आंख खुली तो मैं एकबारगी ही घबरा कर उठ बैठी. अरे, यह मैं कहां और कैसे आ गई. अरुण कहां, किस हालत में है, मन में सैकड़ों सवाल कुलबुलाने लगे थे. विपत्ति के वक्त व्यक्ति ऐसी ही अनेक आशंकाओं से घिर जाता है.
ठीक पहाड़ की चोटी पर बसा कोई गांव था, जहां वे लोग हमें उठा लाए थे. सामने ही सूर्य के तीखे प्रकाश से एक भव्य चर्च का क्रौस चमक रहा था. मैं एक झोपड़ी में एक चारपाई पर पड़ी थी. मगर अरुण कहां है? गांव के अनेक लोग मुझे घेरे आओ भाषा में जाने क्या बातें कर रहे थे और जैसी की इधर आदत है, बीचबीच में उन के ठहाके भी गूंज जाते थे. अधिसंख्य बुजुर्ग नागा स्त्री-पुरुष ही थे. उन में से एक नागा बुजुर्ग आगे बढ़ कर टूटीफूटी हिंदी में बोला, ‘‘अब कैसा है, बेटी?’’
‘‘मेरे पति कहां हैं,’’ मैं चीखी. अचानक मुझे एहसास हुआ कि शायद ये हिंदी न समझे. सो, इंग्लिश में बोली, ‘‘व्हेयर इज माई हसबैंड?’’
‘‘हम थोड़ी हिंदी जानता है,’’ वही बुढ़ा स्नेहसिक्त आवाज में बोला, ‘‘तुम्हारा आदमी घर के अंदर है. उसे बहुत चोट लगा. बहुत खून बहा. तुम लोग कहां से आता था. कहां रहता है?’’
‘‘हम मोकोकचुंग में रहते हैं. मेरे पति चुचुइमलांग के अपने एक मित्र से मिलने के लिए निकले थे. मगर गाड़ी का ब्रेक खराब हो गया और ऐक्सिडैंट हो गया,’’ घबराए स्वर में मैं बोली, ‘‘अभी वे कहां हैं. मैं उन्हें देखना चाहती हूं.’’
बुजुर्ग ने अपनी आओ भाषा में बुढि़या से कुछ कहा. बुढ़ी महिला
मुझ से आओ भाषा में ही कुछ कहते हुए अंदर ले गई. काफी पुरानी और गंदी सी झांपड़ी थी यह. बांस की चटाई बुन कर इस झपंड़ी की दीवारें तैयार की गई थीं. ताड़ के पत्तों सरीखे बड़ेबड़े पत्तों से ऊपर छत का छप्पर डाला गया था. फर्श मजबूत लकडि़यों का था और यह झांपड़ी जमीन से लगभग हाथभर ऊपर मजबूत लकड़ी के खंभों पर टिकी थी. नागालैंड की ग्रामीण रिहाइश आमतौर पर ऐसी ही होती है.
कहने को यह झांपड़ी थी मगर थी बहुत बड़ी. बांस की चटाइयों का घेरा दे कर 2 कमरे बने हुए थे. उसी में से एक कमरे में एक चौकी पर अरुण लेटा था. उस का चेहरा एकदम निस्तेज हो गया था. सांस धौंकनी की तरह चल रही थी.
मैं उसे देख कर फूट कर रो पड़ी. हमारे पीछे कुछ और लोग चले आए थे. वे आगे बढ़ आए और मुझे हिंदी, इंग्लिश और आओ भाषा में कुछकुछ कह कर दिलासा देने लगे. बूढ़ी महिला ने फिर आओ भाषा में मुझे से कुछ कहा. छाती पर क्रौस का निशान बनाया और मुझे वापस बाहर ले आई.
‘‘यहां से चुचुइमलांग कितनी दूर है? न हो तो इन के मित्र हुमसेन आओ को बुला दें.’’ मैं सुबकते हुए बोली, ‘‘वे शायद कुछ मदद कर पाएं.’’
वे बोले, ‘‘तुम चिंता मत करो. चुचुइमलांग यहां से दसेक मील दूर है. तुम्हारे उस परिचित फ्रैंड को भी हम खबर कर देगा. तुम्हारा हसबैंड को बहुत चोट लगा. मगर डाक्टर ने बताया कि वह खतरे से बाहर है. वह अच्छा
हो जाएगा.’’
‘‘मगर यहां क्या व्यवस्था हो सकती है?’’ मैं बोली, ‘‘उन्हें अस्पताल पहुंचाना बहुत जरूरी है. अगर आप उस की व्यवस्था कर देते तो…’’
‘‘चर्च के पास ही तो एक हौस्पिटल है,’’ बुजुर्ग मेरी बात काटते हुए बोले, ‘‘वहीं तो हम सब से पहले तुम्हारे हसबैंड को ले गया था. डाक्टर ने चैक किया और दवाएं लिखीं. कंपाउंडर ने फर्स्ट एड दिया. लेकिन वह बोल रहा था कि हालत ठीक नहीं. बौडी से खून ज्यादा निकल गया है. खून चढ़ाना होगा. हम उसी की व्यवस्था में लगा है.’’
बूढ़े ने बुढि़या से कुछ कहा. वह अंदर चली गई थी. मैं अब कुछ
सहज होने लगी थी. फिर भी मन में कुछ आशंका थी. अपरिचित लोग, अनजान जगह. हालांकि बातव्यवहार से कहींकुछ अजीब नहीं लग रहा था. मगर ये अभावग्रस्त लोग हमारी क्या मदद कर पाएंगे, यही विचार मन में घुमड़ रहा था. यह भी कि ये लोग हमारे बारे में क्या सोच रहे होंगे. इतने में बुढि़या आई और जाने क्या कहा कि बूढ़ा उठते हुए बोला, ‘‘चलो बेटा, चाय पीते हैं.’’
