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‘‘क्या पता, क्यों? माधवी, मुझे लगता है युवावस्था का पहला प्रेम ही दोषी है इस के लिए. आज शायद मैं सतीश का चेहरा याद भी नहीं कर सकती.’’

‘‘फिर मौसाजी ने क्या कहा? आप ने क्या किया?’’

‘‘मैं ने उसी समय वह सबकुछ जला दिया था, मगर उस के बाद...’’ कहतेकहते मौसी फिर चुप हो गईं. जाने क्या था जो वे कह नहीं पा रही थीं.

‘‘मौसी, क्या हुआ उस के बाद?’’ मैं ने उन्हें टोका तो उन्होंने मेरा बाजू इतना कस कर दबाया कि मैं चीत्कार सी कर उठी. वे बोलीं, ‘‘उस के बाद आज 12 बरस हो गए माधवी,’’ कहतेकहते वे फिर चुप हो गईं.

‘‘बताइए न मौसीजी,’’ मैं ने फुसफुसा कर कहा तो वे हांफती सी बोलीं, ‘‘उस के बाद आज तक उन्होंने मुझे हाथ तक नहीं लगाया, माधवी. मैं पत्नी हो कर भी अब उन की पत्नी नहीं. मैं केवल शकुन, आरती और राजेश की मां हूं, बस,’’ कहतेकहते वे चुपचाप रोए जा रही थीं. आंखों में जाने कब से रोक रखा बांध टूट गया था. मैं अब उन्हें गोद में भर कर चुप करा रही थी.

जाने कब तक वे रोती रहीं, मुझे समय का पता ही न चला. मेरी साड़ी भिगो दी उन के आंसुओं ने. जब उन की सिसकियां रुकीं तो मैं ने उन का चेहरा ऊपर करते हुए कहा, ‘‘मौसी, मौसी, क्या मौसाजी आप को तंग करते हैं?’’ कहते हुए मैं सहम रही थी कि न जाने क्या उत्तर मिले.

‘‘नहीं माधवी, यही तो बात है जो मुझे मारे जाती है. वे सही माने में जैंटलमैन हैं. मेरे मन में कब से सतीश की जगह तुम्हारे मौसाजी ने ले ली थी, मगर मेरी एक नादानी ने हमारे बीच कठिनाई से पनपे प्रेम व विश्वास को तोड़ डाला. मैं कैसे विश्वास दिलाऊं उन्हें कि संदूक में पड़े पत्र बरसों से मैं ने देखे भी नहीं, पर हां, यह है तो मेरी ही भूल न? मैं ने भी तो 2 बरस यही किया था. मैं ने तो इन्हें निरपराध होने पर भी सजा दी थी. खैर, जाने दो. तुम ऐसी गलती न करना, माधवी. अगर आलोक तुम से प्रेम करता है और तुम उस से तो विवाह कर लो.’’

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