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‘‘पापाआप जल्दी आओ... मम्मी का औक्सीजन लेवल कम होता जा रहा है...’’ बेटे की घबराई हुई आवाज से सहम गया था मैं।

‘‘तुम चिंता मत करोमैं बस अभी पहुंच रहा हूं," कहते हुए बिस्तर से उठ खड़ा हुआ। ऐसा कैसे हो सकता है। मैं अभी ही तो अस्तपाल से लौटा हूंतब तो सबकुछ ठीक था. सुबह डाक्टर ने भी बोला था कि प्रतिभा अब स्वस्थ्य हो रही है और 1-2 दिनों में ही उस का वैंटीलेटर हटा देंगे। फिर अचानक क्या हो गया... हो सकता है बच्चे घबरा रहे होंगे. जल्दी से कपड़े बदले और अस्पताल की ओर चल पड़ा। हालांकि दिल जोरजोर से धड़क रहा था। रास्तेभर कुदरत से कामना करता रहा कि सबकुछ ठीक ही करना... प्रतिभा को कुछ न होने पाए.

लगभग 1 माह पहले ही तो वे इस अस्पताल में भर्ती हुए थे। उन्हें कोरोना ने अपनी चपेट में ले लिया था।‘‘इन्फैक्शन ज्यादा है...औक्सीजन की कमी कभी भी महसूस हो सकती हैइसलिए तुम किसी बड़े अस्पताल में भर्ती हो जाओ...’’ डाक्टर ने कहा तो उसे प्रतिभा ने सुन लिया था,"आप कहीं जाने और जाने की व्यवस्था कर लो...’’

‘‘अरेमुझे कुछ नहीं हुआ...मैं एकदम स्वस्थ महसूस कर रहा हूं...’’‘‘नहीं...अभी स्वस्थ लग रहे हो पर यदि औक्सीजन की कमी हुई तो तत्काल कहां मिलेगी...आप तो चलने की तैयारी करो...हम चले ही चलते हैं...’’डर तो मुझे भी लग रहा था कि यदि वाकई औक्सीजन की कमी अचानक सामने आ गई तो क्या करेंगे। कोरोना की महामारी इतनी तेजी से फैल रही थी कि अस्पतालों में बैड खाली नहीं थे। मरीजों का औक्सीजन लेवल कम हो रहा था। सप्ताह भर में ही दर्जनों लोग अपनी जानें गवां बैठे थे। डर तो स्वाभाविक ही था। भैया ने भी बोल दिया था, ‘‘देखोतुम चले ही जाओ... हम कोई रिस्क नहीं लेंगे।’’

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