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तेल बचाने की मोइली की मुहिम

केंद्रीय पैट्रोलियम मंत्री वीरप्पा मोइली लगता है तेल की बचत की योजनाओं पर डूब कर काम कर रहे हैं. उन की चिंता देश में ईंधन की खपत को कम करने पर केंद्रित है. मोइली उसी मंत्रिमंडल के सदस्य हैं जिस ने हाल ही में दागी नेताओं को बचाने वाले विधेयक को मंजूरी दी थी. बाद में मजबूरी में यह विधेयक वापस ले लिया गया. 

पैट्रोलियम मंत्री ने एक फरमान जारी किया है और राज्य सरकारों के साथ ही केंद्रीय कार्मिक, सार्वजनिक शिकायत और पैंशन मंत्री को पत्र लिखा है कि सप्ताह में 1 दिन ‘सार्वजनिक परिवहन दिवस’ मनाया जाए. इस दिन सारे कर्मचारी सार्वजनिक वाहन का इस्तेमाल कर के औफिस जाएं. इस के अलावा शेष दिन के लिए कार पूल बनना चाहिए ताकि 3-4 लोग एक ही कार में बैठ कर कार्यालय आएं. उन का कहना है कि इस से देश को 31 हजार करोड़ रुपए का फायदा होगा.

मोइली का यह भी कहना है कि 2012-13 में देश में 8.9 लाख करोड़ लिटर तेल का आयात किया गया जिस से खजाने पर भारी बोझ पड़ा है. दिलचस्प यह है कि उन की यह नेक सलाह बाबुओं को हंसा रही है. बाबू मजाक में कहते हैं कि यह सलाह भी दी जानी चाहिए थी कि मंत्री या जनप्रतिनिधि भी बस में या रिकशे पर बैठ कर संसद और विधानसभा पहुंचें. मोइली बाबुओं की सलाह से सहमत भी हैं और वे मैट्रो ट्रेन से सफर कर कार्यालय पहुंचे भी. समझ नहीं आता कि लूटखसोट के इस माहौल में मोइली क्यों बाबुओं का पसीना निकालने की योजना बना रहे हैं. यह योजना कभी सफल तो नहीं होगी लेकिन जो शिगूफा छोड़ा गया है वह सरकार की छवि चमकाने के लिए है या आम आदमी को भरमाने के लिए.

 

विपरीत स्थितियों के बीच बाजार में मजबूती

शेयर बाजार में उतारचढ़ाव के साथ मजबूती का ही रुख है. रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने बाजार में समय आने पर पैसे की कमी नहीं होने देने के लिए बैंक ब्याज दरों में कोई कटौती नहीं की है. केंद्रीय बैंक ने रेपो और रिजर्व रेपो दर दोनों बढ़ाई हैं. रिजर्व रेपो मतलब वाणिज्यिक बैंकों का जो पैसा रिजर्व बैंक के पास रहता है उस पर ब्याज बढ़ाया गया है और रेपो दर यानी बैंक अपनी नकदी बढ़ाने के लिए जो सिक्यूरिटी रिजर्व बैंक के पास रखते हैं उस की दर भी बढ़ी है. रेपो दर हमेशा रिजर्व रेपो से ज्यादा रहती है.

राजन की नीति का सीधा मतलब है कि नई मुद्रानीति से ऋण दरें कम नहीं होगी. राजन अपने पूर्ववर्ती की राह पर चल रहे हैं. सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी पर 1 प्रतिशत की कटौती का पूर्वानुमान लगाया गया है. वैश्विक रेटिंग एजेंसियों ने चालू वित्त वर्ष के लिए जीडीपी की दर के घटने का अनुमान व्यक्त किया है. ये अनुमान फिच और बार्कलेज जैसी एजेंसियों का है. रुपए में भी बहुत उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है, हालांकि यह नए गवर्नर की ताजपोशी के बाद से सुधार की तरफ ही रुख किए है.

इन सब विपरीत स्थितियों के बावजूद बाजार में मजबूती है. सितंबर के आखिरी सप्ताह में बाजार में गिरावट रही और सप्ताह के दौरान बाजार 536 अंक लुढ़का जबकि अक्तूबर के पहले सप्ताह बाजार 4 दिन ही खुला लेकिन 1 दिन छोड़ कर शेष दिनों में बाजार में तेजी बनी रही.

 

बिल्डरों के साथ उपभोक्ता भी हलकान

लंबी बहस और तमाम अवरोधों को दरकिनार कर रियल एस्टेट रैगुलेशन बिल संसद में आखिर पारित हो गया. बिल्डरों की ठगी से उपभोक्ताओं को बचाने का दावा करता यह बिल अपनी तमाम खामियों और एकतरफा होने के चलते आशियाने की चाह पाले लोगों को कितना सुकून दे पाएगा, बता रही हैं अनुराधा.

संसद में पारित रियल एस्टेट रैगुलेशन बिल को ले कर भवन निर्माताओं और आम उपभोक्ताओं में कोई खास उत्साह नहीं दिखा. सरकार का बिल को लाने का उद्देश्य बिल्डरों द्वारा घर के नाम पर ठगी, बेईमानी और विलंब को रोकना था. घर खरीदने वालों को तो इस से थोड़ी राहत मिलेगी लेकिन बिल्डरों को उन पर नियंत्रण का खमियाजा भुगतना पड़ेगा. लंबे समय तक सोचविचार और उद्योग जगत के विरोध के बावजूद इसे मंजूरी दे दी गई?है.

बिल के तहत अब बिल्डरों को तय समय के भीतर ही ग्राहकों को उन का घर देना होगा वरना उन पर भारी जुर्माना लगेगा. पहले तो आशियाने के सुनहरे सपने को संजोते ही कई सवाल उपभोक्ता के मन को सताने लगते थे. मसलन, प्रोजैक्ट कानूनी है या गैर कानूनी, बिल्डर या डैवलपर का रिकौर्ड कैसा है, पजेशन समय पर मिलेगा या नहीं, पैसे तो नहीं फंस जाएंगे आदि. लेकिन अब इन सब पचड़ों से पीछा छूटा तो दूसरा डर उपभोक्ताओं को सताने लगा है. यह डर है फ्लैट की कीमतें और भ्रष्टाचार बढ़ने का.

रियल एस्टेट सैक्टर की सब से बड़ी संस्था कन्फैडेरेशन औफ रियल एस्टेट डैवलपर्स एसोसिएशन औफ इंडिया (सीआरईडीएआई) के चेयरमैन ललित कुमार जैन कहते हैं, ‘‘इस बिल के लागू होते ही फ्लैट खरीदारों को फायदा होने के बदले भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल सकता है क्योंकि यह एकतरफा बिल है. इस बिल में उपभोक्ताओं की सुविधाओं का तो ध्यान रखा गया है लेकिन बिल्डर्स की परेशानियों को नजरअंदाज कर दिया गया है जिस का असर उपभोक्ताओं पर ही पड़ेगा.’’

