‘‘कुछ खाया तुम ने कि नहीं...’’‘‘नहीं...पर आप चिंता मत करो, अभी अक्षत आता होगा। उसे मम्मी के पास बैठा कर मैं कुछ खा लूंगी,’’ उस ने फोन रख दिया था। तबियत में सुधार है, सुन कर अच्छा लगा।
दूसरे दिन मैं ने जबरदस्ती डिस्चार्ज ले लिया। मुझे डाक्टर और नर्स को डांटना पड़ा था, ‘‘मैं अपनी मरजी से डिस्चार्ज ले रहा हूं...आप मुझे डिस्चार्ज कर दें...अन्यथा मैं ऐसे ही वार्ड के बाहर चला जाऊंगा...’’ मेरी खिसियाहट का असर यह हुआ कि दोपहर तक मुझे डिस्चार्ज दे दिया
गया। अक्षत ने बाकी औपचारिकताएं पूरी कर लीं और मैं वार्ड के बाहर निकल आया.‘‘मुझे मम्मी के पास ले चलो...’’‘‘अभी आप कमरे पर चलो...नहा लो फिर चलना...’’ रोली ने एक लौज का रूम किराए पर ले लिया था। मैं सहमत भी हो गया था। प्रतिभा मुझे इस हालत में देखेगी तो उस की चिंता और बढ़ जाएगी.
शाम को मैं रोली के साथ आईसीयू में पहुंचा जहां प्रतिभा भर्ती थी। आईसीयू में बगैर पीपीई किट पहने प्रवेश नहीं करने दिया जा रहा था। मुझे भी पीपीई किट पहननी पड़ी। अच्छा था, इस के कारण प्रतिभा मेरी हालत को नहीं देख पाएगी. प्रतिभा के चेहरे पर मास्क लगा था। वह जोरजोर से सांसें ले रही थी। उस के चारों ओर मशीनें लगी थीं जो उस का औक्सीजन लेवल, पल्स लेवल और बीपी बता रही थीं। इन मशीनों की भारीभरकम आवाज से पूरा कमरा गूंज रहा था। वार्ड में करीब 8 मरीज थे सभी की हालत ऐसी ही थी।
मैं लगभग भागता हुआ प्रतिभा के बैड के पास जा कर खड़ा हो गया था। उस की आंखें बंद थीं पर मेरे आने की आहट से उस ने धीरे से आंखें खोलीं और मुझे सामने देखते ही उस की आंखों से आंसू बह निकले। मैं ने उस के सिर पर हाथ फेरा,"कैसी हो?’’ वह एकटक मेरी ओर ही देख रही थी। आंसू लगातार बह रहे थे। मैं ने उस का हाथ अपने हाथों में ले लिया। उस ने मेरे हाथों को जोर से पकड़ लिया, "मैं अब ठीक हूं...देखो ठीक लग रहा हूं न...’’
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