मनोहर लाल तिवारी मृदुभाषी व गंभीर स्वभाव के थे. वे इनकम टैक्स विभाग में उच्च पदाधिकारी थे. रूढ़िवादी परिवार ने उन्हें जबरन कालेज की पढ़ाई के दौरान ही विवाह की बेड़ियों में बांध दिया था. उन की पत्नी सरला उन की जातिबिरादरी के एक जमींदार की 8वीं बेटी थी.
सरला बहुत सुंदर, अल्हड़ और भोलीभाली थी. वह उन के परिवार में ऐसे घुलमिल गई जैसे दूध में शक्कर. घर की इकलौती बहू थी. अंधविश्वासी सास ने सरला को पूजापाठ, पुराने रिवाजों, व्रत और अनुष्ठानों की ऐसी घुट्टी पिलाई कि वह सास की आज्ञा का पालन करना परम कर्तव्य समझने लगी. त्योहारों की छुट्टियों में जब कभी मनोहर होस्टल से घर आते तो पत्नी के सान्निध्य को तरस जाते. वह तो काली घटाओं में लुकतेछिपते चांद की तरह आती और चायकौफ़ी आदि दे कर भाग खड़ी होती. रात को पति के साथ सोते समय भी धर्मकर्म की बातें करती.
समय बीतता गया. सरला 2 बेटों की मां बन चुकी थी. पोतों का सुख देखने के लिए दादादादी अब इस दुनिया में नहीं रहे थे. मनोहर जी बच्चों के मामले में बहुत सतर्क थे. बड़ा बेटा रजत उन्हीं की तरह धीरगंभीर था. इस के विपरीत छोटा बेटा अजय बहुत चंचल था. वह हर समय हंसीमज़ाक़ करता रहता. उस की जिंदगी जीने का फ़लसफ़ा ‘चार दिन की जिंदगी प्यार में गुजार दे’ जैसा था. जब वह घर में होता, घर हंसी के ठहाकों से गूंजता रहता. रजत अपनी पढ़ाई के प्रति बहुत गंभीर था तो अजय दोस्तों के साथ पिक्चर, पिकनिक में मशगूल रहता.
रजत आईएएस की तैयारी में दिनरात एक करने लगा तो अजय ने सैनिक बनने का इरादा कर लिया. ट्रेनिंग के बाद अजय की पहली भरती कश्मीर में हुई. वहीं पर उस की मुलाकात शोख़ व बेहद खूबसूरत रोमा से हुई जो गहरे प्यार में बदल गई. रोमा के मातापिता नहीं थे. वह चाचाचाची के रहमोकरम पर पल कर बड़ी हुई थी. अजय ने घर में रोमा से शादी करने की इच्छा प्रकट की. मातापिता पहले रजत के विवाह के लिए उत्सुक थे पर रजत बहुत महत्त्वाकांक्षी था, वह इतनी जल्दी शादी के झमेले में नहीं पड़ना चाहता था. फिलहाल उस ने शादी करने से इनकार कर दिया. इसलिए, विवश मनोहर लाल जी को अजय की शादी करने का निर्णय लेना पड़ा.
रजत का आईए एस में चयन हो गया था. ट्रेनिंग के बाद उस की पहली नियुक्ति देहरादून में हुई. जैसे ही अजय का विवाह धूमधाम से संपन्न हो गया, रजत अपनी नौकरी का कार्यभार संभालने के लिए देहरादून चला गया. रोमा के बहू के रूप में आ जाने के कारण घर खुशियों से भर उठा था. 2 महीने मौजमस्ती करने के बाद अजय को ड्यूटी पर लौटना पड़ा. वहां पर परिवार को साथ ले जाने की अनुमति नहीं थी, इसलिए रोमा को मातापिता के पास ही छोड़ना पड़ा. रोमा ने अपने चाचा और चाची की गुलामी करने से बेहतर अपनी ससुराल में रहना ही उचित समझा .
