‘‘अंकल, मैं एक और उदाहरण दूं?’’ टिंकू ने बड़े उत्साह से पूछा.
‘‘मैं मना कर दूं तो रुक जाओगे?’’ मैं ने बड़़ी आशा से पूछा.
‘‘न, रुकूंगा तो नहीं. आप की इज्जत रखने के लिए यों ही पूछ लिया था. चूंकि टिंकू की मम्मी टीचर हैं इसीलिए बेटे को भी बातबात पर उदाहरण देने की आदत है.’’
‘‘सुनिए, अंकल, विदेशी अपने मांबाप को ‘ओल्ड एज होम’ में रखते हैं और ‘मदर्स डे’ या ‘फादर्स डे’ के दिन फूलों का गुलदस्ता दे कर उन्हें विश करते हैं.’’
टिंकू की बात मुझे बहुत जंची.
‘‘चल, जा, अपनी पढ़ाई कर. छोटा मुंह बड़ी बात,’’ श्रीमतीजी ने उसे डांट दिया. शायद उन्हें याद नहीं था कि टिंकू मेरे बेटे से 4 साल बड़ा था. श्रीमतीजी का यह तेवर शायद इसलिए बना कि वह भी अपने सासससुर को अपने घर में फटकने नहीं देती थीं.
दोपहर के करीब 2 बजे सुमित का फोन आया :
‘‘यार, घर में महाभारत छिड़ा हुआ है. खाना तो क्या चाय तक नसीब नहीं हुई. बड़ी भूख लगी है.’’
‘‘यहां भी वही हाल है,’’ मैं ने रोंआसे स्वर में कहा.
‘‘तू जल्दी से घर से बाहर आ जा,’’ वह मेरा बचपन का दोस्त था और इत्तफाक से हमें एक ही विभाग में नौकरी भी मिल गई थी.
पहले हमारे मकान बहुत दूर थे पर बाद में हम ने पासपास में मकान किराए पर ले लिए. बाहर सड़क पर वह मेरा इंतजार कर रहा था.
‘‘क्या बात है?’’ मैं जानता था पर यों ही पूछ लिया जो आम बात है.
‘‘चल, चलतेचलते बात करते हैं,’’ सुमित बोला.
‘‘सब से पहले किसी होटल में चलते हैं,’’ सुमित बोला तो मैं जान गया कि वह अधिक देर तक भूखा नहीं रह सकता. खाना खाने के बाद हमारी जान में जान आई.