जैनेरिक दवा की जरूरत
जैनेरिक दवाओं ने दुनियाभर में लोगों के लिए सस्ती दवाओं को सुलभ बनाने में अहम भूमिका निभाई है. कारण यह है कि ब्रैंडेड दवाएं काफी महंगी मिलती हैं. जैनेरिक दवा में वही तत्त्व होते हैं जो ब्रैंडेड दवा में होते हैं. भारत में भी जो दवा मानकों पर खरी नहीं उतरतीं उसे बेचने की मंजूरी नहीं मिलती है. ब्रैंडेड और जैनेरिक दवाओं की कीमतों में अंतर गुणवत्ता से नहीं, बल्कि सिर्फ मार्केटिंग की वजह से होता है. ब्रैंडेड दवाओं के विज्ञापन और पेटैंट के चलते वे महंगी बिकती हैं. जबकि जैनेरिक दवाओं को बिना विज्ञापन के सीधे बेचने वाले को ज्यादा फायदा मिलता है, इसलिए वे सस्ती होती हैं. ब्रैंडेड दवाओं को डाक्टर परचे पर लिखते हैं जबकि जैनेरिक दवाएं मैडिकल स्टोर वाले बेचते हैं. सस्ती होने की वजह से सरकारी अस्पतालों में भी जैनेरिक दवाओं के और्डर दिए जाते हैं. ब्रैंडेड जैनेरिक दवाओं के फायदे में एक और बात आती है कि मरीजों को जानकारी न होने की वजह से भी वे डाक्टरों के कहने पर उन्हें ही लेते हैं. भारत में कई समितियां सिफारिश कर चुकी हैं कि धीरेधीरे जैनेरिक दवाओं को ब्रैंडविहीन कर देना चाहिए. हाल यह है कि भारत में 41 फीसदी बाजार 10 कंपनियों के हाथ में है और 100 कंपनियां मिल कर 95 फीसदी हिस्से पर कब्जा जमाए बैठी हैं. दवा के नुसखों का भी ऐसा ही हाल है. आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले 2,583 में से 86 फीसदी यानी 2,230 नुसखे कुछ ही हाथों में हैं.
बहरहाल, अच्छी बात यह है कि हाल ही में इंडियन मैडिकल एसोसिएशन ने नई दिल्ली के आईपी एस्टेट में स्थित आईएमए मुख्यालय परिसर में जन औषधि मैडिकल स्टोर खोला है. इस स्टोर में आमतौर पर प्रयोग की जाने वाली 118 दवाएं अपने जैनेरिक फौर्म में बाजार दरों के मुकाबले 80 से 90 प्रतिशत कम कीमत पर मुहैया होंगी. इस स्टोर पर उपलब्ध सभी दवाएं भारत सरकार के जन औषधि विभाग से प्रमाणित होंगी और जिन की गुणवत्ता भारत के सार्वजनिक क्षेत्र की ईकाई ब्यूरो औफ फार्मा द्वारा सत्यापित होगी.
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मिथक विज्ञान और समाज
पीएम नरेंद्र मोदी के भारत के मिथकों और पौराणिक चरित्रों को भारत की पुरानी ज्ञानविज्ञान की उपलब्धियों से जोड़ने पर फिर से बहस हो रही है कि आज के वैज्ञानिक चमत्कार आज से 5 हजार साल पहले अस्तित्व में थे या नहीं. भारत की दंतकथाओं में शामिल चरित्रों के साथ होने वाले चमत्कार को लोग प्राचीन विज्ञान का नमूना कहते हैं, जिस में हवा में उड़ते रथ, 10 सिर, घातक अस्त्र, मानव के शरीर पर हाथी का शरीर, मछली मानव, सिंह मानव शामिल हैं. ऐसी दंतकथाएं हर समाज में मौजूद हैं लेकिन इन को विज्ञान से जोड़ने का काम हर जगह नहीं होता. बेशक, कल्पनाएं वैज्ञानिक आविष्कारों के लिए एक जबरदस्त सृजनात्मक ताकत रही हैं और अगर हम अंगरेजी साइफाइ साहित्य को पढ़ें तो अंतरिक्ष की सैर के युग में पहुंच जाते हैं. हालांकि इन के अंतरिक्ष बिलकुल अलग होते हैं. रोबोट और कंप्यूटर भी असल जिंदगी से पहले किताबोंकहानियों में ही आए. कभीकभार ऐसी कल्पनाएं भविष्यदृष्टा शामिल हुई हैं. लेकिन हमारे सामने सवाल यह है कि भारत में जो दावा किया जा रहा है कि हम इसे अतीत से जोड़ें या भविष्य से? मिस्र, भारत, यूनान, चीन के मिथक रचयिताओं ने ऐसे कई पारलौकिक किरदार गढ़े हैं. समझदारी यह होगी कि इसे इतिहास और विज्ञान से न जोड़ा जाए. दंतकथाएं मिथक होती हैं जबकि इतिहास वास्तव में हुई घटनाओं का लेखाजोखा और विज्ञान उसी का एक हिस्सा होता है. इन की जगह पर माइथोलौजी को रखना गलत है.
आविष्कार कई चरणों और परीक्षणों से हो कर गुजरते हैं. तभी वायुयान जैसे नतीजे सामने आते हैं. किसी भी मिथक के चमत्कार में इन परीक्षणों का कोई परिणाम नहीं है. यह कहना किवैज्ञानिक आविष्कार तब भी थे जब उन के लिए न तो जरूरी ज्ञान का आधार तैयार था, न ही ऐसा ज्ञान मौजूद था, विज्ञान के साथ खिलवाड़ है. मिथक और धर्म आसानी से घुलमिल जाते हैं और जब राजनीति और धर्म मिल जाते हैं तो यह कौकटेल काफी खतरनाक होता है.