अपने चश्मे को रूमाल से साफ करने के बाद टैलीविजन के साउंड को भी बढ़ा लिया था उस ने. पर जब इतने से भी तसल्ली न हुई, तो अपनी कुरसी को खींच कर टैलीविजन के बिलकुल नजदीक सरक आया था वह, जैसे अचानक ही अपने देखनेसुनने की क्षमता पर से उस का यकीन खत्म हो गया हो.
हालांकि उम्र के इस दहलीज पर देखनेसुनने की ताकत थोड़ी कम जरूर हो जाती है, यादें भी धुंधली पड़ जाती हैं, पर इतनी भी नहीं कि उसे वह पहचान ही न पाता.
इस वक्त अपने टीवी स्क्रीन पर वह जो कुछ भी देखसुन रहा था, शायद उस पर यकीन नहीं कर पा रहा था.
‘’डा. अनीता. हां, हां अनीता… हां, बिलकुल…’’ इस टीवी एंकर ने अभीअभी यही नाम पुकारा है. लेकिन, वह तो उस प्लेन क्रैश में… सहसा उस की आंखों में आंसू आ गए, खबर तो उसे यही मिली थी कि अमेरिका के लिए उड़ान भरने वाली वह प्लेन, जिस में डा. अनीता भी सवार थी, क्रैश हो गई…
डा. अनीता, जिसे वह अब तक मरा हुआ समझ रहा था, अचानक उसे टीवी स्क्रीन पर देख वह अपनी आंखों पर यकीन नहीं कर पा रहा था.
‘’डा. अनीता सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि एक पहचान है. एक ऐसी शख्सियत है, जिन्हें हिमाचल प्रदेश के छोटे से छोटे गांव, कसबे के लोग अपने मसीहा के रूप में पहचानते हैं.आज का हमारा यह कार्यक्रम, ‘जीना इसे ही कहते हैं’ में हम आप की मुलाकात कराने जा रहे हैं, हमारी आज की मेहमान डा. अनीता से.’’
‘’डा. अनीता हमारे इस कार्यक्रम में आपका स्वागत है.’’
‘’जी, शुक्रिया.‘’
हलके रंग की साड़ी में बेहद संभ्रांत दिखने वाली अधेड़ उम्र की एक महिला को टीवी एंकर डा. अनीता कह कर संबोधित कर रही थी.
टीवी कार्यक्रम में अनीता के द्वारा बोले जा रहे एकएक शब्द उस के मन को बेचैन कर रहे थे. सालों से शांत पड़े सरोवर में, जैसे किसी ने कंकड़ फेंक दिया हो, जिस में से उठती हुई तरंगें उसे पीछे, बहुत पीछे धकेल रही थीं, जिस का केंद्र उस का अतीत था.
यादों के पन्ने एक बार पलटे तो पलटते चले गए. साथ ही, जीवंत हो उठे उन पन्नों में अंकित वे चित्र, जिस पर वक्त ने अपने पहियों की धूल डाल दी थी.
यादों की आंधियां चली तो वह किसी पेड़ से गिरे पत्ते की भांति यहां से वहां अतीत की टेढ़ीमेढ़ी गलियों में भटकने को मजबूर हो गया.
देवदार के पत्तों से ढके हुए रास्तों से होता हुआ वह रोहतांग पास, लेह, मनाली जा पहुंचा था, जहां प्रकृति इस वक्त खुद को चांदी के आभूषणों से सुसज्जित किए हुए थी. प्रकृति की इस सुंदर आभा को पहाड़ों की ओट से छिप कर सूरज भी चुपकेचुपके निहार रहा था और उस पर मोहित हो कर स्वर्ण लुटा रहा था. जहां भी नजर जाती, सभी ओर बर्फ ही बर्फ… उन पर पड़ती सूरज की किरणें एक अलग ही दृश्य उपस्थित कर रही थीं.
प्रकृति के इस अनुपम सौंदर्य पर मुग्ध होता हुआ वह अपने ही विचारों में खोया हुआ था कि आवाज आई, ‘’गाड़ी अभी आगे नहीं जा सकेगी… आगे का रास्ता बंद है. रास्ता खुलने में कुछ घंटे लग सकते हैं.’’
ड्राइवर ने अचानक गाड़ी का इंजन बंद कर दिया.
उस ने अपने इर्दगिर्द नजर दौड़ाई, गाड़ियों की एक लंबी कतार खड़ी थी, सभी रास्ता खुलने का इंतजार कर रहे थे. लड़कियों का एक दल आगे खड़ी बस से उतर कर उछलकूद मचाते हुए एकदूसरे पर बर्फ का गोला फेंक रही थी. कुछ देर तक तो वह गाड़ी में ही बैठा बाहर के दृश्यों को निहारता रहा, लेकिन थोड़ी ही देर बाद वह भी गाड़ी से उतर कर बाहर निकल आया था, वहां के दृश्यों को अपनी आंखों में कैद करने के लिए. बाहर काफी ठंड थी. इतनी कि पेड़, पहाड़, पौधे सभी सफेद चादरों में दुबके हुए थे. लेकिन, इतनी ठंड में भी वहां के खूबसूरत नजारों का लुत्फ हर कोई उठाना चाहता था.बर्फ के सफेद चादरों में लिपटे हुए पेड़ों के पत्ते कहींकहीं ऐसे मालूम होते थे मानो प्रकृति के इन सुंदर नजारों को देखने के लिए इन पेड़ों ने भी अपनेअपने मुख से सफेद चादरों के कुछ हिस्सों को थोड़ा सा सरका लिया है.
