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कामिनी को ले कर महीप अगले दिन सुबहसुबह स्वामीजी के आश्रम में चला गया. प्रवचन शुरू होने में समय था इसलिए कुछ लोग ही थे वहां पर. कामिनी सब से आगे की पंक्ति में बैठ गई. महीप उन लोगों की लाइन में लग गया जो आज स्वामीजी का विशेष दर्शन करना चाहते थे. यह दर्शन प्रवचन के बाद स्वामीजी के कमरे में होते थे. कितना समय स्वामीजी के साथ व्यतीत करना है उस के अनुसार पैसे दे कर पर्ची काटी जाती थी.

प्रवचन शुरू होतेहोते बहुत लोगों के एकत्र हो जाने से वहां काफी भीड़ हो गई थी. नीचे मोटी दरी बिछी थी जहां बैठे लोग बेसब्री से स्वामीजी के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे. स्वामीजी जल्द ही आ गए. पीली धोती, पीला कुरता, माथे पर लंबा तिलक. भीड़ पर मुसकान फेंकते स्वामीजी सिंहासननुमा कुरसी पर विराजमान हो गए. व्याख्यान आरंभ करते हुए बोले, “आज मैं उन स्त्रियों के विषय में बताऊंगा जो पति की आज्ञा का पालन नहीं करतीं और उन की सेवा न करने पर उन्हें अगले जन्म में कैसेकैसे पाप भोगने पड़ते हैं.”

सभी ध्यानपूर्वक उन को सुन रहे थे. कामिनी को आशा थी कि पत्नी के हित में भी स्वामीजी कुछ कहेंगे लेकिन उसे यह विचित्र लगा कि पति के एक भी कर्तव्य की बात स्वामीजी ने नहीं की. पत्नी के लिए अनेक उलटेसीधे नियम बताए जो कामिनी पहली बार सुन रही थी, फिर भी वह प्रवचन सुनने और समझने का पूरा प्रयास कर रही थी.

व्याख्यान पूरा हुआ तो महीप ने उसे बताया कि दर्शनों के लिए बनी आज की सूची में उस का व कामिनी दोनों का नाम है. जल्द ही उन को एक कमरे में बुला लिया गया, जहां स्वामीजी मखमली कुरसी पर विराजमान थे. सामने 4 प्लास्टिक की कुरसियां रखीं थीं. एक सहायक हाथ में कागजपैन लिए आज्ञाकारी सा स्वामीजी की बगल में खड़ा था. महीप व कामिनी के पहुंचते ही सहायक ने उन का परिचय नपेतुले शब्दों में स्वामीजी को दे दिया.

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