‘‘तुम दोबारा बेवफाई भी नहीं कर सकती. पहली बार किया गुनाह, गलती हो सकती है, दोबारा किया गुनाह एक सोचासमझा जुर्म होता है और मेरा प्यार इतना गिरा हुआ नहीं है कि तुम्हें गुनाहगार बना दे.’’
अगले दिन फिर वसुधा मानव के आने से पहले ही उस के दफ्तर में पहुंच गई, साफसफाई करवाई, मेज पर ताजे फूलों का गुलदस्ता रखा और मानव का इंतजार करने लगी. इंतजार करतेकरते दोपहर हो गई. लंचटाइम में रमया जब दफ्तर में आई तो वसुधा को वहां पा कर चकित रह गई. ‘‘सर तो आज दफ्तर नहीं आएंगे, किसी कौन्फ्रैंस में गए हैं,’’ रमया ने यह कहा तो वसुधा ने एक ठंडी सांस ली, मायूसी से अपना बैग उठाया और अपने कमरे की ओर चल पड़ी.
शाम को रमया ने मानव को सारी बात बताई तो मानव चिंतित हो गया. उसे वसुधा से ऐसे व्यवहार की अपेक्षा न थी. आखिर क्यों वसुधा उम्र के इस पड़ाव में ऐसी नादानी कर रही है? उस ने तो वसुधा की याद को मौत आने तक अपने सीने में दफन कर लिया था. क्यों वसुधा पुराने जख्मों को हरा कर रही है? क्यों नहीं सोच रही कि उस की गृहस्थी है. पति है, बच्चा है...अगले दिन जब उस ने फिर वसुधा को पाया तो उस की परेशानी और बढ़ गई. ‘‘तुम चाहो तो वापस दिल्ली लौट सकती हो, यहां करण...’’
‘‘जानती हूं, यहां करण की देखभाल होती रहेगी और वक्त आने पर आंखों के बारे में भी कुछ अच्छी खबर मिल जाएगी, मगर मैं दिल्ली तुम्हारे बगैर नहीं जाऊंगी. वहां जा कर आनंद से तलाक...’’ वसुधा कुछ कहना चाह रही थी मगर रमया को आते देख ठिठक गई.
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