‘खाना समय पर खा लेते, तो किचन के काम से मेरी भी छुट्टी हो जाती. आज तक तो बापबेटे को कभी डाइनिंग टेबल पर साथ बैठे देखा नहीं, फिर भी बेटे का इंतजार खाने के समय रोज ही करते हैं,’ किचन के दूसरे कामों को निबटाते हुए रामदीन बड़बड़ाता जा रहा था.
‘’हिमाचल प्रदेश के दुर्गम पहाड़ी स्थानों में बिना किसी बुनियादी सुविधा के स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं लोगों तक पहुंचना काफी चैलेंजिंग रहा होगा, काफी हिम्मत और हौसले की जरूरत होती है, बिना किसी मोरल सपोर्ट के यह संभव नहीं. अनीताजी, हमारे दर्शक आप से जानना चाहेंगे उन लोगों के बारे में, जिन्होंने आप को प्रेरित किया, आप के हौसले को बढ़ाया.‘’
‘’मैं, सब से पहले जिक्र करना चाहूंगी मेरे दोस्त, स्वर्गीय डाक्टर विनय का, जिन्होंने उस समय मेरा साथ दिया था, जब मेरे अपनों ने…‘’
‘’क्या…? डाक्टर विनय मर चुका है,‘’ डाक्टर विनय का नाम सुनते ही अचानक उस का चेहरा मुरझा गया. उस की आंखों में एक अजीब तरह का भाव उतर आया, कुरसी पर ही आंखें मूंदे काफी देर तक जाने क्याक्या सोचता रहा वह, वहां बैठेबैठे जब थोड़ी बेचैनी महसूस होने लगी उसे तो उठ कर अपने कबर्ड में से छिपा कर रखी हुई शराब की बोतल को निकाल लाया, ढक्कन खोल लिए, शराब उस के होंठों को छू भी नहीं पाई थी कि घर के नौकर रामदीन की तेज नजर उस तक पहुंच गई. रामदीन किसी बाज की तरह उस के हाथों से बोतल को झपट कर छीन लेता है.
‘’बस एक घूंट रामदीन,‘’ वह नौकर के आगे मिन्नतें करने लगता है.
‘’नहीं, बिलकुल भी नहीं. एक घूंट भी नहीं, मुझे तनख्वाह आप की देखभाल के लिए मिलती है. रामदीन अपने काम में धोखाधड़ी जरा भी नहीं करता, चाहे तो आप मुझे इस के लिए नौकरी से निकाल दो,’’ फिर थोड़ी देर बाद नरम अंदाज में समझाते हुए रामदीन कहता है, ‘‘आखिर क्यों बाबूजी, आप अपनी ही जान के दुश्मन बने हुए हो? डाक्टर ने आप को कितनी बार समझाया, फिर भी आप नहीं समझते…
‘‘आप ने अपनी दवा भी अभी तक नहीं खाई है,’’ रामदीन पास ही टेबल पर पड़ी दवाओं के ढेर को कुछ देर तक ध्यान लगा कर देखने के बाद अपने सिर को खुजलाते हुए उन दवाओं में से एक को उठा कर उलटपलट कर देखता है, फिर कुछ सोचते हुए एक गोली निकाल कर राजीव को पकड़ा देता है.
उस की हालत रिटायरमैंट के करीब पहुंचे सरकारी दफ्तर के उस बाबू की तरह हो गई थी, जिस की सुनता तो कोई भी नहीं, सुनाता हर कोई था. जब जिस का दिल करता उसे उपदेश सुना जाता. एक वह जमाना भी था, जिसे उस ने इसी जिंदगी में देखी थी, जब यही लोग उस के आगेपीछे घूमा करते थे.
किसी की हिम्मत उस के सामने मुंह खोलने तक की भी नहीं होती थी, उस के आगे खड़े रहने की कोई हिम्मत तक नहीं जुटा पाता था… सब वक्त का खेल है, कितनी ही कंपनियों का वह मालिक था. रुपएपैसों की तो बरसात होती थी. दौलत की ताकत उस के सिर चढ़ कर बोलती थी. इसी दौलत की ताकत पर ही तो वह तलाक के बाद अपनी पत्नी से बेटे की कस्टडी छीन लेने में कामयाब हुआ था. उस ने अपनी पत्नी के चरित्र पर कीचड़ ही नहीं उछाली थी, बल्कि उसे एक लापरवाह मां साबित करने में भी कामयाब हो गया था.
अनीता ने सच्चे दिल से राजीव को प्यार किया था, तभी तो वह राजीव के साथ अपने रिश्ते को 4 सालों तक बचाने की कोशिश करती रही, जबकि राजीव ने सिर्फ अपने अहंकार को तवज्जुह दी.
वह अनीता से एक ऐसी नितांत समर्पित प्रेयसी की अपेक्षा करता रहा, जो सिर्फ उस के पौरुष की अहं की तुष्टि करे. लेकिन, अनीता बजाय उस के पौरुष के अहं की तुष्टि करने के, उस के हर सहीगलत पर उस से बहस करती, जबकि राजीव की यह कोशिश होती कि अनीता उस के हर आदेश का सिर्फ सिर झुका कर पालन करें, उस के सभी सहीगलत फैसलों का समर्थन करे, बजाय अपने विचारों को उस के सामने रखने के.
राजीव को सिर्फ अनीता की खूबसूरती से प्यार था. उस ने उस से शादी भी की तो बस उस की खूबसूरती से वशीभूत हो कर… राजीव अनीता के रूप में ऐसी खूबसूरत गुड़िया को चाहता था, जो उस के ड्राइंगरूम में पड़े शोकेस की शोभा अन्य कीमती वस्तुओं की तरह बढ़ा सके, जबकि अनीता एक पढ़ीलिखी अपनी इज्जत के प्रति जागरूक आधुनिक सोच की थी. अनीता अपने प्रति होने वाले अन्याय का जम कर प्रतिकार करती. वह राजीव के वर्चस्व को हर मोड़ पर चुनौती देती, जिस के कारण उन दोनों के बीच टकराव उत्पन्न होने लगे. आएदिन उन के बीच झगड़े और क्लेश होते रहते.
राजीव को अब धीरेधीरे अनीता की डाक्टरी के पेशे से भी चिढ़ होने लगी थी. परंतु, उस से भी कहीं ज्यादा उसे अनीता का डाक्टर विनय के साथ मिलनाजुलना, उस के साथ उस का हंसनाबोलना, उठानाबैठना उसे कतई पसंद नहीं था. वह उस पर तरहतरह से पाबंदिया लगाने की कोशिश करता रहता.
‘’तुम अस्पताल से जल्दी आ जाया करो… देखो, दीपू अब बड़ा हो रहा है, उसे मां की कमी महसूस होती है.’’
‘’क्या उसे पिता की कमी महसूस नहीं होती? तुम भी बिजनेस के सिलसिले में महीनों बाहर मत रहा करो.‘’