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प्रतिभा ने घर पहुंच कर फोन लगा कर बता दिया था कि वह आ गई है,‘‘मुझे तो अभी भी बहुत घबराहट हो रही है...आप अपना ध्यान रखना...’’‘‘हां मैं ठीक हूं...डाक्टर ने बोला है कि 2-3 दिनों में मैं पूर्ण स्वस्थ्य हो जाऊंगा। तुम चिंता मत करो,’’ मुझे उसे समझाना था ताकि उस की घबराहट कम हो सके। हालांकि मैं जानता था कि मेरे ऐसा झूठ बोल देने के बाद भी उस की चिंता कम नहीं

होगी।‘‘आप रोली को बुलवा ही लो...कोई तो आप के साथ रहना चाहिए...’’‘‘अरे नहीं...वह आएगी तो ऐसे ही परेशान होगी...यहां रुकने की कोई व्यवस्था तो है नहीं।" वह कुछ नहीं बोली।

शाम को भैया ने फोन कर बताया था कि प्रतिभा स्वस्थ महसूस नहीं कर रही है। उसे घबराहट हो रही है। मुझे समझ में आ गया था कि प्रतिभा

मेरी चिंता के कारण परेशान है। वह रातभर बैचेन रही। दूसरे दिन भैया ने बोला था कि मैं प्रतिभा को ले कर वहीं आ रहा हूंउस की तबियत ठीक नहीं है। वे रात को ऐंबुलैंस ले कर आ गए थे। रोली भी भोपाल से कैब में बैठ कर अस्पताल पहुंच गई थी। इस बार रोली ने मुझ से आने का पूछा नहीं था। उसे अपनी मां के चलते घबराहट में आना पड़ा। देर रात को प्रतिभा को अस्पताल में भर्ती कर लिया। तब तक मैं इंजैक्शन के प्रभाव में आ कर सो चुका था।

 

सुबह जब मेरी नींद खुली तो मैं ने प्रतिभा को अपने बाजू वाले पलंग पर कराहते हुए देखा,"क्या हुआ...’’ मैं ने उस के माथे को सहलाया।

 

‘‘कुछ नहीं...अच्छा महसूस नहीं कर रहीं हूं...’’

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