कीमत को ले कर खामोश है बिल: जब ग्राहक बाजार में कोई सामान खरीदने जाता है तो उसे इस बात का संतोष होता है कि पैकेट में लिखे एमआरपी यानी मैक्सिमम रिटेल प्राइस से ज्यादा दुकानदार उस वस्तु का मूल्य नहीं ले सकता. लेकिन फ्लैट की कीमतों के साथ ऐसा कुछ भी नहीं है. इस बिल की सब से बड़ी खामी है कि इस में डैवलपर्स के पर काटने के तो सारे प्रावधान हैं लेकिन फ्लैट्स की आसमान छूती कीमतों पर लगाम कसने का कहीं कोई जिक्र नहीं है.

इस में दोराय नहीं है कि रियल एस्टेट रैगुलेशन बिल के अस्तित्व में आने के बाद उपभोगता बिल्डर्स की किसी भी तरह की धोखाधड़ी से बच जाएंगे लेकिन उन्हें डैवलपर्स की ठगी का शिकार होने से कोईर् नहीं बचा सकेगा.

प्रौपर्टी के जानकारों की मानें तो रैगुलेटर के आ जाने के बाद फ्लैट्स की कीमतों में 40 से 50 फीसदी का इजाफा हो सकता है. यानी कि बिल के आने से सीधा असर उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ेगा. हो सकता है कि ऐसे में कई लोगों का अपना घर खरीदने का सपना चकनाचूर हो जाए. इस मसले में अपनी राय देते हुए सीआरईडीएआई के प्रैसीडैंट एवं आम्रपाली ग्रुप के सीएमडी अनिल कुमार शर्मा का कहना है, ‘‘बिल के अनुसार, सारे कानूनी विभागों से अप्रूवल मिलने के बाद ही प्रोजैक्ट पर काम शुरू हो सकेगा. ऐसे में अप्रूवल देने में जितना अधिक समय लगेगा उतना ही प्रौपर्टी का दाम भी बढ़ता जाएगा.’’

लालफीताशाही की शाही : विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में प्रौपर्टी का कोई भी प्रोजैक्ट पूरा करने के लिए एक बिल्डर को 60 के करीब स्वीकृतियां लेनी होती हैं. साथ ही उसे 175 डौक्यूमैंट पेश करने होते हैं और ये सब करने के लिए उसे केंद्र और राज्य की सरकारों के 40 विभागों के पास जाना होता है. एक अनुमान के मुताबिक, एक बिल्डर को अगर ये सब कानूनी तरीके से करना हो तो उसे 3 से 4 साल का वक्त लग जाएगा.

कई विभाग ऐसे होते हैं जहां बिना घूस के सियासतदां और नौकरशाहों की कलम तक नहीं हिलती. आखिर में जल्दी स्वीकृतियां पाने के लिए बिल्डर को इन भ्रष्टाचारियों को घूस देनी पड़ती है. अब इस बिल के आ जाने से इन घूसखोरों के नखरे और भी बढ़ जाएंगे और बिल्डरों को समय पर प्रोजैक्ट को पूरा करने के दबाव के चलते इन्हें मोटी रकम का चढ़ावा चढ़ाना पड़ेगा. यह रकम बिल्डर अपनी जेब से देंगे जरूर लेकिन सूद समेत इसे उपभोक्ताओं से वसूल भी लेंगे. ऐसे में बिल में घूसखोर अधिकारियों पर कानूनी चाबुक चलाने की कहीं चर्चा नहीं की गई है.

इन सब बातों के अतिरिक्त बिल में उल्लेख किया गया है कि सारे अप्रूवल लेने के बाद बिल्डर को रैग्युलेटर के पास एक आखिरी अप्रूवल के लिए जाना होगा. रैग्युलेटर के पास प्रोजैक्ट को अप्रूव या डिसअप्रूव करने का अधिकार होगा. यानी कि इतनी सारी मशक्कतें करने के बाद भी हो सकता है कि बिल्डर के प्रोजैक्ट में खामियां निकाल कर उसे रिजैक्ट कर दिया जाए और दोबारा से उसे सारी मेहनत फिर करनी पड़ जाए. कुल मिला कर कह सकते?हैं कि बलि का बकरा उपभोक्ताओं को ही बनना पड़ेगा.

डैवलपर्स ही क्यों दोषी : बिल्डरों की  कुछ शिकायतें हैं. उन का कहना है कि बिल एकतरफा है. इस बिल में ग्राहकों की समस्याओं का समाधान है लेकिन बिल्डर्स की सुविधाओं का कोई प्रावधान नहीं है. इस बारे में अनिल कुमार शर्मा कहते हैं, ‘‘बिल का मौजूदा स्वरूप प्रैक्टिकल नहीं?है और सिर्फ प्रौपर्टी खरीदने वालों के ही पक्ष में है.

‘‘अगर किसी प्रोजैक्ट की मंजूरी या फिर फंडिंग में देरी हो रही है तो भला डैवलपर्स या बिल्डर्स को उस के लिए कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है? यह सरासर गलत है क्योंकि प्रोजैक्ट के पास होने के बाद जो समय सीमा निर्धारित की जाएगी वह सिर्फ बिल्डर्स के लिए होगी न कि उन लोगों के लिए जो कंस्ट्रक्शन प्रोजैक्ट से जुड़े हैं. अगर वे किसी वजह से काम में देरी करते हैं तो अकारण बिल्डर को ही सजा भुगतनी पड़ेगी. इसलिए प्रोजैक्ट से जुड़े हर क्षेत्र को इस बिल के दायरे में लाना चाहिए.’’

बिल में साफ शब्दों में उल्लेख यह किया गया है कि अगर बिल्डर निर्धारित समय पर फ्लैट का पजेशन नहीं देता है तो उसे ब्याज सहित उपभोक्ता की मूल राशि देनी पड़ेगी और साथ ही हर्जाना भी भरना पड़ेगा. ऐसे में भले ही उपभोक्ता को उस की मूल राशि और ब्याज मिल जाए लेकिन 2 से 3 साल तक फ्लैट का कब्जा मिलने के इंतजार के बाद अब उसे फिर से नए फ्लैट की तलाश करनी पड़ेगी और बढ़ी हुई कीमतों का सामना भी करना पड़ेगा.

इस के अतिरिक्त अगर बिल्डर निर्धारित समय सीमा पर बिना फिनिशिंग, मसलन, फर्नीचर, बिजली, पानी के फ्लैट उपभोक्ता को सौंप दे तो बिल में प्रावधान के उल्लंघन पर सजा की बात कही गई है. ऐसे में उपभोक्ता के रैग्युलेटर में शिकायत करने पर डैवलपर के खिलाफ सजा और प्रोजैक्ट का रजिस्ट्रेशन रद्द करने का भी प्रावधान है. यानी कि विवाद के सुलझने तक उपभोक्ता को भी कानूनी पचड़ों में फंसना पड़ेगा और पैसे खर्च करने पड़ेंगे.

