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"सब से पहले तो कोर्ट या दत्तावाडी थाना से एफआईआर की कौपी निकालिए. उस के बाद शुभेंदु की जमानत के लिए दोदो जमानतदार लाइए. कोर्ट में जा कर पता लगाना होगा कि पुलिस ने डायरी और चार्जशीट दाखिल किया है या नहीं. इतना होने के बाद कोर्ट में आगे की कार्रवाई शुरू होगी,” अधिवक्ता बी के दास ने कहा.

"सर, केस को रफादफा करने में क्या खर्च लगेगा?"

"बिना एफआईआर की कौपी देखे, खर्च बताना मुश्किल है?"

"फिर भी, सर?”

"तकरीबन डेढ़दो लाख रुपए खर्च होना चाहिए. फिलहाल आप 5 हज़ार रुपए दीजिए, ताकि एफआईआर की कौपी निकाल सकूं. इतनी राशि में सगुण, पेपर, दस्तखती, कोर्ट पिटिशन, टाइपिंग आदि के छोटेछोटे काम हो जाएंगे."

"ठीक है सर, अभी देता हूं."

शिवजी साह ने मनीबैग खोला और एकएक हजार के 5 नोट निकाले और अधिवक्ता बी के दास के हाथों में दे दिया.

"धन्यवाद, कल एफआईआर की कौपी मिल जाएगी. उस के बाद शुभेंदु की जमानत याचिका कोर्टफीस के साथ दाखिल की जाएगी. जब अधिवक्ताओं की बहस के बाद सीजेएम कोर्ट से जमानत की अर्जी मंजूर हो जाएगी, तब जमानतदार आदि की जरूरत पड़ेगी. आप शेष पैसे और जमानतदार के जुगाड़ में लग जाइए," बी के दास ने समझाया.

"सर, जमानतदारों को पहचान के तौर पर क्याक्या लाना होगा?"

"आधारकार्ड, ओनर बुक, ड्राइवरी लाइसैंस, प्रौपर्टी पेपर आदि सामग्री चाहिए. इसी तरह आरोपित शुभेंदु के भी पेपर चाहिए."

"ठीक है सर, कल मिलेंगे."

"सुनिए, कोर्ट दलालों का अखाड़ा है. दलालों के चक्कर में न पड़िएगा, नहीं तो बेटा की जमानत के नाम पर जमापूंजी गायब हो जाएगी."

"नहीं सर, ऐसी ग़लती नहीं होगी. आप पर मुझे पूरा भरोसा है," यह कह कर शिवजी बाहर निकल गए.

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