रोमा के दिन अजय के पत्रों और स्नेही सासससुर के सहारे अच्छी तरह बीत रहे थे लेकिन तकदीर ने कुछ ऐसा झटका दिया कि उस की दुनिया ही बदल गई. उस की खुशियों पर दुख और कष्टों की घनघोर घटाएं छा गईं. दुखद सूचना के मिलते ही रजत स्तब्ध रह गया, वह तुरंत फ्लाइट पकड़ घर आ पहुंचा. पुत्रशोक से विह्वल मातापिता को तो उस ने किसी तरह सभांल लिया लेकिन नईनवेली भाभी, जो पतिशोक से बारबार मूर्च्छित हो रही थी, को संभालना बहुत कष्टप्रद था. उस ने रोमा के लिए फौरन एक नर्स को नियुक्त किया. नई नौकरी की जिम्मेदारी के चलते अजय की तेरहवीं के बाद ही उसे शोकाकुल परिवार को छोड़ कर जाना पड़ा.
लगभग 2 महीने बाद जब रोमा कुछ सहज हुई तो नर्स को छुट्टी दे दी गई. अब सरला को उस की सास द्वारा समझाई गईं वे सब कुरीतियां याद आ गईं जो विधवाओं के लिए रूढ़िवादी समाज ने बनाई हुई थीं. इन कठोर नियमों की जंजीरों से रोमा को बांधने के लिए वह बेचैन थी, वह रोमा को इस दुर्घटना का दोषी समझती थी.
वह ढोंगी पंडितों से परामर्श कर रोमा को निर्जल व्रत, सर्दी में सवेरे ही ठंडे जल में स्नान करवा कर पूजा में बैठने का आदेश देती. यह सब देख मनोहर लाल जी असहनीय दुख से व्यथित हो उठते. दुखी और निराश रोमा को उस के दुख से उबारने के लिए उन्होंने उस की अधूरी पढ़ाई पूरी करवाने का निश्चय किया लेकिन उन के इस फैसले को सुन सरला भड़क गई. उस ने भूख हड़ताल कर दी. मज़बूर हो कर मनोहर लाल जी को हथियार डालने पड़े.
अब सरला अपनी बहू को प्रतिदिन कीर्तन में ले जाने लगी. उस कीर्तन मंडली में अधिकांश महिलाएं पाखंडी थीं. वे सब ढोंगी भक्तिन महिलाएं जोरजोर से ढोलक पीट कर फिल्मों के गानों की धुनों पर बने भजनों का ऊंचे स्वर में आलाप करतीं. उन में से कुछ भक्तिन अपने गिरते पल्लू की परवा न करते हुए भक्तिरस में डूब कर नृत्य करने लगतीं. उन के ये स्वांग देख रोमा के मन में वितृष्णा सी जाग उठती थी, लेकिन वह मजबूर थी. वह अपनी सास की आज्ञा का निरादर नहीं कर सकती थी. सरला आएदिन रोमा से कठिन व्रत, निराहार रह कर कठोर जाप करवाती थी. अल्पभाषी मनोहर लाल अपने युवापुत्र के शोक से बुरी तरह टूट चुके थे. वे अपनी पत्नी के इस व्यवहार से बहुत दुखी थे पर सरला की हठधर्मिता के सामने मजबूर थे. वे चाहते थे कि बहू को उस की अधूरी शिक्षा पूरी करने के लिए प्रेरित करें पर पत्नी सरला इस के विरुद्ध थी. वह इस बात से बहुत क्रोधित हो जाती, घर में कलह करती. जब भी ससुर रोमा को सब भूल कर खुश रहने को कहते तो सरला क्रोध में खानापीना छोड़ कर आमरण अनशन पर बैठने की धमकी देती थी. मनोहर लाल यह जानते थे कि इन रूढ़िवादी रीतिरिवाजों, आडंबरों की विषबेल उन्हीं की मां द्वारा किशोरी सरला के मन में बोई गई थी.
सरला अपने पुत्र अजय की शांति के लिए दुखी रोमा को जबरन अजय के पिंडदान के लिए गया ले कर गई. इतना ही नहीं, वह रोमा के साथ हरिद्वार, ऋषिकेश और कुरुक्षेत्र में भटकती रहती. हार कर मनोहर लाल जी ने पत्नी की इन गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए रजत को बुला लिया. सरला अपने इस अल्पभाषी गंभीर पुत्र से बेहद डरती थी. रजत ने आते ही एक ही झटके से मां की इन गतिविधियों पर रोक लगवा दी. सरला घुट कर रह गई. रजत ने आने वाले नए सैशन में रोमा का कालेज में दाखिला दिलवाने का भी निर्णय ले लिया.