महंगा हो जाएगा आशियाना :  पाबंदियों और दायरों में बिल्डर्स को बांधने वाले इस बिल में कई ऐसे प्रावधान हैं जो बिल्डर्स को यह क्षेत्र छोड़ने पर भी मजबूर कर सकते हैं. ऐसे में कम बिल्डर्स यानी कम प्रोजैक्ट्स और कम प्रोजैक्ट्स यानी महंगे फ्लैट्स. इस तरह देखा जाए तो एक बार फिर नुकसान ग्राहक को ही होगा. साथ ही सीमित फ्लैट्स होने के चलते फ्लैट्स खरीदारों में मचने वाली मारामारी भी हर उपभोक्ता को परेशान करेगी. फिर फ्लैट की बुकिंग कराने तक के लिए ग्राहक को चढ़ावा चढ़ाना होगा.

बच्चे हों औनलाइन, तो निगरानी है जरूरी

यों तो सोशल मीडिया तकनीकी क्रांति की बेहतरीन मिसाल के तौर पर आम लोगों तक पहुंची है लेकिन हाल में मुजफ्फरनगर दंगों समेत कई मौकों पर इस के दुरुपयोग के मामलों ने सोशल मीडिया के गंभीर साइड इफैक्ट से वाकिफ कराया है. ऐसे में कई सियासी दलों ने इस पर अंकुश लगाने की बात की है. प्रधानमंत्री ने भी इस के दुरुपयोग पर चिंता जता कर सोशल मीडिया पर लगाम लगाने के मामले पर नई बहस छेड़ दी है.

अगर निजी जीवन में सोशल मीडिया के दखल की बात करें तो आज के डिजिटल युग में बड़ी उम्र के व्यक्तियों को तो छोड़ ही दीजिए, छोटी उम्र के बच्चे भी टैक्नोलौजी से प्रभावित हो रहे हैं. वे उस की मांग कर रहे हैं.

एकदूसरे से जुड़ने के सामाजिक साधनों में बड़े तो फेसबुक का उपयोग कर ही रहे हैं, छोटे बच्चे भी इस में शामिल होना चाहते हैं. बच्चों के लिए फेसबुक में प्रवेश की उम्र 13 वर्ष रखी गई है पर ऐसा देखने में आ रहा है कि 10-11 वर्ष की उम्र के बच्चे भी फेसबुक पर हैं. दरअसल, वे अपनी वास्तविक उम्र में रजिस्टर्ड नहीं हो रहे हैं. यानी 13 वर्ष की उम्र औफिशियल जरूर है लेकिन व्यवहार में वह नहीं है. 13 वर्ष तो बस एक नंबर के रूप में ही है और मातापिता इस बात से वाकिफ भी हैं.

टीनएजर से छोटी उम्र के बच्चे इस सोशल नैटवर्किंग साइट पर आने की होड़ में हैं क्योंकि उन के दोस्त इस पर हैं. और न केवल उन के दोस्त, बल्कि बच्चे यह भी जानते हैं कि अधिकतर सभी लोग जिस में मातापिता भी शामिल हैं, इस सोशल नैटवर्किंग के अंतर्गत हैं. इस बाबत वे अपनी उम्र को बढ़ा कर रजिस्टर्ड करने के चक्कर में हैं. 13 से 19 साल के बच्चे को टीनएजर कहा जाता है. कई मातापिता अपने बच्चों की फेसबुक पर आने की मांग को नजरअंदाज नहीं कर पा रहे हैं, उन की मांग के आगे नतमस्तक हो रहे हैं. यहां तक कि वे उन्हें उन की उम्र को भी इस बाबत बढ़ाने में मदद कर रहे हैं ताकि बच्चे फेसबुक पर आ सकें, उस का इस्तेमाल कर सकें.

एक पिता का कहना है कि फेसबुक पर मेरा बेटा मुझ से सिर्फ 9 महीने छोटा है. फेसबुक पर उस का अकाउंट खोलने में मैं ने उस की जन्मतिथि और अपने जन्मवर्ष का प्रयोग किया है. उन का कहना है कि उन के खयाल में उम्र के बारे में इस बाबत कोई भी मातापिता ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं. वे कहते हैं कि उन के बेटे के बहुत से दोस्त फेसबुक पर हैं और यही कारण है कि वह भी फेसबुक पर जाना चाहता था. वे आगे कहते हैं आजकल तो बच्चे इसी तरह से संपर्क रखते हैं, फेसबुक से और टैक्ंिस्टग से. टैक्ंिस्टग का मतलब फोन, एसएमएस, चैटिंग वगैरह है. उन का बेटा अब 13 साल का हो गया है लेकिन वह 11 साल की उम्र से ही फेसबुक पर है.

मातापिता का कहना है कि उस के लिए अकाउंट खोलने का हमारा एक मकसद यह भी था कि हम उसे यह बता सकें कि हम जानते हैं कि उस का फेसबुक अकाउंट है और हम उसे कभी भी चैक कर सकते हैं. यदि वह चुपचाप खुद ही अकाउंट खोलता, जैसा कि कई बच्चे कर रहे हैं, तो हमें इस बात का ज्ञान ही न होता और हम उस पर निगरानी रखने की न सोचते. अब कम से कम बच्चे को इस बात का भय रहेगा कि हम कभी भी उस के अकाउंट को चैक कर सकते हैं, इसलिए वह गलत वैबसाइट्स पर जाने से घबराएगा.

उधर, फेसबुक ऐसा ‘टूल’ बनाने जा रही है जिस से कि मातापिता व छोटे बच्चे एकसाथ औनलाइन आ सकें, शायद सहअकाउंट के साथ. तब तक के लिए मातापिता को अपनेअपने तरीकों से बच्चों की औनलाइन होने की इच्छा और उन को सुरक्षित रखने के उपायों से जूझना होगा.

क्वींस विश्वविद्यालय के एक मीडिया प्रोफैसर सिडनीव मैट्रिक्स, जिन्होंने साइबर बुली पर काम किया है, का कहना है कि फेसबुक द्वारा औपचारिक विकल्प अच्छा है तथापि वे मातापिता को कंपनी की प्रेरणा के कारणों के बारे में चेतावनी देना चाहती हैं, उन्हें सावधान करना चाहती हैं.

प्रो. मैट्रिक्स कहती हैं, ‘‘यदि यह सहअकाउंट मातापिता को बच्चों पर बेहतर निगरानी रखने में समर्थ बनाता है तो यह बड़ी अच्छी बात है लेकिन फेसबुक का वास्तविक कार्यक्रम सामुदायिक भावना, विचारधारा को प्रोत्साहन देना नहीं है बल्कि विज्ञापन है. मैं इन छोटी उम्र के बच्चों को ब्रैंड कंपनियों का लक्ष्य बनने के बारे में चिंतित हूं.’’

