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तब मितेश को लगा कि भाइयों के परिवार के सामने उस की औकात अदना सी है, वह अगर एक शांत और समझदार बीवी ले आए तो उस का भी अपना परिवार हो सके.

मितेश के लिए अब ये दिक्कत की बात थी कि भाइयों को बिना बताए वह खुद के लिए लड़की ढूंढ़ने निकले.

उसे अरुणेश को बताना पड़ा, और जैसे ही दोनों भाइयों को उस ने बताया, उस के लिए ऐसी लड़की ढूंढी जाने लगी, जो दोनों भाइयों की बीवी से कमतर हो.

और तब मितेश को नलिनी के बारे में पता चला.

नलिनी जब शादी हो कर आई, तब आयशा का बेटा गौरव 3 साल का था.
नलिनी छोटी देवरानी की यथासंभव सेवा करती, बच्चे को संभालती और बदले में झिड़की, अपमान ही मिलता रहा.

यद्यपि आयशा ने नलिनी का सुखचैन छीन रखा था, तब भी जीतेश इस घर को छोड़ कर जाने की आयशा की बात पर तवज्जुह नहीं देता. उसे लगा, इतना बड़ा घर उन के चले जाने से मितेश अकेला कहीं इस घर पर कब्जा कर के दोनों भाइयों का हक न मार ले,
गरीब को बेईमान समझने की पुरानी मानसिकता होती ही है कइयों में.

मितेश की शादी के बाद इस तरह गुजरे 19 साल. गौरव अब इंजीनियरिंग के तीसरे वर्ष में था.

इस घर में 16-17 साल कैसे बीते, नलिनी ही जानती है. फिर एक बार आयशा ने ऐसा हंगामा मचाया कि मितेश ने पूरी तैयारी कर ली कि अब किराए के मकान में जाना उचित रहेगा, लेकिन इस घर में अब और नहीं.

19 साल के गौरव को यह बात पता चली, तो उस ने उस वक्त दिल्ली में पढ़ रहे अरुणेश के बेटे 23 साल के अर्णव भैया से बात की, फिर दोनों ने मिल कर अरुणेश से कहा कि गौरव के नाना की इतनी बड़ी हवेली में जीतेश और आयशा को शिफ्ट हो जाना चाहिए, क्योंकि नाना की अभीअभी मौत के बाद नानी को सहारा तो मिलेगा ही, वहां रह कर नाना के बिजनैस की व्यवस्था भी आसानी से हो सकेगी. साथ ही, मितेश काकू के परिवार पर अतिरिक्त खर्च नहीं बनेंगे. उन की बेटियां भी अपने घर में सुरक्षित रहेंगी. काकू पर यह शक करना नाइंसाफी होगी कि वे घर हड़प लेंगे, जैसा उस ने मां को कहते सुना है.

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