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साहिबा मन ही मन सोच रही थी कि क्या इस घर में बहुओं का यही हाल रहता है. नाश्ते के बाद जूही साहिबा के कमरे में आ कर बोली," देखो साहिबा, मम्मीजी थोड़ी सी प्रियांशी को ले कर सैंसिटिव हो जाती हैं, पर वे दिल की बुरी नही हैं।" तभी रौनक बोला,"भाभी, जल्दी से कौफी बना दीजिए, नाश्ते की मेज पर तो मूड खराब हो गया।"
रौनक एक मंगेतर के रूप में साहिबा को अजनबी सा लग रहा था. कौफी पीते ही वह हौस्पिटल चला गया था। प्रियांशी अपने बेटे को ले कर 3 दिन बाद आ गई थी. प्रियांशी का प्रेमविवाह था जो असफल हो गया था. रौनक से ही साहिबा को पता चला कि प्रियांशी घर आ गई है मगर औफिस के कारण उसे लगा कि वह रविवार को चली जाएगी.
रविवार को जब साहिबा घर पहुंची तो साहिबा ने महसूस किया कि प्रियांशी के आने के बाद घर की हवा और अधिक घुट गई है. अभी साहिबा जूही से बात ही कर रही थी कि साहिबा की होने वाली सास सुधा बोली,"साहिबा, तुम्हारी दीदी को हौस्पिटल से आए हुए 2 दिन से अधिक हो गए हैं, क्या तुम्हारा फर्ज नहीं बनता कि तुम उस के हालचाल कम से कम फोन पर ही पूछ लेतीं..." रौनक बोला,"मम्मी, मैं ने ही साहिबा से बोला कि तुम फोन के बजाय आ कर ही मिल लेना।"
साहिबा और रौनक जब प्रियांशी के कमरे में पहुंचे तो जूही बच्चे को गोद मे लिए हुए थी और प्रियांशी फोन पर किसी से चैट कर रही थी. साहिबा को देख कर उस ने अनदेखा कर दिया और रौनक से बच्चे की देखभाल की बातें करने लगी. साहिबा अपमानित सी बैठी रही और फिर उठ कर बाहर बैठ गई.
रौनक को साहिबा का यह व्यवहार पसंद नहीं आया। रौनक के अनुसार साहिबा को इस परिवार का हिस्सा बनना है तो कोशिश भी उसे ही करनी पड़ेगी. रौनक पूरे रास्ते साहिबा को बहू के फर्ज के बारे में समझाता रहा,"देखो साहिबा, हम अलग जरूर रहेंगे मगर तुम्हें पहले मेरे घर वालों का दिल जीतना होगा।"
साहिबा को मन ही मन रौनक का यह रूप बेहद अनजाना सा लग रहा था. मंगनी के 1 माह बाद ही साहिबा को समझ आ गया था कि इस मोरचे पर उसे अकेले ही डटना होगा. साहिबा के घर पर भी रौनक बेहद फौरमल बना रहता था. साहिबा की छोटी बहन सलोनी बोली,"जीजू, आप लोग हनीमून के लिए कहां जा रहे हो?"
रौनक बोला,"अभी तो कुछ सोचा नहीं।" साहिबा रास्ते मे बोली,"रौनक, मंगनी होते ही तुम्हारा प्यार भी एकाएक गायब हो गया है।"
रौनक बोला,"तुम्हारी प्रौब्लम क्या है?"
"मैं और तुम क्या कहीं भागे जा रहे हैं?"
"हनीमून लोग अकेलेपन के लिए, एकदूसरे को समझने के लिए जाते हैं, हम दोनों तो अपने फ्लैट में ही हनीमून कर लेंगे।" मंगनी के बाद के दिन बोरियत और घुटन से भरे हुए थे और रातें मानमनुहार और बेताबी में बीत जाती थी. कभी रौनक बिजी होता तो कभी उस का मूड खराब रहता. मंगनी होते ही रौनक की साहिबा से उम्मीदें बहुत बढ़ गई थीं.
साहिबा जब भी रौनक के घर जाती तो वह यह देख कर चौंक जाती कि  जूही भाभी को पूरे दिन सजीधजी गुड़िया बन कर रहना पड़ता था. कभी मौसी सास, तो कभी बुआ सास, तो कभी जेठानी या कोई ननद घर पर बनी ही रहती थी. साहिबा को समझ आ गया था कि रौनक के घर पर शारीरक थकावट तो नहीं थी पर मानसिक निष्क्रियता बहुत अधिक थी. साहिबा की होने वाली सास सुधा हमेशा साहिबा को कुछ न कुछ समझाती रहतीं,"साहिबा, तुम शादी के बाद अलग जरूर रहोगी मगर इस घर के संस्कारों को निभाना तुम्हारी जिम्मेदारी है।"
"बिना नहाए रसोई में कुछ मत पकाना, मंगलवार और शनिवार को अंडा भी मत छूना और हर पूर्णमासी को घर की बहू मंदिर में सुबहसवेरे खाना दे कर आती हैं। मैं उम्मीद करती हूं कि तुम अलग रहने पर भी हमारे घर के संस्कारों को भूलोगी नहीं।" साहिबा को लग रहा था कि वह शादी करेगी या कोई गुलामी. उस का तो जिंदगी जीने का तरीका ही बदल जाएगा. मगर साहिबा ने यह सोच कर विचार झटक दिया कि शादी के बाद  वह अपने फ्लैट में अपने हिसाब से रहेगी.
अगले दिन जब साहिबा दफ्तर के लिए तैयार होने लगी तो जूही का फोन आया,"साहिबा, मम्मी ने तुम्हें एकादशी का व्रत रखने को कहा है।"
साहिबा ने बिना कुछ बोले फोन रख दिया था. आज शाम को रौनक और साहिबा को अपने नए फ्लैट में  इंटीरियर देखने जाना था. शाम को जब रौनक आया तो साहिबा ने रौनक के सामने अपना टिफिन खोला। उस ने बड़े प्यार से रौनक के लिए ऐग करी बनाई थी.
टिफिन खुलते ही रौनक बोला,"यह क्या, मंगलवार को भी तुम ने कुक से अंडा बनवा लिए और यह क्या तुम ने आज भी बाल धो लिए हैं?" साहिबा को ऐसा लगा मानों सामने  रौनक नहीं कोई पुरातनी अनपढ़ मनुष्य खड़ा हो. जब साहिबा और रौनक फ्लैट पर  पहुंचे तो देखा फ्लैट में बेहद गहमागहमी थी.

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