उन का कहना है कि वे चाहती हैं कि मातापिता इस सोशल मीडिया से अपने बच्चों को परिचित कराते हुए उन से अपना संवाद बनाए रखें. अनेक मातापिता यह कर रहे हैं, और उन्हें यह करना भी चाहिए. मातापिता को बच्चों को फेसबुक पर जाने से पहले इस बात का ज्ञान कराना चाहिए कि लोग उस की फेसबुक की बातों पर नजर रखेंगे, इसलिए वह सावधानी बरते. मातापिता को सुरक्षात्मक बातों के लिए भी बच्चों को सावधान करना चाहिए, जैसे बच्चे को किसी भी अनजाने व्यक्ति से संपर्क नहीं करना है, साथ ही ऐसी फोटोज पोस्ट नहीं करनी हैं जिन से उन के रहने आदि का पता लगता हो या दूसरी कोई भी ऐसी व्यक्तिगत जानकारी जिस से कोई दुराचारी व्यक्ति उस का दुरुपयोग कर सके.

फेसबुक का एक आकर्षण यह भी है कि बहुत सारे लोग इस पर हैं. लेकिन यह सोशल नैटवर्किंग का एक सिरा है. अब टीनएजर बच्चे ट्वीटर व अन्य उपादानों की ओर अग्रसर हो रहे हैं. और इस का सब से बड़ा आकर्षण यह भी है कि मातापिता अभी इन सेवाओं से बहुत अधिक परिचित नहीं हैं जिस से इस दिशा में उन की निगरानी कम है.

मातापिता को इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए कि निगरानी से वे बच्चों की प्राइवेसी में दखलंदाजी कर रहे हैं वरना छोटे बच्चों के टीनएजर बनते ही यह समस्या और भी बढ़ जाएगी.

कुछ मातापिता या अभिभावकों का कहना है कि वे अभी भी बच्चों की गतिविधियों पर निगरानी रख रहे हैं लेकिन यह निगरानी दिनोंदिन कम हो रही है क्योंकि बच्चों ने उन का विश्वास जीत लिया है. यह अच्छी बात है लेकिन बाल्यावस्था व किशोरावस्था की यह उम्र कभी भी बच्चों के कदमों को बहका सकती है, इसलिए इस उम्र में मातापिता को बहुत सावधानी बरतने की जरूरत है. बच्चे अच्छे हैं और उन पर विश्वास किया भी जाना चाहिए, फिर भी इस उम्र में निर्देशन की आवश्यकता से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता. इस उम्र में बच्चों के पास वह परिपक्वता नहीं है जो बड़ी उम्र के मातापिता के पास है.

बच्चे फिर भी बच्चे ही हैं, नादान हैं. वे इन चेतावनियों को भूल सकते हैं. इसलिए उन की सुरक्षा के लिए फेसबुक पर निगरानी रखना जरूरी हो जाता है ताकि बाद में पछताना न पड़े. कई बार औनलाइन, इंटरनैट पर किया गया कोई कृत्य केवल एक यादगार घटना बन कर ही रह जाता है पर कभीकभी वह इतनी गंभीर समस्या में परिवर्तित हो जाता है कि बच्चे न तो उस से निबट पाने में समर्थ होते हैं और न ही वे भय या अन्य किसी कारण से किसी को बता पाने में. जब पानी सिर के ऊपर से गुजर जाता है तब उन की सहायता करना कई बार मातापिता की सीमा से भी बाहर हो जाता है और दुष्परिणाम रोंगटे खड़े करने वाले हो जाते हैं. ऐसी स्थिति उत्पन्न न हो इस के लिए मातापिता और युवाओं दोनों को सावधान रहने की जरूरत है.

कर्तव्य निर्वाह (पहली किस्त)

जिस का डर था वही हुआ. सभी के चेहरों पर हताशा की लकीरें उभर आईं. कुछ चेहरे तो एकदम लटक गए, जिन्हें चुनाव के अगले दिन दूसरे शहर में जा कर सुबह 9 बजे पदोन्नति की लिखित परीक्षा देनी थी. चुनावी ड्यूटी के आदेश जिला निर्वाचन कार्यालय से प्राप्त हो गए थे. किसी भी कर्मचारी को छोड़ा नहीं गया था. पूरे जिले के बैंक कर्मचारियों के नाम चुनावी ड्यूटी की सूची में थे.

सुगबुगाहट थी कि बैंक कर्मचारियों पर राज्य चुनाव आयोग को ज्यादा भरोसा है, राज्य कर्मचारियों पर कम. सुगबुगाहट चल ही रही थी कि फरमान आ गया कि किसी भी कर्मचारी का चुनावी प्रक्रिया पूर्ण होने तक अवकाश न स्वीकार किया जाए. साथ में एक पुलिंदा भी, जिस में बैंक की शाखा के सभी कर्मचारियों के नाम आदेशपत्र थे कि चुनावी प्रशिक्षण के लिए अनिवार्य रूप से उपस्थित हों, जो अगले दिन रविवार को पुलिसलाइन में आयोजित है.

रविवार के दिन प्रशिक्षण को ले कर बहुतों के मन में खिन्नता उभरने लगी. भरत के चेहरे पर इस का प्रभाव स्पष्ट झलकने लगा. भरत हैं भी बहुत संवेदनशील. सभी उन्हें कोमल तनमन वाला आदमी कहते हैं. कार्यालय में उन की ड्यूटी सर्वर रूम में रहती है जो पूरी तरह वातानुकूलित रहता है. उन के घर में एअरकंडीशनर है. आनेजाने के लिए स्वयं की एअरकंडीशंड कार है. ऐशोआराम की जिंदगी जीने की उन की आदत है.

रविवार के प्रशिक्षण में 2-3 घंटे का समय लगा. सामान्य जानकारी और चुनावी ड्यूटी के दायित्व और महत्त्व को एक रटेरटाए भाषण की तरह सुना कर सभी को मुक्त कर दिया गया. हां, उपस्थिति अनिवार्य रूप से दर्ज करवाई गई. सभी को अपने दायित्व और आरंभ हो चुकी गरमी का एहसास हो गया. चुनाव की तिथि 3 सप्ताह बाद आने वाली थी. सभी गरमी के मौसम को ले कर चिंतित थे कि आने वाले समय में गरमी अपने चरम पर होगी, तब क्या हाल होगा.

चुनावी ड्यूटी से बचने के लिए कुछ लोग जुगाड़ में लग गए. किसी ने बताया कि 1 हजार रुपए खर्च करने से चुनाव ड्यूटी कट जाएगी. भरत ने खुला औफर दे दिया, ‘‘2 हजार रुपए दूंगा, मेरी ड्यूटी कटवा दो.’’

किसी ने स्पष्ट किया कि ऐसा कोई प्रयास सफल नहीं होने वाला. जिले के कर्मचारी ही कम पड़ रहे हैं. कुछ कर्मचारी अन्य जिलों से बुलाने पड़ रहे हैं.

बैंक कर्मचारियों ने अपनी चुनाव ड्यूटी कटवाने की बात यूनियन के स्थानीय नेताओं के सामने रखी परंतु नेताओं की भी ड्यूटी लगी हुई थी, वे अपनी बात किस से कहते. अंतत: यह तय हुआ कि कुछ जैनुइन समस्याओं का समाधान निकालना चाहिए. उन के बीच 2 उत्साही कर्मचारी थे, जिन्हें सभी नेता कह कर उन का मान बढ़ाते थे. उन्हीं दोनों को समाधान के लिए आगे बढ़ाया गया. वे जिला स्तर के निर्वाचन अधिकारियों के पास गए. बड़ी मुश्किल से उन की बात सुनने के लिए थोड़ा सा समय दिया गया.

