इच्छा नहीं होती है. मेरी पत्नी में कोई कमी नहीं है. वह सुंदर है, आकर्षक है. वह भी मेरे इस बदले व्यवहार से परेशान है. मैं क्या करूं, सलाह दें?

आप की पत्नी का आप के इस व्यवहार से परेशान होना वाजिब है क्योंकि उस की भी अपनी शारीरिक जरूरतें हैं. लेकिन अगर आप को यह समस्या पिछले डेढ़ साल से ही हुई है तो आप किसी सैक्सोलौजिस्ट से मिलें. वह आप की सैक्स के प्रति अरुचि का कारण व उस का समाधान बताएगा. कई बार वर्क स्ट्रैस भी सैक्स के प्रति अरुचि का कारण बनता है, इसलिए अपनेआप को रिलैक्स करें, औफिस की टैंशन घर न लाएं व पत्नी के साथ अधिक से अधिक समय बिताएं.

मैं 20 वर्षीय साइंस का स्टूडैंट हूं और एक लड़की से प्यार करता हूं. समस्या यह है कि वह लड़की मेरे गांव की ही है. क्या हमारी शादी हो सकती है? और मुझे डर है कि अगर हम शादी करेंगे तो दुनिया वाले क्या कहेंगे?

आप व्यर्थ ही परेशान हो रहे हैं. आप दोनों अगर एक ही गांव से हैं तो इस में कोई समस्या नहीं है. क्या एक ही गांव में 2 भिन्न परिवारों के बीच वैवाहिक रिश्ते नहीं बनते हैं? आप बेझिझक हो कर अपने परिवार वालों से इस बारे में बात कर सकते हैं व उन की रजामंदी से विवाह भी कर सकते हैं. जब प्यार किया है व परिवार वालों की रजामंदी से विवाह करेंगे तो दुनिया वाले भी आप के रिश्ते को स्वीकार लेंगे.

मैं 33 वर्षीय पुरुष हूं. कुछ ही समय में मेरा विवाह होने वाला है लेकिन मेरी समस्या यह है कि जिस लड़की से मेरा विवाह हो रहा है उस ने खुद बताया है कि उस का एक बौयफ्रैंड था जिस के साथ उस के शारीरिक संबंध भी थे. मैं उस लड़की से प्यार तो करता हूं लेकिन समझ नहीं पा रहा हूं कि उस से विवाह करूं या नहीं क्योंकि मुझे लगता है उस के बारे में यह जानने के बाद मैं उस से विवाह नहीं कर पाऊंगा. क्या करूं, सलाह दीजिए?

वह लड़की ईमानदार है, इसीलिए उस ने विवाह से पूर्व के अपने संबंध के बारे में आप को सबकुछ सचसच बता दिया है. अगर आप उस पर विश्वास करते हैं और पूरी जिंदगी बिना उस पर शक किए बिताने को तैयार हैं तो ही उस से विवाह करिए वरना आप हमेशा उस पर शक करते रहेंगे और आप दोनों का वैवाहिक जीवन दुखमय हो जाएगा.

मैं 28 वर्षीय युवती हूं. अगले माह मेरा विवाह होने वाला है. मेरी समस्या यह है कि मुझे सैक्स के नाम से डर लगता है. मैं क्या करूं जिस से मेरा यह डर निकल जाए और हमारा वैवाहिक जीवन सुखमय रहे?

आप का यह डर सही नहीं है. आप की समस्या को सैक्स फोबिया कहते हैं. इस डर से पीडि़त स्त्री व पुरुष सैक्स संबंध बनाने से डरते हैं या इस से बचने के उपाय ढूंढ़ते हैं और सुहागरात को टौर्चर की रात समझने लगते हैं. कई बार सैक्सुअल अब्यूज,शारीरिक बनावट व इंटरकोर्स से प्रैग्नैंट होने का डर भी सैक्स के प्रति डर का भाव पैदा करता है. आप चाहें तो इस डर को हटाने के लिए प्रीमैरिज काउंसलिंग ले सकती हैं जहां आप की सारी शंकाओं का समाधान मिल जाएगा व आप अपने सैक्स संबंधों को बिना किसी डर के ऐंजौय कर पाएंगी.

