मौल में आप ऐस्कलेटर पर खड़े हैं. नीचे भीड़ में फैशनेबल दिखने वालों को जांच रहे हैं, आसपास होर्डिंगों पर नजर दौड़ा रहे हैं, ऊपर पहुंचतेपहुंचते दुकानों के उभरते डिस्प्ले आंक रहे हैं. तभी अचानक आप की नजर सामने मौनीटर पर पड़ती है और आप चौंक जाते हैं. अरे, यह तो मैं हूं, अपने आप से कह कर शुरू में तो चौंके, फिर तुरंत, सर्वेलेंस कैमरा है, समझ, मन ही मन मुसकराए और अपने बालों पर हाथ फेर कर उन्हें ठीक करने में लग गए. मौल में सर्वेलेंस होना उचित है. वापस घर में पत्नी का कामकाज में कुछ हाथ बंटाया. बच्चों को होमवर्क में मदद कर सोने भेज दिया. फिर थोड़ी देर कंप्यूटर के सामने बिताया. फेसबुक पर गए, पिछली ऐंट्री में किस ने क्या कमैंट डाले, कितने लाइक्स मिले, नोट किए, ईमेल जांची, थोड़ी खबरें पढ़ीं, फिर इधरउधर की वैब सर्फिंग कर घंटा बिता दिया. सोने जब गए तो तकिए पर सिर रख कर यही खयाल आया न, ‘होम, स्वीट होम’. लेकिन सावधान हो जाइए, कोई आप को अब भी सर्वे कर रहा है.
यह कैमरे वाली सर्वेलेंस नहीं, डेटाबैलेंस की बात हो रही है. वह जो रोज रात को बिना जाने आप इंटरनैट पर खुद अपनी डिजिटल आईडैंटिटी बनाते हैं, आप के व्यवहार, हाल की गतिविधियां, आप के बारे में कोई भी बदलती जानकारी, उस सब पर कोई है जो छिप कर निगरानी रखे हुए है और कर भी क्या सकता है बेचारा. अगर वह सीधेसीधे आप को इन सब जानकारियों के लिए फौर्म पकड़ाए, तो क्या आप उसे भरने को राजी होंगे? वह जो आज औफिस में बौस ने यों ही बातोंबातों में विदेश से बेटे की हवाना सिगार ले कर आने की बात छेड़ी थी और फिर आप ने शाम को इंटरनैट में उत्सुकतावश सिगारों की खोज की थी, तब से आप की आईडैंटिटी पर कोई 4 या 5 सिगरेट कंपनियां रुचि दिखा रही हैं. कल ईमेल खोलिएगा, तो इनबौक्स में न सही, स्पैम फोल्डर में उन के संदेश जरूर पाइएगा.
फेसबुक क्या आया, दुनिया की एक- चौथाई जनसंख्या के समक्ष इंटरनैट में अपनीअपनी जीवनियां प्रस्तुत करने का बड़ा मौका सामने आ गया. लेकिन क्या आप को यों नहीं लगता कि आप के जन्म की तारीख से ले कर आप के औफिस के हाल की जानकारियां जरूरत से ज्यादा लोगों के कान में पड़ रही हैं. मेरी बहन भाग्यवंती, जो दिन में 5-6 बार अपना फेसबुक अकाउंट जांचती है, की तो यही शिकायत है कि पता नहीं क्यों इंटरनैट में चाहे जो भी पेज क्यों न खुला हो, बगल में हमेशा वही 50 साल या उस से ऊपर उम्र के दिलचस्प मर्दों से मिलने वाला विज्ञापन दिखता है. हैपिली मैरिड भाग्यवंती को गुस्सा इस बात पर नहीं आता कि इन अमेरिकी डेटिंग कंपनियों की मजाल कैसे हुई मुझे ऐसे ऐड भेजने की, बल्कि वह तो इस बात से चिढ़ जाती है कि मुझे ये लोग हमेशा 50 साल या उस से ऊपर की उम्र वाले मर्द ही क्यों सुझाते हैं.
