कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

उस का ब्लड ग्रुप अरुण के ब्लड ग्रुप से मैच कर गया था.

बूढ़ा मुझ से मुखातिब हो कर बोला, ‘‘यह मेरा बेटा कुमजुक आओ है. यह तुम्हारे हसबैंड के कालेज में ही पढ़ता है और इन्हें जानता है. अच्छी बात, उस का खून उस से मिल गया है. अब वह उसे खून देगा. तुम बेकार डरता था.’’

मैं उन लोगों के प्रति कृतज्ञता से भर उठी.

आधेक घंटे में कुमजुक आओ के शरीर से खून निकल कर अरुण के शरीर में पहुंच चुका था. अरुण का चेहरा अब तनावरहित और स्थिर था. ब्लड देने के बाद भी कुमजुक आओ के चेहरे पर एक दिव्य चमक सी थी. मैं उस सुदर्शन युवक को देखती रह गई.

हृष्टपुष्ट खिलाडि़यों का सा बदन, जिस पर कहीं अतिरिक्त चरबी का

नाम नहीं था. हिंदी फिल्मों के हीरो समान करीने से कटे, संवारे केश. हंसता हुआ चेहरा, जिस में दुग्धधवल दंतपंक्तियां मोती सी आभा बिखेर रही थीं. उस की अधखुली, स्वप्निल सी आंखों में न जाने कैसा तेज और निश्छलता थी कि वह कांतिमय हो रहे थे.

बैड से उठते ही उस ने हाथपैर फेंके और सीधा खड़ा हो गया. डाक्टर ने उसे कुछ दवाएं और हिदायतें दीं, जिन्हें हंसते हुए स्वीकार कर लिया. फिर अपने पिता को दवाएं देते हुए मु?ा से बोला, ‘‘अब सर बिलकुल ठीक हो जाएंगे. सर बहुत अच्छे हैं. एकदम ह्यूमरस नेचर. पढ़ाते भी बहुत अच्छा हैं. दोस्तों की तरह मिलते हैं हम से. आप चिंता न करें. आप यहां आईं तो इस हालत में. खैर, कोई बात नहीं. चलिए, मैं आप को अपना गांव घुमा दूं.’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...