‘‘सर, चुनाव कार्य में बैंककर्मियों की ड्यूटी लग जाने से बैंक का कार्य पूरे जिले में ठप हो जाएगा.’’

‘‘चुनाव के दिन सार्वजनिक अवकाश है, जो नेगोशिएबल इंस्ट्रूमैंट एक्ट के तहत होगा. आप को चिंता करने की जरूरत नहीं है,’’ टकाटक उत्तर मिला.

‘‘सर, चुनाव के 1 दिन पहले बैंककर्मियों को चुनाव ड्यूटी पर भेजा जाएगा तो उस दिन तो काम ठप हो ही जाएगा. जनता को बहुत परेशानी होगी.’’

‘‘जब बैंककर्मी हड़ताल पर जाते हैं तो उस समय जनता की परेशानी की चिंता नहीं सताती?’’ मुंह बंद कर देने वाला प्रश्न उछल कर सामने आया.

‘‘सर, चुनाव के ठीक अगले दिन हमारे अधिकतर साथियों की पदोन्नति परीक्षा है, जो दूसरे शहर में जा कर सुबह 9 बजे से है. उस का क्या होगा? उन के भविष्य और कैरियर का सवाल है.’’

‘‘सब रात में फ्री हो जाएंगे. सुबह आराम से पहुंच कर परीक्षा दे सकते हैं. उन्हें कोई नहीं रोकेगा.’’

‘‘सर, यह व्यवस्था करवा दीजिए कि सब से पहले हमारे साथियों की वोटिंग मशीनें जमा करवा ली जाएं. ज्यादा से ज्यादा 9-10 बजे तक उन्हें फ्री कर दिया जाए,’’ पूरे समर्पण भाव से प्रार्थना की गई.

‘‘ऐसी कोई व्यवस्था का आश्वासन नहीं दिया जा सकता. यह तो आप लोगों की तेजी पर निर्भर करता है कि कितनी जल्दी काम समाप्त कर पाते हैं. पोलिंग तो ठीक 5 बजे समाप्त हो जाएगी. पोलिंग पार्टियों को वापस लाने की हमारी चौकस व्यवस्था है.’’

‘‘सर, हमारे 3 साथियों की नितांत व्यक्तिगत समस्याएं हैं, कृपया उन्हें सुन लें.’’

‘‘कहिए, जल्दी कहिए, हमारे पास समय नहीं है.’’

‘‘सर, हमारे एक साथी के बेटे की चुनाव के दिन ही शादी है. उन्हें अगर इस ड्यूटी से मुक्ति मिल जाती तो…’’

‘‘चुनाव के दिन शादी? यह तो अपनेआप बुलाई गई समस्या है. उस दिन वाहन नहीं चलेंगे. रास्ते बंद होंगे. उन से कहो कि कोई और तारीख में शादी कर लें. सब की ड्यूटी तय हो चुकी है. इस स्टेज पर कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता है.’’

‘‘सर, उन के बेटे की शादी का पूरे साल में यही एक मुहूर्त है. यह शादी टालना मुश्किल है.’’

‘‘देखिए, शादी नहीं टल सकती तो चुनाव ड्यूटी भी नहीं टल सकती. आप जल्दी से अपनी दूसरी समस्या बताइए,’’ सख्ती से जवाब मिला.

‘‘सर, दूसरी समस्या है, हमारे एक बुजुर्ग साथी हैं, जिन का रिटायरमैंट चुनाव के दिन ही है. लंबी बीमारी से उठे हैं. चलनेफिरने में ही उन्हें बहुत कष्ट होता है. चुनाव की ड्यूटी करना उन के वश के बाहर है. अगर आप की कृपा हो जाए तो…’’

‘‘ठीक है, इस स्टेज पर उन की ड्यूटी तो काट नहीं सकते. उन्हें रिजर्व में रख देते हैं. उन का नाम व नंबर स्टैनो को नोट करा दीजिए और फटाफट अपनी तीसरी और आखिरी समस्या बताइए, हमारे पास समय नहीं है,’’ आदेशात्मक वाक्य में अधीरता स्पष्ट थी.

‘‘सर, हमारे एक साथी हार्ट पेशेंट हैं…’’

‘‘बैंक में ड्यूटी करते हैं कि नहीं?’’

‘‘करते हैं सर, लेकिन कभीकभी उन की तबीयत ज्यादा बिगड़ जाती है. अगर चुनाव ड्यूटी के दौरान कुछ हो गया तो उन्हें कैसे संभाला जाएगा?’’

‘‘ठीक है, वे जिला अस्पताल में जा कर डाक्टरों के पैनल से मैडिकल रिपोर्ट लें, फिर उन के मामले पर विचार किया जा सकता है. अब आप लोग जाइए. चुनाव ड्यूटी के बारे में अब कोई बात करने की कोशिश न करें. जो आदेश मिलें उन का पालन करें. आप सब की भलाई इसी में है,’’ एक चेतावनी मुखरित हुई.

नेताद्वय के पास धन्यवाद व्यक्त करने के सिवा कुछ नहीं था. वापस आ कर उन्होंने अपने साथियों को बताया कि आप लोग चुनावी ड्यूटी के लिए कमर कस कर तैयार रहें. भरतजी को खासतौर पर बताया कि वे साहस बनाए रखें. परेशान न हों, बचाव का कोई रास्ता नहीं. भरतजी के बारे में नेताओं के पास बात करने की हिम्मत ही नहीं पड़ी कि वे हिंदी में काम नहीं कर सकते.

‘‘हां, जयपालजी, आप के लिए रास्ता निकल गया है. आप जिला अस्पताल जा कर डाक्टरों के पैनल से अपना चैकअप करवा लें और रिपोर्ट ले कर जिला निर्वाचन कार्यालय बेधड़क चले जाएं. आप तो वास्तव में हार्ट पेशेंट हैं. अपनी पिछली सारी मैडिकल रिपोर्ट और इलाज के पर्चे साथ ले जाएं. डा. अनुराग का अपने बैंक में आनाजाना है. हम उन का काम तुरंत कर देते हैं, वे भी आप का काम तुरंत करवा देंगे. बहुत भले आदमी हैं.’’

जयपालजी अपने इलाज की मोटी फाइल बगल में दबाए जिला अस्पताल पहुंच गए. डा. अनुराग से मिले.

डा. अनुराग की तत्परता के कारण वे डाक्टरों के पैनल के सामने शीघ्र पेश कर दिए गए. अन्य 2 डाक्टरों ने भी उन की फाइल उलटीपलटी और उन का कोई चैकअप नहीं किया गया. यह भी स्पष्ट कर दिया कि उन के पक्ष में रिपोर्ट मिल जाएगी पर इस काम के लिए 1,500 रुपए लगेंगे.

