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तब उस ने छिताई को अपने विश्वस्त राघव के महल में भेज दिया. अलाउद्दीन ने उस की सुरक्षा की इस आशय से अलग व्यवस्था की कि भविष्य में समय बदलने पर उस का मन भी बदल जाए. साथ लाई उस की वीणा भी मन बहलाने के लिए भेज दी.

उधर जब सौंरसी तैयारी के साथ देवगिरि वापस पहुंचा तो उसे छिताई के अपहरण की सूचना मिली. यह आघात वह सहन न कर सका. उस ने दुर्ग, सेना, महल, राजपाट सब त्याग दिया. उस की दशा एक बार तो विक्षिप्त की भांति हो गई. वह जंगल में चला गया और उस ने वैरागी रूप धर लिया. जो मिला, खा लिया और इधरउधर घूमने लगा. वह छिताई की हर ओर खोज करने लगा. अपने असह्यï वियोग की करुणा को उस ने वीणा में झंकृत करना आरंभ किया.

संगीत अन्य कलाओं की भांति साधना है जो भावातिरेक में स्वरों को चमत्कार के रूप में प्रकट करता है. भावों की गहनता कला को साधना के सोपानों से सिद्धि के शिखर का स्पर्श करा देती है. जब छिताई की अतृप्त स्मृति को सौंरसी वीणा के विराट सुरों से तृप्त करने का प्रयास करता तो प्रतीत होता जैसे अदृश्य से दृश्य हो रहा हो. एकांत में सौंरसी के वीणा वादन पर पशुपक्षी स्तब्ध हो कर मुग्ध हो जाते. पुष्प झूमने लगते. प्रकृति थिरकने लगती. वैरागी सौंरसी रुकता नहीं था, टोह लेतेलेते मंजिल की ओर बढ़ा जाता था.

वियोगी हृदयों की भी कोई अनजानी आहट होती होगी. भावी प्रेरणावश सौंरसी दिल्ली पहुंच गया. उस ने एक उपवन में डेरा डाला. प्रात: संध्या अथवा जब उस को भावोद्वेग होता, वह वीणा के तार छेड़ देता. तब बटोही थम जाते. पखेरू चित्रलिखित बन जाते और जल का निर्झर संगत करने लगता था.

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