मैं एक विवाहित स्त्री हूं और 2 बच्चों की मां हूं. पिछले वर्ष ही मेरे पति से मेरा तलाक हुआ है. उस के बाद पति ने 6 महीने बाद ही दूसरा विवाह कर लिया था. पर अब वे मुझे अपने साथ रहने के लिए कह रहे हैं. मैं क्या करूं?

आप के पति शादीविवाह व संबंधविच्छेद को गुड्डेगुडि़यों का खेल समझ रहे हैं, जिस में जब चाहा संबंध जोड़ लिया, जब चाहा तोड़ दिया. जबकि वैवाहिक रिश्ते ऐसे नहीं निभते. जब आप को उन्हें अपने साथ ही रखना था तो आप से तलाक क्यों लिया और दूसरी शादी क्यों की? क्या उन्होंने बताया कि वे ऐसा क्यों चाह रहे हैं, क्या उन्हें अपनी गलती का एहसास हो रहा है और क्या वे अपनी दूसरी पत्नी को भी तलाक देना चाह रहे हैं और आप के पास वापस लौटना चाह रहे हैं? इन सभी बातों पर खुल कर बात कीजिए. आप खुद क्या चाहती हैं, इस पर भी सोचिए क्योंकि आप के 2 बच्चे भी हैं. कुछ भी निर्णय लेने से पहले उन के भविष्य के बारे में भी सोचिए.

कोशिशें की गईं कि मैं घुटने टेक दूं : समीना सिद्दीकी

खबरी मैदान में टिकता वही है जिस की कलम में दम और लफ्जों में बेबाकी हो. हिंदी मीडिया जगत की बात की जाए तो यहां कई चेहरों ने अपनी खास पहचान कायम की है. उन में महिलाएं भी कम नहीं हैं. ऐसा ही एक नाम है समीना सिद्दीकी, जो पिछले 28 वर्षों से इस क्षेत्र में अपनी अलग छवि गढ़े हुए है. वर्तमान में वे राज्यसभा टीवी में सीनियर ऐंकर के पद पर सेवारत हैं.समीना ने विशेषकर महिलाओं से जुड़े मुद्दों को बेहद दमदार ढंग से उठाया है. पत्रकारिता, परिवार व अपनी जीवनयात्रा के बारे में उन्होंने खुल कर बताया.

मीडिया जगत में आप ने खास पहचान बना ली है. कैसा रहा अब तक का सफर?

कई मानों में आसान रहा मगर कठिन भी. कठिन इसलिए कि एक औरत के लिए मीडिया में अपनी जगह बनाना और फिर उन तमाम मर्यादाओं का पालन करते हुए आगे निकलना, जो समाज और परिवार में उस के लिए तय की गई है, आसान नहीं है. बहुत मुश्किलें आईं, कई बार कोशिशें की गईं कि मैं घुटने टेक दूं. लेकिन क्योंकि मैं काम जानती थी और मेरी कलम में ताकत थी, इसलिए वे मुश्किलें बहुत बड़ी मुश्किलें साबित नहीं हो सकीं  सफर आसान इस लिहाज से रहा क्योंकि मेरी पृष्ठभूमि इसी क्षेत्र से थी. मुझे भाषा आती थी, मीडिया में काम करना जानती थी. मेरे पिता शुरू से आकाशवाणी में रहे. जहां मेरी शादी हुई वे भी मीडिया क्षेत्र से हैं. इसलिए यहां किस तरह का चलन और व्यवहार जरूरी है, किस तरह खुद को साबित करना है, ये सब बचपन से समझ रही थी.

मुसलिम परिवार से होने के नाते क्या कुछ बंदिशों का सामना भी करना पड़ा आप को?