जयपालजी को यह जान कर अटपटा लगा कि काम तो यह सरकारी है, फिर 1,500 रुपए किस बात के. उन्होंने प्रश्नभरी दृष्टि से डा. अनुराग को देखा तो डा. अनुराग ने कहा, ‘‘जयपालजी आप असमंजस में न पड़ें. मेरे चैंबर में जा कर बैठें. मैं थोड़ी देर में आप के पास आता हूं. कुछ और केस निबटाने हैं.’’

जयपालजी कमरे से बाहर निकले तो देखा कि उन की तरह इलाज की मोटीमोटी फाइल लिए बीमार से लगने वाले कुछ लोग पैनल के सामने पेश होने को लाइन में खड़े थे.

1 घंटा बीत जाने के बाद डा. अनुराग अपने चैंबर में आए तो जयपालजी कुरसी से खड़े होने लगे. आते ही उन्होंने कहा, ‘‘बैठिएबैठिए, सब ठीक है. हम लोगों ने आप के फेवर में रिपोर्ट तैयार करने को रिकमंड कर दिया है.’’

‘‘थैंक्यू, डाक्टर साहब, लेकिन 1,500 रुपए की डिमांड की गई है…’’ दबी जबान में जयपालजी कह पाए.

‘‘देखिए जयपालजी, आप वाकई बीमार हैं, हार्ट पेशेंट हैं. ज्यादा टैंशन न लें. इलैक्शन ड्यूटी आप की सेहत के लिए ठीक नहीं है.’’

‘‘लेकिन डाक्टर साहब 1,500…’’

‘‘1,500 कोई ज्यादा नहीं हैं, भई 3 डाक्टर्स इस पैनल में हैं. सभी अपनाअपना काम छोड़ कर लगे हैं. 1,500 ज्यादा लगते हैं तो मैं अपनी फीस छोड़ देता हूं. आप 1 हजार रुपए दे दीजिए.’’

‘‘पर डाक्टर साहब, मेरे पास तो 1 हजार भी नहीं हैं इस समय…’’

‘‘कोई बात नहीं, कितने हैं?’’

‘‘800.’’

‘‘ठीक है, 800 ही दे कर आप छुटकारा पा लीजिए,’’ बड़ी सफाई से डील फाइनल करते हुए उन्होंने कौलबैल का बटन दबाया.

‘टन’ की आवाज होते ही हाजिर हुए चपरासी को आदेश दिया, ‘‘इन साहब को ले जाइए, इन का सर्टिफिकेट तुरंत बनवा दीजिए.’’

जयपालजी की जेब तो जरूर हलकी हुई लेकिन उन के पक्ष में जारी हुई मैडिकल रिपोर्ट उन्हें ज्यादा भारी लग रही थी.

चुनाव अप्रैल की अंतिम तारीख को होना था. इस बीच गरमी अपनी दस्तक दे चुकी थी. कुछकुछ दिनों के अंतराल पर कई चरणों के चले प्रशिक्षण कार्यक्रमों में सभी को भलीभांति सिखा दिया गया कि किस तरह मतदान कार्य संपन्न करना है. आखिरी प्रशिक्षण में एक लंबा भाषण पिलाया गया :

सभी को निडरता से निष्पक्ष हो कर यह कार्य संपन्न करना है. डर या आतंक फैलाने वाले तत्त्व आप के पास फटक भी नहीं सकते. यहां तक कि प्रदेश की पुलिस भी मतदान केंद्र से 100 मीटर की दूरी पर रहेगी. चुनाव आयोग ने सुरक्षा की तगड़ी और मजबूत व्यवस्था की है.

आप के आसपास पैरा मिलिट्री फोर्स रहेगी. किसी भी अनहोनी को होने के पहले कुचल दिया जाएगा. यह बात आप लोग अपने दिमाग से निकाल दें कि आप अपने सिर पर कफन बांध कर चुनाव संपन्न कराने जा रहे हैं. हालांकि प्रत्येक चुनावकर्मी का पर्याप्त बीमा कवर है. आप अपने कर्तव्य का निर्वाह पूरी तरह करें. किसी भी तरह की कोताही या बाधा आप की ओर से चुनाव कार्य में की गई तो राज्य विरोधी कार्य में जो सजा मिलती है, उसे भुगतना पड़ेगा.

यह भी सख्त हिदायत दी गई कि मतदान केंद्र पर किसी बाहरी व्यक्ति या किसी पार्टी के आदमियों से किसी भी तरह का खानपान स्वीकार नहीं करना है. जिला निर्वाचन कार्यालय से खानपान की कोई व्यवस्था नहीं है. चुनावी ड्यूटी और प्रशिक्षण का निर्धारित मानदेय आप को नकदी के रूप में मिलेगा जो आप लोगों को मतदान केंद्र पर निश्चित रूप से पहुंचा दिया जाएगा. आप को अपने खानपान, बिस्तर आदि की व्यवस्था स्वयं करनी है. इस में यदि आप लोगों को कोई असुविधा होती है तो उसे सहन करना पड़ेगा, इस के अलावा कोई चारा नहीं है. इसे आप लोग एक राष्ट्रसेवा के रूप में और एक चुनौती के रूप में स्वीकार करें. कोई तर्ककुतर्क करने की कोशिश न करें.

कल का दिन आप के पास अपनी व्यवस्था करने के लिए पर्याप्त है. परसों सुबह ठीक 8 बजे आप सभी को अपनी पोलिंग पार्टी संख्या के अनुसार यहीं पहुंचना है. यहां आप को आप के निर्वाचन क्षेत्र व मतदान केंद्र की जानकारी मिल जाएगी. पुराने के बदले नए परिचयपत्र, वोटिंग मशीन व अन्य चुनाव सामग्री मिल जाएगी.

आप को अपनी पोलिंग पार्टी के साथ प्रस्थान करना होगा. शाम तक हर हालत में मतदान केंद्र पर पहुंच जाना है. रात वहीं बितानी है क्योंकि अगले दिन सुबह ठीक 7 बजे मतदान प्रक्रिया आरंभ करा देनी है. मतदान केंद्र तक पहुंचाने और वापसी की पर्याप्त व्यवस्था की गई है. आप सभी को जिला निर्वाचन कार्यालय की ओर से बहुतबहुत शुभकामनाएं कि आप सब अपना कर्तव्य निर्वाह करने में पूर्ण सफल रहें, धन्यवाद.

मनुष्य को भले ही संवेदनाहीन समझ लिया गया हो लेकिन यह जरूर जता दिया गया था कि अमुक क्षेत्र के पोलिंग बूथ संवेदनशील हैं, उन पर विशेष सुरक्षा प्रबंध किए गए हैं. बहुत सतर्कता से कर्तव्य निर्वाह करना होगा. लोगों की जरूरत को देखते हुए बाजार भी संवेदनशील हो गया था. ‘विशेष चुनावी पैक’ तैयार हो गए थे जिन में 2 दिन की जरूरत का सामान खास कीमत पर उपलब्ध था, जैसे चने, सत्तू, पानी के पाउच, बिस्कुट, नमकीन, ब्रैड, मच्छर दूर भगाने की क्रीम या कौइल, सिरदर्द व बुखार से लड़ने वाली टेबलेट्स आदि.

