“आज तो आप बहुत ही सुंदर लग रही हैं,” दर्पण में अपनेआप को निहारती, अपनी आवाज को अपने पति महीप जैसी भारी बना कर स्नेह रस उड़ेलती कामिनी खिलखिला कर हंस पड़ी. स्वयं पर वह न्यौछावर हुई जा रही थी.
गुलाबी सिक्वैंस साड़ी के साथ डीप बैक नैक का ब्लाऊज शादी से पहले मां से छिप कर बनवाया था. महीप का कामिनी के प्रति रवैया किसी नवविवाहित पति सा क्यों नहीं है, यह सोचसोच कर व्यथित होने के स्थान पर पति को रिझाना उचित समझा था उस ने. आज अपनेआप को नख से शिखा तक श्रृंगार में लिपटाए वह पति को खुद में डूबो देना चाहती थी.
कामिनी की शादी 2 माह पहले महीप से हुई थी. एक मध्यम श्रेणी का व्यापारी महीप कासगंज में रह रहा था. पास के एक गांव में पहले वह बड़े भाइयों, पिता, चाचाताऊ आदि के साथ खेतीबाड़ी का काम देखता था. गांव छोड़ कासगंज आने का कारण पास के एक आश्रम में रहने वाले स्वामी के प्रति आस्था के अतिरिक्त कुछ न था.
स्वामीजी ने एक बार गांव में प्रवचन क्या दिया कि महीप उन के विचारों को प्रतिदिन सुनने की आस लिए आश्रम के समीप जा बसा. पिता से पैसा ले कर गत्ते के डब्बे बनाने का एक छोटा सा धंधा शुरू किया. धीरेधीरे जीवनयापन योग्य कमाई होने लगी.
कामिनी यूपी के रामनगर की थी. परिवार की सब से बड़ी संतान कामिनी से छोटे 2 भाई पढ़ रहे थे. पिता स्कूल मास्टर थे और मां घर संभालती थी. रामनगर के सरकारी कालेज से बीए करते ही कामिनी का हाथ महीप के हाथों में दे दिया गया. रिश्ता पिता के एक मित्र ने करवाया था. मध्यवर्गीय परिवार में पलीबङी कामिनी की कामना रुपयापैसा नहीं केवल पति का प्रेम था, जो विवाह के 2 माह बीत जाने पर भी वह अनुभव नहीं कर पा रही थी. सखीसहेलियों से सुने तमाम किस्से ऐसी कहानियां लग रही थीं जिन का वास्तविकता से कोई संबंध नहीं. अब तक कुल 2 रातें ऐसी गुजरी थीं, जब पति के प्रेम में डूब स्वयं को वह किसी राजकुमारी से कम नहीं समझ रही थी, लेकिन बाकी के दिन महीप से हलका सा स्पर्श पाने को तरसते हुए बीते थे.
आज गुलाबी साड़ी के साथ गले में कुंदन का चोकर नैकलेस, कानों में मैचिंग लटकते झुमके, गुलाबी और सिल्वर रंग की खनखनाती चूड़ियों का सैट और गुलाब की हलकी रंगत और महक लिए शिमर लिपस्टिक लगा कर वह महीप को मोहपाश में जकड़ लेना चाहती थी. अपने चांद से रोशन चेहरे को आईने में देख मुसकराई ही थी कि याद आई परफ्यूम की वह शीशी जो पारिवारिक मित्र आकाश ने विवाह से 2 दिन पहले कामिनी को देते हुए कहा था, “मैं नागचंपा की सुगंध वाला परफ्यूम उपहार में इसलिए दे रहा हूं ताकि तुम को याद रहे कि शादी के बाद नागचंपा के पेड़ सी बन कर रहना है. कोमल भी कठोर भी। पता है न कि यह पेड़ खुशबूदार फूलों के साथ साथ लंबी व घनी पत्तियों से लद कर खूब छाया देता है, लेकिन इस की लकड़ी इतनी सख्त और मजबूत होती है कि काटने वालों की कुल्हाड़ी की धारें मुड़ जाती हैं.”
कामिनी ने अलमारी खोल कर गिफ्ट निकाला. शीशी का ढक्कन खोला तो उस की सुगंध में डूब गई, ‘आज तो महीप का मुझ में खो जाना निश्चित है.’ आकाश को मन ही मन धन्यवाद देते हुए कामिनी ने नागचंपा परफ्यूम लगा लिया.
