भारत व पाकिस्तान वार्त्ता का एक और राउंड टांयटांय फिस हो गया, वार्त्ता शुरू होने से पहले ही. दोनों देशों के बीच संबंध सुधारने पर उफा में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने बातचीत के जरिए असहमतियों पर समझौते करने में रुचि दिखाई थी पर दोनों तरफ के कट्टरपंथियों को यह बात सुहाई नहीं और नाटकीय घटनाओं के चलते बातचीत न हो सकी. एक ही खून के 2 देशों में इस तरह के विवादों और मानमनौअल के खेल चलते रहते हैं. दोनों देशों की जनता का एक बड़ा वर्ग चाहता है कि सरकारी स्तर पर चाहे कुछ भी होता रहे, आम जनजीवन दोनों देशों की आपसी दोस्ती और लेनदेन के स्तर पर चलता रहे. पर ऐसा होता नहीं है. अलग हुए इन देशों की सरकारें हमेशा युद्ध का सा माहौल बनाए रखती हैं और एकदूसरे को दुश्मन कह कर अपनेअपने नागरिकों को भरमाए रखती हैं.
भारत व पाक के बीच रिश्ते ऐसे हैं कि चाहे जो कर लो, सुधर नहीं सकते. ये पड़ोसी देश धर्म के गंभीर मामले को ले कर अलग हुए थे. जहां पाकिस्तान के कुछ लोगों के मन में कसक है कि जिस पूरे देश पर उन के पुरखों ने सदियों राज किया है, वह उन के हाथ से निकल गया, वहीं भारतीयों को लगता है कि उन के मुंह का निवाला छीन लिया गया और अंगरेजों से आजादी पाने की उन्हें पाकिस्तान दे कर भारी कीमत चुकानी पड़ी है. भारत में बसी बड़ी मुसलिम आबादी दूसरे भारतीयों को संशय में रखती है कि कहीं पाकिस्तान वाले उस का दुरुपयोग न करें. कश्मीर के मामले को ले कर पाकिस्तान बेहद नाराज है क्योंकि उस ने अगर विभाजन का कड़वा घूंट पी भी लिया था तो मुसलिम बहुल कश्मीर को भारत की तरफ जाता देख उसे आज तक स्वीकार न हुआ. दोनों देशों की सरकारें एकदूसरे देश की जनता पर बंधन लाद कर अपनी जिदों पर अड़ी रहना चाहती हैं.