जी हां, क्योंकि मेरी मां राजनीति विज्ञान की प्रोफैसर हैं इसलिए पिता ने शुरू से यही चाहा कि उन की बेटी के लिए टीचिंग का क्षेत्र अच्छा है. इस में परिवार के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है. इस के उलट मीडिया में अपने लिए भी वक्त निकालना मुश्किल होता है. पिता चूंकि शुरू से मीडिया से जुड़े रहे इसलिए वह शौक मुझ में भी बैठा हुआ था. हुआ यों कि जब मैं भोपाल में थी तब मेरे सभी दोस्त आकाशवाणी में अनाउंसर पद के लिए अप्लाई कर रहे थे. मैं ने भी 1989 में विविध भारती में औडिशन दिया और चयन हो गया. तब तक मैं ने ग्रेजुएशन कर लिया था. उस वक्त करने को कुछ काम नहीं था. पापा को यह बात मालूम नहीं थी क्योंकि वे 15-20 दिनों के लिए औफिशियल टूर पर थे. इत्तफाक से जब पापा लौटे तो विविध भारती में चयन होने का लैटर डाकिया उन के हाथ में ही पकड़ा गया. पापा इस बात से बहुत नाराज हुए, कहा, ‘मैं ने तुम्हें समझाया था कि यह बहुत मुश्किल रास्ता है.’

हालांकि मैं ने बीए, बीएड और 4 साल का टीचिंग कोर्स किया था, पर टीचिंग में मेरा दिल नहीं लगता था. पापा को जब लगा कि यह नहीं मानेगी तो उन्होंने मुझे ढेर सारी बातें समझाईं.

उन्होंने एक बात खासतौर पर कही कि मेरा नाम मत खराब करना और याद रखना तुम्हारे दुपट्टे पर हमेशा एक सेफ्टीपिन रहे. पापा की इस सांकेतिक बात के कितने सारे माने थे, यह समय गुजरने के साथ समझ आता गया. वे मुझ से कई दिन तक नाराज भी रहे थे कि मैं ने एक आरामदेह रास्ता छोड़ कर एक बहुत मुश्किल रास्ता चुना. लेकिन पापा के लगातार सहयोग से दुपट्टे से ले कर कलम तक का सफर आज भी जारी है.

पत्रकारिता में पहचान बना कर अकसर लोग राजनीति में शामिल हो जाते हैं. आप का इरादा?

मैं राजनीति में शामिल होऊंगी या नहीं, पता नहीं, क्योंकि मैं ने कभी कोई चीज प्लान नहीं की. जो मिलता गया, लेती गई. वैसे कई राष्ट्रीय स्तर की पार्टियों की तरफ से चुनाव लड़ने के प्रस्ताव मिल चुके हैं.

परिवार और पत्रकारिता में सामंजस्य कैसे बनाती हैं?

मेरी एक बेटी है जिस का नाम समन है. वह 12वीं कक्षा में पढ़ती है. उस ने शुरू से ही एक वर्किंग मां देखी है इसलिए वह रुटीन की आदी हो गई है. लेकिन अब वह बड़ी हो गई है तो मुझे स्वयं लगता है कि मुझे उस को समय देना चाहिए लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पाता. हां, पति मेरीगैरमौजूदगी में उसे मां की कमी महसूस नहीं होने देते.

मीडिया में प्रतिद्वंद्विता पर क्या कहेंगी आप?

मीडिया में सिर्फ आदमी ही नहीं, औरत भी आप की प्रतिद्वंद्वी होती है. आप के साथ काम करने वाली लड़कियां 2 मिनट में आप के सीने पर पैर रख कर आगे निकलने को तैयार रहती हैं. मेरे पैर जमीन पर मजबूती के साथ शायद इसलिए जमे रहे क्योंकि मुझे बचपन से जो शिक्षा और वातावरण मिला उस ने मुझे यही सिखाया कि अगर आप में काबिलीयत है तो कुछ मुश्किल नहीं.

मीडिया में जमे रहने के लिए जरूरी है कि भाषा पर आप की पकड़ हो, लिखना बहुत अच्छा आना चाहिए, आप अपनी बात खूबसूरती के साथ कैसे रख सकते हैं, यह बड़ी विशेषता है.

