‘’घर बैठ कर बिजनैस नहीं संभाली जाती, इतना बड़ा एम्पायर, इतनी बड़ी संपत्ति, सबकुछ ऐसे ही नहीं हासिल हो गए, तुम्हें बिजनैस के बारे में जानकारी ही क्या है? तुम अपने इस दो कौड़ी के डाक्टरी के पेशे को छोड़ क्यों नहीं देती, तुम्हारी कमाई से घर के खर्चे तो छोड़ो, घर के नौकरों के वेतन भी पूरे नहीं हो सकते. आखिर किस चीज की कमी होने दी है मैं ने तुम्हें. रुपएपैसे, नौकरचाकर, गाड़ीबंगले, गहनेकपड़े, सुखसुविधा की सारी चीजें, सबकुछ तो दिया है मैं ने, फिर भी यह अस्पताल का नाटक किस लिए. खुद को देखो, मरीजों के बीच रह कर खुद भी मरीज दिखने लगी हो,‘’ बौखलाहट और गुस्से में राजीव सिर्फ अपनी कहे जा रहा था.
डस की बातें अनीता के मन को ही नहीं, उस के आत्मसम्मान को भी ठेस पंहुचा रही थी. लेकिन अपने पौरुष अहंकार और दौलत के नशे में डूबा राजीव अनीता के मानसिक पीड़ा को समझ पाने में पूरी तरह नाकाम था.
राजीव की बातों से आहत अनीता को जब अस्पताल से नर्स का फोन आता है, तो वह कुछ ही क्षण पहले प्राप्त हुई इस पीड़ा को, राजीव की बातों से छलनी हुए मन को, उन तमाम कुठाराघातों को जो कि उस के आत्मविश्वास को क्षतविक्षत करने के लिए किए गए थे को दरकिनार कर अस्पताल के लिए निकल पड़ती है.
‘’अभी कुछ घंटे पहले ही तो वहां से आई हो,‘’ राजीव ने नजरें तिरछी करते हुए कहा.
‘’इमर्जैंसी है. एक डाक्टर का कर्तव्य, उस की जिम्मेदारियां किसी बिजनैसमैन की समझ के बाहर की बात है,” अनीता ने भी ठीक राजीव के अंदाज में ही कटाक्ष करते हुए उसे आईना दिखा दिया.
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