कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

नरगिस बोली, “तुम लोगों ने यह क्या लिबास पहना है? क्या इसी तरह बाहर जाओगी?”

“क्यों...? इस लिबास में क्या है?” इमराना ने तैश में आ कर कहा.

“यह लिबास शरीफ लड़कियों पर अच्छा नहीं लगता.”

“क्या हम शरीफ लड़कियां नहीं हैं? आप इसलिए आई हैं हमारे घर कि हमारी ही बेइज्जती करें?”

“यह बेइज्जती नहीं, लड़कियों पर दुपट्टा सजता है.”

“बसबस, अपनी नसीहत अपने पास रखें. डैडी, मैं यह बेइज्जती बरदाश्त नहीं कर सकती. मैं नहीं जाती, आप लोगों के साथ.”

“मैं भी नहीं जाऊंगी.” फरहाना ने बहन का साथ दिया.

“तुम लोग क्यों इतनी जज्बाती होती हो? नजमा इस तरह के लिबास की आदी नहीं. कुछ दिन यहां रहेगी तो सीख जाएगी.

खुद भी यही लिबास पहना करेगी.”

नरगिस का मुंह लटक गया. वह समझ रही थी कि भाई उस की तारीफ करेंगे और बेटियों को डांटेंगे कि कैसा लिबास पहन

कर आ गईं, मगर वह तो उलटे उन की हिमायत कर रहे थे. भाभी अलग मुंह बनाए खड़ी थीं. अब नरगिस के बिगडऩे का

सबब ही नहीं था. उस ने माफी मांग ली, “मुझे माफ कर दो इमराना. भाईजान ठीक कहते हैं. मैं इस लिबास की आदी नहीं हूं

न, इसलिए यह बात कह दी. आओ, घूमने चलें.”

बुझे मन से दोनों बहनें उस के साथ चल दीं.

अगले दिन नरगिस ने सुना कि मास्टर साहब आए हैं तो उस के तालीम के शौक ने सिर उभारा, “भाईजान, मैं भी मास्टर

साहब के पास जा कर बैठ जाऊं?”

“हांहां, क्यों नहीं. मैं इंटरकौम पर कहता हूं, इमराना दरवाजा खोल देगी, तुम जाओ.” रशीद बोला.

“मगर वह है किस कमरे में?”

“बालरूम में, और कहां.”

“जी अच्छा, मैं जाती हूं.”

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं

  • सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
  • देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
  • 7000 से ज्यादा कहानियां
  • समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
 

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं

  • सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
  • देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
  • 7000 से ज्यादा कहानियां
  • समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
  • 24 प्रिंट मैगजीन
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...