नईनवेली ब्याहता कामिनी के पायल की रुनझुन से महीप का 2 कमरे वाला मकान पहले ही झनक रहा था, आज नागचंपा की खुशबू से पूरा घर महक उठा.
महीप का दुपहिया घर के सामने रुका तो कामिनी ठुमकते हुए दरवाजे तक पहुंची. महीप के भीतर दाखिल होते ही वह तिरछी मुसकराहट बिखरा कर प्रेम भरे नेत्रों से उसे देखने लगी. महीप माथे पर बल लिए उड़ती सी नजर कामिनी पर डाल आगे बढ़ गया.
कामिनी ने चाय बना ली. ट्रे में 2 कप चाय और नमकीन लिए मुसकराती सोफे पर बैठे महीप के पास जा कर खड़ी हो गई.
“यहां क्यों खड़ी हो गईं? वहां रख दो न चाय,” टेबल की ओर इशारा कर रुखाई से महीप बोला.
ट्रे टेबल पर रख कामिनी महीप से सट कर बैठ गई. महीप मूर्ति सा बना बैठा रहा. कामिनी ने उस के बालों को सहलाते हुए कान को हौले से चूम लिया.
‘चटाक…’ की तेज आवाज कमरे में गूंजी, कामिनी गाल पर हाथ रख भय मिश्रित आश्चर्य से महीप को देखती रह गई. इस से पहले कि वह कुछ समझ पाती महीप का कठोर स्वर सुनाई दिया, “शर्म नहीं आती? इस तरह सजधज कर पति के सामने कुलटाओं सी हरकतें कर रही हो.”
“आप मेरे पति हैं. शादी हुई है आप से. पतिपत्नी में कैसी शर्म? पिछले 2 महीनों में आप का रवैया पति जैसा तो बिलकुल भी नहीं है. ऐसा क्यों है? क्या कमी है मुझ में?”
“कमी यह है कि तुम पतिपत्नी के मिलन को मौजमस्ती समझती हो. जानती भी हो कि क्या कारण होता है इस का?”
“मेरे विचार से तो दोनों के बीच इस संबंध से प्रेम पनपता है, वे इस मिलन के बहाने एकदूसरे के नज़दीक आते हैं. भविष्य में सुखदुख बांट लेने से जीवन जीना आसान हो जाता है. बहुत जरूरी है यह संबंध. यह सच नहीं है क्या?” कामिनी एक सांस में बोल गई.
“मुझे पता था कि तुम्हारी सोच भी बिगड़े लोगों जैसी ही होगी. आज जान लो कि पतिपत्नी संबंध का कारण केवल संतान उत्पत्ति है और वह एक बार संबंध बनाने के बाद ही हो जाना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता तो इस का अर्थ है कि पत्नी ने कुछ पाप किए हैं. मैं जान गया था कि तुम पापी हो. आज तुम्हारे निर्लज्ज रूप ने समझा दिया कि बदचलन भी हो.”
“पापी? बदचलन? यह कैसी बातें कर रहे हैं आप?”
“मेरे सामने इस तरह लुभावना स्वरूप बनाए क्यों चली आईं? तम्हें लगा कि मैं इतना मूर्ख हूं जो तुम पर फिदा हो कर अभी संबंध बनाने लगूंगा? संतान के लिए पत्नी के पास मैं महीने में एक बार जाने वालों में से हूं. मुझे अपने जैसा समझ लिया क्या?”
कामिनी की रुलाई फूट पडी. सुबकते हुए बोली, “मैं ने तो ऐसा कभी नहीं सुना कि संबंध केवल बच्चे के लिए बनते हैं, न ही महीने में एक बार मिलन से गर्भवती होने की बात किसी ने मुझ से की है. आप को किस ने कहा यह सब?”
“कभी साधु लोगों की संगत में जाओ तो कुछ अच्छी बातें पता लगेंगी. घर बैठे कौन तुम्हें ज्ञान देने आएगा. होंगी 2-4 तुम्हारे जैसी मूर्ख सहेलियां जो स्त्रीपुरुष संबंधों को तुम्हारी तरह ही मजे की चीज समझती हैं. उन से ही सीख ली होगी अब तक तुम ने. कल चलना मेरे साथ स्वामीजी के आश्रम में. बहुत कुछ जान पाओगी वहां. पास ही है अपने घर के,” स्वयं को ज्ञानी समझ अकड़ता हुआ महीप उठ खड़ा हुआ. कामिनी टूटे हुए मन के टुकड़ों को सहेज पीड़ा से भरी अपने कमरे में चली गई.