अलाउद्दीन अपना नाम सुन कर भागना चाहता था, मगर वह औरत जो दासी मालूम पड़ती थी, उस से अधिक फुर्तीली निकली. उस ने अपनी कमर में बंधी कमंद को भागने वाले पर निशाना लगा कर फेंका. भागने वाला कमंद में फंस कर रह गया. उस की मुश्कें कस चुकी थीं और वह अपनी कमर में एक ओर बंधे नेजे को निकाल नहीं पा रहा था.
तब तक वह औरत एकदम रूबरू आ खड़ी हुई. बोली, ‘‘कटारी मेरे पास भी है बादशाह सलामत. हथियार मत इस्तेमाल कीजिए वरना पछताइएगा. मैं जरा भी आवाज दूंगी तो हमारे सिपाही दौड़े आएंगे. आप के इस तरह पकड़े जाने पर आप की फौज को भागने का रास्ता न मिलेगा, जान लीजिए.’’
अलाउद्दीन खूब अच्छी तरह जानता था कि वह चालाक औरत एकदम सही कह रही थी. उस के पकड़े जाते ही लड़ाई का पासा पलट जाएगा. चाहे बाद में दिल्ली की फौज उसे छुड़ा ले, इस राज्य को नूस्तनाबूद कर दे, मगर उस पर जो धब्बा लग जाएगा, वह फिर न मिटेगा. यह भी हो सकता है कि राजा रामदेव उसे हाथियों से कुचलवा दें या भयानक खाई में फेंकवा दें.
वह एकबारगी सिहर उठा. उस ने अपनी हेकड़ी में अकेले इधर आ कर कितनी बड़ी गलती की है. राघो (राघव) चेतन से अलाउद्दीन का प्रस्ताव सुन कर राजा रामदेव का उबल पडऩा बिलकुल वाजिब था. राघव ने मना किया था कि वह सांप के बिल में न घुसे. मगर सुलतान को अपनी सूझबूझ और बहादुरी पर कुछ ज्यादा ही इत्मीनान हो गया था. अब वह क्या कर सकता था, सिवाय गिड़गिड़ाने के. न जाने यह शैतान की खाला क्या गुल खिलाएगी?