“भाई साहब, पुणे एअरपोर्ट लेना,” झरना बाणेर गांव स्थित अपने गेस्टहाउस से निकल कर बस स्टौप से औटो रिकशा को अपने गंतव्य तक चलने का निर्देश देते हुए बोली.
आज 3 दिनों की कार्यशाला की समाप्ति के बाद वह दिल्ली के लिए रवाना हो रही थी. वैसे तो 17-18 किलोमीटर के रास्ते को तय करने में औटो को तकरीबन 35 मिनट लगने थे, इसलिए वह आराम से औटो में बैठ गई. अगले 1 घंटे में एअरपोर्ट पहुंच कर अपना लगेज चेकइन काउंटर में डिपौजिट कर, बोर्डिंग पास कलैक्ट कर, डिपार्चर से पहले की सैल्फ चेकिंग इत्यादि प्रक्रियाओं से फुरसत पा कर वह वेटिंग लाउंज की तरफ चल दी. समय देखा तो अभी लगभग 1 घंटे शेष थे उस की फ्लाइट में. अपनी उड़ान को समयतालिका से एक बार फिर चेक कर आश्वस्त हो वह आसपास के रिटेल स्टोर्स पर शौपिंग के लिए मुड़ गई.
पुणे एअरपोर्ट एक छोटा पर बहुत ही बेहतरीन और साफसुथरा एअरपोर्ट है. कुछ कौफीचाय आउटलेट्स और एक बुक स्टोर, “अरे, क्या नाम बताया था उस की सहकर्मी नलिनी ने? लैंड मार्क, हां यही तो था उस की नजरों के सामने,” दूर से ही नईनवेली रंगबिरंगी पुस्तकों के कवर्स झिलमिला रहे थे.
झरना एक क्वालिफाइड, सौम्य, संपन्न और अपने कार्यक्षेत्र में ईमानदारी से काम करने वाली टीचर थी. वह राष्ट्रीय राजधानी स्थित प्रतिष्ठित शैक्षणिक अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान में पिछले 18 वर्षों से कार्यरत थी और आजकल एक सीनियर प्रोफैसर की हैसियत से देश के कई राज्यों में टीचर्स ट्रैनिंग व पाठ्यक्रमों से संबंधित नीतियों पर विमर्श और कामकाज के लिए कार्यशालाओं के आयोजन के लिए रिसोर्स पर्सन की तरह आमंत्रित की जाती थी और पुणे की यह यात्रा भी इसीलिए थी.
इस साल की लोकप्रिय पुस्तक गीतांजलि रचित ‘रेत समाधि’ की प्रतियां झरना को दूर से ही शोकेस में रखी दिख गई थीं और वह तेज कदमों से जैसे ही बुकस्टोर में घुसी एक पुरुष उस के और किताबों के बीच में आ गया. शायद वह भी उसी किताब में रुचि रखता था, तो वह शिष्टतावश प्रतीक्षा में चार कदम पीछे रुक गई.
उस दौरान वह उत्सुक ग्राहक किताब को हाथों में ले कर उस के ब्लर्ब को पढ़ने का यत्न करने लगा और झरना थोड़ी सी अधीरता के साथ स्टोर असिस्टैंट से बोली, “क्या आप मुझे भी एक प्रति थमा देंगे प्लीज?” इस पर वह आदमी तेजी से मुड़ा और कुछ कह सकने में असमर्थ एकदम अवाक सा खड़ा रह गया. झरना भी उस के चेहरे को देख कर जमीन में गड़ सी गई और सोच में पड़ गई, ‘कुदरत भी क्या दिन दिखाता है. आज इतने सालों बाद यही एक चेहरा उस की नजरों के सामने पड़ना था?’
बहुत कठोर और लंबे संघर्ष के बाद, एक स्पेस टाइम को लांघ कर वह अपने बिखरे हुए जीवन को एक सही मुकाम तक पहुंचा पाई थी पर आज फिर सालों बाद अचानक किसी आशंका से भौंचक्की सी खड़ी रह गई थी.
सेल्स असिस्टैंट ने रेत समाधि की एक प्रति उसे थमाई और फिर वह उस पुरुष से उस की अभिरुचि की अन्य किताबों की शैलियों, विषयों के बारे में उस से बातें करने लगा. झरना किंकर्तव्यविमूढ़ सी उस पुरुष के चेहरे को देखती रही और तब उस की असहजता को भांपते हुए वह कुछ हिम्मत कर के बोला, “अरे झरना, तुम यहां पुणे में? कैसी हो?” झरना ने कुछ संयत होते हुए एक तरफ खिसकते हुए बहुत ही टूटीफूटी आवाज में उत्तर दिया, “वसु, तुम?यहां कैसे?” फिर दोनों जल्दीजल्दी अपनीअपनी किताबों की प्रतियां ले कर और जरूरी भुगतान कर के स्टोर से बाहर निकल आए। पर इस पूरी प्रक्रिया के दौरान वह अनेक तरह के विचारों से उलझती रही.
