मेहंदी लगातेलगाते इंदू और वेदा इतनी थक गई थीं कि कुछ मिनटों में ही सो गईं. मौसी ने ही मेहंदी सनी सारी कटोरियां धोईं और कोन बटोरे. मेरी भी आंखों में चुभन हो रही थी, कुछ तो रोरो कर, कुछ जागजाग कर.
‘‘अभी तुझे बहुतेरे रतजगे करने हैं लाडो, सो जा,’’ तभी बूआ ने कहा तो मैं ने पलकें झका लीं और ‘‘बत्ती बुझ देना, बूआ,’’ कह कर पलंग से जा टिकी. सामने आंगन की बत्ती जल रही थी. बगल के कमरे से जलते दीए का मद्धम प्रकाश आ रहा था.
धीरेधीरे सारी आवाजें सिमट गईं. नीचे रसोईघर से कटोरियों के धुलने की आवाज आ रही थी.
‘‘एकता मौसी को भी भेज देना, बूआ, 3 बज रहे हैं,’’ मैं ने कमरे की बत्ती बुझ कर बाहर जाती बूआ से कहा.
‘‘हां, भेज देती हूं.’’
कुछ ही क्षणों में एकता मौसी के कदमों की आहट हुई. वे अंदर आते ही बोलीं, ‘‘उठो माधवी, ऊपर लेट जाओ. बैठेबैठे पीठ अकड़ गई होगी,’’ कह कर मौसी ने मुझे सहारा दे कर उठाया और पलंग पर लिटाया, फिर बोलीं, ‘‘मेरे लिए मेरी सहेली सपना ने यह सब किया. कटोरी में से शक्कर तथा नीबू के रस का घोल रातभर लगाती रही थी. रातभर सोने न दिया, ठिठोली करती रही थी.’’ मौसी मुझे बताती रहीं.
‘‘मौसी, मेरे पास ही लेट जाइए न,’’ मैं ने कहा तो मेरी चादर ठीक करतेकरते वे ठिठकीं और बोलीं, ‘‘क्या बात है, माधवी?’’
मैं अंधेरे के बावजूद उन से नजरें चुराती हुई बोली, ‘‘कुछ नहीं, आप भी थक गई होंगी न इसीलिए.’’
‘‘सच बताना, माधवी,’’ मौसी मेरी बात काटती हुई बोलीं.