डेटा माइनिंग की गतिविधियां
फेसबुक के अनुसार, एक महीने के अंदर अमेरिका में 168 मिलियन, ब्राजील में 63 मिलियन, भारत में 62 मिलियन, कुल मिला कर 1 बिलियन से अधिक उपयोगकर्ताओं ने जोरों से फेसबुक का इस्तेमाल किया. गूगल और याहू के आंकड़े भी लगभग इसी के आसपास हैं. ये सभी कंपनियां सोशल मीडिया सर्विस का प्रबंध करने के अलावा, डेटा माइनिंग की गतिविधियों में भी व्यस्त हैं. ये कंपनियां आप में, आप की प्रवृत्तियों और उन में बदलाव खोजने में और आमतौर पर आप के निजी डेटा में बेहद दिलचस्पी रखती हैं. वे आप की और आप के जैसे अन्य उपयोगकर्ताओं के विवरण बड़े डेटाबेसों में इकट्ठा कर के खास कंप्यूटर प्रोग्रामों द्वारा उपयोग करने लायक बना कर रखती हैं जहां से ये जानकारियां आप की आदतों और शौकों में रुचि रखने वाली संस्थाओं, कंपनियों को बेचती हैं. तभी जब आप इंटरनैट में सर्फ कर रहे होते हैं तो पन्नों के किनारों पर वे विज्ञापन होते हैं जो उन के अनुमान के मुताबिक आप के लिए रुचिकर होंगे.
यही बात ईमेलों के साथ भी लागू होती है. ईमेल प्रबंधकों के लिए उपयोगकर्ताओं के ईमेल स्कैन करना आम बात है. मकान खरीदने के सिलसिले में ईमेल लिख रहे हैं तो वैब पेज के अगलबगल में अच्छे रेट का वादा करने वाले बैंकों के इश्तिहार देखने को मिलेंगे. गाड़ी खराब हो गई तो आटो इंश्योरैंस के ऐड, अपनी किताब के लिए पब्लिशर ढूंढ़ रहे हैं तो ऐमेजौन की सैल्फ पब्लिश्ंिग स्कीम बारबार सामने आने लगेगी. यह है आज अमेरिका में इंटरनैट प्रयोगकर्ताओं का हाल, जहां व्यवसायियों में अपने उत्पाद बेचने की होड़ चरम पर है. दुनिया के सभी देशों में शायद स्थिति इस हद तक न पहुंची हो मगर यह जानना जरूरी है कि व्यवसायों का इस प्रकार का व्यवहार आज हर देश में संभव है. इश्तिहार झुंझलाहट ला सकते हैं लेकिन असल में चिंताजनक तो वे ‘बिग ब्रदर’ बड़े भैया हैं जो पीछे से हरदम हम पर निगरानी रखे हुए हैं या उस की सामर्थ्य रखते हैं.
कौन चाहता है ये डाटा
बिग ब्रदर नाम का प्रचलन 1949 में छपी जौर्ज और्वेल के उपन्यास ‘1984’ से हुआ. स्टालिन के सोवियत संघ और द्वितीय युद्धकालीन इंगलैंड में लोकतांत्रिक सिद्धांतों के पतन से प्रेरित 1984 हर नागरिक पर बिग ब्रदर के नेतृत्व में सर्वसत्तावादी समाजवादी पार्टी का लगातार सर्वेलेंस पर एक व्यंग्यात्मक उपन्यास था. आज अमेरिकी सरकार के पैट्रियौट ऐक्ट के तहत अमेरिकी सरकार संदिग्ध जनों की खोज में हर किसी पर कानूनन निगरानी रख सकती है. आप की छोटी से छोटी ‘पोस्ट’, जैसे कि आप ने कोई फिल्म देखी, चाहे वह आप को पसंद आई या न आई हो, आप ने यह बात तुरंत अपने फेसबुक में लिख डाली और आप को लगेगा कि इस महत्त्वहीन बात में कौन दिलचस्पी दिखाएगा, को डेटा माइनर तुरंत दर्ज कर लेता है और इसी तरह की आप के द्वारा इंटरनैट में व्यक्त की गई छोटीबड़ी बातों, आप की गतिविधियों, सर्फिंग की आदतों, विश्वासों, सोशल कनैक्शनों को इकट्ठा कर वह जो आप की विस्तृत रूपरेखा बनाता है, उस को ऐडवाइज और टैलौन जैसे प्रोग्राम का इस्तेमाल कर सरकार यह तय कर सकती है कि आप किसी प्रकार (राजनीतिक या सैनिक तौर) से देश के लिए खतरनाक तो नहीं हैं.
