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‘‘पता नहीं, फोन उठते ही तो काट दिया.’’

विहाग ने नंबर देखा, रेवती या होने वाले ससुराल से था. विहाग इस वक्त शायद वहां फोन करना नहीं चाहता था. उस ने मुझ से ही धीरेधीरे बात करना जारी रखा. ‘‘एक बड़ी समस्या है. मुझे रेलवे क्वार्टर तो मिला है लेकिन रिपेयर करवाने की बड़ी समस्या आ गई है और अब तो गुंडों का भी कब्जा हो गया है, मेरे साथ बदसुलूकी भी की उन्होंने अब.’’

‘‘ओह, क्या तुम मुझे अपना क्वार्टर नंबर बता पाओगे? मैं कुछ कोशिश कर सकती हूं.’’

‘‘अच्छा? क्वार्टर रिपेयर का बहुत सा काम पड़ा है, अब मेरी तनख्वाह इतनी भी नहीं कि

मन पसंद रिपेयर करवा सकूं. बाहर किराए पर मकान लूं तो बारबार घर बदलने की उठापटक.

इसी वजह पीडब्लूआई के इंजीनियर के पास

गया था, लेकिन उस ने पहले तो अपनी बेटी मालिनी को मेरे सिर मढ़ने की कई तिकड़मे की, और बाद में क्वार्टर में गुंडे बिठा दिए. इधर

नौकरी की परेशानियां और अब तक रहने का सही इंतजाम नहीं.’’

मैं ने जरा टोह ली तो मालिनी से ही ब्याह... ‘‘मेरे इतना भर कहने से ही वह परेशान सा इधरउधर देखता बात घुमाने की कोशिश सी

करने लगा कि अचानक जैसे उस का मेरी कही बात पर ध्यान गया हो. चौंक कर पूछा, ‘‘तुम कुछ कर पाओगी?’’

मैं समझ गई महाशय बड़े मासूम से टैक्निकल हैं, इन का रोमांस जीने की जुगत से शुरू हो कर इसी में खत्म हो जाता है. अगर मैं उस की जिंदगी में आ पाई तो तेलनून में ही फूलों की खुशबू पैदा कर दूंगी.

मन की प्रसन्नता को छिपाते हुए और विहाग की सकारात्मकता को भांपते हुए मैं ने

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