Hindi Family Story: सविताजी अपने व्यवहार से पूरी सोसाइटी की ‘मिश्राइन ताई’ बन गई थीं. अड़ोसीपड़ोसी सब उन्हें बहुत पूछते थे. लेकिन बेटेबहू को उन की यही नेकनीयती एक आंख न सुहाई. ऐसे में मिश्राइन ताई के सामने एक ही रास्ता रह गया था.
मिश्राइन ताई अकसर कहा करती थीं कि, ‘हम न जाएंगे कभी वृद्धाश्रम. यह हमारा घर है, हम काहे निकलेंगे. घर से ऊं निकलते हैं जिन का अपना घर नहीं होता. हम ने अपनी मेहनत के पैसों से ई घर खरीदा है तो हम कहीं नहीं जावेंगे.’
‘बिलकुल सही. क्यों जाएंगी आप कहीं,’ पड़ोसिन राजश्री ने हंस कर उन का समर्थन किया था.
राजश्री ने जब ‘अपना घर वृद्धाश्रम’ के डाटा में मिश्राइन ताई का नाम सविताजी का देखा तो वह दृश्य उस की आंखों के सामने नाच गया.
प्राइमरी स्कूल की शिक्षिका राजश्री उसी दिन से मिश्राइन ताई के प्रति समर्पित हो गई थी जिस दिन रात के करीब ढाई बजे उस के पति राकेश को हार्टअटैक आया था. उस के सभी रिश्तेदारों ने रात ज्यादा होने का हवाला दे कर साथ न दिया था तब किस तरह मिश्राइन ताई ने रातदिन एक कर के उस की मदद की थी और राकेश के हौस्पिटल ले जाने से घर आने तक, खाना बनाने से ले कर हौस्पिटल ड्यूटी तक सबकुछ मिश्राइन ताई ने संभाल लिया था. आज उन के साथ बुरा हो रहा था तो राजश्री कैसे चुप बैठ सकती थी. खून का रिश्ता न सही, हमदर्दी का रिश्ता तो था ही. उसी रिश्ते के नाते शाम के वक्त राकेश को साथ ले कर वह मिश्राइन ताई के बेटे हरिअंश के पास पहुंची.
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