मेरा मन बिलकुल नहीं था. मन तो अरुण में टंगा था. फिर भी अनिच्छापूर्वक उठना पड़ा. ?ांपड़ी के एक किनारे ही रसोई थी. एल्यूमिनियम, स्टील, तामचीनी और लकड़ी के भी ढेर सारे बरतन करीने से रखे हुए थे. एक तरफ 2 बड़े ड्रम थे, जिन में पीने का पानी था. सरकारी कृपा से नागालैंड के हर गांव में और कुछ पहुंचे, न पहुंचे, बिजली और पानी की सप्लाई ठीकठाक है. कुछ छोटे पीपों में कुचले हुए बांस के कोंपल भरे थे. उन के उपर करीने से बोतलें सजी थीं, जिन में बांस की कोंपलों का ही रस निकाल कर रखा हुआ था.
नागा समाज अपनी रसोई में तेलमसालों की जगह इन्हीं बांस के कोंपलों के खट्टे रसों का उपयोग करता है, यह बात अरुण ने एक दिन बताई थी. एक तरफ चूल्हे में आग जल रही थी, जिस पर बड़ी सी केतली में पानी खदक रहा था. बुढि़या ने एक अलग बरतन में कप से पानी नाप कर डाला और चूल्हे के दूसरी तरफ चढ़ा दिया. अब मैं ने ध्यान दिया. चूल्हे के ऊपर मचान बना कर लकडि़यां रखी थीं और इन दोनों के बीच लोहे के तारों में गूंथे गए मांस के टुकड़े रखे थे. मेरा मन अजीब सा होने लगा था.
बुढि़या सब को चाय देने लगी थी. वह एक प्लेट में बिस्कुट भी निकाल लाई थी और खाने के लिए बारबार आग्रह कर रही थी. उस का वात्सल्य देख मेरा मन भर आया और प्लेट पकड़ ली. बुजुर्ग अब खुद ही अपने बारे में बताने लगे थे, ‘‘मैं यहां का गांव का बूढ़ा (मुखिया) हूं. 3 बेटे और एक बेटी है. बेटी की शादी हो गई. एक बेटा गोहाटी में टीचर है और दूसरा दीमापुर में एक औफिस में क्लर्क है. तीसरा मोकोकचुंग के एक कालेज में पढ़ाई करता है. आज ही वह आया है. मगर अभी जंगल गया हुआ है. आता ही होगा अब. अच्छा, तुम्हारा आदमी क्या करता है?’’
‘‘वे मोकोकचुंग कालेज में प्रोफैसर हैं.’’
‘‘अच्छा, तो वह टीचर है,’’ बुढ़ा बुदबुदाया, ‘‘और तुम क्या करता है?’’
‘‘मैं,’’ मैं इस तनाव में भी हंस पड़ी, ‘‘मैं तो घर पर रहती हूं.’’
तब तक डाक्टर आ गया था. हम सभी उठ खड़े हुए. अरुण की जांच करने के बाद वह अरुण को एक इंजैक्शन लगाने की तैयारी करने लगा. इंजैक्शन लगते ही अरुण कुनमुनाया. चेहरे पर बेचैनी के कुछ लक्षण उभरे. फिर वह शांत दिखने लगा था. डाक्टर बंगाली था. फिर भी धाराप्रवाह एओ भाषा बोल रहा था. सारी बात उसी में हो रही थी. इसलिए मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ रहा था. बस, यही आभास हुआ कि अरुण की दशा देख सभी चिंतित हैं. अरुण को चारपाई समेत बाहर निकाल अस्पताल पहुंचा दिया गया.
अस्पताल क्या था, बस, एक साफसुथरी झांपड़ी थी, जिस में दवाएं रखी थीं. सफेद परदे का पार्टीशन दे कर चारेक चारपाइयां बिछी थीं. उसी में से एक पर अरुण को लिटा दिया गया. अरुण की बेहोशी पूरे ढाई घंटे बाद टूटी थी. बड़ी तकलीफ के साथ उस ने आंखें खोलीं. मैं उस पर झाक आई.
बाहर खुसरपुसर चल रही थी. अचानक बूढ़ा हिंदी में बोला, ‘‘डाक्टर, मेरा खून चढ़ा दो.’’
‘‘नहीं जी,’’ डाक्टर ने जवाब दिया, ‘‘बुढ़े का रक्त नहीं चढ़ाया जा सकता. इस के लिए तो किसी जवान का ही खून चाहिए होता है.’’
अब वह मुझ से अरुण का ब्लड ग्रुप पूछने लगा. मैं ने उसे बताया. उस ने अरुण का रक्त चैक करने के बाद कहा, ‘‘यू आर राइट, मैडम.’’
‘‘आप मेरा खून इन्हें चढ़ा दीजिए, सर,’’ मैं बोली, ‘‘शायद यह मैच कर जाए.’’
‘‘हम लोग के रहते तुम यह काम कैसे कर सकता है. बस्ती में इतना सारा लोग है. किसी न किसी का जरूर मैच कर जाएगा.’’
भीड़ में से कई युवक आगे बढ़ आए थे. डाक्टर एकएक कर उन का ब्लड चैक कर नकारता जा रहा था. मेरी बेचैनी बढ़ती जाती थी. अचानक वहां एक युवक प्रकट हुआ. बुजुर्ग दंपती से जाने क्या उस की बात हुई और अब उस ने अपना हाथ बढ़ा दिया था.