जज प्रशांत शर्मा ने कोर्ट से आ कर अपनी पत्नी सुगंधा के साथ शाम की चाय पीते हुए पूछा, ‘‘उमा बूआ से बात हो गई? कब पहुंच रही हैं?’’
‘‘कल सुबह आ जाएंगी,’’ फिर अपने पति को गंभीर देख कर सुगंधा ने पूछा, ‘‘क्या हुआ...? बहुत सीरियस हो.’’

‘‘अपने देश की मूर्ख जनता पर तरस आता है, सुगंधा. अदालत में ढोंगी बाबाओं की केस फाइलें बढ़ती जा रही हैं और हमारी गरीब जनता इन बाबाओं के हाथ की कठपुतली बनती ही जा रही है, इन्हें नेताओं का संरक्षण प्राप्त है, नेताओं को वोट चाहिए और बाबाओं के पास अंधभक्तों के वोट हैं, देख कर कोफ्त होती है. सब से बड़ी बात तो यह है कि जब उमा बूआ को प्रेमशंकर बाबा का नाम जपते देखता हूं, दिल जलने लगता है. अपने ही घर में बूआ को मूर्खता करते देख मुझे कैसे चैन मिल सकता है. कल प्रेमशंकर का फैसला हो जाएगा, जानता हूं कि बूआ प्रेमशंकर के पक्ष में फैसला सुनाने पर मुझ पर प्रैशर डालने आ रही हैं, उन्होंने ही मुझ अनाथ को पालपोस कर इस पद तक पहुंचाया है, वे मुझ से क्या उम्मीद रख कर आ रही हैं, जानता हूं. अपने ही घर में प्रेमशंकर जैसे धूर्त, ढोंगी की अंधभक्त उमा बूआ को कल कैसे समझाना है, यही सोच रहा हूं.

सुगंधा ने कर्मठ, न्यायप्रिय पति को तसल्ली देती नजरों से देखा. वे अच्छी तरह जानती हैं कि प्रशांत उमा बूआ के एहसानों तले दबे हैं, पर अपना कर्तव्य, न्याय व्यवस्था से बढ़ कर भला उन के लिए और क्या हो सकता है.

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