यह सोच कर भी खीझ सी उठती थी. किसी बहस या शिकायत का भी क्या मतलब था अब. इतने सालों के अंतराल के बाद भी एकदूसरे की देह की गंध उन्हें वापस किसी और कालचक्र में ले कर जा रही थी.
अनायास पुरानी बातें दिलोदिमाग में घूमने लगीं. पुरानी यादों ने धावा सा बोल कर झकझोर दिया था। अब यह एक विडंबना ही थी कि कभी जो इतना आत्मीय, इतना प्रिय और सर्वस्व था, आज उस के ही प्रति ही झरना इतनी उदासीन थी.
वसु और झरना बीए और एमए के दिनों से सहपाठी थे. 5 सालों की घनिष्ठता ऐसी ही थी जैसे फूल के साथ सुगंधि, सूरज के साथ धूप, बादलों के साथ बारिश, सुबह के साथ चिड़ियों का चहचहाना. कैंपस में कक्षाओं से ले कर दूसरे कालेजों में प्रतियोगिताओं, फेस्ट, होस्टल, बंगलो रोड, कमला नगर, कोचिंग, राजीव चौक, मंडी हाउस में नाटक देखने तक की गतिविधियों में वे दोनों एक ही मित्र मंडली के साथ घूमा करते थे.
पहले दोनों के बीच मित्रता हुई और फिर अंतरंगता इतनी बढ़ गई कि विश्वविद्यालय से लाइब्रेरी और घर के रास्ते में दोनों एकदूसरे तक ही सिमट गए और अन्य दोस्तसहपाठी उन के परवान चढ़ते प्रेम के मूक समर्थक और साक्षी बन के रह गए.
नजदीकियां कब बढ़ती गईं और कब उन्होंने शेष जीवन साथ बिताने की पहल करते हुए एकदूसरे को अपना लिया, पता ही नहीं चला. पर जैसे कहते हैं कि आवेग में आती नदी की जलधारा एक समय के बाद संकुचित हो जाती है और कुछ समय के बाद थम जाती है, बस कुछ वैसा ही वसु और झरना के प्रसंग में भी हुआ, जिन्हें एकदूसरे से 1 मिनट की भी दूरी बरदाश्त नहीं थी, वे ही जीवनभर के लिए एकदूसरे से दूर रहने के लिए विवश हो गए.
एमए फाइनल ईयर में झरना आगे पीएचडी करने का सपना देख रही थी तो प्रशासनिक सेवाओं में रुझान के कारण वसु सिविल सर्विसेज की तैयारी के बारे में सोचता रहा. दोनों ने हर स्थिति में एकदूसरे के सपनों और महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने में एकदूसरे का साथ देने का फैसला लिया था. सुख हो या दुख, स्थितियां अनुकूल हों या प्रतिकूल, एकदूसरे के साथ आगे की जिंदगी के अनेक साल साथ बिताने की ठान ली थी उन्होंने. उन की सांसें एकसाथ धड़कनें लगी थीं. दोनों एकदूसरे के प्रति तनमन से समर्पित थे मगर इसे कुदरत का क्रूर मजाक कहें कि समय एक जैसा नहीं रहता। सुख के बाद दुख और वसंत के बाद ग्रीष्म ऋतु का आना अवश्यंभावी है।
नवंबर का महीना था. वसु पहले ही कोशिश में सिविल सर्विसेज की परीक्षा के सभी चरणों में सफलता के बाद ट्रैनिंग के लिए मसूरी रवाना हो रहा था और झरना पीएचडी प्रोग्राम में रजिस्टर्ड हो गई थी. पहली बार उन्हें एहसास हो रहा था कि उन के बीच दूरियां बननी शुरू हो गई थीं. सब से बड़ा सदमा झरना को तब लगा जब उसे मालूम हुआ कि पहली पोस्टिंग के बाद वसु के घर पर उस के विवाह के लिए एक से बढ़ कर एक संभ्रांत और प्रतिष्ठित परिवारों के रिश्तों की भीड़ सी लग गई थी और उन दोनों के आपसी संबंधों के विषय में जानते हुए भी वसु के मातापिता भारी दहेज और प्रतिष्ठित परिवारों से संबंध के लोभ को निकाल नहीं कर पा रहे थे.
विश्वास न होता था कि झरना जैसी तेज और सुलझे दिमाग की लङकी को अपने बेटे की पत्नी के रूप में वसु के मातापिता को अपनाने में क्या आपत्ति हो सकती थी पर जैसाकि सामाजिक परिवेश था, अधिकांश मातापिता अपने नौकरीपेशा साधन संपन्न बेटों को मैरिज मार्केट में ट्रौफी की तरह ही लौंच करते थे. झरना को जैसे ही पता लगा कि वसु के मातापिता आए हुए रिश्तों की जांचपड़ताल में लग गए हैं, उसे गहरा आघात सा लगा और उस ने वसु को कौल कर के अपनी चिंताएं जाहिर कीं पर उस समय वसु ने उन सारी बातों को सुनीसुनाई अफवाहें कह कर खारिज कर दिया। आज पहली बार उस का आत्मविश्वास और धैर्य उस का साथ नहीं दे रहे थे। वह सोच में पड़ गई कि इतनी अच्छी शिक्षा और स्वाभिमान के बावजूद कैसे इतनी आसानी से मैं ने अपना सर्वस्व किसी और को समर्पित कर दिया? सच में अपने अच्छे और बुरे के निर्माता हम स्वयं ही होते हैं।
पहली बार उसे अपने चाहे हुए रिश्ते में घुटन सी महसूस होने लगी थी। सच ही तो कहते थे लोग कि हाथ पर हाथ रख देना एक बात थी पर किसी का हाथ हाथ में ले कर साथ में चलने का प्रण निभाना कोई आसान बात न थी. फिर तो कुछ दिनों में अलगअलग सी अनेक बातें सुनने में आईं पर वे सभी उन के संबंध के प्रतिकूल ही थीं.
वसु ने अपने मातापिता से नाराजगी दिखाई तो उन्होंने अपने अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण से आपत्ति. वसु झरना के मातापिता से भी मिला और झरना के मातापिता नम्र निवेदन ले कर वसु के घर भी गए पर वसु के मातापिता पुत्र की क्लासवन की नौकरी और उस के मद में चूर किसी निम्न मध्यवर्गीय परिवार की शिक्षिका को अपने घर की बहू बनाने को बिलकुल राजी नहीं हुए। 21वीं सदी में भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता, प्रसन्नता पारिवारिकसामाजिक दबाव में कसमसा कर रह गए थे.
धीरेधीरे समय बीता और वसु और झरना के बीच बातचीत बंद हो गई. झरना के जीवन से वसंत चला गया और चेहरे से मुसकान. अपना सर्वस्व वसु पर वार कर उस ने खुद को खाली कर लिया था पर समय सारे जख्म भर देता है… पहले जो वियोग पहाड़ सा लगता था उस ने ही झरना को जीवन का एक मकसद दे दिया और वह पूरी तरह से अपनी लाइफ में व्यस्त हो गई. वसु के लिए अब उस के मन में एक कड़वाहट जरूर घर कर गई और उस का एक स्थायी प्रभाव यह हुआ कि वह किसी भी पुरुष पर फिर विश्वास करने की हिम्मत कभी न कर पाई और कितने ही दबावों के बावजूद उस ने अपना जीवन अपनी शर्तों पर अपने मातापिता के साथ ही बिताने का निर्णय कर लिया.