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‘‘मौसी,’’ मैं ने विरोध किया.

‘‘हां, माधवी, प्रेम करना है और उस में सफल होना है तो बहुत साहस चाहिए, नहीं तो मेरे जैसी दशा होगी.’’

‘‘मौसी, आप के जैसी? आप को क्या हुआ?’’ मैं चौंकी. मैं कुछ समझ न पाई थी.

‘‘माधवी, क्या तुम ने कभी यह गौर नहीं किया कि इतने बरसों में तुम्हारे मौसाजी कभी मेरे मायके नहीं आए?’’

‘‘हां, इस पर लोगों की टिप्पणियां भी सुनी हैं. क्यों नहीं आते, मौसाजी?’’

‘‘वही कारण है माधवी, जो मैं ने तुम्हें बताया है, प्रेम में मेरी कायरता.’’

‘‘आप ने कैसी कायरता दिखाई, मौसी?’’

‘‘माधवी, मेरी सगाई जिस से हुई थी, एक मोटरसाइकिल दुर्घटना में उस की एक बांह कुचल गई थी. हाथ ठीक तो हुआ पर 3 उंगलियां कट गईं. उस ने सगाई तोड़ दी और कसम दिलवा कर मेरी शादी तुम्हारे मौसाजी से करवा दी. मैं बहुत रोईधोई. मैं ने आत्महत्या करने की भी कोशिश की पर कुछ न हुआ और मेरी शादी यहां हो गई,’’ इतना कह कर मौसी काफी देर चुप रहीं तो मुझे लगा, वे रो रही हैं.

‘‘मौसी, मौसी,’’ मैं ने मेहंदी लगे हाथों से मौसी का चेहरा छू कर देखा तो वे हंस कर बोलीं, ‘‘नहीं, माधवी, मैं रो नहीं रही. दूसरों की गलती हो तो रोऊं, अपनी गलती पर इंसान आखिर कब तक रोएगा?’’

इतना घोर अवसाद मौसी की आवाज में था कि एक पल को मैं अपना भी दुख भूल गई. मैं मेहंदी रचे हाथ मौसी के कंधों पर रख, बोली, ‘‘मौसी, क्या बात है? बताइए न?’’

‘‘हां माधवी, बताती हूं. यही समय है बताने का, वरना मेरे जैसी एक भूल तुम भी कर बैठोगी.

‘‘मैं जब 18 वर्ष की थी और कालेज में द्वितीय वर्ष में पढ़ती थी, तब मेरी सगाई सतीश नामक युवक से हुई थी. वह आकाशवाणी में अभियंता था. सुंदर, सुसंस्कृत और आधुनिक विचारों वाला. मांपिताजी ने मेरी बात मान ली कि मैं पहले बीए कर लूं, शादी के बाद पढ़नालिखना न हो पाएगा. फिर 4-5 माह तक वह यदाकदा मुझ से मिलने, मेरी पढ़ाई की बात पूछने आता रहा. फिर कभीकभार हम बाजार जाते.’’

‘‘‘मुझे बहन के लिए गिफ्ट खरीदना है, एकता को ले जाऊं?’ सतीश कहता, ‘मां ने बाजार जाने के लिए कहा है, एकता को साथ ले कर हम जाएं?’ धीरेधीरे घनिष्ठता बढ़ने लगी. मुझे तो पता था उस से मेरी शादी होने वाली है, इसलिए मैं अपने मन की बातें उसे बताती.

‘‘मैं उस का बहुत आदर करती थी, माधवी, क्योंकि मेरे भोलेपन का उस ने कभी फायदा नहीं उठाया. मेरी पवित्रता पर लांछन न लगने दिया. हमारी शादी

की तारीख पक्की हुई. उसी के 4 दिनों

बाद वह एक गाय को बचातेबचाते मोटरसाइकिल से गिर पड़ा. उस

का बायां हाथ उस के नीचे आ कर कुचल गया.

‘‘बस, 2 दिनों बाद जब उंगलियां कटीं तब से वह मेरे पीछे पड़ गया कि एकता, मैं तुम से शादी नहीं कर सकता. तुम्हारा जीवन खराब नहीं कर सकता.’’

‘‘आप ने मना नहीं किया, मौसी?’’

‘‘किया माधवी, पर हाथ के घाव के कारण वह बहुत मानसिक तनाव में था. डाक्टर को शक हुआ कि वह ठीक नहीं हो पाएगा. आखिरकार, सब के दबाव में आ कर मैं मान गई,’’ कहतेकहते मौसी कुछ क्षण को चुप हो गईं. मैं उन के दर्द का एहसास करती रही. वे फिर बोलीं, ‘‘और तब, तुम्हारे मौसाजी से शादी हो गई.’’

