वैसे तो आजकल ‘बर्थ डे’, ‘मदर्स डे’, ‘फादर्स डे’, ‘रिब्बन डे’, ‘रोज डे’, ‘वैलेंटाइन डे’ आदि की भरमार है पर इन में सब से ज्यादा अहमियत दी जाती है ‘वैलेंटाइन डे’ को. क्यों? पता नहीं, पर एक बुखार सा चढ़ जाता है. सारा माहौल गुलाबी हो जाता है, प्यारमोहब्बत की अनदेखी रोमांचक तरंगें तनमन को छू कर उत्तेजित कर देती हैं. महीना भर पहले जो हर किसी की जबान पर यह एक बार चढ़ जाता है तो फिर कई दिनों तक उतरने का नाम ही नहीं लेता.
मुझे सुबह की पहली चाय पीते हुए अखबार पढ़ने की आदत है. आज मेरे सामने अखबार तो है पर चाय नहीं. देर तक इंतजार करता रहा पर चाय नहीं आई. दिमाग में एक भी शब्द नहीं जा रहा था. गरमगरम चाय के बिना अखबार की गरमगरम खबरें भी बिलकुल भावशून्य लगने लगीं. जब दिमाग ने बिलकुल ही साथ देने से मना कर दिया तो मैं ने अखबार वहीं पटक दिया और किचन की ओर चला.
देखा, चूल्हा ठंडा पड़ा है. माथा ठनका, कहीं पत्नी बीमार तो नहीं. मैं शयनकक्ष की ओर भागा. मैं इसलिए चिंतित नहीं था कि पत्नी बीमार होगी बल्कि इसलिए परेशान था कि सच में अगर श्रीमतीजी की तबीयत नासाज हो तो उन का हालचाल न पूछने के कारण उन के दिमाग के साथ यह नाचीज भी आउट हो जाएगा. कहीं होतेहोते बात तलाक तक न पहुंच जाए. अजी, नहीं, आप फिर गलतफहमी में हैं. तलाक से डरता कौन है? तलाक मिल जाए तो अपनी तो चांदी ही चांदी हो जाएगी. मगर तलाक के साथ मुझे एक ऐसी गवर्नेस भी मिल जाए जो हर तरह से मेरे घर को संभाल सके. यानी सुबह मुझे चाय देने से ले कर, दफ्तर जाते वक्त खाना, कपड़ा, मोजे देना, बच्चों की देखभाल करना, उन की सेहत, पढ़ाई- लिखाई आदि पर ध्यान रखना, फिर घर की साफसफाई आदि…चौबीस घंटे काम करने वाली (बिना खर्चे के), एक मशीन या रोबोट मिल जाए. फिर मैं तो क्या दुनिया में कोई भी किसी का मोहताज न होगा.
मैं ने शयनकक्ष में जा कर क्या देखा कि मेरी पत्नी तो सच में ही बिस्तर में पड़ी है. मैं ने घबरा कर पूछा, ‘‘अरे, यह तुम्हें क्या हो गया? तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’
पत्नी ने नाकभौं सिकोड़ते हुए कहा, ‘‘मुझे क्या हुआ है? मैं तो अच्छीभली हूं.’’
‘‘फिर मुझे चाय…’’ उस का तमतमाया चेहरा देख कर मैं चुप हो गया.
‘‘क्यों? क्या मैं कोई नौकरानी हूं कि सुबह उठ कर सब की जरूरतें पूरी करती रहूं. आज मेरा चाय बनाने का मूड नहीं है.’’
मैं भौचक्का रह गया. यह क्या कह रही है? मैं कुछ सम?ा नहीं पाया. इतने में बबलू आ गया.
‘‘मम्मी, मेरा टिफिन बाक्स तैयार है? तुम ने वादा किया था, याद है कि आज मेरे टिफिन में केक रखोगी?’’
‘‘मैं ने कुछ नहीं रखा.’’
‘‘क्यों, मम्मी? आज सभी बच्चे अपनेअपने घर से अच्छीअच्छी चीजें लाएंगे. मैं ने भी उन को प्रौमिस किया था कि मैं केक लाऊंगा.’’
मैं बीच में ही बोल पड़ा, ‘‘अरे, बबलू, आज क्या खास बात है? आप की बर्थ डे है क्या?’’
बबलू ने अपना माथा ठोक लिया.
‘‘पापा आप भी न…अभी पिछले महीने ही तो मनाया था मेरा बर्थ डे.’’
‘‘यू आर राइट,’’ मैं खिसियाते हुए बोला. कैसे भूल गया मैं बबलू का बर्थ डे जबकि मेरी जेब में उस दिन इतना बड़ा होल हो गया था कि टूटे मटके के पानी की तरह सारा पैसा बह गया था.
‘‘फिर आज क्या बात है जो आप सारे बच्चे इतने खुश हो?’’
