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नलिनी भले ही स्कूल टीचर हो, लेकिन है वह शांत स्वभाव की. नलिनी ने माहौल को शांत करना चाहा, "जाने दो न... कौन सा हमें बड़े भैया के परिवार के साथ रहना है. सौम्या और स्निग्धा को किसी सहारे की जरूरत नहीं, ये दोनों कितनी भी शांत हों, स्मार्ट हैं."

सौम्या ने सब को चुप कराया.

"अरे, आप लोग तब से परेशान हैं. सब तो अकेले ही बाहर जा कर कैरियर बना रहे हैं. ग्वालियर कोई गांव नहीं है. और मैं कोई भोंदू नहीं हूं."

"दीदी घर में भले ही भोंदू दिखती हैं, लेकिन बाहर बहुत स्मार्ट हैं पापा," स्निग्धा ने बहनापा से लाड़ जताया, तो सौम्या ने स्निग्धा पर झूठा रोष जताया, "एई चुप... सिन्ना नातोली."

"ये क्या है...?" नलिनी ने मुसकरा कर पूछा.

"देखो न मम्मा, दीदी मुझे इस नाम से बुलाती हैं, क्योंकि मुझे वह छोटी मछली कहना चाहती हैं. जब हम केरल घूमने गए थे, तब से दीदी मुझे स्निग्धा की जगह अकसर सिन्ना कहती हैं, केरल में छोटी को सिन्ना और मछली को नातोली कहते हैं."

इन के पापा ने इन सब बातों के बीच कुछ सोच लिया था. कहा, "अलग से कमरा ले कर रहना महंगा पड़ेगा. सौम्या, तुम आज से ही नेट पर मुंबई में तुम्हारे कालेज के आसपास पीजी ढूंढ़ना शुरू करो. मैं भी अपने कुछ दोस्तों को कहता हूं."

सौम्या ने हामी भरी, और चारों कुछ संतुष्ट हुए कि उन के लिए कुछ रास्ता तो निकल ही आएगा.

मितेश मंझले भाई हैं इस परिवार के. बड़े अरुणेश और छोटे जीतेश भी इसी घर में रहते थे.

गोविंदपुरी का यह घर दरअसल इन के मातापिता का है, जो अब इस दुनिया में रहे नहीं.

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