स्टोर से बाहर निकल कर वसु कुछ विश्वास से झरना से बोला, “तो नई किताबों का शौक बदस्तूर जारी है।”
इस पर झरना कुछ सहमते हुए बोली, “काफी कुछ पहले जैसा ही है और तुम बताओ यहां पुणे में कैसे? समर्थ ने कभी जिक्र किया था कि प्रशासनिक सेवा में जौइनिंग के बाद तुम अलगअलग जगहों पर पोस्टेड रहे और फिर किसी बड़े अधिकारी की बेटी से विवाह भी. तुम्हें बहुत सारी शुभकामनाएं. देर से ही सही पर सचमुच अनेक शुभकामनाएं,” झरना के मुंह से इतनी मर्यादित बातचीत सुन कर वसु के चेहरे का रंग फीका पड़ गया और वह खुद को संभालते हुए बात को दूसरी तरफ मोङते हुए बोला, “कौफी…”
झरना थोड़ा तकल्लुफ करते हुए बोली,”अरे नहीं, किसी चीज की जरूरत नहीं है। वह तो मैं बस काम के सिलसिले में यहां आई थी और अब वापस अपने ठिकाने मतलब दिल्ली की रवानगी है.
वसु भी तपाक से बोला, “हां, मैं भी पिछले 8 महीनों से यहां था पर अब सैंटर में पोस्टिंग दी गई है तो उधर ही जा रहा हूं.”
“तो, तुम्हारा परिवार? क्या वह भी इधर ही है? आई ऐम सौरी…तुम्हें बेकार की बातों में उलझाए रखा।”
वसु बोला “अरे नहीं, ऐसी कोई बात नहीं, आज मैं अकेला हूं,” और फिर कुछ सोच कर अपनी बात को दोहराते हुए बोला,“आजकल मैं अकेला ही हूं। वैचारिक मनमुटाव की वजह से हमारी शादी 5 साल बाद ही टूट गई. 2 लोगों की लापरवाही और नासमझी का खमियाजा हमारी इकलौती संतान को भुगतना पड़ रहा है. वह कहते हैं न कि बिना सोचेसमझे की शादी तो जिंदगीभर की बरबादी। हमारी बेटी अब 16 साल की हो रही है और पंचगनी में एक बोर्डिंग स्कूल में पढ़ रही है. इस साल उस की स्कूलिंग भी खत्म हो जाएगी तब कालेज की पढ़ाई के लिए शायद वह भी दिल्ली विश्वविद्यालय आ जाए.
“निष्ठा, मेरी ऐक्स वाइफ एक स्वतंत्र जर्नलिस्ट है और कई पत्रपत्रिकाओं के लिए फ्रीलांसिंग करती है. मुंबई में रहती है.”
झरना यह सब सुनने के बाद चिंतित होती हुई बोली, “मुझे अफसोस हुआ यह सब जान कर,”और कौफी के 2 घूंट ले कर बात को बदलने का उपक्रम करते हुए किताब के पन्ने पलटने लगी. कुछ कहानियां अधूरी रह जाती हैं. शायद उन का मुकम्मल भी वही होता है. पर एक कहानी जो आज से 18 साल पहले शुरू हुई थी और 2 सालों में ही रुक गई आज फिर इतने सालों के अंतराल के बाद क्यों चल पड़ी? उस का जी चाह रहा था कि उठ के चल दे पर एक अजीब सी कशमकश सी थी. उन के बीच की खामोशी और सन्नाटे की वजह से सब कुछ ठहर सा गया था, यहां तक कि हवा भी.
वसु ने उस की हड़बड़ाहट को भांपते हुए पूछा, “और तुम अभी भी अंकलआंटी के साथ या जीवन में कहीं कुछ परिवर्तन…”
झरना मन ही मन सोचती रही कि इन सब बातों का अब क्या मतलब है, पर शिष्टाचार और पुरानी पहचान के नाते कुछ और कहने का जोखिम न उठा सकी. पर किसी कहानी को किसी मोड़ पर अधूरा छोड़ने से बेहतर है कि किसी अंजाम पर ला कर छोड़ा जाए, इस भावना से कुछ दबे स्वर में बोली, “सब पहले जैसा ही है, मैं और मम्मीपापा. परिवार और मित्रों के भरसक प्रयास के बावजूद मैं फिर से अपना विश्वास खोने को तैयार न थी. लेकिन मैं अपने जीवन से में पूर्णतया संतुष्ट हूं।”