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सर्पीली सड़कों पर अरुण को गाडि़यां दौड़ाने में बहुत मजा आता है. मगर नागालैंड की जंगली-पहाड़ी सड़कें कुछ इस तरह खतरनाक मोड़ लिए होती हैं कि देखने से ही भय लगता है. कब अचानक चढ़ाई शुरू हो जाए या ढलान आ जाए, पता ही नहीं चलता. तिस पर लैड स्लाइडिंग के कारण अकसर ही सड़कों पर मिट्टी-पत्थर बिखरे पड़े मिलते हैं. बारिश तो यहां जैसे बारहों मास होती है, जिस से सड़क भी गीली रहेगी या कीचड़-मिट्टी से लिथड़ी मिलेगी और इसी से फिसलने का डर बना रहता है.

मैं ने अरुण से बहुत कहा कि जरा ढंग से और आहिस्ता गाड़ी चलाया करो. यहां दिल्ली जैसी व्यस्तता और भागमभाग तो है नहीं, जो किसी प्रकार की हड़बड़ी हो. मगर वह कब किसी की सुनता है. आज कालेज में जल्दी छुट्टी हो गई थी और वह प्रिंसिपल लेपडंग आओ से जीप मांग लाया था. बेचारे अपनी भलमनसाहत की वजह से कभी इनकार नहीं कर पाते. एक तो यहां ढंग के प्रोफैसर नहीं मिलते. तिस पर साईंस के प्रोफैसर तो और मुश्किल से मिलते हैं. फिर अरुण बात भी कुछ इस प्रकार करता है कि कोई चाह कर भी मना न कर पाए. जीप में बैठेबैठे ही हौर्न बजाते शोर मचाने लगा था, ‘‘जल्दी करो, आउटिंग पर जाना है.’’

सच पूछिए तो मुझे भी यहां नागालैंड का प्राकृतिक सौंदर्य काफी भला और मोहक लगता है. दूरदूर तक जहां नजर जाती, काले-नीले पहाड़ों की शृंखलाएं और उन में पसरी पड़ी सघन हरी वनस्पतियों से भरे जंगल. इन सब्ज-श्याम रंगीनियों के बीच रूई के विशालकाय फाहों जैसे तैरते हुए बादलों के ?ांड. सूर्य की तेज किरणें जब इस प्राकृतिक सुषमा पर पड़ती है तो जैसे अनुपम सौंदर्य की सृष्टि सी होती है.

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