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‘‘अरे इस हालत में मरीज को कहीं और कैसे ले जाया जा सकता है?’’ मैं झुंझला पड़ा था।‘‘वह हम नहीं जानते...पर मरीज का औक्सीजन लेवल निरंतर कम हो रहा है...उसे वैंटिलेटर की जरूरत है...’’

 

‘‘सरआप जानते हैं कि मैं स्वयं यहां ऐडमिट हूं...मैं कैसे कहीं और ले जा सकता हूं...’’‘‘अच्छा...मैं प्रसास करता हूं...कुछ ऐक्स्ट्रा कर पाओगे...’’ वह मरीज की फाइल देखते हुए बोल रहे थे.

 

‘‘फिलहाल तो हम इस स्थिति में हैं कि कुछ भी करना पड़े तो करेंगे...’’ मेरे स्वर में लाचारी थी.‘‘ठीक है...मैं व्यवस्था करवा देता हूं...’’दोपहर होतेहोते पता चला कि आईसीयू में भर्ती एक मरीज की अचानक मौत हो गई है और उस का बैड खाली हो गया है। अस्पताल के एक कर्मचारी ने खुद आ कर डाक्टर का संदेश मुझ तक पहुंचाया था। शाम को प्रतिभा को आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गयागनीमत यह थी कि उस समय बिटिया रंगोली साथ में थी। मुझे उस के बारे में कोई खबर नहीं मिली। दूसरे दिन दोपहर को अक्षत मेरे सामने खड़ा था,"पापा...’’

‘‘अरे तुम कब आए...’’ उसे यहां देख कर मुझे आश्चर्य हो रहा था। वह तो सूरत में नौकरी कर रहा था। जब मैं अस्पताल में भर्ती हुआ था तब उस ने पूछा भी था, ‘‘पापामैं आ जाऊं?’’ मैं ने वैसे ही मना कर दिया था जैसे रंगोली को मना कर देता था। रंगोली तो फिर भी बहुत जिद कर रही थी, ‘‘मुझे आ जाने दो पापा...आप अकेले परेशान होंगे।’’

 

‘‘अरे नहीं...तुम यहां कहां आओगी... कोरोना मरीजों के बीच मेें...यदि तुम्हें कुछ हो गया तो...’’‘‘पर पापा...’’‘‘अभी नहीं...यहां रुकने की कोई व्यवस्था नहीं हैमम्मी को भी तो इसी कारण से वापस भेजना पड़ा है,"बहुत चाह कर भी वह मेरे मना करने के कारण तब नहीं आ पाई थी। पर जैसे ही प्रतिभा को भर्ती होना पड़ा वह बगैर पूछे आ गई थी। अक्षत भी वैसे ही आ गया थाउस ने भी नहीं पूछा था। यही कारण था कि उसे देख कर आश्चर्य हुआ।

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