‘’उई मां… हाय मर गई,’’ किसी के चीखने की तेज आवाज पर वह मुड़ कर देखता है. तसवीर खींच रही एक लड़की का पैर बर्फ में फिसल गया था. वह लड़की एक हाथ से कैमरे को थामे बर्फ में फिसलती हुई सहारे के लिए दूसरे हाथ से किसी पेड़ की टहनी को पकड़ने की कोशिश कर रही थी.
उस ने लपक कर उस लड़की का हाथ थामा और अपनी ओर खींच लिया था. लड़की की बड़ी काली आंखों ने उस की ओर कृतज्ञता से देखा और पलभर बाद वह खुद को संभालती हुई उस से थोड़ी दूरी पर जा कर खड़ी हो गई.
एक पल के लिए तो दोनों एकदूसरे को खामोशी से देखते रहे, लेकिन दूसरे ही पल वह लड़की झुक कर अपनी टूटी हुई सैंडल को ठीक करने में लग गई. थोड़ी देर तक तो वह वहीं खड़ा उस लड़की को अपलक देखता रहा, परंतु अगले ही पल उसे महसूस हुआ कि अकारण ही खड़े रह कर किसी को यों ही चुपचाप देखते रहना बेवकूफी है. इसलिए खुद के खड़े रहने का कोई औचित्य न समझ कर वह वहां से जाने के लिए अपने कदम दूसरी दिशा में आगे बढ़ाने ही वाला था कि तभी लड़की ने अपनी गरदन उठा कर उस की तरफ देखते हुए कहा, ‘’मेरी जान बचाने के लिए शुक्रिया. अगर आज आप वक्त पर मौजूद नहीं होते, तो मालूम नहीं मेरे साथ क्या हो जाता, इतनी ऊंचाई से गिरने के बाद मेरी हड्डीपसली एक हो जानी थी,‘’ इतना कहते हुए उस के होंठ मुसकुरा उठे.
‘’लेकिन, आप को यह जोखिम उठाने की जरूरत क्या थी, यह जगह तो किसी के लिए भी खतरनाक साबित हो सकती है… यहां इतनी फिसलन जो है.’’
‘’मैं उस खूबसूरत नजारे को अपने कैमरे में कैद कर लेना चाहती थी,‘’ लड़की ने अपनी उंगलियों के इशारे से पहाड़ी के नीचे के उस खूबसूरत नजारे की ओर इशारा किया.
‘’तो, आप फोटोग्राफर हैं?’’
‘’नहीं, मैडिकल फाइनल ईयर की स्टूडैंट हूं. तसवीरें खींचना मेरा शौक है.‘’
‘’आप का नाम?
‘’मुझे जानने वाले, मेरी सहेलियां, मुझे प्यार से अनु बुलाती हैं. वैसे, मेरा नाम अनीता है. छुट्टियों में मैं अपने घर मनाली जा रही हूं.‘’
‘’और, मुझे मेरे करीबी दोस्त राजू बुलाते हैं. वैसे, मेरा नाम राजीव है. मैं छुट्टियों में यहां घूमने आया हूं.‘’
‘’कितने दिन का प्रोग्राम है.’’
‘’2-4 दिन का है.‘’
‘’इतने कम समय में आप भला क्या ही घूम पाएंगे. यहां की खूबसूरती देखने के लिए तो एक हफ्ते का समय भी कम है.‘’
‘’यह तो मैं अभी यहां इस वक्त खड़ा देख ही रहा हूं.’’
‘’क्या…’’ उस ने आश्चर्य से उस की ओर देखा
‘’खूबसूरती… मेरा मतलब है ये नजारे… सच में कितने खूबसूरत, कितने हसीन हैं, है न?
अनीता की आंखें कुछ पल के लिए झुकीं और हौले से उठ कर राजीव के चेहरे पर टिक र्गइं.
‘’आप बातें काफी अच्छी बना लेते हैं… लेखक हैं?‘’ अनीता ने जिज्ञासा भरी नजरों से देखा.
‘’नहीं, अभीअभी एमबीए की पढ़ाई पूरी की है. दिल्ली में मेरे पापा का बिजनैस है. उसे ही संभालना है… वैसे, मैं यहां हफ्तेभर रुकने को तैयार हूं, लेकिन शर्त है कि आप मेरी गाइड बनेंगी.’’
‘’मुझे आप की शर्त मंजूर है. वैसे, आप मनाली में कहां ठहरने वाले हैं?‘’
‘’होटल ली ग्रीन, माल रोड.‘’
‘’फिर तो आप मेरे घर के बिलकुल ही नजदीक हैं. मेरा घर वहां से कुछ ही दूरी पर है.’’
‘’मनाली में साथ बिताया गया पल अनीता और राजीव के जीवन में प्रेम का शिलान्यास साबित हुआ, जिस पर दांपत्य जीवन की इमारत खड़ी हुई, लेकिन दुर्भाग्य, यह इमारत महज कुछ ही सालों में ढ़ह गई.
‘’बाबूजी, खाना लगा दूं?’’ घर के नौकर ने उस के कमरे के दरवाजे पर आ कर जब आवाज लगाई, तो वह वर्तमान में लौट आया. घड़ी की ओर नजर दौड़ाई, रात के 9 बज रहे थे.
‘’नहीं, अभी नहीं, अभी भूख नहीं है. दिवाकर आ गया क्या?‘’ सवाल पूछते हुए उस ने अपनी गरदन दरवाजे की ओर घुमाई.
‘’नहीं,‘’ नौकर ने दरवाजे से ही उत्तर दिया, ’जबकि मालूम है कि साहब बाहर से ही खाना खा कर देर रात तक लौटते हैं, फिर भी आदत से मजबूर हैं. एक ही सवाल हर रोज पूछते हैं,’ नौकर मन ही मन भनभनाता हुआ वहां से चला जाता है.