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रजत के जाते ही क्रोधित सरला ने अब रोमा पर बहुत सी पाबंदियां  लगा दीं. वह रोमा से  नए व्रत, अनुष्ठानों के बहाने  निर्जल व्रत   करवाती थी.   घर में एक स्थान पर अपने साथ रोमा को बैठा कर अखंड जाप करती रहती. इन सब बातों से परेशान रोमा का स्वास्थ्य गिरने  लगा. उस का मन बारबार उन अधूरे  सपनों में खो जाता जो अजय ने उसे दिखाए थे. एक तो उम्र का तकाज़ा, दूसरे अजय के साथ बिताए वे  मादक दिनों  के पल उसे  तड़पा जाते. कालेज में प्रवेश लेने के लिए नया सत्र शुरू होने में अभी काफी समय था.

कुछ दिनों बाद उन के घर के पास वाले धार्मिक स्थल में   एक  युवा योगी पधारे. सब जगह यही चर्चा  थी कि वह कोई   बहुत ही सिद्ध योगी है. मस्तक देख कर भविष्य पढ़ लेता है. नाड़ी पकड़  कर ही रोग बता देता है. रोग का निदान भी बता देता है. सरला को जब यह खबर मिली तो वह उक्त योगी के दर्शन के लिए उतावली हो उठी. रजत के डर से वह रोमा को तो साथ नहीं ले जा सकती थी, सो अकेले ही उस योगी के दर्शन करने पहुंच गई. योगी का मुखमंडल पर अनोखी आभा थी. वह उस के चरणों में लोट गई.

योगी ने सिर पर हाथ  रख कर पूछा, ‘पुत्रशोक से विह्वल  हो?’

सरला आवाक  रह गई. वह  वहां अन्य भक्तों के साथ  बैठ गई.  दोपहर को जब भीड़   खत्म हो गई तो योगी भोजन के लिए उठा. मौका देख कर  सरला  योगी के कदमों में लोट गई और बोली, ‘बाबा, आप तो अंतर्यामी हैं. मुझ पर दया करो, मेरा पुत्र  शहीद हुआ है, उस की शांति के लिए कुछ करिए. मेरी जवान बहू को कोई ऐसी दीक्षा दें जिस से उस के मन को शांति मिले.’

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