बबलू ने फिर माथा ठोक लिया. यह आदत उसे अपनी मम्मी से विरासत में मिली थी. दोनों मांबेटे बारबार मेरी नालायकी पर इसी तरह माथा ठोकते हैं.
‘‘पापा, आप को इतना भी नहीं मालूम कि आज सारी दुनिया ‘वैलेंटाइन डे’ मनाती है. जानते हैं दुनिया में इस दिन की कितनी इंपोर्टेंस है? आज के दिन लोग अपने बिलव्ड को अच्छा सा गिफ्ट देते हैं.’’
चौथी कक्षा में पढ़ रहे बेटे के सामान्य ज्ञान को देखसुन कर मेरा मुंह खुला का खुला और आंखें फटी की फटी रह गईं. वाह, क्या बात है. फिर उस की आवाज आई, ‘‘पापा, आप ने मम्मी को क्या गिफ्ट दिया?’’
मेरे दिमाग में बिजली सी कौंध गई. तो यह राज है श्रीमती के मुंह लपेट कर पडे़ रहने का. मैं यह सोच कर अंदर से परेशान हो रहा था कि अब मुझे इस कहर से कौन बचाएगा? मैं ने अपने बेटे के बहाने अपनी पत्नी को सम?ाते हुए कहा, ‘‘बेटे, वैलेंटाइन का अर्थ भी जानते हो? वैलेंटाइन किसी संत का नाम है जिस ने हमारे प्रसिद्ध संत कबीर की तरह दुनिया को पे्रम का संदेश दिया था. यह पे्रम या प्यार किसी के लिए भी हो सकता है. मातापिता, भाईबहन, गुरु, दोस्त आदि. मीरा कृष्ण की दीवानी थी, राधा कृष्ण की पे्ररणा. यह सब प्यार नहीं तो और क्या है? आज का विकृत रूप प्यार…खैर, जाने दो, तुम नहीं समझेगे.’’
‘‘क्या अंकल, बबलू क्या नहीं समझेगा? आप ने जो कहा वह मैं सम?ा गया. बबलू ने ठीक ही तो कहा था, आप ने आंटी को क्या तोहफा दिया?’’
‘‘हूं,’’ सांप की फुफकार सुनाई दी. मैं ने पलट कर देखा. मेरी पत्नी मुझे घूर रही थी. मैं ने उधर ध्यान न देते हुए टिंकू से पूछा, ‘‘तुम कब आए, टिंकू?’’
‘‘अभीअभी, अंकल. आप बात को टाल रहे हैं. खैर, आंटी से ही पूछ लेता हूं. आंटी, अंकल ने आप को क्या तोहफा दिया? कुछ नहीं न?’’ टिंकू को जैसे अपनी आंटी को उकसाने में मजा आ रहा था.
‘‘हुंह, ये क्या देंगे मुझे तोहफा, कंजूस मक्खीचूस. जेब से पैसे निकालने में नानी मरती है,’’ उस ने मुंह बिचकाया.
‘‘जानेमन, मैं तुम्हें क्या तोहफा दूंगा. हम तो जनमों के साथी हैं जिन्हें ऐसी औपचारिकताओं की जरूरत नहीं पड़ती.’’
‘‘रहने दो, ज्यादा मत बनो. अगले जनम में भी इसी कंजूस पति को झेलना पडे़गा. इस से तो मैं कुंआरी भली,’’ मेरी पत्नी बोल पड़ी. बच्चों के सामने कबाड़ा हो गया न.
‘‘सुनो भी यार, मेरा सबकुछ तुम्हारा ही तो है. अपनी सारी तनख्वाह महीने की पहली तारीख को तुम्हें ला कर दे देता हूं और घर तो तुम्हीं चलाती हो. मेरे पास दोस्तों को चाय पिलाने के भी पैसे नहीं बचते. मैं तुम्हें कोई ऐसावैसा तोहफा नहीं दे सकता न? जिस दिन मैं इतना अमीर हो जाऊं कि दुनिया का सब से खूबसूरत और अनमोल तोहफा तुम्हें दे सकूं, उसी दिन मैं तुम्हें तोहफा दूंगा.’’
मैं ने अपने बचाव में पासा फेंका तो वह सही निशाने पर जा कर लगा. श्रीमतीजी के चेहरे पर गुस्से का स्थान शरम ने ले लिया. छूटते ही मैं ने एक और तीर छोड़ा, ‘‘दूसरी बात यह है डार्लिंग, विदेशों में लड़की और लड़के के बीच की केमिस्ट्री कब अपना इक्वेलिब्रियम खो दे कुछ ठिकाना नहीं रहता. इस साल पत्नी की सीट पर कोई है पर अगले साल कौन होगा कुछ पता नहीं. इसलिए उन्होंने एक भी साल का पड़ाव पार कर लिया तो अपने को बहुत भाग्यशाली मानते हैं. और इतना भी झेलने के लिए एक दूसरे को गिफ्ट देते हैं,’’ मेरे इतने लंबे भाषण का उस पर कुछ तो असर होना चाहिए.