किसी अनहोनी की आशंका से दोनों घबरा कर अगले दिन ही आ गए. सरला का घबराहट से चेहरा रक्तशून्य हो गया था. उन दोनों को देख वह माथे पर हाथ मार कर विलाप करने लगी. घर में रोमा को न पा कर दोनों आशंकित हो गए. मनोहर लाल सरला के कंधे पकड़ झुंझला उठे और विलाप करने का कारण पूछने लगे. वे गुस्से से तमतमा रहे थे. समय की नजाकत को समझते हुए रजत ने पिता को समझा कर अलग बिठाया. दोनों को पानी पिला तसल्ली से मां से बात की.
रजत का सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार देख बिना कुछ छिपाए सरला ने सबकुछ बता दिया. उस ने रोते रोते रजत के पैर पकड़ लिए. सारा वृतांत सुन बापबेटे दोनों मूर्तिवत रह गए. उन्हें कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि सरला को उस के इस मूर्खतापूर्ण कृत्य पर क्या कहें. उन्हें रोमा के दुस्साहस पर बहुत अधिक क्रोध आ रहा था. वह तो इतनी ज्यादा शोकविह्वल थी कि कमरे से बाहर नहीं निकलती थी और कहां अब इतना बड़ा कदम उठा लिया. उसे मां पर इतना गुस्सा आ रहा था कि अगर इस कृत्य में उस की मां की भागीदारी न होती, वह उन दोनों को पाताल से भी खोज कर उन दोनों को जेल की हवा खिलवा देता.
पूरे घर में मरघट सा सन्नाटा छाया था. समाज और रिश्तदारों को कैसे मुंह दिखाएंगे, बस, इसी सोच में डूब कर तीनों अपनेअपने कमरे में कैद रहते. आखिर भूखप्यास कब तक बरदाश्त होती. गुस्से में दनदनाते हुए मनोहर लाल जी बाजार से खाना लाए. उन्होंने बड़ी मनुहार कर बेटे को कुछ खिलाया और स्वयं भी कुछ खा कर कंबल में मुंह छिपा लेट गए. रजत पैर पटकता हुआ बाहर चला गया. सरला ने भी 2 दिनों से कुछ खाया न था, कमज़ोरी से चक्कर आने लगे तो 2 कौर मुंह में डाल लिए. शेष खाना उस ने फ्रिज में रख दिया क्योंकि वह जानती थी कि क्रोध के कारण कोई उस के बनाए खाने को हाथ भी नहीं लगाएगा.
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