अवकाशप्राप्त सैनिकों की पैंशन का मामला सरकार के लिए गले की हड्डी बन गया है. देश की सेवा में लगे रहे जवानों व अफसरों को जीवनभर पैंशन दी जाए, यह तो माना जा सकता है पर कितनी, यह सरकार की जेब पर निर्भर करता है. देश सैनिक सेवा के दौरान दिए जाने वाले वेतनों, भत्तों और खर्चों को तो वहन कर सकता है पर जब सैनिक घर आ जाएं तो भी वे मोटा पैसा पाते रहें, यह कुछ अजीब है. सैनिक अवकाश प्राप्ति के बाद हाथ न फैलाएं, यह तो स्वीकार है पर उन का बोझ सरकार और जनता पर जब जरूरत से ज्यादा हो जाए तो खलेगा ही, खासतौर पर जब उन की संख्या बहुत ज्यादा हो, लंबे समय तक पैंशन पाने के अधिकारी हों और अन्य कार्य करते हुए कमाने का हक भी रखते हों. वित्त मंत्री अरुण जेटली के लिए यह मुद्दा बहुत भारी है.

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