उधर फेसबुक, याहू, गूगल और पिकासा व यू-ट्यूब जैसे अन्य शेयरिंग साइट चीन में संपूर्ण रूप से प्रतिबंधित हैं. जहां एक तरफ चीन में सुधार उस देश को सुदृढ़ रूप से मार्केटअर्थव्यवस्था की ओर ले जा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ इंटरनैट पर ये प्रतिबंध चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का अपने मूल्यों और राजनीतिक विचारधाराओं के संरक्षण हेतु प्रयत्न हैं. ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि चीन में इंटरनैट पर प्रतिबंधों को अमल में लाने के लिए तकरीबन 30 हजार इंटरनैट पुलिस तैनात है. 1980 के दशक में चीनी नेता डैंग शाओ पिंग ने कहा था कि जब ताजी हवा के लिए खिड़की खोलते हैं तो मक्खियां भी अंदर आती हैं. इंटरनैट पर ये प्रतिबंध कुछ उन मक्खियों को मसलने के समान है ं. अजीब विडंबना तो यह है कि इंटरनैट और खासतौर पर फेसबुक के फैलते प्रभाव से प्रेरित आज चीनी सरकार फेसबुक की बड़ी हिस्सेदारी खरीदने के प्रयत्नों में भी लगी है.
बेचना जरूरी है
सरकार और आतंकवादी इंटरनैट का स्वाभाविक इस्तेमाल तो करेंगे ही, लेकिन लोकतंत्र में आम आदमी को शायद कौर्पोरेट बड़े भैया से चौकस रहना ज्यादा जरूरी है. कैपिटलिस्टिक अर्थव्यवस्था में सिर्फ एक चालक है. धन और उपभोक्ताओं के जरिए ज्यादा से ज्यादा धन इकट्ठा करने के प्रयत्नों में व्यवसाय इंटरनैट के इस्तेमाल में सब से अधिक सफल सिद्ध हुए हैं. आज आप के खर्च करने की प्रवृत्ति का पूर्वानुमान लगाने में कंपनियों के लिए आप की निजी साइटों तक पहुंचना अत्यावश्यक हो गया है. इन्हें तो सिर्फ दिलचस्पी है कि जैसे भी हो सके, आप को अपने उत्पाद बेच पाएं, चाहे आप को उस की जरूरत हो या न हो. उदाहरण के तौर पर दुनिया के सब से ज्यादा इस्तेमाल किए जाने वाले खोज इंजन गूगल की कार्यशैली देखिए :
18 महीनों की अवधि तक गूगल अपने इंजन से की गई हर खोज आईपी ऐडे्रस समेत अपने डेटाबेस में रखती है.
अपनी जीमेल सेवा के प्रयोक्ताओं की ईमेलें स्कैन कर उन की रुचि के ऐड उन के स्क्रीन में लगातार पेश करती है.
अपने ‘कुकीज’ आप के कंप्यूटर में छोड़ कर इंटरनैट में आप की संपूर्ण गतिविधियों को लगातार ट्रैक करती रहती है और इस तरह आप की सर्फिंग की आदतों को समझती है. फिर आप की रूपरेखा तैयार कर अन्य कंपनियों को बेचती है.