ऐसा ही एक पैक ले कर भरत जब घर पहुंचे तो मिसेज भरत ने सहानुभूति भरी नजरों से उन का स्वागत किया.

– क्रमश:

भारतीय अर्थव्यवस्था का टोलफ्री नंबर

भारतीय अर्थव्यवस्था के कौल सैंटर में आप का स्वागत है.यहां आप को गरीबी, महंगाई, भ्रष्टाचार से ले कर शेयर बाजार और लुढ़कते रुपए से बात करने का मौका मिलेगा, बशर्ते आप आम नागरिक हों. और हां, करप्शन के इस दौर में गारंटी की इच्छा कतई न करें.

‘ट्रिन…ट्रिन…ट्रिन…’ फोन की मधुर ध्वनि सुनाई पड़ती है. पर इस समय उसे उठाने वाला वहां कोई नहीं है. फोन बजता रहता है कि तभी कोई फोन उठाता है.
‘‘हैलो.’’
‘‘नमस्कार, भारतीय अर्थव्यवस्था में आप का स्वागत है. हिंदी के लिए
1 दबाएं, फौर इंगलिश प्रैस 2.’’
(1 दबाने पर)
‘‘यदि आप भारतीय अर्थव्यवस्था के पुराने भुक्तभोगी हैं तो 1 दबाएं. यदि आप नए भुक्तभोगी बनना चाहते हैं तो 2 दबाएं.’’
(1 दबाने पर)
‘‘यदि आप महंगाई  से बात करना चाहते हैं तो 1 दबाएं, भ्रष्टाचार के लिए 2 दबाएं, घोटाले के लिए 3 दबाएं, गरीबी के लिए 4 दबाएं, बेरोजगारी के लिए 5 दबाएं, गिरते शेयर बाजार के लिए 6 दबाएं, लुढ़कते रुपए के लिए 7 दबाएं, काले धन के लिए 8 दबाएं, इस संदेश के दौरान कभी भी पीएम से बात करने के लिए
9 दबाएं, पिछले मैन्यू में जाने के लिए हैश दबाएं.’’
(1 दबाने पर)
कुछ समय तक सुरीली धुन बजती रही.
‘‘कृपया प्रतीक्षा करें. महंगाई अभी दूसरे कौल पर व्यस्त है. कृपया लाइन पर बने रहें. जल्द ही हम आप की बात महंगाई से करवाएंगे, धन्यवाद.’’
फिर बहुत देर तक वही धुन बजती रही.
‘‘कौल को होल्ड करने के लिएक्षमा चाहती हूं. मेरा नाम महंगाई है, मैं किस प्रकार आप की सहायता कर सकती हूं?’’
‘‘हैलो, मैं एक आम नागरिक बोल रहा हूं. मैं यह जानना चाहता हूं कि आप कब तक यों ही बढ़ती रहेंगी?’’
‘‘जी, आम नागरिकजी, मैं जरूर इस बारे में आप की सहायता करूंगी. क्या इस के  लिए मैं आप को कुछ देर के लिए होल्ड कर सकती हूं,
आम नागरिकजी?’’
‘‘जी.’’
फिर कुछ देर के लिए सुरीली धुन सुनाई देती है.
‘‘जी, आम नागरिकजी, कौल को होल्ड करने के लिए धन्यवाद. मैं आप को बताना चाहूंगी, आम नागरिकजी कि आप के द्वारा मांगी गई जानकारी अभी हमारे पास उपलब्ध नहीं है. क्या मैं आप की अन्य कोई सहायता कर सकती हूं, आम नागरिकजी?’’
कुछ देर खामोशी रही.
‘‘हैलो, आम नागरिकजी, क्या आप मुझे सुन पा रहे हैं?’’
‘‘जी.’’
‘‘क्या मैं आप की और किसी प्रकार से सहायता कर सकती हूं,
आम नागरिकजी?’’
‘‘जी, क्या मैं उन लोगों से बात कर सकता हूं जो आप को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं?’’
‘‘जी, आम नागरिकजी, अवश्य ही मैं आप की उन लोगों से बात करवाती हूं, जो इस के लिए जिम्मेदार हैं. कृपया लाइन पर बने रहिए.’’
‘‘जी.’’
फिर कुछ समय तक वही सुरीली धुन बजती रही.
‘‘जी, आम नागरिकजी, क्षमा चाहती हूं, सभी जिम्मेदार लोग अन्य कौल पर व्यस्त हैं. कृपया कुछ देर बाद कौल करें. भारतीय अर्थव्यवस्था में कौल करने के लिए धन्यवाद.’’
(पी…ऽऽ पी…ऽऽ पी…ऽऽ)
फोन डिस्कनैक्ट हो गया था. आम नागरिक फिर से वही नंबर डायल करने लगा था, क्योंकि उस की शंकाओं का समाधान अभी नहीं हुआ था.

अनुभूति

यह सच है स्वत: सच
तुम यहां कभी नहीं आईं
और न कभी हुआ तुम्हारा
मेरे साथ रहना यहां

फिर भी इन वादियों में
इन पहाडि़यों पर
तुम्हारे रहने की अनुभूति है
एक असीमित अनुभूति

यह मत पूछना क्यों
क्यों होता है ऐसा
जिंदगी में कुछ बातों का
उत्तर नहीं होता.

जुलियस अशोक शा

पाठकों की समस्याएं

मेरे पति 2 भाई हैं. ससुराल वाले देवर को ज्यादा प्यार करते हैं. इन्हें सिर्फ पैसे के लिए पूछते हैं. पति की सारी तनख्वाह घर में खर्च हो जाती है, बचत बिलकुल नहीं हो पाती, बच्चा भी है. पति समझते नहीं, मैं क्या करूं?
अगर पति को घर के खर्च उठा कर खुशी मिल रही है और वे अपने परिवार के लिए कुछ कर के खुश हैं तो आप खर्चों को ले कर परेशान न हों. आप संयुक्त परिवार के उन फायदों का अनुमान नहीं लगा पा रही हैं जो आप को परिवार के साथ रह कर हो रहे हैं.
अगर आप परिवार से अलग जा कर रहेंगी तो न केवल खर्चे और अधिक बढ़ जाएंगे, बच्चे की अच्छी परवरिश, जो संयुक्त परिवार में हो रही है, उस से भी वंचित रह जाएंगी. साथ ही, पति को परिवार से अलग करने की नाराजगी भी आप को सहनी पड़ेगी. इसलिए व्यर्थ की बातों में ध्यान न लगा कर पति के सुख और संयुक्त परिवार के फायदों
को देखें.