पत्रकारिता में आने को लालायित युवा वर्ग को आप क्या संदेश देंगी?

युवाओं से मैं यही कहना चाहती हूं कि वे मीडिया में आएं मगर सिर्फ ग्लैमर देख कर नहीं. आप मीडिया को क्या दे सकते हैं, यह तय कर के आएं. क्या आप उसी चलन पर चलना चाहते हैं जो चला आ रहा है या आप में वह पोटैंशियल है कि आप अपनी तरफ से मीडिया को कुछ नया दे सकेंगे?

आज ढेरों मीडिया संस्थान हैं जो ढेरों कोर्स करवा रहे हैं. मैं भी शुरू में बतौर इंस्ट्रक्टर इन संस्थानों में जाती रही थी लेकिन फिर मैं ने देखा कि वहां आने वालों को बहुत जल्दी है सीखने की और टीवी के परदे पर दिखने की. भाषा और अदायगी उन की लिस्ट में बहुत नीचे हैं. उन का मानना है कि अच्छी सूरत और स्टाइल है तो सबकुछ मिलेगा. एक स्तर तक हो सकता है यह सही हो लेकिन यह बहुत कम वक्त के लिए होता है.

मैं ने 1989 में रेडियो जौइन किया था और 1992 में दूरदर्शन. इतने लंबे अंतराल के बाद भी आज मैं सीनियर ऐंकर के पद पर हूं. यहां मुझे नई जिम्मेदारियां मिलीं, नया सीखने को मिला. मुझे जो मिला, वह सीखा. अभी तक मैं परदे पर थी, अब सड़कों पर जा कर हाशिए पार कर गए मुद्दों को कवर करती हूं.

कबड्डी के अच्छे दिन

कल तक का गुमनाम खेल कबड्डी अब सुर्खियों में है. बड़ेबड़े धनकुबेरों ने गांवगांव से कबड्डी के धुरंधरों को लाखों रुपए दे कर राज्यों की टीम की शक्ल में खरीद लिया है. धूलमिट्टी की कबड्डी अब पांचसितारा होटलों तक पहुंच चुकी है. गांव, देहात, कसबों और शहरों के गलीकूचों में खेले जाने वाला कबड्डी का खेल अब इंडोर स्टेडियमों की दूधिया रोशनी में खेला जाएगा. जी हां, हम बात कर रहे हैं प्रो-लीग कबड्डी की. महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर, बौलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन, अभिनेता अभिषेक बच्चन, ऐश्वर्या राय, बौलीवुड के शहंशाह शाहरुख खान, आमिर खान, जया बच्चन, उद्योगपति आनंद महिंद्रा, टीना अंबानी, राज कुंद्रा के अलावा तमाम मशहूर हस्तियों की उपस्थिति में इस लीग का उद्घाटन हुआ.

क्रिकेट मैच देखतेदेखते खेल प्रशंसक शायद ऊब चुके हैं. क्योंकि 34 दिनों तक चलने वाले इस मेले का सीधा प्रसारण स्टार स्पोर्ट्स टैलीविजन पर हो रहा है जिस में दर्शक नए तरह की कमेंट्री से दोचार हो रहे हैं. खेलप्रेमियों को नए तरह का आनंद मिल रहा है.

गांव, देहातों में कोई ऐसा स्कूल नहीं होगा जहां कबड्डी न खेली जाती हो, यह सब से कम खर्च में खेला जाने वाला खेल है. देश में इस के तकरीबन 3,944 रजिस्टर्ड क्लब हैं.

लेकिन अब यह खेल भी पेशेवर हो रहा है. दरअसल, बड़ीबड़ी हस्तियों ने इस खेल की फ्रेंचाइजी खरीदी है. वे इस बात को जानतेसमझते हैं कि बड़ीबड़ी कंपनियों के उत्पाद को अब गांवों, देहातों या कसबों तक कैसे पहुंचाया जाए. इसलिए धनकुबेरों ने अपने उत्पादों को पहुंचाने के लिए उन खेलों को चुना जो गांवगांव में खेले जाते हों.

