भारत में सुन्नी मुसलमानों की संख्या शिया मुसलमानों से कहीं ज्यादा है पर फिर भी भारत के लिए शिया बहुल ईरान, शिया बहुल इराक व अन्य शिया बहुल देशों से संबंध सुधारना ज्यादा अच्छा रहेगा, चाहे देश के सुन्नी नाराज रहें. कारण यह है कि पाकिस्तान लंबे समय से सुन्नी मुसलिम देशों का अभयदान पाता रहा है और उन से भारी आर्थिक सहायता लेता रहा है. भारत की विदेश नीति में शिया शासकों से दोस्ती को मजबूत करने को शामिल करना देश की शांति के लिए बहुत जरूरी है. अब तक शिया और सुन्नी मतभेद गौण थे पर जब से इराक का तख्ता पलटा है और सीरिया के शिया शासक व सुन्नी विद्रोहियों में जंग छिड़ी है, यह मामला अहम बनता जा रहा है. कांगे्रस सरकारें सुन्नी मतदाताओं को रिझाने के लिए शिया शासकों को दूसरे दरजे पर रखती रही हैं. जबकि दुनिया के सभी सुन्नी शासकों की पहली पसंद सुन्नी बहुल पाकिस्तान रहा है, भारत नहीं. भारतीय जनता पार्टी, जो सुन्नी मुसलमान वोटरों पर निर्भर नहीं है, इस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार शिया देशों का साथ देगी तो पाकिस्तान के साथ उस की सुन्नी देशों से प्रतिस्पर्धा कम हो जाएगी.

अमेरिका-ईरान समझौते से शिया बहुल देशों में एक नई आशा उमड़ी है. वे ईरानी, जिन्होंने 1 वर्ष से ज्यादा समय तक ईरान की राजधानी तेहरान में अमेरिकी दूतावास के कर्मचारियों को बंदी बना कर रखा था, इस समझौते पर नाराज होने के बदले खुश हैं तो इसलिए कि उन्हें सुन्नी ताकतों के बढ़ने व उन्हें कू्रर व बेरहम होते देख अमेरिकी साथ की जरूरत महसूस होने लगी है. साथ ही, सालों से ईरान पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों के हटने से ईरानियों को आशा है कि वहां महंगाई कम होगी और ईरान को उस के तेल के अच्छे दाम मिलने लगेंगे. सुन्नी मुसलमान ही इस्लामिक स्टेट को चला रहे हैं जिन्होंने इराक, सीरिया, मिस्र में तहलका मचा रखा है और जो अलकायदा की जगह ले रहे हैं. अलकायदा आतंकवादी भी सुन्नी ही हैं. पाकिस्तान सरकार व सेना सुन्नी देशों को सैनिक तकनीक व परमाणु बम का संरक्षण दे रही है. पाकिस्तान के पड़ोसी ईरान को इस समय दोस्तों की जरूरत है और भारत एक अच्छा साथी साबित हो सकता है. ईरान से संबंधों को और मजबूती दे कर भारत पाकिस्तान को घेरने में भी सफल हो सकता है. वैसे यह मजेदार बात है, जैसे हमारे इतिहास में दस्युओ और देवताओं के बाद शैवों व वैष्णवों के मध्य भीषण युद्ध हुए, वैसे ही 21वीं सदी में शिया और सुन्नी दोनों इसलाम धर्म के मानने वाले मुसलमान होते हुए भी मारकाट व शहर जलाओ प्रतियोगिता में लगे हैं. स्पष्ट है कि धर्म शांति का जो संदेश देता है वह बातों का है. असल में तो धर्म हिंसा, मौत, लूट, बलात्कार का एजेंट है. धर्म का बिल्ला चाहे जो भी हो, फर्क नहीं पड़ता. अगर धर्मभक्त होंगे तो युद्ध झेलने होंगे ही.

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