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वैशाली के आंसू बहने लगे, ‘क्या मुझे यही ताना देने के लिए बचा था?’

‘नहीं, नहीं, मेरा मतलब यह नहीं था. बच्चे थोड़े बड़े हो जाएं तो तुम फिर से काम शुरू कर देना,’ सुधीर हड़बड़ा गया था.

और फिर वैशाली घर तक ही सीमित रह गई. उस का समय काटना मुश्किल हो जाता था पर सुधीर ने उसे मजबूर सा कर दिया था. अब वसुधा की खबर ने उसे बुरी तरह बेचैन कर दिया. उसे कई दिनों से सुधीर का व्यवहार बदला सा लग रहा था. वह देर से घर आने लगा था, कभी वह दूसरे शहर के टूर पर बाहर रहने की बात करता था. बच्चे व वैशाली उसे बहुत मिस करते थे. शिकायत करने पर वह कह देता कि मेहनत व भागदौड़ नहीं करूंगा तो आगे कैसे बढ़ूंगा. हमारा काम कैसा है यह तुम जानती ही हो. अब वैशाली समझ रही थी कि उस का समय व प्यार अब किसी और के नाम हो गया है. पर वह चुप थी.

पर एक दिन वह बोल ही गई, ‘आजकल आप घर से बाहर कुछ ज्यादा ही नहीं रहने लगे हैं?’

‘क्या मतलब है तुम्हारा?’ चोर निगाहों से देखते हुए सुधीर बोले.

‘मतलब आप अच्छी तरह समझते हैं. मेरा चैन खत्म कर के आप ऐसे पूछ रहे हैं जैसे कुछ हुआ ही न हो.’

‘देखो, मेरा दिमाग खराब मत करो और मुझे सोने दो. न जाने क्या कहना चाह रही हो?’

‘आप जानते हैं कि मैं क्या कह रही हूं. बताओ क्या कमी है मुझ में जो आप को किसी और के बारे में सोचने की जरूरत पड़ गई.’

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