खैर, चाहे जो भी हो लेकिन इस से एक फायदा यह जरूर हो गया कि एशियन गेम्स तक सफर करने वाली कबड्डी अब हाशिए पर नहीं रहेगी और इसे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर एक नई पहचान मिलेगी. साथ ही, आर्थिक स्थिति से जूझ रहे कबड्डी के खिलाडि़यों के अच्छे दिनों की शुरुआत होगी.

अभिनव ने कहा अलविदा

वर्ष 2004 में जब एथेंस ओलिंपिक में राज्यवर्द्धन सिंह राठौर ने डबल ट्रैप शूटिंग में सिल्वर मैडल जीता तो पूरा देश गर्व से खिल उठा था. उस के बाद शूटिंग में हम आगे बढ़ते गए और वर्ष 2008 में उन्होंने देश को बीजिंग ओलिंपिक में गोल्ड मैडल दिलाया. इस मैडल से नए निशानेबाजों के लिए उन्होंने नई उम्मीद जगा दी. अभिनव ने अपनी कामयाबी स्कौटलैंड ग्लास्गो कौमनवैल्थ गेम्स में भी जारी रखी. उन्होंने एक बार फिर देश को गोल्ड मैडल दिलाया. हालांकि इस के साथ ही इस शूटर ने आगे से कौमनवैल्थ गेम्स में हिस्सा न लेने का ऐलान भी कर दिया.

कारण चाहे जो भी रहा हो लेकिन अभिनव ने महज 15 वर्ष की उम्र में ही निशानेबाजी शुरू कर दी थी. अभिनव वर्ष 1998 के कौमनवैल्थ गेम्स में और वर्ष 2000 में सिडनी ओलिंपिक में सब से कम उम्र के निशानेबाज रहे थे. वर्ष 2001 में उन्होंने अनेक अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में कुल 6 मैडल हासिल किए. वर्ष 2006 में मेलबर्न में वे पहली बार अपने खेल के वर्ल्ड चैंपियन बने और उसी वर्ष उन्होंने मेलबर्न कौमनवैल्थ गेम्स में पेयर्स में गोल्ड और व्यक्तिगत स्पर्धा में ब्रौंज मैडल जीता. वर्ष 2010 में दिल्ली में हुए कौमनवैल्थ गेम्स में उन्हें सिल्वर मैडल से संतोष करना पड़ा लेकिन ग्लास्गो में उन्होंने गोल्ड मैडल हासिल कर यह कसर पूरी कर ली. पदक हासिल करने के बाद अभिनव बिंद्रा ने कहा कि यह मेरा अंतिम राष्ट्रमंडल खेल है. 5 राष्ट्रमंडल खेल और 9 पदक मेरे लिए पर्याप्त हैं. यह पदक शानदार है क्योंकि मैं ने कड़ी मेहनत की थी और मुझे खुशी है कि मैं यह लक्ष्य हासिल करने में सफल रहा. उन्हें राजीव गांधी खेलरत्न से भी नवाजा गया है.

अभिनव के लिए वर्ष 2016 में होने वाला रियो ओलिंपिक उन का अंतिम ओलिंपिक  होगा कि नहीं, इस बारे में वे फिलहाल कुछ कहना नहीं चाहते. 31 वर्षीय अभिनव से यह उम्मीद है कि वे रियो ओलिंपिक को अपना अंतिम ओलिंपिक मानें और उस में गोल्ड मैडल जीत कर अलविदा कहें और दुनिया के तमाम युवाओं का आदर्श बनें. बहरहाल, ग्लास्गो कौमनवैल्थ गेम्स में अभिनव के अलावा श्रेयसी सिंह, जीतू राय, गुरुपाल सिंह जैसे नए निशानेबाजों ने देश के लिए मैडल जीत कर यह उम्मीद जगा दी है. राठौर और अभिनव के बाद देश के लिए ये नई उम्मीद बन कर उभरे हैं. इन निशानेबाजों से आने वाले ओलिंपिक गेम्स में पदक की उम्मीद तो की ही जा सकती है.

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