मैं एक व्यक्ति से बहुत प्यार करती हूं. उन्हें जान से ज्यादा चाहती हूं. वे भी मुझे चाहते हैं. मेरी समस्या यह है कि वे अपनी मरजी से फोन करते हैं. मैं फोन करती हूं तो नाराज हो जाते हैं. मैं ने उन्हें भुलाने की बहुत कोशिश की पर भुला नहीं पाई. मैं जहर खा कर उन की जिंदगी से हमेशा के लिए चली जाना चाहती हूं, क्योंकि मुझे लगता है, मैं उन के बिना जी नहीं पाऊंगी. आप ही बताइए, मैं क्या करूं?
अगर आप उन्हें प्यार करती हैं और वे भी आप को प्यार करते हैं तो समस्या कहां है. रही मरजी से फोन करने की बात, तो हो सकता है जब आप फोन करती हों वे अति व्यस्त हों, इसलिए नाराज हो जाते हों. जब वे फ्री होते हैं तो खुद आप को फोन करते ही हैं. प्यार में छोटीछोटी बातों को ले कर परेशान न हों और एकदूसरे के साथ एंजौय करें.

मैं दीदी के देवर से बहुत प्यार करती हूं. दीदी ने मम्मीपापा से कह दिया कि देवर का किसी और लड़की के साथ रिश्ता है, जबकि वास्तव में ऐसा कुछ नहीं है. अब मम्मीपापा मेरा रिश्ता कहीं और तय कर रहे हैं. हम दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करते हैं. डर के मारे मैं मम्मीपापा को भी कुछ नहीं कह पा रही हूं. मैं ऐसा क्या करूं कि मेरा प्यार भी मुझे मिल जाए और मम्मीपापा भी गुस्सा न हों?
अधिकांश पारिवारिक कार्यक्रमों में लड़कियों को अपनी दीदी के देवर से बारबार मिलना होता है. हर लड़की को दीदी के देवर से प्यार का आभास होता है जबकि वास्तव में वह प्यार ही हो, ऐसा जरूरी नहीं. आप सोचिए, आप की दीदी आप के बारे में गलत क्यों सोचेंगी? दीदी की बातों को अनदेखा न करें. हो सकता है उन के देवर का सचमुच किसी और लड़की से रिश्ता हो और वे नहीं चाहती हों कि आप की जिंदगी बरबाद हो. इसलिए तथ्यों को अनदेखा न करें और भावनाओं में बह कर कोई गलत कदम न उठाएं.

मैं विवाहित महिला हूं. मेरे 2 बच्चे हैं. पति पिछले 9 साल से विदेश में हैं. इसी बीच मुझे एक अविवाहित लड़के से प्यार हो गया. पहले उस ने मुझ से वादा किया था कि वह पूरी जिंदगी मेरे साथ रहेगा पर अब वह कहीं और शादी करना चाहता है. उस से अलग होने का खयाल मुझे इस कदर परेशान कर रहा है कि मैं अपने बच्चों की ओर भी ध्यान नहीं दे पा रही हूं. उस ने मेरे साथ बेवफाई की है, मेरी जगह वह किसी और को कैसे दे सकता है? मैं बहुत परेशान हूं.
पति की इतनी लंबी अनुपस्थिति में किसी अन्य पुरुष की तरफ लगाव हो जाना स्वाभाविक है. आप ने जिस लड़के से प्यार किया, अच्छा समय बिताया, अब वह किसी और से शादी करना चाहता है तो इस में गलत क्या है? क्या आप विवाहित नहीं हैं, क्या आप ने पति के साथ बेवफाई नहीं की है?
आप उस लड़के को दोष क्यों दे रही हैं, आप सिर्फ इस बात में खुश रहिए कि उस लड़के ने पति की अनुपस्थिति में आप का साथ दिया. इस से और अधिक की उम्मीद रखना आप की बेवकूफी होगी. हां, अपने इस रिश्ते को ले कर अपने मन में कोई अपराध भाव न रखें और आगे के जीवन व घरपरिवार के बारे में सोचें. इस बारे में सभी बातें गुप्त रखें और मोबाइल पर फोटो, कौंटैक्ट डिटेल न रखें.

मैं फरीदाबाद में संयुक्त परिवार में रहती हूं. हमारा दिल्ली में भी एक घर है और घर वाले चाहते हैं कि हम वहां चले जाएं. पर मेरे पति इस बात के लिए तैयार नहीं हैं. उन का कहना है कि दिल्ली में रहने व शिक्षा का खर्च फरीदाबाद से ज्यादा है. दरअसल, हमारा बेटा अभी 8वीं कक्षा में है और उस की शिक्षा व भविष्य के बारे में सोचते हुए भी मेरे पति दिल्ली जाने को तैयार नहीं हैं. पति की नौकरी भी शिफ्ट वाली है. समझ नहीं आ रहा क्या करूं?

पति अगर परिवार से अलग नहीं होना चाहते और परिवार वाले चाहते हैं कि आप दिल्ली चले जाएं तो इस में कहीं न कहीं समस्या आप के व ससुराल वालों के बीच है. आप देखें कि कहीं ससुराल वालों को आप से कोई परेशानी तो नहीं. हो सकता है आप का ससुराल वालों के प्रति व्यवहार या रहने का रंगढंग, उन्हें न भा रहा हो और इसीलिए वे चाहते हों कि आप दिल्ली शिफ्ट हो जाएं. पति के न चाहते हुए दिल्ली जाना आप के लिए परेशानी का सबब बन सकता है, इसलिए खुद को परिवार वालों के हिसाब से ढालें.
वैसे भी अगर पति की नौकरी शिफ्ट वाली है तो नए शहर में अकेले रहना, बच्चे की परवरिश अकेले करना आप की समस्याओं को बढ़ा सकता है. सो पति अगर दिल्ली नहीं जाना चाहते तो उन्हें मजबूर न करें, वरना आप के व पति के रिश्ते में भी परेशानियां बढ़ सकती हैं.

सूक्तियां

आदत
ईमानदारी, भलमनसाहत और परिश्रम करने की आदत हम बचपन में अपने घर में ही सीख सकते हैं. अगर किसी बच्चे में इन गुणों के बीज बो दिए जाएं और कुछ वर्षों तक उन्हें अच्छी तरह सींचा जाए तो उस में से गुणों के ये पौधे आसानी से नहीं उखाड़े जा सकते.
अवसर
मौके सभी की जिंदगी में आते हैं, लेकिन बहुत कम लोग उन्हें पहचान पाते हैं, उन्हें पहचानने और इस्तेमाल करने का सही तरीका है कि हम अपने रोज के काम को पूरी ईमानदारी व मेहनत से करते रहें.
अहंकार
अहंकारी को लगता है कि मैं न हुआ तो दुनिया नहीं चलेगी. जबकि सचाई यह है कि मैं ही क्या, सारा जग भी न हुआ तो भी दुनिया चलती रहेगी.
अज्ञान
अज्ञान से घमंड बढ़ता है. जो अपने को सब से अधिक ज्ञानी समझते हैं वे सब से बड़े मूर्ख होते हैं.
अवस्था
20 वर्ष की उम्र में मनुष्य की अभिलाषा प्रधान होती है, 30 वर्ष की अवस्था में बुद्धि औ?र 40 वर्ष की अवस्था में निर्णय.

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