मोदी सरकार के बराए मेहरबानी आजकल हमारे-आपके जेब में राशनिंग थोप दी गयी है. नोट बैन के बाद सरकार का जोर है 'कैशलेस' लेनदेन पर. एक सीमा से अधिक कोई जेब में नकद रख ही नहीं सकता. जाहिर है बाजार में नकदी की किल्लत है और इसके चलते देर-सबेर लोग ई-वालेट पर निर्भर होने को मजबूर हैं. पेटीएम, ई-वालेट, ई-ऑक्सीजन, आईसीआईसीआई बैंक का आई-मोबाइल, पॉकेट्स, स्टेट बैंक बडी, ई-पेमेंट, सिटरस वालेट, पेयूमनी, रुपे और जाने किस-किस की बाजार में सक्रियता बढ़ गयी. जेब में पैसे न होने से लोग ई-वालेट का रूख कर वर्च्युअल पेमेंट कर रहे हैं. इस वर्च्युअल वालेट से एक अलग किस्म का खतरा खड़ा हो गया है.
लेकिन यह सोच लेना कि जनता के जेब में पैसे नहीं हैं तो चोरों और जेबकतरों का बाजार मंदा चल रहा है. वो कहावत है न- चोर चोरी से जाए, पर हेराफेरी से न जाए- इन दिनों यह कहावत खरी उतर रही है. चोर ही डिजिटल हो गए हैं. इनकी चोरी की गिनती साइबर क्राइम के तहत होती है. साइबर विशेषज्ञों की माने तो आजकल डिजिटल चोर पूरे देश में सक्रिय हो गए हैं. इनकी नजर ई-वालेट पर है. ये हमारे-आपके वर्च्युअल वालेट हैक करने की फिराक में हैं. साइबर क्राइम के जानकार पुलिस अधिकारी असित घोष का कहना है कि यह काम इतनी चालाकी से हो रहा है कि आपको कानोंकान खबर नहीं होगी. जब खबर होगी तब तक लोग लुट-पिट चुके होंगे.
वर्च्युअल चोरी या साइबर अपराध का दायरा बढ़ रहा है और साइबर पुलिस के लिए यह एक नई चुनौती के रूप में सामने आया है. पुलिस अधिकारी घोष कहते हैं कि जब हम बैंक के माध्यम से लेनदेन करते हैं तो आज हर बैंक में केवाईसी यानि नो योर कस्टमर फार्म भरना पड़ता है. इसके सपोर्ट में कई दस्तावेज बैंक में जमा करना होता है. लेकिन ई-वालेट के मामले में ऐसा कोई फार्म भरने की बाध्यता नहीं होती. इसी का फायदा मिलता है डिजिटल चोरों को. बड़ी आसानी से ई-वालेट खोल कर वर्च्युअल पैसे उड़ा लेते हैं. ऐसी चोरी की जांच में पुलिस को कई तरह की दिक्कतें पेश आती है.
पता चला दक्षिण 24 परगना में एक व्यक्ति ने अचानक पाया कि उसके एकाउंट से एक बड़ी रकम ऑनलाइन के जरिए गायब हो गयी है. इसकी खबर उसे कुछ दिनों के बाद मिल पायी. पुलिस में इसकी शिकायत की गयी. जांच में पुलिस ने पाया कि उस व्यक्ति के एकाउंट से जो रकम गायब हुई वह ऑनलाइन वालेट के जरिए गायब की गयी थी. उसके ई-वालेट से हजारों रुपए का मोबाइल और डीटीएच रिचार्ज कराया गया था. इसके अलावा मोटे रकम की ऑनलाइन खरीदारी भी की गयी थी.
कोलकाता पुलिस में साइबर क्राइम के एक अन्य अधिकारी का कहना है फर्जी डेबिट कार्ड या क्रेडिट कार्ड तैयार कर लेने या एकाउंट हैक करने की शुरूआत बीत कुछ सालों पहले ही शुरू हो गयी थी. पिन नंबर की चोरी से इस तरह की चोरी को अंजाम दिया जाता रहा है. किसी एकाउंट से बड़ी रकम किसी दूसरे या चोर अपने एकाउंट में ट्रांसफर कर लेता रहा है. लेकिन अब तो वर्च्युअल तरीके से नकदी चोरी हो रही है.
साइबर कानून के जानकार विभास चटर्जी का कहना है कि बैंक में एकाउंट खोलने का काम रिजर्व बैंक के दिशानिर्देश के तहत होता है. जिस किसीको एकाउंट खोलना है, उसे उपयुक्त दस्तावेजों के साथ आवेदन करना पड़ता है. लेकिन ई-वालेट के लिए किसी दस्तावेज की जरूरत नहीं पड़ती है. वर्च्युअल चोरी के मामले में पाया गया है कि झांसा देनेवाला या ठगी करनेवाला कुछ समय के लिए ग्राहक का वर्च्युअल पैसा अपने ई-वालेट में रख कर उसका इस्तेमाल कर सकता है. इसे एक गेटवे की तरह इस्तेमाल करता है. ऐसी ठगी पर रोक लगाने के लिए ई-वालेट एकाउंट खोलने के मामले में कुछ खास तरह का नियंत्रण लगाना भी जरूरी है.
इसके अलावा और भी कई तरीके हैं ई-वालेट से चोरी या ठगी हो सकती है. ई-वालेट के लिए स्मार्टफोन और उसका फोन नंबर काफी है. कभी फोन चोरी होने पर या फोन हैक कर लिये जाने पर इस तरह को चोरी आसान हो जाती है. फोन हैक भर कर लेने से फोन के जरिए आपका सब कुछ साइबर चोर के हाथों में पड़ जाता है.इंडियन स्कूल औफ एथिकल हैकिंग के संदीप सेनगुप्ता का कहना है कि आज भी बहुत सारे लोग हैं जो अपने स्मार्टफोन में एंटीवायरस नहीं लगा कर रखते हैं. बगैर एंटीवायरस के विभिन्न तरह के वेबसाइट पर अपने फोन के जरिए जाते हैं. ऑनलाइन खरीदारी भी करते हैं. फोन पर असुरक्षित ब्राउज के कारण ट्रोजन या मैलवायर फोन पर पहुंचा दिया जाता है. इन ट्रोजन और मैलवायर के जरिए फोन हैक हो जाता है. एक बार फोन हैक हो गया तो फोन के जरिए तमाम निजी जानकारी हैकर के हाथ लग जाती है. जाहिर है फोन के साथ ई-वालेट भी हैकर के हाथ लग ही जाता है. इसीलिए सावधान! साइबर चोर आपके ई-वालेट की ताक में हैं.