कइयों को व्यवसायों के इस ध्येय से ज्यादा एतराज न भी हो लेकिन ऐसे अनेक लोग भी होंगे जिन्हें अपने निजी जीवन में इन का अनावश्यक हस्तक्षेप नापसंद होगा. कुछ को अनजान लोगों की रुचि का अनुमान लगा कर उन के सामने लगातार कुछ सीमित किस्म के ऐड डालने वाली बात माइंडकंट्रोल के समान लगेगी या खुद अपने शौक की चीज उपलब्ध करने की स्वतंत्रता को छीनने के समान लगेगी. जिस पर औरों का जवाब यह होगा कि आप के सामने कोई कितना भी कुछ पेश करे, आप के निर्णय लेने की जबरदस्ती तो कोई नहीं कर सकता.
शौकों पर नजर
डेटा माइनिंग पूर्णतया कंप्यूटर एल्गोरिश्मों द्वारा किया जाता है. डेटामाइनिंग कंपनियों को हमारे संपूर्ण निजी डेटा को छानने में कोई मुश्किल नहीं होती. ये कंपनियां व्यक्तिगत रूप से हम में रुचि नहीं रखतीं. वे केवल हमारे शौकों और हमारे शौकों में किसी प्रकार की नई तबदीलियों को ढूंढ़ती हैं, फिर भी गूगल, फेसबुक, ट्विटर, विभिन्न ब्लौग व वैबसाइटें हमारी हर छोटीबड़ी हलकीफुलकी बात को दर्ज करती हैं, उन्हें वर्गीकृत करती हैं और औनलाइन में खोजने लायक बनाती हैं. इस तरह से इन का डेटाबेस निश्चित तौर से बहुत बड़ा तो है ही, प्रभावशाली भी कम नहीं है. उदाहरणस्वरूप गूगल के फ्लू ट्रैंड्ज को ही देखें. गूगल के शोधकों ने इंटरनैट में कुछ खोज शब्दों को विश्वभर में डेंगू या फ्लू के उदित होने में अच्छा संकेतक पाया है. और इस तरह उन शब्दों का अनुश्रवण कर वे डाक्टरों से भी पहले विश्व में हर उस जगह, जहां सक्रिय इंटरनैट प्रयोक्ता हैं, महामारी की प्रवृत्ति पहचान सकते हैं.
इसी प्रकार कोई भी नया ट्रैंड, चाहे वह भाषा में हो, वेशभूषा में या उभरते अभिनेता या सैलिब्रिटी, डेटामाइनिंग के जरिए फौरन पहचाना जा सकता है. एक बार ट्रैंड पहचान में आ जाए, उस के उत्थान को एकसाथ जोरदार बढ़ावा दिया जा सकता है. इसी प्रकार के ट्रैंड सुझाते हैं गूगल के गूगल ट्रैंड्ज और गूगल ऐनालिटिक्स. तो डेटामाइनिंग, जो पहली प्रतिक्रिया के रूप में खौफ जगाती है, असल में कई दिलचस्प, बल्कि यों कहना चाहिए कि विकासशील उपयोग रखती हैं. फिर भी जिन लोगों को ये कंपनियां सिर्फ एक अवांछनीय सामाजिक प्रयोग लगती हैं, टैक्नोलौजी के पास उन के लिए भी कोई उपाय हैं. ये लोग याहू जैसे दखलंदाज खोज इंजन का उपयोग छोड़ डकडकगो जैसे इंजन, जो स्वच्छ इंटरफेस प्रदान करने के अलावा प्रयोक्ता को ट्रैक भी नहीं करते, का इस्तेमाल कर सकते हैं. ईमेल में चरम श्रेणी की गोपनीयता चाहते हैं तो विकर का सैल्फडिस्ट्रक्ंिटग मैसेजिंग इस्तेमाल कर सकते हैं. ईमेल में जो मरजी आए लिखें और भेजने से पहले खुद इस के नष्ट होने का वक्त तय करें. तय किए पल के बाद मैसेज का कहीं पर कोई नामोनिशान नहीं रहेगा. वाकई में टैक्नोलौजी हर स्थिति के लिए कुछ न कुछ उपचार ढूंढ़ ही लेती है.