‘‘फिर?’’ मैं ने पूछा.

‘‘उन्हें थोड़ी बातें तो मालूम थीं. मैं भी प्रेम से आहत थी. अपनी सारी भड़ास मैं ने तुम्हारे मौसाजी को अपराधी सिद्ध करने में निकाली, ‘आप मुझ से शादी न करते तो क्या होता? मैं ने सतीश को ही पति माना है. आप के साथ फेरे लेने से ही थोड़ी न सबकुछ हो गया,’ और भी न जाने क्याक्या,’’ कहती हुई मौसी फिर चुप हो गईं. शायद वे उन दिनों की कड़वी यादों में खो गईं.

‘‘फिर मौसी?’’ मैं ने टोका.

‘‘फिर क्या, 2 साल तक मैं मायके में ही रही. बीए किया, तब तक सोचविचार में परिपक्वता आई. मेरे पड़ोस में सुधा नामक एक युवती रहने आई थी, उस से मेरी अंतरंगता बढ़ गई. उसे सब बताया तो उस ने जो बात कही वह मुझे चुभ गई, ‘एकता, तुम ने 2 गलतियां कीं. एक तब जब सब के कहने पर तुम ने सतीश को छोड़ा. अरे, साहस कर के थोड़े दिन उसे झठा आश्वासन दे देतीं, फिर कर लेतीं शादी. मातापिता के सामने दिखातीं साहस. यदि वही दुर्घटना शादी के बाद होती तो क्या तुम सतीश को छोड़ देतीं? ‘दूसरी गलती की अपने पति को पहली ही रात सतीश के बारे में बता कर या तो तुम उन से विवाह न करतीं और अब, जबकि कर लिया तो चुप रहतीं. कोई गलत कदम तो तुम ने उठाया नहीं था, न बतातीं. अब तुम ने और सतीश ने अपना जीवन तो खराब किया ही, एक और पुरुष का जीवन बरबाद करने पर तुली हो. या तो उन्हें छोड़ दो, स्वतंत्र कर दो या फिर उन के पास चली जाओ.’’’

‘‘तो आप मौसाजी के पास चली गईं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हां माधवी, चली गई. 2 वर्षों तक वे हर तीजत्योहार पर आते रहे. हम एक कमरे में रहते पर वे मुझे छूते भी नहीं. मेरे घर के किसी व्यक्ति को नहीं मालूम कि  हमारे बीच क्या चल रहा था. कभी वे मुझे एक ताना भी न देते.’’

‘‘फिर क्या किया आप ने?’’

‘‘एक दिन मैं स्वयं तुम्हारे मौसाजी के पास चली गई. क्षमा मांग ली उन से तो उन्होंने कहा, ‘एकता, क्या तुम तनमन से आज से मुझे अपना पति मान रही हो? इस रास्ते में पीछे नहीं मुड़ पाओगी, फिर कभी?’ मैं ने हां कर दी,’’ कहते मौसी ने लंबी सांस ली.

‘‘मगर मौसाजी यहां क्यों नहीं आते, मौसी?’’

‘‘क्या पता, माधवी. मैं ने इस बारे में उन से कभी न पूछा. बस, एक दिन उन्होंने मुझ से कहा, ‘तुम जाओ, रोकूंगा नहीं पर मुझे जाने को न कहना.’’

‘‘और आप के साथ मौसाजी का व्यवहार?’’

‘‘हमेशा ठीक रहा. माधवी, मैं यह कहना चाहती हूं कि तुम ऐसी कोई भूल न करना. आलोक का कोई पत्र या फोटो न रखना. मैं ने रखा था संदूक में. एक दिन तुम्हारे मौसाजी सुबह की चाय पीतेपीते बोले, ‘एकता, क्या तुम्हें नहीं लगा कि तुम्हारे संदूक में रखे पत्र, कार्ड और सूखे फूल फेंक दिए जाने चाहिए?’ मुझे कैसा लगा, मैं बता नहीं सकती. तब तक शकुन और आरती पैदा हो चुकी थीं.’’

‘‘सब से अधिक शर्म की बात तो यह है माधवी कि सतीश ने मेरी शादी के एक साल बाद ही शादी कर ली थी और मैं ने वे 2 साल किस तनाव व अपमान में काटे, मैं ही जानती हूं. इधर जिस शख्स के लिए मैं पति को ठेस पहुंचा चुकी थी, वह सुख से जी रहा था,’’ कहतेकहते मौसी का गला सूखने को हुआ.

‘‘फिर भी मौसी, आप ने उन के पत्र और फूल संजो रखे थे,’’ मैं ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा.

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