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साहिबा को भारी गहनों और कपड़ों में बेहद घुटन हो रही थी पर पसीने से सराबोर वह संस्कारों के कारण चुप बैठी रही. उस की समुद्र जैसी नीली व गहरी आंखें बारबार रौनक को तलाश कर रही थीं पर रौनक उसे दूरदूर तक नहीं दिख रहा था. तभी उस की जेठानी जूही आई और हंसते हुए बोली,"साहिबा, यह काजल तो तुम्हारी समुद्री आंखों ने इधरउधर फैला दिए हैं मगर थोड़ा सब्र रखो, रौनक प्रियांशी को ले कर हौस्पिटल गया है।"
साहिबा का गोरा चेहरा गुस्से से लाल हो गया। यह बात जूही की अनुभवी आंखों से छिपी न रह सकी मगर रौनक की ताई सास संतोष को देखते ही उस ने आंखों ही आंखों में साहिबा को इशारा किया और साहिबा ने अपनेआप को कंट्रोल किया. ताई सास संतोष ने कहा,"अच्छा तो यह अप्सरा ले कर आया है रौनक, वरना तो इतने बड़ेबड़े घरों से रिश्ते आ रहे थे।"
रौनक की मम्मी सुधा बोली,"दीदी, अब छोड़ो, बस देखना यह है कि रौनक की बहू के कैसे पैर रहेंगे इस घर के लिए।" साहिबा और रौनक की मंगनी एक तरह से बेमन से ही हो रही थी. जहां रौनक के परिवार को साहिबा के मध्यवर्गीय होने से समस्या थी, वहीं साहिबा के परिवार को इस विवाह के सफल होने की कोई संभावना नहीं लग रही थी.
प्रियांशी, जो रौनक की बड़ी बहन और अब साहिबा की बड़ी ननद बनने जा रही थी, को आज मंगनी की रात अचानक से लेबरपैन शुरू हो गए। दोनों भाई मतलब रौनक और राहिल और प्रियांशी की मामी प्रियांशी के साथ हौस्पिटल गए थे. ताई सास आंखों ही आंखों में साहिबा के रूपरंग और मायके से मिले  उपहारों को तौल रही थी. फिर साहिबा को उन्होंने जड़ाऊ झुमके और मैरून रंग की कांजीवरम की साड़ी उपहार में दी थी.
सुधा बारबार भीतरबाहर हो रही थी. उस की विवशता थी कि वह हौस्पिटल नहीं जा पाई थी पर उस का दिल प्रियांशी में ही लगा था. सुधा को गुरुजी ने हिदायत दी थी कि अगर वह बच्चे के जन्म के समय बेटी के साथ रही तो अमंगल हो सकता है. सुधा की लाड़ली और पिता वीरेंद्र की मुंहलगी थी प्रियांशी. पर मातापिता का प्यार क्या बच्चों की किस्मत बदल सकता है? साहिबा बैठेबैठे ही ऊंघ रही थी कि तभी फोन की रिंगटोन से उस की तंद्रा टूटी. रौनक का फोन था. फोन उठाते ही साहिबा बोली,"यह क्या बदतमीजी है?"
"तुम्हारा जाना जरूरी था? मैं कितना अकेला महसूस कर रही हूं..." रौनक चिढ़ते हुए बोला,"अब थोड़ा पत्नी मोड में आ जाओ, मम्मीपापा ने मंगनी तो करवा दी है।"
"और अब जल्द ही शादी के बाद हम तुम्हारे औफिस के पास वाले फ्लैट में शिफ्ट हो रहे हैं। इतना उतावलापन किस बात के लिए है?"
साहिबा बात खत्म करने के लिए बोली,"प्रियांशी दी कैसी हैं?"
रौनक बोला,"वही बताने के लिए फोन किया था, उन्होंने बेटे को जन्म दिया है।" घर में जो तनाव का माहौल था, साहिबा को मन ही मन लग रहा था कि शायद अब तनाव का कुहासा कुछ कम हो जाए. मगर एक नीरव सी शांति पसरी हुई थी। रौनक के परिवार ने न तो साहिबा और न ही उस के परिवार से कुछ बातचीत करी. साहिबा को एकाएक अजनबी जैसा महसूस हो रहा था. हार कर बिना रौनक से मिले, साहिबा और उस का परिवार मैरिज हौल से वापस आ गए.
साहिबा की मम्मी ने रास्ते में साहिबा से कहा,"तुम कैसे ऐडजस्ट करोगी उस परिवार में? उन्हें अपने रुतबे और ओहदे पर बहुत गुमान है।" साहिबा इस से पहले कुछ बोलती, रौनक का मैसेज था, उस ने पूरे परिवार से यों बीच में जाने के लिए माफी मांगी थी और कल साहिबा को नाश्ते के लिए आमंत्रित किया था ताकि वह पूरे परिवार से ठीक से बातचीत कर सके. साहिबा के मम्मीपापा ने बेमन से ही सही, मगर अपनी बेटी की खुशी के लिए हां कर दी थी.
साहिबा सफेद सूट और लाल चुनरी पहन कर गई थी। उसे लग रहा था कि रौनक उस की तारीफ करेगा मगर उस ने अपने परिवार के सामने उसे ठीक से देखा भी नहीं था. नाश्ते की मेज पर चुप्पी छाई हुई थी. तभी रौनक की भाभी जूही बोली,"मम्मी, आप चिंता मत करो, हम सब मिल कर प्रियांशी और बच्चे की देखरेख कर लेंगे।" सुधा गुस्से में बोली,"तुम कौन होती हो जूही प्रियांशी की देखरेख करने वाली? प्रियांशी और उस के बेटे का हक है इस घर पर," जूही मेहमानों के सामने कट कर रह गई थी. साहिबा मन ही मन खुश थी कि उसे इस घुटन भरे माहौल में रहना नहीं पड़ेगा. साहिबा ने प्रियांशी को 2 बार ही देखा था पर दोनों ही बार वह उसे बेहद घमंडी लगी थी.

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