लेखिका-गीतांजलि चौधरी

सारी कायनात में महिलाओं के शोषण का एकमात्र कारण रहा है उन के इतिहास का न होना, उन की नायिकाओं की कहानियों का न होना. नारी के योगदान को जीवन के हर क्षेत्र में गौण रखने की कवायद दुनिया के सारे समाजों में अनंत काल से जारी है. दरअसल, विश्व में सभ्यता के विकास का इतिहास और नारी जाति के दमन का इतिहास समानांतर चला है.

महिलाओं को सदैव कमजोर माना गया और उन्हें समाज में दोयम दर्जा दिया गया. इस बात की प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिए आदम व ईव की कहानी, ऋ ग्वेद और अथर्ववेद के श्लोक काफी हैं. बौद्ध धर्म में महिलाओं को मठों में प्रवेश तो मिला लेकिन उन्हें सभी पापों की जड़ भी माना गया. इसलाम धर्म हो या ईसाई धर्म, दोनों ही धर्मों में पुरुषों को प्रधानता दी गई. महिलाओं के लिए 2 दर्जे तैयार किए गए, एक सेविका का और दूसरा देवी का. उन्हें कभी भी सामान्य मनुष्य की श्रेणी में नहीं रखा गया.

ये भी पढ़ें- Ye Rishta Kya Kehlata Hai : सीरत की शादी में होगी रणवीर के पिता की

परंतु धीरेधीरे संभ्रांत परिवार की स्त्रियों को शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिला और उन के बौद्धिक संपदा का विस्तार हुआ. शिक्षित स्त्रियों ने अपने विचारों को सार्वजनिक रूप से रखना आरंभ कर दिया. विभिन्न नारीवादी लेखिकाओं ने प्रबुद्ध महिलाओं को नायिका बना कर समाज को यह सोचने को मजबूर कर दिया कि यदि औरतों को अनुकूल माहौल मिले तो वे मर्दों के समान समाज में सकारात्मक योगदान दे सकती हैं.

वक्त बदला और महिलाओं ने अपनी प्रतिभा का लोहा सारी दुनिया से मनवाया. व्यावसायिक, व्यावहारिक और पारिवारिक जीवन में अपनी सक्रिय भूमिका से समाज में उन का दबदबा कायम हुआ. बेशक आज भी महिलाओं को तमाम असमानताओं व परेशानियों से लगातार रूबरू होना पड़ रहा है, पर फिर भी आज वे काफी बेहतर स्थिति में हैं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...