कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

उन से कह दीजिएगा कि पता मालूम हो गया है. अब आप की बेटी 2-4 दिनों बाद मिलेगी. देख लेना अम्मा, खुशामद करेंगे

और मेरे अब्बा कि बस, नजमा को आज ही ले आओ. मैं दिल ही दिल में खूब हंसूंगी उन पर. बेचारों को ज्यादा मत सताना.

थोड़ी देर में बता देना कि नजमा यह क्या खड़ी है. बड़ा मजा आएगा.”

नरगिस ये हवाई किले बना रही थी, जबकि सरफराज का मशविरा था कि वह अकेला जाएगा. हीलहुज्जत के बाद नरगिस

तैयार हो गई और सरफराज अपनी वालिदा को ले कर मकान ढूंढऩे चला गया.

“यह तू मुझे कहां ले आया?” बड़ी बी ने मकान को ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा.

“अखबार में इसी मकान का नंबर छपा है.” सरफराज ने अखबार देखते हुए कहा.

“लेकिन यह तो शाहिदा का मकान है. मेरी सहेली है. मैं तो नरगिस को ले कर यहां आ चुकी हूं.”

“अच्छा, मगर पता तो यही है.”

“सरफराज,” बड़ी बी ने सरगोशी की, “नरगिस भी इस मकान को देख कर चौंकी थी. शायद उस की याददाश्त ने सही

निशानदेही की थी. हो सकता है, शाहिदा का नरगिस से वाकई कोई ताल्लुक हो.”

“चलिए, मालूम करते हैं. अकसर यह भी होता है कि गुम हो जाने वाली लड़कियों के रिश्तेदार उन्हें कबूल करने से कतराते हैं.

अगर ऐसा हुआ तो हमें सख्त जद्दोजहद करनी पड़ेगी.”

“कैसी जद्दोजहद? मैं शाहिदा की जान को आ जाऊंगी. बच्ची का इस में क्या कसूर? बस तुम इतना खयाल करना कि यह जिक्र

न आने पाए कि नरगिस अब तक तवायफ के कोठे पर थी. मैं कोई और बहाना तलाश लूंगी.”

बड़ी बी अंदर चली गईं. कुछ देर बाद सरफराज को भी बुला लिया गया.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...